Mamta ki Pariksha - 99 in Hindi Fiction Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | ममता की परीक्षा - 99

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ममता की परीक्षा - 99



थानेदार ने बड़े धैर्य से मेरी पूरी बात सुनी। उस दरबान द्वारा प्राप्त जानकारी इस केस में बड़े काम की थी लेकिन उस घाघ वकील पर अभी भी हाथ डालने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। अंजाम उसे पता ही था कि वह कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेगा।
ऐसा लगा जैसे कुछ पल सोचकर उसने कोई फैसला किया हो और फिर मुझे साथ आने का इशारा करके थाने में खड़ी अपनी जीप की तरफ बढ़ गया।

कुछ देर बाद वह मेरे साथ कमिश्नर साहब के दफ्तर में बैठकर उन्हें इस केस के बारे में पूरी जानकारी दे रहा था। उस दरबान द्वारा प्राप्त जानकारी का हवाला देते हुए उसने कमिश्नर साहब से उस वकील के नाम गिरफ्तारी वारंट जारी करने की गुजारिश की। उसने कमिश्नर को यह भी बताया कि यदि वह हमारी हिरासत में आ जाता है तो हम इस केस की सच्चाई और इसमें उसका हाथ साबित कर देंगे। कमिश्नर ने थानेदार को सोचसमझकर वकील के खिलाफ कार्रवाई करने की सलाह देते हुए उसके नाम गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया।

थाने पर वापस आकर थानेदार ने मुझे अपने घर जाने और सुबह आने की सलाह दी। मेरे सामने ही नायब दरोगा को गिरफ्तारी वारंट देते हुए वकील को गिरफ्तार कर लाने का आदेश दिया।

मुझे रातभर बेचैनी सी रही। रात आँखों में ही कट गई थी। जूही के साथ क्या हुआ था यह जानने की घड़ी अब पास आ गई थी। पूरी उम्मीद थी कि थानेदार ने वकील को गिरफ्तार कर उससे पूरा सच उगलवा लिया होगा और मेरा अनुमान सच साबित हुआ था जब थाने पहुँचने पर थानेदार ने सारा किस्सा मुझे ज्यों का त्यों सुना दिया।

सुनकर मुझे गम और गुस्से के साथ ही पहली बार मोहन पर उनके किसी धर्म के विशेष के प्रति नफरत वाले विचारों के लिए क्षोभ हुआ। थानेदार ने बताया,
'गिरफ्तारी वारंट देखते ही वह घाघ वकील बिना किसी नानुकुर के चुपचाप उस दरोगा के साथ थाने आ गया। दरबान से प्राप्त जानकारी के बारे में दरबान का नाम लिए बिना उससे पूछने पर उसने बताया, "जी, आपको सही जानकारी है लेकिन मुकम्मल नहीं !"

"तो मुकम्मल जानकारी तुम बता दो।"

"जी ठीक है।" कहने के बाद उसने जैसे कुछ याद करते हुए बताया, "उस दिन बिलाल के साथ सुर्ख जोड़े में दुल्हन सी लग रही उस लड़की को देखकर मेरा क्रोध सातवें आसमान पर था। उस लड़की को एक कमरे में बैठाकर हमने बिलाल पर क्रोध दर्शाने के साथ ही उससे उसकी इस हरकत के बारे में जवाबतलब भी किया। तब उसने बताया 'अब्बू ! ये लड़की शहर के मशहूर व्यापारी मोहन भंडारी की इकलौती औलाद है। उस दिन इत्तफाकन मैं इसके घर चला गया था। इसकी अम्मी तो बेहद भली महिला लगीं लेकिन इसके अब्बू बेहद घटिया इंसान साबित हुए। न जान न पहचान, सिर्फ मेरा नाम सुनते ही मुझे कोसने लगे, अंटशंट बकने लगे। उनकी उम्र का और इस लड़की से दोस्ती का लिहाज करते हुए उस समय तो मैंने खामोशी अख्तियार कर ली थी, लेकिन मन ही मन फैसला कर लिया था कि इस बेइज्जती और बेहूदगी का उस कमीने से ऐसा बदला लूँगा जिसे वह ताउम्र चाहकर भी नहीं भूला सकेगा। उस दिन के बाद उस लड़की के दिल में अपने लिए बसी दोस्ती को प्यार में तब्दील कराने के प्रयास में मुझे ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। मेरे एक इशारे मात्र से यह मेरी तरफ खींची चली आई और आज हमने कोर्ट में शादी कर ली है। मुझे इससे कोई प्यार व्यार नहीं वरन इससे शादी करके इसके जरिये इसके मगरूर बाप को अपने सामने घुटनों पर लाना चाहता हूँ। बस मेरी यही मंशा है अब्बू !'

