प्रकरण-55
शादी की बातचीत आगे बढ़ जाने से रणछोड़ और शांति बहन को बिलकुल अच्छा नहीं लगा। लेकिन उनके पास कोई उपाय भी नहीं था इस लिए मीना बहन की बातों को उन्होंने हंस कर मान लिया। जब सब लोग उठने लगे तो जीतू ने गॉगल निकालकर माथे पर बिखरे हुए अपने बालों को फूंक मार कर पीछे उड़ाया। बाल पीछे गए तो, उसने क्या स्टाइल मारी है, इस बात का संतोष उसके चेहरे पर उमड़ आया। केतकी की तरफ पागलों की तरह देखते-देखते वह सब लोगों के साथ निकल गया।
जाते-जाते भिखाभा, रणछोड़ दास के कानों में बुदबुदाया, “सब कुछ ठीक चलते-चलते लगता है केतकी बाजी बिगाड़ देगी। देखने-दिखाने के कार्यक्रम में मुंहफट की तरह बोलना अच्छा थोड़े ही दिखता है? ”
सब लोगों के चले जाने के बाद रणछोड़ दास ने केतकी की तरफ देखा और बोला, “ये संस्कार दिए हैं तुमने? कितना मुंह चलाती है? वैसे भी, यदि महिलाओं को तरक्की मिलने लगे तो लोगों को संदेह होने ही लगता है... नौकरी छोड़ने का प्रश्न तो उठता ही नहीं...” केतकी की नकल करते हुए वह और भी खराब दिख रहा था, क्योंकि उसका चेहरा कठोर हो गया था और उस पर नाराजगी साफ दिख रही थी।
केतकी ने उसकी तरफे देखे बिना ही कहा, “मैंने झूठ कहा का? इसमें संस्कार की बात कहां से आ गई? मैंने जो सच था वहीं बताया और साफ-साफ बताया।”
अब शांति बहन बीच में पड़ीं, “अरे मूर्ख, ऐसे समय में कम बोलना चाहिए...मौनम् सर्वार्थ साधनम...पढ़ा नहीं है क्या? ससुराल जाने के बाद बताया जा सकता है कि मैं नौकरी नही छोड़ने वाली...लेकिन अभी ही अपनी जीभ तलवार जैसी जुबान को ऐसे चलाया कि वे लोग उठ कर भाग ही गए। ”
“लेकिन मैंने बुरा क्या कहा?”
रणछोड़ खड़ा हुआ और उसने यशोदा का गला पकड़ कर जोर से चिल्लाया, “इसे चुप कराओ...बिलकुल चुप....मुझे इस लड़की से अच्छा बुरा जानने की आवश्यकता नहीं है..कब से इंतजार कर रहा हूं कि एकाध रिश्ता आ जाए...क्यों नहीं आता? इसके ऐसे गुणों के कारण। कौन आएगा? भिखाभा थे तो जैसे तैसे एक रिश्ता आ गया था...”
“मेरे कौन-से गुण खराब हैं?” केतकी ने तीखे शब्दों में पूछा।
“यही गुण बुरे हैं...मुंह खूब चलता है तुम्हारा...चुप नहीं रह सकती क्या? छोटे बाप की बन जाती हो क्या तुरंत...?”
“मेरा बाप तो कोई छोटा आदमी नहीं था...बहुत अच्छा आदमी था।”
“...तो जाओ उसी के पास। मेरे सिर पर बैठने के लिए क्यों आ गई? सब लोग एक बात ध्यान से सुन लो...यदि इस जीतू के साथ शादी पक्की नहीं हुई तो एक-एक की टांग तोड़ कर रख दूंगा...इस कुलच्छिनी की जमे तो फिर मुझे जयश्री और भावना की भी शादी करनी है...”
“आपकी जयश्री तो मुझसे बड़ी है, पहले उसका विचार करें...मैं मेरा देख लूंगी...”
रणछोड़ दास ने गुस्से में यशोदा को एक थप्पड़ मार दिया। “किस अशुभ घड़ी में मैंने तुम्हें इस घर में लाया था मालूम नहीं..तुम्हारी इस कुलच्छिनी को अपने मुंह पर लगाम लगाने के लिए कह दो। नहीं तो तेरी जान ले लूंगा या इसको घर से बाहर निकाल दूंगा।”
रणछोड़ दास गुस्से में भर कर घर से बाहर निकल गया। शांति बहन और जयश्री अपने कमरों में चली गईं और जाते-जाते शांति बहन ने आदेश दिया, “हम दोनों का खाना हमारे कमरों में लाकर देना।” उन दोनों के जाने के बाद भावना, केतकी की ओर देखने लगी। उससे बोली, “तुम इसके साथ शादी का विचार भी मत करना।”
अब यशोदा को गुस्सा आ गया, “तुम छोटी हो अभी। तुमको कुछ समझ में आता नहीं है...केतकी, तुम्हें जो ठीक लगे वही निर्णय लेना...मेरी चिंता मत करना, मुझे मार भी डालेगा तो कोई बात नहीं...मरने के बाद भी मुझे तुम्हारी ही चिंता सताएगी...भाग्य में जो होगा वही सही...”
