Agnija - 70 in Hindi Fiction Stories by Praful Shah books and stories PDF | अग्निजा - 70

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अग्निजा - 70

प्रकरण-70

देर रात तक केतकी विचारों में खोई रही। “जीतू को मेरी कितनी चिंता है...अब उसे मुझे किराये के मकान में नहीं रखना है...मध्यमवर्गीय लोगों के लिए घर पहला और आखिरी सपना होता है। वह मरने के बाद ही खत्म होता है। लेकिन जीतू कितना संवेदनशील है...ये अवसर न आया होता तो सके व्यक्तित्व का यह अच्छा पहलू उसके सामने कभी आया ही नहीं होता। लेकिन भावनाएं अपनी जगह ठीक हैं लेकिन इसमें एक पेंच तो पड़ा ही है कि चार लाख रुपए की रकम आएगी कहां से? पिताजी के पास हों, या न हों..होंगे भी तो क्या वे देंगे?क्यों देंगे? मेरे लिए? उन्होंने मना कर दिया तो मेरे कारण फिर से घर में झंझट चालू हो जाएगी और जीतू को भी बुरा लगेगा। फिर किया क्या जाए? ”

अगले दिन उसने अपना काम जल्दी-जल्दी निपटाया और उपाध्याय मैडम के घर पहुंच गई। उनको सब कुछ विस्तार से समझाया। उपाध्याय मैडम को जीतू वैसे भी एक रहस्यमय व्यक्ति लगता था। उस पर अब ये एक नया प्रकरण। पैसों के बारे में उन्होंने केतकी को एक सलाह दी, “कई संस्थाएं अपने कर्मचारियों को घर खरीदने के लिए कर्ज देती हैं, कम ब्याज पर। तुम अपने ट्रस्टी से जाकर मिलो। यदि वहां काम न बना तो कोई और विकल्प खोजेंगे। और हां 20-25 हजार कम पड़ जाएं तो मैं अपना फिक्स्ड डिपॉजिट तोड़ कर दे दूंगी।”

“नहीं, नहीं। फिक्स्ड डिपॉजिट तो आपके भविष्य की सुरक्षा के लिए है।”

“भविष्य में कोई परेशानी आएगी तो मैं देख लूंगी। फिर तुम भी रहोगी ही।”

केतकी ने उनका हाथ प्रेम से पकड़ा। बड़ी देर तक अपनी दोनों हथेलियों में रखा, “आज चंदाराणा साहेब से मिल कर बात करती हूं।”

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शाला में पहुंच कर उसने अर्दली से चंदाराणाजीसे मिलना है इस लिए रीसेस में या फिर शाला की छुट्टी होने के बाद का समय देने का चिट्ठी भिजवाई। रीसेस की घंटी बजी, और अर्दली ने आकर उससे कहा, “चंदाराणा साहेब ने आपको बुलाया है। ”

औपचारिकता समाप्त होते ही कीर्ति चंदाराणा ने सीधा प्रश्न किया, “कहिए, किस काम से मिलना था?”

“सर, सॉरी, काम जरा व्यक्तिगत है।”

केतकी ने पूरी बात विस्तार से बताई। चंदाराणा हंस कर बोले, “बधाई, आप अपना घर लेने का विचार कर रही हैं। सपना देख रही हैं, यही एक बड़ी शुरुआत है। अब रही चार लाख की बात। देखिए, हमारी शाला की स्टाफ को-ऑपरेटिव सोसायटी चलती है। मैंने ही शुरू करवाई है। आप जब शाला में आईं तब आपने सोसायटी के फॉर्म पर भी हस्ताक्षर किए होंगे।”

केतकी को कुछ याद नहीं आ रहा था, लेकिन वह उनकी बात ध्यान लगा कर सुन रही थी।

“हर महीने में आपकी वेतन से एक छोटी सी रकम उसमें जमा होती है। सदस्यों को इस जमा रकम में से उनके जरूरी व्यक्तिगत कामों के लिए कर्ज दिया जाता है। उसका ब्याज एकदम कम होता है। यह ब्याज हर साल अन्य सदस्यों के खाते में बांट दिया जाता है।”

मिलिंद पटेल से जाकर मिलिए, आपको कितने रकम तक कर्ज मिल सकता है? हर शनिवार को हमारी मीटिंग होती है उसमें कर्ज के लिए आए आवेदनों पर विचार होता है।

“थैंक यू वेरी मच सर...”

आभार बाद में मानिएगा। लेकिन इस सोसायटी से आपको चार लाख रुपए का कर्ज नहीं मिल सकेगा। क्योंकि आपको शाला में आए ज्यादा दिन नहीं हुए हैं।

केतकी का चेहरा उतर गया। उसने चिंतापूर्वक पूछा, “सर, तो कोई और व्यवस्था हो सकती है क्या?”

