Agnija - 65 in Hindi Fiction Stories by Praful Shah books and stories PDF | अग्निजा - 65

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अग्निजा - 65

प्रकरण-65

छुट्टी के दिन जीतू घर आया। सभी को प्रणाम किया। फिर केतकी को किनारे ले जाकर बोला, “चलो आज कहीं घूमने चलें। भावना को भी साथ ले लो...”केतकी को खुशी हुई। वह बोली, “आप ही उससे कहें, उसको अच्छा लगेगा।”

जीतू ने भावना को बुला कर हंसते हुए कहा, “छोटी साली साहिबा, आज हमारे साथ घूमने चलेंगी क्या? सच कहा जाए तो भावना की बिलकुल इच्छा नहीं थी, लेकिन जीजाजी और केतकी के चेहरे का आनंद देख कर वह राजी हो गई। केतकी ने भावना के कान में कहा, “इनका जन्मदिन पास आ रहा है, हम लोग उनके लिए बाजार से कुछ अच्छा प्रेजेंट खरीद लेंगे।”

दामाद होने के कारण जीतू का स्वागत सत्कार चल रहा था, तब तक दोनों बहनें तैयार हो गईं। भावना ने केतकी की पर्स में अपनी छोटी पर्स रख दी। तभी बाहर से रणछोड़ ने आवाज दी, “भावना, अभी और कितनी देर है?” सुनते ही दोनों जल्दबाजी में बाहर निकलीं, लेकिन पर्स अंदर ही भूल आईं। घर से निकलतेही केतकी को कुछ याद आया और उसने जीतू से एक रुपए का सिक्का मांगा। जीतू ने दो-तीन सिक्के दे दिए। केतकी ने हड़बड़ी में पब्लिक फोन बूथ पर गई और एक फोन लगा कर वापस आई। “ट्यूशन वालों को बता दिया कि आज नहीं आऊंगी, संभव हुआ तो शाम को आऊंगी।”

जीतू हंसा, लेकिन केतकी ने ट्यूशन वालों को फोन किया होगा, इस बात का उसे भरोसा नहीं हो रहा था। तीनों रिक्शे में बैठ गए। माणेकलाल मार्केट पर पहुंचते ही भावना बोली, “यहीं रोकिए..यहीं उतरेंगे।”

जीतू ने पूछा, “यहां किस लिए? यहां तो कोई अच्छा होटल भी नहीं है।”

“जीजू, मुझे यहां कुछ खरीदी करनी है...प्लीज यदि आपको एतराज न हो तो...आपकी केतकी को अपने साथ थोड़ी देर के लिए ले जाऊं?”

“ वाह साली साहिबा...आपकी केतकी...मुझे यह बहुत अच्छा लगा...ले जाओ...इस संबोधन के लिए मेरी ओर से भोजन के बाद एक बढ़िया आइसक्रीम...ठीक है न... ?”

केतकी खुशी से चल पड़ी लेकिन जीतू वहीं खड़ा रहा, “आप भी आ रहे हैं न हमारे साथ?”

“तुम लोगों की खरीदी में मेरी कोई रुचि नहीं...पास में ही मेरा एक काम है, मैं उसे निपटा कर आधे घंटे में वापस यहीं मिलता हूं।”

“ठीक है, आइए...” केतकी तो यही चाहती थी। दोनों बहनें बड़े उत्साह से मार्केट में गईं। बीस-पच्चीस मिनट घूमने-फिरने के बाद उन्होंने जीतू के लिए एक अच्छा सा शर्ट, टी शर्ट बेल्ट और कफलिंक्स खरीदे। लेकिन फिर अचानक ध्यान में आया कि पर्स तो वे घर पर ही भूल आई हैं। भावना ने बताया कि उसने अपनी छोटी पर्स केतकी की पर्स में रख दी थी। दोनों ने दुकानदार से कहा कि वह कपड़ों की थैली किनारे रख दे, और वे दुकान से बाहर निकलीं।

दोपहर के बारह बजने को आए। दोनों बहनेंखरीदे हुए सामान और उसके भाव की चर्चा करती हुई खड़ी थीं। आधा घंटा बीत गया, जीतू का पता-ठिकाना नहीं था। भावना को बहुत प्यास लगी थी, लेकिन अब किया क्या जाए? और आधा घंटा बीत गया और अब भावना को जोरदार भूख भी लग आई। केतकी सोच रही थी कि भावना को साथ न लाई होती तो अच्छा होता। और भावना सोच रही थी कि अच्छा हुआ वह साथ आ गई, नहीं तो केतकी, जीतू की राह देखते अकेली इतनी देर कहां खड़ी रहती? सवा बजे के करीब जीतू आया। मुंह में गुटका भरा हुआ और चेहरे पर निश्चिंतता का भाव। “तुम लोगों की खरीदी जल्दी निपट गई...मुझे थोड़ी देर हो गई...”

केतकी बोल पड़ी, “थोड़ी...?”

