सूर्य एक-एक करके अपनी किरणों का पिटारा खोल रहा था । वह स्वर्णिम किरणें विधायक श्यामचरण की कोठी की छत पर अपना प्रकाश बिखेरती है जहाँ विधायक साहेब डेक चेयर पर बैठे प्रातः की चाय का आनंद ले रहे थे। पास में एक मेज पर गोल डण्ठल सा बंधा हुआ अखबार पड़ा था जो अभी खुलने की प्रतीक्षा में था।
मंद हवा पास में पड़े फूलदान के फूल को हल्का सा छेड़े जा रही थी। तभी दिव्या अपनी आँखों को मलकर अपने आलस को मरोड़ती हुई आती है और अपने पापा के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ जाती है।
"कम से कम मुँह तो धो लिया कर , इतनी बड़ी हो गयी है पर अभी भी हरकते वैसी ही।" दिव्या की माँ रूपवती उसके लिए चाय लाती हुई कहती है।
" अरे ! अभी तक तो यह बच्ची ही है। क्यों बेचारी को डांट रही हो।" श्यामचरण ने अखबार का का डण्ठल खोलते हुए कहा।
" हाँ हाँ .. आप तो बस ,इसे और बिगाड़ो कभी कुछ समझा भी तो लिया करो।" रूपवती अपने चेहरे पर रुष्टता लाते हुए और विधायक द्वारा पी गयी चाय के कप को ले जाते हुए बोली और दरवाजे से रसोई की तरफ चली जाती है।
"और बेटी , कैसा चल रहा है तुम्हारा कॉलेज? कोई दिक्कत तो नहीं है न?"
श्यामचरण ने अखबार में छपे अपने चित्र को देखते -देखते बोला।
" नहीं तो पापा। सब अच्छा चल रहा है।" दिव्या चाय की चुस्की लेती है और उसकी आँखें हल्की सी आसमान की तरफ उठ जाती है और मन में अचानक राकेश की छवि आ जाती है।
" अच्छी बात है बेटा, और तुम्हें पता ही है ना कि जल्द ही कॉलेज में चुनाव होने वाले है और तुम अभी से उस तैयारी में लग जाओ। यह इलेक्शन तुझे ही जीतना है। "
" पर पापा मेरा तो बिल्कुल भी मन नहीं है। यह इलेक्शन विलेक्शन तो मेरे पल्ले ही नहीं पड़ता।"
"देखो तुम्हे जो यह इतना अच्छा अवसर मिल रहा है किसी भी हालत में इसे गँवाना नहीं है। यह शुरुआत है तुम्हारे उज्जवल भविष्य की। अगर अभी तुम नींव मजबूत ढंग से रखोगी तो तुम्हारी इमारत भी मजबूत बनेगी। इसलिए तुम अभी से लग जाओ तैयारी में और मैंने बहुत से टिप्स तो तुझे बता ही दिए है। अब लग जाओ और जीतके ही दम लो" श्यामचरण अपनी बेटी को हर बार की तरह फिर से समझाने लगा पर उसका मन अभी तक चुनाव के लिए पूर्ण रूप से तत्पर नहीं था।
" देखो मैं कॉलेज में तुम्हारी हेल्प करने के लिए किसी को बोलता हूँ और तुम भी अपने दोस्तों की संख्या बढ़ाती जाओ। तुम्हारी नजर में कॉलेज में कोई ऐसा हो जो इस चुनाव जीताने में हमारी मदद कर सके तो उसे अपनी टीम में अवश्य ही मिला देना। साथ ही कॉलेज में अगर किसी भी विद्यार्थी को कोई समस्या हो उसका निदान तुरंत करने की कोशिश करना, अभी जितनी ज्यादा तुम दूसरों की सहायता करोगी उतना अधिक तुम्हे फायदा आने वाले चुनाव में मिलेगा। " श्यामचरण ने अपने अनुभव का प्रदर्शन करते हुए बोला।
"ओके पापा" कहती हुई दिव्या चाय के कप को टेबल पर रखते हुए अपनी जगह से उठ गई और कमरे के अंदर चली जाती है उसके दिमाक में अब एक खुराफाती विचार ने प्रवेश कर लिया जो उसके जीवन को एक नई दिशा देने वाला था।
क्रमशः......