Agnija - 63 in Hindi Fiction Stories by Praful Shah books and stories PDF | अग्निजा - 63

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अग्निजा - 63

प्रकरण-63

वह अब कैंची में फंस चुके हैं, भिखाभा को यह बात समझते देर नहीं लगी। चार लाख दे कर जब तक कल्पु की शादी नहीं होती, तब तक किसी भी स्थिति में मीना बहन जीतू की शादी करने को तैयार नहीं होंगी। ये कांटा तो गले में फंस गया। न निगलते बन रहा न उलगते। ये कांटा अब ऐसे ही चुभते रहेगा और मेरे अहंकार को मिट्टी में मिलाता रहेगा। वास्तव में इस समय उनका बुरा वक्त चल रहा है। इससे अच्छा तो नगर सेवक के तौर पर कुछ काम किए होते तो न जाने आज कितना फायदा हो गया होता। वरिष्ठ नेता भी खुश हो गए होते। जनता भी खुश होती। पैसा भी मिलता। आज से लोगों के पचड़े में पड़ना बंद। अब रणछोड़ जाने और वह मीना बहन जाने। और सही में, जब रणछोड़ ने शादी का विषय छेड़ा तो भिखाभा बिगड़ गए, “अब तुम छोटे नहीं हो। पंडित सिर्फ शादी करवाता है, गृहस्थी चलाने के लिए नहीं आता। मैंने अपना काम कर दिया, रिश्ता दिखा दिया। दोनों की बैठक करवा दी। दोनों को समझा दिया। ये सब मैंने किया ना? अब आगे का तुम लोग देख लो। मुझे दूसरे काम क्या कम हैं?”

भिखाभा का अचानक बदला हुआ रूप और बात करने का बदला हुआ तरीका देख कर रणछोड़ को आश्चर्य हुआ। उसके पीछे की वजह समझ में नहीं आई। उसने धीरे से पूछा, “उस बदनसीब ने फिर कोई गड़बड़ कर दी क्या?”

“तुमको समझ में कैसे नहीं आता?..मेरा काम अब खत्म हो चुका है...मैं अब उठापटक क्यों करूं? अब इसके आगे मेरे सामने यह विषय मत निकालना।”

रणछोड़ दास ने अपना गुस्सा निगला। उसको लगा, जरूर केतकी ने कुछ गड़बड़ की होगी। ये दूसरे की लड़की और कितने दिन मुझे परेशान करने वाली है, कौन जाने? अब छुटकारा मिलने वाला है, ऐसा लग रहा था लेकिन इसने फिर से कोई गड़बड़ कर दी है, ऐसा लग रहा है। घर पहुंचते ही रणछोड़ दास ने यशोदा को आवाज दी, “जरा इधर तो आऩा...”

यशोदा जैसे ही उसके पास पहुंची, वो चिल्लाया. “लगता है उस बदनसीब ने जीतू के साथ फिर कोई मगजमारी की है। भिखाभा ने साफ शब्दों में कह दिया कि अब उसके सामने इस विषय को न निकाला जाए। तुम लोग अपना देख हो। तुम जानती हो क्या हुआ?”

“नहीं, मैं नहीं जानती...”

रणछोड़ गुस्से में भर कर उठा और उसने यशोदा की ठोड़ी पकड़ ली। उसकी आंखों में आंखं डाल कर बोला, “कुछ नहीं जानती? तो जन्म किसलिए दिया था गड़बड़ करने वाली लड़की को? जन्म दिया तो दिया, पर मेरे सामने क्यों लाकर पटक दिया...ऐसा लगता है....”रणछोड़ दास ने हाथ उठाया ही था, “बस, बहुत हुआ अब।” दरवाजे पर केतकी खड़ी थी। रणछोड़ का गुस्सा और बढ़ गया, “मैं भी वही कह रहा हूं...बस, बहुत हुआ अब। लेकिन तुम सुनती कहां हो?”

“आप किस बारे में कह रहे हैं?”

“जीतू के साथ फिर कुछ हुआ क्या?”

“कुछ भी नहीं हुआ।”

यशोदा, केतकी के पास जाकर हाथ जोड़ते हुए बोली, “बेटा, जो कुछ हुआ हो साफ-साफ बता दो, तो कोई रास्ता निकाल सकेंगे।”

“पर जब कुछ हुआ ही नहीं है तो क्या बताऊँ?”

“तो वो भिखाभा क्या पागल हो गया है, कि उसने अचानक इस मामले से अपने आप को अलग कर लिया है?”

“वो मुझे क्या मालूम? उन्हीं से पूछिए या फिर जीतू से पूछिए।”

रणछोड़ ने दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ लिया और नीचे बैठ गया। “ अब ये क्या नई बात है, क्या मैं उन्हीं से पूछूं...?”

“अपने व्यक्ति पर विश्वास न हो तो मैं क्या कर सकती हूं? वैसे भी आपने मुझे अपना माना ही कब था?”

“चुप बैठ बदनसीब....अपना नहीं माना इसलिए इतनी झंझट कर रहा हूं मैं? देखो एक बात ठीक से सुन लो...जीतू के साथ कुछ उल्टा-पुल्टा बोली तो इस घर में तुमको रहने नहीं दूंगा।”

रणछोड़ घर के बाहर निकल गया। यशोदा ने थोड़े गुस्से और थोड़ी चिंता के साथ केतकी से कहा, “सुन लिया ना...इस घर में तुमको रहने नहीं देंगे...”

