केतकी की सर्प दंश से हालत खराब हो गयी थी। संभवतः वायपर ने काटा था । वायपर जब काटता है तो विष के कारण रक्त अंदर टपकने लगता है और वह रक्त आमाशय मे एकत्रित हो जाता है । रोगी को उल्टी होती है और शरीर संज्ञाशुन्य हो जाता है । केतकी के उल्टी मे खून देखकर सब रोने लगे । डाक्टर ने कहा प्लीज आप बाहर जाइए , रोगी को न डराइए । रोगी अभी ठीक है जहर का असर होने लगा है । दवा आ चुकी थी, डाक्टर ने इंजेक्शन लगाया फिर कहा इससे जहर का असर कम होगा । अब एक घंटे बाद फिर इंजेक्शन लगेगा । इसे आप बड़े अस्पताल ले जाइए , इसे श्वास लेने मे तकलीफ हो रही है । बड़े अस्पताल में उसे भर्ती करवा दिया गया । करीब तीन दिन बाद केतकी ने अपनी आखिरी श्वास ली ।
इन तीन दिनो मे रिश्तेदारो मे केतकी का ससुर व उसकी सास आ चुके थे । अभय को भी सूचना दे दी थी । वह भी छुट्टी लेकर चल दिया था ।
केतकी की सास केतकी की मा से कह रही है ..समधन जी आपकी बेटी हीरा थी ।
कुछ देर बाद .. फिर से कहने लगी ..जब हम सालासर गये थे तब अपसगुन हो रहे थे मुझे आशंका तो थी कि कुछ गलत होने वाला है , मै तो अभय को लेकर ही सोचती रही ..इसके साथ बुरा न हो जाये , मेरा ध्यान केतकी पर तो गया ही नही ।
समधन को ढांढस बंधाते हुए ..देखो समधन जी सांसे तो रामजी देते हैं ,हमारे हाथ मे तो है नही.. जिसकी जितनी सांस उतना जीवन । इंसान के हाथ मे तो कुछ है नही । आप हिम्मत से काम लो आपको ऐसे हिम्मत हारते देखकर आपका बेटा हिम्मत हार जायेगा । समधी जी हिम्मत हार जायेंगे । हम औरते ही मर्दो की हिम्मत होती है .. इस लिए हिम्मत दिखाइए ।
उधर केतकी के पापा का बुरा हाल था .. उनको केतकी का ससुर हिम्मत दे रहा था ..कह रहा था ..समधी जी आप मर्द है ऐसे मत करो ..आपको देखकर पूरा परिवार हिम्मत हार जायेगा । जन्म मरण परण ये तो विधाता के हाथ मे होते है , जब हमारे हाथ मे नही है तो हम दुख क्यो करे । एक बात ओर बता दू ...आपकी बेटी देख रही है ..उसे दुख होगा । अब तो आपको बेटी के सपने जो अधुरे रह गये वे पूरे करने हैं ।
इस तरह से पूरणसिंह अपने समधी को उसके दुख से बाहर निकालने का यत्न कर रहा था ।
यह सामाजिक व्यवस्था कितनी सुन्दर है , किसी पर दुख तकलीफ का पहाड़ टूटता है तो ,समाज के बन्धु साथ खड़े हो जाते है । ऐसा करके वे अपने मानव धर्म का पालन करते है । ऐसे समय मे भाई बन्धु रूठे हुए है तो भी साथ मे खड़े हो जाते है । महान नीतिज्ञ चाणक्य ने कहा है .. उत्सव मे, व्यसन छुड़ाने मे , राष्ट्र के विप्लव मे , संकट मे मुकद्मादि मे श्मशान मे जो साथ खड़ा रहता है वह बान्धव है ।
केतकी की सहेली दामिनी व कजरी की बहिन बदली व अभय भी वहा पहुंच गये थे । सबकी आंखे नम हैं , अभय को देखते ही उसकी सास जोर जोर से रोने लगी । वह कुछ हृदय को छू देने वाले शब्द कह गयी उन्हे सुनकर सभी गमगीन हो गये ... केतकी की मा मूर्छित हो गयी ..अब रोना तो शान्त हो गया ..सबका ध्यान संतोष पर था ..कौन डाक्टर ले आया पता नही चला ..ड्रिप चढने लगी ...
तेरह
के बाद एक दिन...
इस तरह से कुछ दिन बीते .. रिश्तेदारो की मौजुदगी मे मृतक के सारे कर्म हुए ।
एक दिन ... दामिनी को देखकर केतकी मा अपने पति से कहने लगी.. देखो मै जो कह रही हूँ वह ध्यान से सुनना .. केतकी दामिनी को लेकर बहुत चिन्ता करती थी .. उसे जाना था वह तो चली गयी ..किन्तु उसकी इच्छा थी कि दामिनी का घर बसे.. दामाद जी के घर वाले भी यही है उनसे बात करो ..मै अपने दामाद को खोना नही चाहती.. दामिनी भी हमारी बेटी ही है । संतोष के पति विजय ने कहा ..हां हम बात करेंगे..तू शान्त रह । पूरणसिंह भी यह सब सुन रहा था .. समय देखकर कहने लगा समधन जी अभी यह समय ठीक नही है ..फिर बैठकर बात कर लेंगे ...
इसे ही संसार कहते है एक गया तो उसकी जगह पूरी करने के लिए.. लोग बात करने से नही चूकते ..अब अभय के जीवन को सुखी बनाने की बात शुरू हो गयी ..
क्या दामिनी से अभय का विवाह हो जायेगा .. पढे अगले एपीसोड को ...