Tash ka aashiyana - 17 in Hindi Fiction Stories by Rajshree books and stories PDF | ताश का आशियाना - भाग 17

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ताश का आशियाना - भाग 17

रागिनी

रागिनी पूरी तरह भारद्वाज परिवार के बारे में भुल चुकी थी।
उसे लगा कि वो अपनी छोटीसी जिंदगी अपने मौसी के साथ काट देंगी।
और इसके बारे में वो हमेशा याद दिलाती रहती।
"याद रखना मासी हमे एक साथ जिंदगी भर रहना है।" मौसी हस देती।
"हसो मत मासी, प्रोमिस कर रहना है, मतलब रहना है।
वरना मैं रो–रो कर दिल्ली 6 को सोने नहीं दूंगी।"
"हा बाबा! प्रोमिस" मौसी हंसी संभालते हुए कह देती।
लेकिन शायद भगवान भी रागिनी की इस बात को हसी में ही ले रहे थे। देवकी को सिर में दर्द शुरू हो गया, पहले पहले गोलियां लेने से तुरंत चला जाता इसलिए देवकी ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब दर्द बोहोत बढ़ चक्कर आने लगे तो देवकी जहा काम करती थी उसके होटल मैनेजर दीपक ने उसे डॉक्टर के पास जाने की सलाह दी और उसके लिए एक हॉस्पिटल में बात भी चलाई।
उस दिन रागिनी घर पर अकेले ही थी, उसने कहा था की उसे वो दीपक के घर छोड़ देंगी लेकिन वो नहीं मानी।
दीपक की पत्नी और देवकी बहुत अच्छे दोस्त और बचपन की सहेलियां थी।
पूरे एक दिन बाद जब देवकी थक कर आई तो रागिनी ने उसकी बेटी जैसी सेवा की यहां तक की मूंगदाल की खिचड़ी तक बनाके खिलाई, थोड़ी जली-कटी।
कुछ दिन बाद देवकी अपने रिपोर्ट कलेक्ट करने फिर से एक बार हॉस्पिटल गई।
"देवकी शास्त्री आपके रिपोर्ट्स हमने देखे है, आपको ब्रेन केंसर है वैसे हम इलाज चालू कर सकते है। पर बचने के चांसेस ना के बराबर है, इसीलिए मैं आपको पहले ही बता देना जरूरी समझता हू।"
"अब आप जितना समय हो सके सिर्फ खुश रहने की कोशिश कीजिए मैं सिर्फ इतना ही मोटीवेशन दे सकता हु। उसके साथ यह कुछ गोलियां, अगर आप चाहे तो हम chemotherapy चालू कर सकते है।
"नही डॉक्टर रहने दीजिए।" सिर्फ वो इतना ही बोल पाई।
देवकी को सबसे ज्यादा फिकर थी रागिनी की।
रागिनी को दिया गया वादा शायद वो कभी नहीं पूरा कर पायेगी।
देवकी मौसी ने लगभग रागिनी को अपने बीमारी के बारे में ना बताकर धोका ही दे दिया था।
15 साल को रागिनी को देवकी ने घर छोड़ दिया बिना उसे कारण बताए।
बिना जाने की रागिनी आखिर क्या चाहती है।
रागिनी को छोड़ने के छह महीने बाद ही एक सरकारी अस्पताल में उनका निधन हो गया।
इन छह महीनों में वैशाली ने रागिनी से काफी जुड़ने की कोशिश की पर कोहरे के जितना नजदीक जाओ उतना ही हटाता जाता है वैसे ही रागिनी वैशाली और श्रीकांत से दूर होती जा रही थी।
7 साल पहले लादी हुई जिंदगी की उसे आदत जो पड़ चुकी थी।
खाली बैठकर खाना खाने की, बिस्तर डाल कर नीचे सोने की, गलियों में बेवक्त घूमने की, भूख लगी तो मैगी बनाकर खाने की।
मुंह फाड़कर हसने की, पैर फैलाकर बैठने की और भी कही आदतें।
आदतें चाहे कितनी ही मामूली क्यों ना लगे, बदल जाए तो मस्तिष्क ठीक से काम करना बंद कर देता है।
असामाजिक विचारो का घर पैदा होने लगता हैं, दिमाग की किसी कोने में।
रागिनी के साथ भी यही होने लगा था।
मुंह फाड़कर हंसना लड़कियों को शोभा नहीं देता
रागिनी, पैर फैलाकर मत बैठो रागिनी, औरतों की तरह बैठो। टेबल पर खाना मत फैलाओ रागिनी,
जमीन पर धूल है ऊपर सो जाओ रागिनी, कहा जा रही हो सात बज चुके है रागिनी।
और भी कही बाते उसे आजादी का उलंघन लगने लगी थी।
लेकिन तब भी वो अपनी देवकी मौसी के याद में जैसे तैसे दिन काट रही थी।
लेकिन छह महीने में बीतते ही जो खबर आई उसने उसका यह भी विश्वास तोड़ दिया।
देवकी ने दिल्ली के सरकारी अस्पताल में दम तोड़ दिया, ब्रेन कैंसर से झुझ रही थी वो।
यह बात सुनते ही मानो रागिनी पर दुखो का पहाड़ टूट पड़ा।
उसे पता भी चला तो तेरावी पे।
उस दिन वो बोहोत रोई जितना वो शायद 15 साल पहले भी नही रोई थी क्योंकि तब आसू पोछने वाला जो था, वो आज नही था और उसे किसी से अपेक्षा भी नही थी।