"बेवकूफ है तू ! तुझे इसके अब्बू को सबक सिखाना था तो उसके लिए इसे गले में बाँधने की क्या जरूरत थी ? बिना शादी किये ही इसका वो हाल करके छोड़ता कि दुनिया थूकती इन पर। शादी करके तो तूने इसे और मजबूत बना दिया, इसको सामाजिक व कानूनी हक दे दिया है। बेवकूफ कहीं का।"

वकील ने आगे बताया, 'बड़ी देर तक हमारी गरमागरम बहस चलती रही और फिर मैं बिलाल को अपने कहे मुताबिक करने के लिए राजी करने में कामयाब हो गया। काफी सोचसमझकर ये फैसला लिया गया कि बिना उस लड़की को कानोंकान खबर हुए बिलाल रातोंरात वहाँ से गायब हो जाए। उसकी गैरमौजूदगी से लड़की का मनोबल वैसे ही टूट जाएगा और फिर उसे समझा बुझा कर उसके घर भेजने में कोई मुश्किल पेश नहीं आएगी। शादी के बाद एक रात किसी मुस्लिम के घर रहकर आना लड़की और उसके माँ बाप के लिए मौत से कत्तई कमतर नहीं होगा। उनकी इतनी बेइज्जती काफी होती हमारी समझ से। यही सोचकर बिलाल को बड़े सवेरे ही कार से पड़ोस के शहर में उसकी खाला के घर भेज दिया गया जहाँ से कुछ दिन बाद पढ़ाई के लिए वीजा वगैरह का इंतजाम करके वह अमेरिका मेरे भाई के पास चला गया।

उसके जाने के बाद मैंने और बिलाल की अम्मी ने उस लड़की को समझा बुझाकर उसके घर भेजने की काफी कोशिश की, लेकिन वह लड़की तो उम्मीद से कुछ ज्यादा ही तेज निकली। समझना तो दूर, उल्टे वह बिलाल के साथ हमें भी फँसाने की धमकी देने लगी।
उस दिन संयोग से हमारा दूर का रिश्तेदार मुख्तार भी आया हुआ था जिसके हमसे बड़े अच्छे संबंध थे। न चाहते हुए भी ये पूरा वाकया उसके सामने उजागर हो गया। वह खुद तो अपराधी था ही बड़े बड़े खूँखार अपराधियों से उसके ताल्लुकात भी थे। उसने मुझे यकीन दिलाया कि अब मैं उसकी तरफ से बेफिक्र हो जाऊँ और उस लड़की को मनाने का जिम्मा उसपर छोड़ दूँ। उसकी बात मानकर हमने उसे उस लड़की को समझाने का जिम्मा उसे सौंप दिया।

कुछ देर की खामोशी के बाद लड़की की चीख पुकार सुनकर हमें लगा शायद वह समझा समझा कर आजिज आ गया होगा और अब उसे मारपीटकर मनाने की कोशिश कर रहा होगा लेकिन ये हमारी गलतफहमी थी। बाद में पता चला कि मुख्तार ने बड़ी दरिंदगी से उसकी आबरू को चकनाचूर कर दिया था। इसके पीछे उसका यह तर्क था कि 'अक्सर ऐसा करने से शरीफ लड़कियाँ अंदर से टूट जाती हैं। अपनी इज्जत की खातिर ऐसी लड़कियाँ अपने पर हुए अत्याचार को खुद ही जमाने से छिपा ले जाती हैं और हमारे रास्ते से भी हट जाती हैं।'

ये बकौल मुख्तार उसका आजमाया हुआ कामयाब नुस्खा था किसी लड़की को मजबूर करके अपनी बात मनवाने का,
लेकिन उसका ये नुस्खा यहाँ कामयाब नहीं हुआ। वह लड़की तो पता नहीं किस मिट्टी की बनी हुई थी। इस दरिंदगी के बाद वह मुख्तार सहित सभी पर बिफर पड़ी। सबको देख लेने की धमकी देने लगी।

उसकी धमकी के बाद मुख्तार के भी हाथपाँव फुल गए थे। किसी घायल शेरनी की मानिंद उस लड़की को इस तरह छोड़ना खतरे से खाली नहीं था और तब मुख्तार ने उस लड़की के साथ दरिंदगी की वह हद पार कर दी जिसे याद कर हमारा भी कलेजा मुँह को आ जाता है, लेकिन हम भी क्या करते ? हम भी मजबूर थे। मुख्तार के गुनाह में अब हम भी बराबर के भागीदार जो बन गए थे।

अब उस लड़की का सही सलामत रहना हम सबकी सेहत के लिए खतरनाक था। मुख्तार की योजना यह थी कि उस लड़की पर इतनी दरिंदगी की जाय कि उसका दिमाग सोचना बंद कर दे। इसके लिए उसने अपने कई गुंडे साथियों की भी मदद ली, और फिर कुछ दिनों के अंतराल में ही हमें वह अपनी कोशिश में कामयाब होता हुआ दिखने लगा। अब उस लड़की में बदलाव स्पष्ट दिखने लगा था। अक्सर ख़ामोश रहकर लगातार घूरते हुए वह अचानक चीख पड़ती, कभी रोने लगती तो कभी हँसने लगती। उसका मानसिक संतुलन बिगड़ा हुआ लग रहा था।

मुख्तार उसकी दशा देखकर खुश था और मुझे समझा रहा था कि अब वह लड़की पागल हो चुकी है। अब उससे हमें कोई खतरा नहीं, क्योंकि पागल की बात पर कोई यकीन नहीं करता।

क्रमशः