Agnija - 60 in Hindi Fiction Stories by Praful Shah books and stories PDF | अग्निजा - 60

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अग्निजा - 60

प्रकरण-60

अगले दिन शाम को केतकी शाला से बाहर निकली, तो वहां पर जीतू पहले से ही गुटका चबाते हुए उसकी प्रतीक्षा करते हुए खड़ा था। मां ने दी गई सलाह उसके दिमाग में थी, “भाग्य से तुझे इतनी कमाऊ लड़की मिली है, लेकिन वह तुमको ही गुलाम बना कर न रख दे, इसका ध्यान रखना। यदि तुम उसकी मुट्ठी में आ गए तो, हमारा इस घर में रहना मुश्किल हो जाएगा। शादी जमने के बाद तुम्हें शुरु में उसके साथ घूमने-फिरने की तुम्हारी इच्छा होना तो स्वाभाविक ही है, उसमें कुछ बुराई भी नहीं। मुझे भी खुशी है लेकिन इसी समय उसे समझा देना कि इस घर में उसका क्या स्थान होगा। नए-नए रिश्ते में ही उसे अपने हिसाब से साध लेना आसान होता है, बाद में वह संभव नहीं हो पाता। हमारे घर के संस्कार, रीति-रिवाज और परंपराएं तो तुम्हें मालूम ही हैं। तुम्हें क्या पसंद है, क्या नापसंद, ये तो तुम खुद जानते ही हो। ”

कल्पु ने मां को बीच में रोकते हुए सलाह दी, “भाई, आजकल की लड़कियों के नखरे और घमंड कुछ अधिक ही होता है। शुरुआत में ही लगाम खींच कर रखना। जो पहले हमला कर दे, वह राजा। तुमको उसे उसकी मर्यादा बतानी पड़ेगी।” जैसे ही जीतू अपने विचारों की धुन से बाहर निकला, वैसे ही उसे शाला से बाहर निकलती हुई केतकी नजर आई। वह तारिका से बातें कर रही थी। जीतू हड़बड़ी में उसके सामने आकर खड़ा हो गया। तारिका का ध्यान जीतू की ओर गया। केतकी ने तारिका को टाटा किया और जीतू के पास पहुंची।

जीतू ने धीमें से मुस्कराते हुए पूछा, “लगता है मेरा यहां आना तुम्हें अच्छा नहीं लगा? ”

“नहीं तो, ऐसी कोई बात नहीं। ”

“चेहरे पर तो वैसा ही दिखाई पड़ रहा है। और उस सहेली से मेरी पहचान कयों नहीं करवाई?”

“अरे, अभी मैंने अपने घरवालों के अलावा यह बात किसी को भी नहीं बताई है। और, ऐसे बीच सड़क पर उसे क्या बताऊँ?”

“क्यों? बताना चाहिए कि ये मेरा होने वाला पति है. मुझे लेकर तुमको शर्म तो नहीं आती न?”

“कैसी बातें करते हैं आप?”

“चलो ठीक है, सिनेमा देखने के लिए जाएंगे। आज बालकनी कॉर्नर की मस्त दो टिकटें लेकर आया हूं।”

“अरे, अचानक ऐसे? मैं नहीं जा पाऊंगी....मेरी ट्यूशन हैं अभी। और फिर,घर में किसी को बताया नहीं है। प्लीज, हम पहले से तय करके ही जाएंगे। ”

जीतू ने अपनी शर्ट की ऊपर वाली जेब से दो टिकट निकालीं और फाड़ कर फेंक दीं. “ठीक है, इसके बाद जब मुझे समय मिलेगा और मूड होगा तो बताऊंगा।” इतना कह कर जीतू पीछे मुड़ा और तेजी से निकल गया। रिक्शे में बैठा और फिर उसने एक बार भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। केतकी को बहुत बुरा लगा। रिश्ते की शुरुआत इस तरह से होनी चाहिए? उसने जीतू के साथ सिनेमा जाने इनकार करके कोई गलती तो नहीं की? खिन्न मन से उसने ट्यूशन खत्म की और घर पहुंची तो रणछोड़ दास उसका इंतजार कर रहा था।

“एक नंबर की बदनसीब हो...अकल नहीं है ...ट्यूशन नहीं ली होती तो ऐसा कौन सा पहाड़ टूट पड़ता... और यदि घर में नहीं बताया था तो एक फोन करके बता देती...”

“..लेकिन मेरी बात तो सुनिए...”