मौसी ने वादा तोड़ दिया था, और उसकी एक आखरी उम्मीद भी इसी एक वादे के साथ टूट चुकी थी।
दादाजी के लाख कोशिशों के बावजूद भी उसके अंदर के तूफान को शांत नहीं कर पाए।
वो मौसी के आखरी पलो में उनके साथ रहना चाहती थी।
"दोस्त थीं ना वो मेरी तो इतना सबकुछ छुपाया क्यों?
तुम अकेले रह सकती तो मैं भी रह लेती? यहां क्यों अनजान लोगो के बिच लाकर पटक दिया?
तुम्हे पता है ना तुम्हारी लोरी के बिना मैं सो नहीं सकती फिर भी?"
रागिनी ने यह सारे शब्द मुस्कुराती हुई देवकी के फोटो पर लादे थे जिसका समर्थन करने में देवकी इस बार असमर्थ थी।
इंसान जब दुख में होता है, तब जल्दबाजी में फैसले लेना उसकी सबसे बड़ी कमजोरियों में से एक है।

एक ऐसा ही फैसला रागिनी ने लिया जब उसे लगने लगा वो इस दुनिया में अकेली है और वो खुदकी देखभाल खुद कर सकती है। घर से भाग जाने का फ़ैसला।
बिना यह सोचे समझे की उसके मां बाप पर क्या बीतेगी?
वो सोचती भी क्यों भला,
"सोचा तो उनके बारे में जाता है, जो दिल में हो।
जो सिर्फ यादों के कमरे में धूल खा रहे है।
उनकी परवाह तो दिमाग भी नही करता।"

आखिरकार उसने दादाजी और बिना किसी और को बताए घर छोड़ने का मन बना लिया।
उसके लिए दादाजी उसके आजादी के लिए दी गई कुरबानी थे।
जाने से पहले उसने दादाजी के पाव छु लिए।
दादाजी नींद में थे, पूरे घर में अंधेरा था, रात के दस बज रहे थे।
"सॉरी दादाजी अगर कभी वक्त मिला तो फिर मिलेंगे।"
रागिनी ने लिविंग रूम में कुछ भी आवाज ना करते हुए दरवाजा खोला और बाहर निकल गई।
कहा जायेगी पता नही था; बस अब यहां उसका दम घुट रहा था यह बात उसे पता थी।