केतकी को हंसी आ गई, “तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे मुझे इस घर में रहने का बड़ा शौक ही है। मेरे हाथ में होता तो मैं इस घर में मैं एक क्षण भी न ठहरती.. ये घर नहीं....यातना घर है...समझीं?”

“अरे पर लड़की जात...”

“मां, बस बहुत हुआ....अब चुप रहो...लड़की जात हुई तो क्या सब कुछ सहन ही करते जाना है? गलती न हो तो भी सजा झेलनी है? और कोई गुनाह न किया हो तो भी? इस हालत के लिए मां तुम ही सबसे अधिक जिम्मेदार हो। तुम चुपचाप सब कुछ सहन करती रही, इसलिए तुम्हारे पीछे-पीछे हमको भी सहन करना पड़ रहा है। तोड़ डालो इन बेड़ियों को। अभी भी देर नहीं हुई है। अपना विचार करो, हमारे बारे में विचार करो।”

“मुझे तो बस एक ही विचार आता है...तुम ससुराल जाओ और वहां पर सुख-शांति के साथ रहो।” “सुख का तो पता नहीं, पर शांति ही मिल जाए, तो बड़ी बात है। कभी-कभी लगता है, इस घर से श्मशान ही अच्छा. वहां हमेशा के लिए नींद आ जाएगी और इन यातनाओं से छुटकारा भी मिल जाएगा...लेकिन बाद में ऐसा लगता है, कि अपनी जान आखिर किसी और के लिए क्यों गंवाई जाए? मैं जीऊंगी और सभी को उत्तर देते हुए जीऊंगी। झूठी बातें किसी की भी सहन नहीं करूंगी।”

इस पर क्या उत्तर दिया जाए, यशोदा को समझ में नहीं आ रहा था। उसने दोनों हाथ जोड़ कर कहा, “पर जो भी करना अपनी बदनसीब मां के बारे विचार करने के बाद करना।”

..............................

उस दिन जीतू एकदम मूड में था। उसके दोस्त उसे बड़े घमंड के साथ बता रहे थे कि उन्होंने पहली ही मुलाकात में अपनी गर्लफ्रेंड का दिल किस तरह जीत लिया। किसी ने तुरंत हाथ पकड़ लिया, तो किसी ने पहले ही दिन चुंबन ले लिया था और कुछ बहादुरों ने तो पहले ही दिन....सभी लोगों ने जीतू से उसका पहला अनुभव पूछा। तब वो जरा शरमाया। फिर उसे लगा कि अरे मैंने तो इसमें से कुछ भी नहीं किया। इस लिए वह केतकी की शाला शुरू होने से पहले ही वहां पहुंच गया। केतकी की ओर देखते ही मुस्कराया, “देखो, शाम को खास काम है। तुम्हारी ट्यूशन वगैरह जो कुछ भी उसे एडजस्ट कर लेना। न मत कहना...” केतकी को उसकी बिनती अच्छी लगी। वह बोली, “ठीक है, न नहीं कहूंगी. बस? शाम को कहां मिलना है?”

“शाम को सात बजे बाजार की मिठाई की दुकान के पास।” इसके बाद दोनों एकदूसरे को कुछ देर देखते रहे। मुस्कराते हुए विदा लेने के सिवाय कोई उपाय भी नहीं था उस समय। शाम को केतकी और तारिका रिक्शे में बैठ कर निकलीं। बहुत देर पहले ही बाजार में पहुंच गईं। चाय-कॉफी कुछ पीने के इरादे से इधर-उधर देख रही थीं कि तभी उन्हें उपाध्याय मैडम दिखाई दीं। चाय पीने के बाद तारिका वापस जाने को उठी। उसे देर हो रही थी। केतकी को कुछ देर और बितानी थी इस लिए उसने इडली मंगवाई। उपाध्याय मैडम के मन में केतकी के विवाह को लेकर अनेक प्रश्न थे। लेकिन उन्होंने खुद कुछ नहीं पूछा। उन्हें ऐसा करना ठीक नहीं लगा। वह चाहती थीं कि केतकी ही उन्हें सबकुछ बताए। जब और जितना बताने की इच्छा हो। उपाध्याय मैडम से मुलाकात करके केतकी को भी अच्छा लगा। बीती रात को रणछोड़ और मां के साथ हुए वादविवाद के कारण वह थोड़े तनाव में थी। उपाध्याय मैडम को देखते साथ उसका तनाव दूर हो गया था। “अच्छा हुआ, अब जीतू के साथ शांत मन से मुलाकात हो सकेगी।” दोनों होटल से बाहर निकलीं तो जीतू सामने से आता दिखाई दिया। केतकी के साथ उपाध्याय मैडम को देख कर वहीं ठहर गया। यह देख कर मैडम ने घड़ी की ओर देखते हुए कहा, “देर हो गई, मैं निकलती हूं अब।” उनको धन्यवाद देकर केतकी ने उन्हें जाने दिया और फिर जीतू की तरफ देखा तो जीतू का रूप रंग ही बदला हुआ था।

“क्या हुआ?बेचैन नजर आ रहे हैं।”

“मैंने तुमसे कहा था एक बार...इस औरत के साथ संबंध मत रखो..लेकिन तुम...”

“अरे जीतू, वह बहुत अच्छी हैं...मुझे हमेशा अच्छा मार्गदर्शन करती हैं।”

“ऐसा...तो जाओ...जीवन भर उन्ही से मार्गदर्शन लेती रहना...” इतना कह कर जीतू गुस्से में वहां से निकल गया।

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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