Gumnam Raja - 4 in Hindi Fiction Stories by Harshit Ranjan books and stories PDF | गुमनाम राजा - 4

Featured Books
  • ખજાનો - 52

    "ડેન્જરસ સિ પાઇરેટ્સ નુમ્બાસાનો ભય કાયમ રહે...! સિ પાઈરેટ્સ...

  • તલાશ 3 - ભાગ 14

     ડિસ્ક્લેમર: આ એક કાલ્પનિક વાર્તા છે. તથા તમામ પાત્રો અને તે...

  • પ્રેમ સમાધિ - પ્રકરણ-115

    પ્રેમ સમાધિ પ્રકરણ-115 વિજય અને શંકરનાથ મ્હાત્રેએ સાથે મોકલે...

  • ભાગવત રહસ્ય - 85

    ભાગવત રહસ્ય-૮૫   શ્રીકૃષ્ણ ધ્રુતરાષ્ટ અને દૂર્યોધનને ખુબ સમજ...

  • પ્રેમની એ રાત - ભાગ 3

    તીખી - મીઠી વાતોશિયાળા ની રાત પૂરજોશ માં જામી રહી છે. ઠંડા પ...

Categories
Share

गुमनाम राजा - 4

पिछले पाठ में हम लोगों ने कश्मीर के राजा ललितादित्य मुक्तपदि के बारे में जाना था । आइए अब अन्य गुमनाम राजाओं के बारे में जानते हैं:-

4) गौतमिपुत्र सतकरनी :
गौतमिपुत्र सतकरनी पहली शताब्दी में सतवाहन
राजवंश के राजा थे । कई इतिहासकारों ने उन्हें
सतवाहन वंश का सर्वश्रेष्ठ शासक बताया है । इनका
साम्राज्य दक्षिण में कलिंग से लेकर
दक्षिण में कृष्णा नदि तक तथा पूर्व में कोंकण से लेकर
पश्चिम में मालवा तक था । इनके साम्राज्य की शासन
व्यस्था तथा इनकी उपलब्धियों के बारे में हमें
नाशिक के शिलालेखों तथा इनके शासन काल में छपे हुए सिक्कों के माध्यम से पता चलता है । इनके पिता महाराज शशिवस्ती सतवाहन राजघराने के शासक थे ।
शिवस्ती की मौत तब ही हो गई थी जब गौतमिपुत्र बहुत ही अल्प आयु के थे । महाराज शिवस्ती की मौत के पश्चात इनका पालन-पोषण इनकी माता गौतमी बालाश्री
ने किया । उन्होंने ने ही इन्हें शिक्षा-दिक्षा देकर नीतिशास्त्र,
राजनीति तथा युद्ध कलाओं में पारंगत बनाया । जब
गौतमिपुत्र ने अपनी शिक्षा पूरी कर ली और युद्ध में भी पूरी तरह से पारंगत हो गए तब सर्वसम्मति से इन्हें राजा घोषित कर दिया गया । गौतमिपुत्र का राज्याभिषेक उस समय हुआ था जब सतवाहनों के साम्राज्य के अधिकतर हिस्से पर 'शक' समुदाय के लोगों ने कब्जा कर लिया था ।
सतवाहनों के कई राजाओं ने शकों से युद्ध लड़े किंतु उन सभी युद्ध मों में उन्हें पराजय और अपमान के अलावा और कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ । शक समुदाय से लगातार मिलने वाली पराजय के कारण सतवाहनों के मन में शकों
के प्रति भय का संचिर हो गया था । अब तो सतवाहन
राजघराने के राजाओं ने भी अपनी भूमि को दोबारा प्राप्त करने के लिए प्रयास करना बंद कर दिया । सतवाहनों के राजाओं की कायरता को देखकर अब शक समुदाय के लोगों का आत्मविश्वास भी चरम सीमा पर पहुँच गया था।
उन लोगों को ये लगने लगा था कि उनका जब भी मन करेगा तब वे लोग सतवाहनों पर हमला करके उनके संपूर्ण साम्राज्य पर कब्ज़ा कर लेंगे । ऐसे में जब गौतमिपुत्र राजा बने तब उन्होंने अपने सैनिकों तथा अपनी प्रजा के मन में आत्मविश्वास जगाने का काम किया । गौतमिपुत्र ने यह भी ठान लिया था कि वे सतवाहनों की खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस लाएँगे और शक समुदाय के लोगों का संपूर्ण भारतवर्ष से सफ़ाया करेंगे । दृढ निश्चय के साथ गौतमिपुत्र सतकरनी ने शकों के विरुद्ध युद्ध का ऐलाश कर दिया । इस मोर्चे में सतवाहनों की सेना का शकों की सेना से कई बार आमना-सामना जिसमें हर बार शकों को पराजय ही प्राप्त
हुई । इतिहासकारों की मानें तो शकों के ख़िलाफ़ गौतमिपुत्र का आखिरी युद्ध कोंकण में हुआ था । जिसमें शकों की सेना का नेतृत्व त्तकालीन शक सम्राट 'नहपाण'
कर रहे थे । कोंकण में उए इस घनघोर युद्ध में नहपाण की सेना को पराजय का सामना करना पड़ा और इसी के साथ-साथ सतवाहनों की खोई हुई प्रतिष्ठा भी वापस आ गई और शक साम्राजय का सफ़ाया भी हो गया ।

5) नरसिम्हवर्मन प्रथम :
नरसिम्हवर्मन प्रथम दक्षिण भारत के सुप्रसिद्ध पल्लव राजाघराने के शासक थे । इनके पिता का नाम महेंद्रवर्मन
था । नरसिम्हवर्मन अपने शासन काल में दक्षिण भारत के कई मंदिरों का निर्माण कराया जिसमें सबसे ज्यादा प्रसिद्ध तमिलनाडु के महाबलिपुरम शहर में स्थित पंच
रथ मंदिर है । इस मंदिर का निर्माण तकरीबन सांतवी-से
आठवीं शताब्दी के बीच में हुआ था । नरसिम्हवर्मन की सभी उपलब्धियों में से एक उपलब्धि यह भी है कि उन्होंने अपने साम्राजय में कला तथा साहित्य का प्रचार किया । ऐसा कहा जाता है कि उनके शासन काल में ही सर्वप्रथम तमिल के पौराणिक साहित्यों पर नाटकों का संचालन किया गया था । उन्होंने आजीवन पल्लवों की
पैत्रिक राजधानी कांचिपुरम से ही शासन किया । उन्होंने अपने जीवन में अनेकों युद्ध लड़े जिसमें से कई युद्धों
ने पल्लव साम्राज्य का डंका संपूर्ण भारतवर्ष में बजा दिया । ऐसा ही एक युद्ध था चालुक्यों के राजा पुलकेशी द्वितीय के ख़िलाफ़ लड़ा गया युद्ध । ये युद्ध उन्होंने साम्राज्य विस्तार के लिए कम ब्लकि पल्लव साम्राज्य के अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए ज्यादा किया था ।

( शेष अंश अगले पाठ में प्रकाशित होगा )