नशे में धुत पहला बंदा बोला, "यह वो देख वो लड़की।"
दूसरा साथी: हा भाई पीस है।
तीसरा साथी : कहो तो उठा लाए।
गैंग का लीडर बोल उठा, "अरे नही देखते है। फिर दबोचते है। उसके गले में देखा, सोने का नेकलेस दोनो पर हाथ साफ करेगे।"
रागिनी चले जा रही थी, उसे पता नही था कहा जायेगी।
वही चार आवारागर्दीश उसपर नजर रखे हुए थे।
की कब मौका मिलता है।
रागिनी बस स्टैंड पर राह देख रही थी।
आखिरकार रागिनी को बोहोत देर तक अकेला पाकर उन लोगो ने उसके तरफ कदम बढ़ाए।
"क्या कही छोड़ दू," रागिनी घबराई।
"नही।" उसने खुदको और समेट लिया। अपना बैग अपने छाती से लगा लिया।
क्या है, इस बैग में? दूसरे साथी ने पूछा।
"कुछ नही।" रागिनी ने चिढ़ते हुए बोला।
वो लोग उसके गले को छुने लगे वो डर के मारे सिहर उठी।
"क्या चाहिए तुम लोगो को? छोड़ दो मुझे।"
"तुम्हारी चैन।" तीसरा साथी धुत हसी के साथ बोल उठा।
उसने बिना सोचे वो चैन निकाल दे दी।
लीडर जोर जोर से हस दिया।
"उठाओ रे! इसे"
" क्या छोड़ो मुझे तुम लोगो को चैन चाहिए थी मैने दे दी।"
"अब हमे तुम चाहिए।"
" छोड़ो मुझे, नही!!!"
उसका मुंह दो लोगो ने कसके हाथ से बंद कर दिया वो उसे वहा से लेकर चले गए।


रात में दो लोग होंडा चलाकर घर की तरफ जा रहे थे तभी गाड़ी पर पीछे बैठा बंदा बोला।
"मैंने तो सोच लिया है भाई इंजीनियरिंग के तीन साल के पूरे होने के बाद पप्पाजी के गल्ले पर बैठ जाऊंगा।"
"अरे गल्ले पर ही बैठना था, तो इंजीनियरिंग में पैसे क्यों गवाए?"
"क्या करे मेरा बाप दिमाग से विकलांग है, वो चाहता है उसका बेटा इंजीनियरिंग करे। बिना यह जाने की इंजीनियरिंग में कितने पापड़ बेलने पड़ते है। गुजराती है भाई धंधा करना खून में ही है।"
उसका दूसरा दोस्त हस दिया।
"अच्छा है,भाई मेरा तो बेड़ा गर्क है। पापा चाहते है, मैं इंजीनियरिंग करू, क्योंकि उनके बॉस का लड़का अच्छा कमा रहा है इंजीनियरिंग कर।"
"तेरा बाप तो भी ठीक ही है, मेरे बाप जैसा तो नही। उसके पिता की इच्छा थी, वो अपने बेटे पर लाद रहा है। खुद किराने के गल्ले पर बैठ फुलता जा रहा है।"
दोनो इस बात कर जोर से ठहाका लगा दिए।
"तुझे कुछ आवाज आ रहा है।" गुजराती व्यक्ति बोल उठा।
"हा चल चल कर देखते है।" उसका दोस्त सक्ते में आकर बोल उठा।
"अरे नही रहने दे।" गुजराती डर चुका था।
"अरे कोई चिल्ला रहा है।" (उसका ड्राइवर दोस्त अब घबराहट में बोल उठा।)
"आवाज झाड़ियों से आ रही है, बाइक को यही लगाना होगा।" गुजराती बोला।
दोनो ने गाड़ी को एक पेड़ के पास लगा ली।
और आवाज का पीछा करने लगे।

"ये रुक!!" ड्राइवर दोस्त बोल उठा। वहा से वो चार गुंडे नौ दो ग्यारह हो गए।
"अरे यार यह तो बेहोश हो गई। चल–चल यार पुलिस का मामला हो जाएगा।" इस बार गुजराती घबरा उठा।
"पागल है क्या तू? इसके जगह कोई अपना होता तो भी यही बोलता क्या तू?" ड्राइवर खीज उठा।
"अरे पर..."
"बस तू मेरी मदद कर तू बाइक में इसे पकड़ के बैठ में गाड़ी चलाता हु।"