केतकी ने उसे बीच में ही टोका, “चलो अब खाना खाने चलें। बड़ी भूख लगी है मुझे और भावना को भी।” चलते-चलते जीतू चारों तरफ नजरें दौड़ा रहा था, मानो किसी को खोज रहा हो। फिर से कोई नया झगड़ा चालू न हो जाए, इस लिए केतकी चुप बैठी रही। भावना का ध्यान खाने की ओर था और जीतू कुछ विचार कर रहा था। कुल मिलाकर कोई भी किसी से बात नहीं कर रहा था। तीनों चुपचाप खाना खा रहे थे। खाना खाने के बाद आइसक्रीम खाने की इच्छा न तो केतकी की थी, न ही भावना की इस लिए जीतू ने उन दोनों घर पहुंचा दिया। उसने रिक्शे से उतरते समय पूछा, “शाम को सात बजे मुलाकात हो सकती है क्या?” केतकी ने सिर हिलाकर हां कहा। दोनों को अकेले रहें इस लिए भावना आगे चलने लगी।

घर में सभी खुश थे। जीतू सभी के साथ अच्छा व्यवहार कर रहा था। केतकी के साथ भावना को भी घुमाने ले गया। लेकिन जयश्री बोली, “ऐसे आदमी के साथ खाना खाना तो दूर मैं दो कदम भी साथ चलना नहीं चाहूंगी।” रणछोड़ ने उसे आंखें दिखाते हुए चुप रहने का इशारा किया। यशोदा ने जीतू के बारे में खोद-खोद कर सवाल किए और भावना ने जो उत्तर दिये उससे उसे अच्छा लगा। रणछोड़ विचार करने लगा कि अब शादी की बातें उसे ही आगे बढ़ानी होंगी।

केतकी को अपने निर्णय पर संदेह हो रहा था। उसने जो निर्णय लिया है, वह ठीक तो है न? आज जीतू ने जो कुछ किया वह ठीक नहीं था। उसने जानबूझकर ऐसा किया या संयोगवश हुआ होगा? पहली ही मुलाकात में भावना ने जीतू के बारे में क्या धारणा बनाई होगी? लेकिन जीजाजी ने सवा घंटे धूप में भूखे पेट प्रतीक्षा करवाई यह बात भावना ने यशोदा को बताई नहीं, इसकी जानकारी केतकी को नहीं थी।

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बहुत गर्मी थी इस लिए केतकी ने शाम को अपना पसंदीदा स्लीवलेस ब्लाउज और उससे मैचिंग साड़ी पहन कर जीतू से मिलने के लिए बाहर निकली। आज वह बड़े उत्साह में थी। जीतू के साथ आज की शाम अच्छे से गुजरेगी, उसे इस बात की खुशी थी। आज की शाम जीवन भर यादगार बनी रहेगी, उसे ऐसी आशा थी। केतकी के मन में आया कि दोनों के पसंद, विचार, जीवनशैली और मत-विचार एकदम भिन्न हैं, लेकिन वैसे भी ऐसे कौन से व्यक्ति हैं जिनके विचार सौ प्रतिशत दूसरे के साथ मेल खाते हैं? मतभेद, विचार भिन्नता की खाई आपस के प्रेम, परवाह और एकदूसरे को समझ लेने से और कुछ बातों की ओर ध्यान देने से खत्म हो सकती है। ये मतभेद साथ-साथ रहते-रहते मिटने लगेंगे। और ऐसा ही हो, इसके लिए वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेगी।

इन सकारात्मक, उत्साह से भरे और रोमांटिक विचारों में खोई हुई केतकी कब जीतू के पास आ पहुंची, उसे भी पता नहीं चला। लेकिन उसे देखते ही जीतू को मानो 440 वॉट का करंट लगा। वह उसकी ओर देखते ही रहा। उसका मुंह खुला का खुला रह गया। होश में आने के बाद उसने कहा, “ये क्या रंगरूप बना रखा है? अंग प्रदर्शन का इतना ही शौक है तो इतने कपड़े भी क्यों पहनना?”

“अरे, ये तो सामान्य कपड़े हैं। आजकल तो सभी पहनते हैं। मैं तो स्कूल में भी कई बार पहन कर जाती हूं।”

“चुप रहो, मुझे नहीं चलेगा...स्कूल में भी नहीं...और कहीं भी नहीं..क्या समझ में आया?”

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जीतू ने एक रिक्शा रुकवाया। केतकी का हाथ खींचते हुए उसमें बिठाया। केतकी हतप्रभ थी। जीतू का गुस्सा कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था। गुस्से में थरथर कांप रहा था। “तुम्हें बाल खोल कर रखने हैं...गॉगल लगाना है... इधर उधर देखते हुए चलना है...अभी तो सगाई को एक महीना भी नहीं गुजरा है और तुम्हारे नए-नए लक्षण मुझे दिखाई देने लगे हैं।”

“ये कैसी बातें कर रहे  हैं आप?”

“चुप रहो..ये सब तुम्हारी उपाध्याय मैडम की सीख दिखाई दे रही है...? उस दिन भी माणेक मार्केट में वह आने वाली थी न...क्यों नहीं आई?”

“क्या?”

“हां, घर से निकलने पर पहले तुमने उसी को फोन लगाया था न..मैं दूर से करीब डेढ़ घंटे से नजर रखे हुए था? और वह इस उम्र में भी स्लीवलेस कपड़े पहन कर घूमती है...उसको तो बिलकुल भी शर्म नहीं... लेकिन तुमको भी अंगप्रदर्शन का चस्का लगा है क्या...?”

“प्लीज...मुझे कुछ भी नहीं सुनना है...”

“चुप रहो एकदम...बड़ी आई न सुनने वाली...अब मैं जो-जो कहूंगा वह सब कुछ करना पड़ेगा। समझ में आया? नहीं तो....” इतना कह कर जीतू का ध्यान रिक्शे वाले के आईने की तरफ गया। रिक्शा वाला उस आईऩे से केतकी की तरफ देख रहा था। “ऐ मूर्ख, सामने देख और गाड़ी चलाने की ओर ध्यान दे...नहीं तो दूंगा एक रखके।”

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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