“आज तक बहुत सुन लिया...अब बस.... शादी करके अपने घर जाओ और फिर वहां जितना बोलना हो, उतना बोल लेना...बस..फिर तुम और तुम्हारा नसीब...”

यशोदा कोने में खड़ी होकर, गर्दन नीची करके चुपचाप खड़ी थी। उसकी तरफ देख कर अपना मुंह बनाते हुए शांति बहन भी शुरू हो गईं, “वो लड़का है, उसका मन किया तो आ गया। उसको तुमसे बातचीत करनी होगी, इसलिए बेचारा टिकट लेकर आया था...तो इसको ट्यूशन लेना था। मीना बहन को फोन आया था। उन्होंने साफ कह दिया कि उनके जीतू को यह बात अच्छी नहीं लगी। आज के बाद अपने पति को उसके घर वालों को क्या पसंद है, क्या नापसंद-बस इसका ही विचार करना है। दिमाग ठंडा और जुबान पर लगाम लगानी है, समझ में आया? बहूरानी, आपकी बेटी ने पढ़ाई तो खूब की है, लेकिन अकल धेला भर नहीं है। उसके दिमाग में भूसा भरा है...भूसा...उसमें जरा काम की बातें भी भरो...”

रणछोड़ दास ने गुस्से में केतकी के सामने उंगलिया नचाते हुए कहा, “एक बात ध्यानमें रखो, दोबारा मेरे पास जीतू कुमार की तरफ से कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए।” केतकी बिना कुछ बोले ही अंदर चली गई।

बिना कुछ खाए-पीए केतकी अपने कमरे में पढ़ते हुए बैठी थी। सच कहें तो पढ़ने में उसका मन ही नहीं लग रहा था। तभी भावना वहां आई और बिना कुछ बोले बैठी रही। न जाने कितनी ही देर तक उसकी तरफ देखती रही। केतकी ने नजर टेढ़ी करके उसकी तरफ देखा, पर बोली कुछ नहीं। उसको इस तरह से चुप देख कर भावना चिढ़ गई, “अरे, अपने साथ ही ऐसा क्यों होता है...पहली मुलाकात...पहला मिलन कितना रोमांटिक होता है सारा कुछ...केतकी दीदी, क्या सही में तुम्हें लिए आज सिनेमा जाना संभव नहीं था क्या?”

केतकी उठी, उसने भावना का हाथ पकड़कर दरवाजे तक ले गई और धीरे से उसे बाहर धकेल कर दरवाजा बंद कर लिया। दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।

भिखाभा और रणछोड़ दास, दोनों ने तय कर लिया कि जल्दी से जल्दी सगाई का कार्यक्रम संपन्न कर लिया जाए। अच्छे काम में कई विघ्न आ सकते हैं। भिखाभा ने मीना बहन से इसकी चर्चा की तो मीना बहन बोलीं कि उनकी इच्छा पहले कल्पु को ससुराल भेजने की है। लेकिन सगाई करने में कोई एतराज नहीं। भिखाभा ने मीनाबहन को आश्वासन दिया, “कल्पु की बिलकुल भी चिंता न करें। उसकी जिम्मेदारी वह उठाएगा। सबकुछ वही कहेगा, इसका वचन देता हूं।”

मीना बहन सगाई के लिए राजी हो गईं। दोनों पक्षों के नजदीकी रिश्तेदारों की मौजूदगी में सगाई हो गई। यशोदा भावुक हो गई, लेकिन भावना सोच में पड़ गई। वह मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रही थी, “कम से कम अब तो मेरी केतकी दीदी को सुख दो।”

सगाई के बाद सभी को प्रणाम करके जीतू और केतकी घूमने के लिए निकले। घर के बाहर निकलते ही केतकी ने जीतू की ओर देखा और हंस कर बोली, “सॉरी...उस दिन मेरी वजह से सिनेमा का प्रोग्राम कैंसल हो गया...”

“सॉरी, वॉरी रहने दो...आगे से ऐसा नहीं होना चाहिए...मेरे साथ रहो तो चेहरा मुस्कुराता हुआ रहना चाहिए और मुंह बंद। मुझे भाषण पसंद नहीं ये बात तो मैंने तुम्हें पहले ही बात दी है..”

जीतू ने रिक्शा रोका, “पंजाबी ढाबा चलो...” केतकी को आश्चर्य हुआ. “अरे, आज सगाई हुई है। इसको मेरी इच्छा की परवाह नहीं कि मुझे कहां जाना है और क्या खाना है?”

होटल में पहुंच कर जीतू ने अपने खाने का ऑर्डर दे दिया।

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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