दोनो रागिनी को हॉस्पिटल लेकर गए।
सेक्सुअल हैरेसमेंट और लूटमार का केस था। इसलिए दोनो लडको को पुलिस को सूचना देना पड़ी।
पुलिस के कहने पर लड़की को भर्ती करवाया गया।
सारी जांच पड़ताल करने पर पुलिस ने दोनों को छोड़ा।
पुलिस ने लड़की की जब bag की छानबीन की उसमे से 10 बोर्ड का id card मिला।
दो तीन दिन तक सब मामला गरम था।
दोनो ने अपने–अपने बयान दिए। कॉलेज से पता करने पर लड़की भारद्वाज परिवार की बेटी रागिनी है यह बात सामने आई।
उसमे से एक बंदा पूरी तरह डर गया था।
एसटी स्टैंड पर जो सीसीटीवी लगे थे, उसमे से उन चार गुंडों का पता चल गया।
लोकल गुंडे थे, लूटमार और सेक्सुअल हरयाशमेंट के लिए नगर में प्रचलित थे।
उन्हे समय रहते धर दबोचा गया।
"सर, हमने कुछ नही किया है। प्लीज हमें जाने दो।
हम तो बस फ्रेशर पार्टी से आ रहे थे। आप बोलेंगे तो इंजीनियरिंग भी छोड़ दूंगा।
पप्पा को पता चल गया तो जोड़े से पिटेगा, प्लीज सर!"
गुजराती दोस्त इस पूरे मामले से हताश और गुस्से से भर चुका था वही दूसरा दोस्त सिर्फ वहा खड़े रहकर लड़की की हालत देख रहा था।
लड़की को अभी भी होश नही आया था यह वो साफ साफ ग्लास के छेद से देख सकता था। उसे उस लड़की के लिए जाने अनजाने सही बोहोत बुरा लग रहा था।
पुलिस ने गुजराती को समझाने की कोशिश की,
"अरे घबराओ मत सिर्फ, श्रीकांत जी तुमसे मिलना चाहते है। एक बार उनसे मिल लेना बाद ने चले जाना।"
"वैसे भी असली अपराधी पकड़े भी जा चुके है, सीसीटीवी में उनकी फोटो कैप्चर हो चुकी है।
इसलिए इस बात का शुक्रिया करने ही आ रहे है, श्रीकांत साहब बहुत नामचीन हस्ती है। बस एक बार मिल लो।"
"ठीक है।" पहले लड़के ने निडर हो कर कहा।
"थैंक्स बेटा, तुम लोगो ने आज मेरे लिए जो कुछ भी किया है उसके लिए हम दोनो आपके हमेशा ऋणी रहेगे।"
"अरे नही नही अंकल यह तो हमारा फर्ज था।" गुजराती अब थोड़ा गर्व महसूस करते हुए बोला।
"बस आगे से ध्यान रखिएगा, रात में ऐसे घूमना सेफ नहीं।" ड्राइवर दोस्त शांति एवम अधिकार के साथ बोल उठा।
"हा आगे से हम ध्यान रखेंगे थैंक्स बेटा।" वैशाली अपने आसू पोछते हुए मंद ध्वनी में बोल उठी।
दोनो जाने ही वाले थे की श्रीकांत ने रोक लिया।
"यह मेरा कार्ड रखो कभी भी कोई जरूरत हो तो फोन करना।"
वैसे तुम दोनों ने नाम नही बताया बेटा अपना वैशाली चेहरे पर संतुष्टता भरी मुस्कान लिए बोल उठी,
पहले ने अभिमान के साथ, "जी हेमंत गुप्ता।"
और तुम्हारा, श्रीकांत ने पूछा –"जी सिद्धार्थ, सिद्धार्थ शुक्ला।"