भावना पैर पटकते हुए निकल गई। “मुझे खाना नहीं खाना है...”केतकी भी किसी काम से घर के बाहर चली गई। यशोदा सिर पकड़ कर बैठ गई, “मुझे मेरी बेटियों को सुखी देखना है बस...इसके बाद मुझे जीने की कोई इच्छा नहीं।”
केतकी बहुत देर तक उपाध्याय मैडम के पास बैठकर बातें करती रही। उसने उनसे कई विषयों पर चर्चा की। उपाध्याय मैडम ने एकदम बढ़िया पोहे और चाय बनाई। खाते हुए वह बोलीं, “यह तुम्हारा जीवन है और इसके लिए तुम्हें ही संघर्ष करना होगा। तुम समझदार हो, संवेदनशील हो। अच्छे-बुरे की परख है तुमको। तुम विचारपूर्वक जो निर्णय लोगी, वह ठीक ही होगा। और तुम्हारे किसी भी निर्णय में मैं तुम्हारे साथ खड़ी रहूंगी। जीवन साथी के कपड़े, आदतें, कमाई ये सबकुछ मायने नहीं रखता। ये सब बदलता रहेगा। तुमने यदि ठान लिया तो उसको अपने प्रेम से बदल भी दोगी। लेकिन तुम शांति से विचार करो। तुम्हारी स्थिति मुझसे बेहतर कौन जान सकता है भला? लेकिन तुम्हारे निर्णय पर तुम्हारा भविष्य टिका होगा।” केतकी को उनसे बात करके अच्छा लगा। उसने उपाध्याय मैडम का आभार मानते हुए उनका हाथ अपने हाथ में लेकर प्रेम से दबाया।
इधर मीना बहन अपने पहचान के कुछ लोगों को काम से लगा दिया। उनको रणछोड़ दास और केतकी के बारे में पूरी जानकारी लेनी थी। लेकिन जीतू के मन में लड्डू फूट रहे थे कि इस लड़की के साथ जम जाए, तो मजा आ जाए...समाज में प्रतिष्ठा बढ़ जाएगी और लाइफ बन जाएगी।
इधर, केतकी लेकिन जीतू और उससे शादी की बात पूरी तरह से भूल कर किशोर वडगामा के बारे में विचार कर रही थी। किशोर को इतिहास में सर्वाधिक नंबर मिलते थे और वह बाकी विषयों में भी होशियार था। केतकी ने अन्य विषयों में अधिक नंबर पाने वाले विद्यार्थियों को बुलाया। उनको समझाया, “देखो, तुममें से हर एक सुबह-शाम किशोर के पास जाएगा। उसे अपने पसंद का विषय और उसके पाठ समझाना होगा। इसके कारण तुम्हारी भी पढ़ाई होगी और उसका भी काम बन जाएगा। इस तरह से हफ्ते के बारह घंटे में उसकी पढ़ाई अपने आप हो जाएगी। रविवार को मैं पांच-छह घंटे उसके पास बैठूंगी, उसको पढ़ाऊंगी। बोलो करोगे क्या ये काम? ”
सभी विद्यार्थियों को अपनी मैडम पर गर्व हुआ। उसी दिन शाम से सभी तैयार हो गए। केतकी ने उन्हें समझाया, “तुम लोग जितने घंटे उसको दोगे, उतना समय मैं तुम लोगों को दूंगी। ऐसा विचार करना कि यह समय तुम लोग अपने भविष्य के लिए बचा कर रख रहे हो।” सभी लोगों को यह विचार खूब पसंद आया। “इसके अलावा यह भी ध्यान में रखना कि तुम लोग मानवता के लिए एक बड़ा काम कर रहे हो। इसका बहुत अच्छा फल तुम लोगों को मिलेगा।”
प्रसन्न को जैसे ही यह खबर मिली, वह बहुत खुश हुआ। उसने केतकी की तारीफ की, “आपकी यह योजना बहुत अच्छी है। संगीत थैरेपी के बारे में तो आपने सुना ही होगा। संभव हो तो मेरा भी एक घंटा उसके लिए एडजस्ट करें। जब किशोर के पास कोई नहीं होगा, तब मैं जाऊंगा।”
केतकी को उसकी बात जम गई। वह मुस्कराई। प्रसन्न ने शरारत से कहा, “और मैं मेरा समय बचा कर रख रहा हूं, उसका फायदा मुझे भी होगा ना?”
केतकी समझ ही नहीं पा रही थी कि क्या कहे। “अरे, ये तो विद्यार्थी हैं। मैं इन्हें समय देकर पढ़ा सकती हूं, आपको क्या सिखाऊंगी?”
“लेकिन समय देने का विचार तो करेंगी न...? आई रिपीट...विचार...”
“मतलब?”
“दक्खन सेंटर में मेरे साथ उतना समय बिताएंगी...?”
“अरे, पर आपको तो साउथ इंडियन डिशेज पसंद नहीं न...तो फिर फायदा क्या?”
“आपको पूरे मन से खाते हुए देखते रहना ही मेरा सबसे बड़ा फायदा है...”
अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार
© प्रफुल शाह