Sam Dam Dand Bhed - Last Part in Hindi Fiction Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | साम दाम दंड भेद - अंतिम भाग   

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साम दाम दंड भेद - अंतिम भाग   

रामा और महादेव के बीच बातचीत चल ही रही थी कि तभी अचानक दीनू उनके कमरे में आ गया और महादेव के पास बैठकर दुःखी होते हुए कहा, "अंकल मुझे मकान की इस समय बहुत ज़रूरत है। तरुण का विवाह होने वाला है, मैं उन्हें कहाँ रखूँगा। मैंने यह बात राम से कहा था पर…"

"दीनू तेरी इसमें कोई ग़लती नहीं है। तूने भी तो कोर्ट केस तब ही किया होगा ना जब सीधी उंगली से घी नहीं निकला होगा। मैं समझ सकता हूँ, मुझे एहसास है दीनू कि तेरे ऊपर क्या गुज़र रही होगी। मैं अभी-अभी उसी परिस्थिति से उन्हीं हालातों से बिल्कुल टूट कर यहाँ आया हूँ और यहाँ आकर क्या देखता हूँ कि मेरा बेटा भी वही कर रहा है। वह भी तुम्हारी मेहनत की कमाई हुई ज़मीन, जिस पर तुम्हारा खून पसीना बहा होगा, उसे वह लालच में आकर ऐसे ही ले लेना चाहता है। यह जानकर मैं और टूट गया दीनू, मुझे रामा से ऐसी उम्मीद बिल्कुल नहीं थी।"

तभी अंदर से रामा की माँ की आवाज़ आई, "अरे चुल्लू भर पानी में डूब मरुँ मैं, ऐसा मन कर रहा है। मैंने वापस अपना समान पेटी में भर लिया है। यहाँ मेरा दम घुट रहा है। चलो रामा के बाबूजी हम यहाँ नहीं रहेंगे। उसकी तरफ़ से मैं तुमसे माफ़ी…"

"अरे-अरे अंकल आंटी प्लीज़ आप ऐसा मत करिए। ग़लती तो किसी से भी हो सकती है। मुझे यदि मकान की ज़रूरत नहीं होती तो शायद मैं रामा से कभी भी घर खाली करने को नहीं कहता।" 

महादेव ने कहा, "नहीं दीनू ज़रूरत हो या ना हो, यह तुम्हारा घर है और रामा को ख़ुद ही समझ बूझकर तुम्हारे कहने से पहले ही घर खाली कर देना चाहिए था। ख़ैर अब एक हफ़्ते के अंदर हम यह घर खाली कर देंगे। बस तुमसे एक गुजारिश है बेटा कि हो सके तो इतने सालों के इस रिश्ते को टूटने मत देना। इसे रामा की भूल समझ कर माफ़ कर देना।"

रामा ने अपने आँसू पोंछते हुए अपने पिता से पाँव छूकर माफ़ी माँगी और कहा, "बाबूजी, माँ आप लोग कहीं नहीं जाएँगे। हम सब साथ में जाएँगे नये किराए के घर में।"

उसके बाद रामा ने दीनू के पास आकर कहा, "दीनू मुझे माफ़ कर दे मेरे यार।" 

"कोई बात नहीं मेरा यार थोड़ा ग़लत रास्ते पर चल दिया था पर जब तक माता-पिता हमारे साथ होते हैं ना, वह कभी हमें ग़लत राह पर नहीं जाने देते। साम दाम दंड भेद सभी लगाकर अपने बच्चों को लाइन पर ले ही आते हैं," इतना कहते हुए दीनदयाल हँसने लगा।

तभी दूसरे कमरे से रामा के चाचा भी हँसते हुए आए और महादेव के पाँव छूकर बोले, "चलो भैया अब अपना काम हो गया। अपन अपने खेत वाले घर में चलते हैं।"

महादेव ने हँसते हुए अपने भाई को सीने से लगा लिया।

रामा भौंचक्का होकर यह सब देख रहा था लेकिन ख़ुश था। वह साम दाम दंड भेद का दीनू के कहने का मतलब भी समझ रहा था।

उसने दीनदयाल से पूछा, "तो दीनू यह सब तूने…" 

"अरे नहीं-नहीं रामा मैंने तो सिर्फ़ अंकल को फ़ोन करके यह बताया था कि रामा इस तरह की ग़लत हरकत कर रहा है। बाक़ी आगे सब तो फिर अंकल ने ही किया।"

"और वह वकील?"

"मिस्टर घनेरा तो मेरा बचपन का यार है। उसे मैंने यह सब बता दिया था कि क्या करना है और जो वकील तुमने खड़ा किया था उसे भी घनेरा ने सब समझा दिया था क्योंकि वह तो यहाँ सभी को जानता है। बस फिर क्या था…" 

"तो तूने मुझे माफ़ कर दिया दीनू?" 

"सोच रहा हूँ माफ़ कर ही दूँ क्योंकि तुझे भी भावनात्मक रूप से चोट तो पहुँची है," कहते हुए दोनों दोस्त एक दूसरे के गले लग गए।

महादेव और रामा के चाचा ख़ुशी-ख़ुशी वापस अपने गाँव चले गए।

रमा शंकर और दीनदयाल की दोस्ती बिल्कुल पहले की ही तरह बरकरार रही। दीनदयाल ने अपने यार को पथ से भटकने नहीं दिया। उनका आना-जाना, साथ उठना-बैठना, खाना-पीना उसी तरह चलता रहा। 

एक दिन पूनम ने दीनदयाल से पूछा, “दीनू क्या तुम्हें सच में रामा भैया पर बिल्कुल गुस्सा नहीं आता?”

दीनदयाल ने कहा, “क्यों पूनम क्या तुमने और मैंने जीवन में कभी कोई ग़लती नहीं की? ग़लतियाँ तो जीवन के साथ चलती ही रहती हैं। बस उससे हम कुछ सीख ले लें और कुछ सिखा दें तो जीवन आसान हो जाता है समझीं।”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक 

समाप्त