“होगी न...अपने शहर में एक अच्छी सहकारी बैंक के संचालक मेरे मित्र हैं। उनको मैं फोन कर दूंगा। जाते समय अपनी पे-स्लिप लेकर जाइएगा। उस पर से वह बता देंगे कि आपको कितना कर्ज मिल सकेगा। वहां पर आपका काम हो जाएगा। फिर भी कुछ कम पड़ जाएं तो मैं दूंगा...अब हंस दो जरा...”

हंसने की जगह केतकी सोच में पड़ गई। कोई व्यक्ति इतना सरल और मददगार हो सकता है?

“सर, मेरे पास शब्द नहीं हैं....लेकिन मैं कर सकूं ऐसा कोई भी काम होगा, तो मुझे अवश्य बताइएगा।”

“सबसे पहले तो इस उपकार का बोझ अपने मन से उतार फेंकिए कि मेरे कारण आपको कर्ज मिल रहा है। दूसरी बात आप इस शाला के विद्यार्थिय़ों के लिए बहुत कुछ कर रही हैं।”

“सर, वो तो मेरा कर्तव्य है।”

“और एक तीसरा काम बताऊं क्या?”

“प्लीज सर...”

“कोई व्यक्ति यदि संकट में हो, परेशानी में हो तो उसकी बात ध्यानपूर्वक सुन लीजिए। आपके पास उसकी समस्या का समाधान न भी हो लेकिन यदि आपने उसकी बात ध्यान से सुन ली तो उसको अच्छा लगेगा। एक संवेदनशील व्यक्ति के तौर पर हमारा यह कर्तव्य होता है। हालांकि, ये बातें आपको समझाने की आवश्यकता नहीं, ये मुझे मालूम है। ”

“फिर भी मैं ये बातें और अधिक ध्यान में रखूंगी। थैंक यू वेरी मच सर...” कह कर केतकी उठ गई।

चंदाराणा ने दिल से कहा, “ऑल द बेस्ट।”

..........................

शाला के क्रेडिट कार्ड सोसायटी से उसे ले-देकर चालीस हजार रुपए तक मिलने वाले थे। सहकारी बैंक से तीन लाख अस्सी हजार रुपए मिल सकते थे। जमानतदार के रूप में स्वयं चंदाराणा साहेब ने हस्ताक्षर किए थे। केतकी को बहुत आश्चर्य हुआ कि इतनी सहजता के साथ चार लाख रुपयों का इंतजाम हो गया। उसने बैंक मैनेजर से पूछा, “मुझे चेक कब मिलेगा?”

“आप बिल्डर का पत्र लेकर आ जाएं, तुरंत मिल जाएगा।”

“कैसा पत्र?”

“आप पहले कुछ रकम जमा करके फ्लैट बुक कर लें। फ्लैट बुक करने के बाद जो पत्र मिलेगा उसके आधार पर हम बाकी रकम सीधे बिल्डर के खाते में डाल देंगे, या उसके नाम से ड्राफ्ट बना देंगे। ”

“सर, जिनके नाम से फ्लैट लेना है, उन्हें यहां लाने की जरूरत होगी?”

“ये फ्लैट आपके नाम से होगा, तभी आपको रकम मिलेगी। ”

“ऐसा क्यों सर? फ्लैट तो मुझे अपने पति के नाम से लेना है।”

“देखिए, कर्ज का आवेदन आपने अपने नाम से दिया है। आपकी पे-स्लिप के आधार पर आपको यह कर्ज मिल रहा है। यदि आपने किश्तें नहीं भरीं तो, फ्लैट कब्जे में लेकर हम फ्लैट बेच सकते हैं, और कर्ज वसूल सकते हैं। इसके अलावा कर्ज की किश्तें आपके वेतन से कटेंगी।” केतकी उनकी बात से सहमत हो गई। वह जल्दी-जल्दी बैंक से बाहर निकली। रास्ते में जीतू के पसंदीदा गुलामजामुन खरीदे।

केतकी को उत्साह में आता देख कर जीतू के मन में आशा जागी। उसने अधीर होकर पूछा, “क्या हुआ?”

केतकी ने प्लास्टिक की थैली से गुलाबजामुन का पैकेट निकाला, उसमें से दो गुलाबजामुन निकालकर जीतू के मुंह में रख दिए। जीतू को लगा कि खबर तो अच्छी ही होगी। उसने एक गुलाबजामुन केतकी को खिला दिया। दोनों एकदूसरे की तरफ देखते हुए गुलाबजामुन खाने लगे। केतकी ने और दो गुलाब जामुन जीतू को खिलाने के लिए उठाए, लेकिन जीतू ने उसमें से एक लेकर केतकी को खिला दिया। केतकी की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे।

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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