Shraap ek Rahashy - 16 in Hindi Horror Stories by Deva Sonkar books and stories PDF | श्राप एक रहस्य - 16

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श्राप एक रहस्य - 16

घीनु को मरे तीन दिन बीत गए थे। घाटी में सभी चैन की सांस ले रहे थे...लेकिन एक दोपहर।

"सुनिए मैं लिली हूं"।
लिली ने घाटी के ही एक सभ्य इंसान को रोककर कहा। वो आदमी शायद किसी स्कूल का शिक्षक था, ये भरी दोपहर का वक़्त था और वो अपने घर लौट रहा था। लिली बेहद मैले कुचैले कपड़ों में अस्त व्यस्त सी थी। उसे देखकर लगता है जैसे वो कब से सोयी ना हो। उसकी आंखें गहरी लाल हो गई थी। शरीर अजीब तरह से सिकुड़ने लगा था। जैसे भीतर ही भीतर कोई डर उसे खा रहा हो। वो आदमी ही सहसा ही रुक गया। बड़ी बारीकी से उसने एक नज़र लिली पर डाली, दिमाग़ पर जोर दिया और तभी उसे याद आया ये तो वहीं लड़की है जिसकी तलाश घाटी में लगभग कई दिनों से चल रही थी। ये इस हालत में यहां कैसे...? बार बार कभी पुलिस तो कभी इस लड़की के परिवार वाले यहां आकर घाटी के लोगों से पूछताछ कर रहे थे। ( लिली उसी रात से गायब थी जिस रात वे चार दोस्त मिलकर अपने यूट्यूब चैनल के लिए घिनु को रिकॉर्ड करने आए थे और इसी सिलसिले में उनमें से तीन घिनु के हाथों बेरहमी से मारे गए थे। और लिली को प्रज्ञा की रूह यहां से लेकर अपने घर यानी कुएं के पास ही कैद कर लिया था, लगभग तभी से लिली गायब थी।)

उस सभ्य आदमी ने बड़े ही अदब से लिली को जवाब दिया।

"जी लिली आपको तो हम सब अच्छे से जानते है। बताइए आप इतने दिन कहां थी..? आपके परिवार वाले कितने परेशान थे। और अब आपकी ये हालत,लगता है जैसे आप काफ़ी दिनों की बीमारी के बाद आज जागी है।"

"जी ऐसा ही कुछ है, लेकिन फ़िलहाल मेरी बात ध्यान से सुनना। इस घाटी में एक बहुत बड़ा संकट आने वाला है, हो सकें तो आज के आज पूरी घाटी खाली कर दीजिए आप लोग।"

"ये क्या अनाप शनाप बक रही है आप...? अभी अभी तो घाटी की मुसीबत टली है, और अभी आप यहां फ़िर लोगों को डराने आ गई है। बेहतर होगा आप अपने घर जाइए और इस पागलपन से बाहर निकलिए। जितना बुरा होना था सब हो चुका है, घाटी ने बहुत से लोगों को खोया है। आपने भी तो अपने तीनों दोस्तों को खो दिया। अब सब ठीक हो जाएगा देखिए आप अपने घर लौट जाईए।" "काश मैं घर लौट पाती...।" ये कहते वक़्त लिली के लगभग सफ़ेद पड़ चुके चेहरे में अत्यंत बेबसी नज़र आ रही थी। उसने अपनी गरदन नीचे की और अपने पैरों को देखने लगी, ऐसा लग रहा था जैसे उसे अपने पैरों में जंजीरे दिख रही थी, जैसे उसे कहां तक जाना है, ये दूर बैठा जंजीरों की कड़ी को पकड़े कोई तय कर रहा था। जंजीरे अदृश्य थी लेकिन लिली उन्हें महसूस कर सकती थी। लिली ने एक बार फ़िर कहा।

"देखिए, मैं पागल नहीं हूं,मेरी बात मान लीजिए वरना घाटी में तबाही बस शुरू होने ही वाली है।..."

इतना बोलकर लिली उल्टे पैर वापस उधर जाने लगी जहां से वो आई थी।

सामने वाले को लगा कि लिली गहरे सदमे में है। इसलिए ऐसी बहकी बहकी बाते कर रही है। लेकिन लोगों को कहां पता था कि, लिली की ख़ामोश बातों में सच्चाई चिल्ला रही थी। लिली के उल्टे कदमों के साथ घाटी की रौनक जा रही थी।

आम दिनों की तरह ये दिन भी गुज़र गया। लेकिन रात तो अभी बाकी थी।......

दूसरी तरफ़ बर्मन विला में लगभग पूरे दो दिनों से अखिलेश बर्मन सोमनाथ चट्टोपाध्याय के साथ एक ही कमरे में बंद थे। वे ख़ासे परेशान थे, और डरे हुए भी। सकुंतला जी को अपने मां के घर भेज दिया गया था ताकि उनकी दिमागी हालत में थोड़ी सुधार हो सकें।

सोमनाथ चट्टोपाध्याय की अधिकतर बातें अखिलेश जी के सर के उपर से ही जा रही थी, लेकिन वे सबकुछ समझना चाहते थे, क्योंकि उन्हें अपनी गलती का अहसास था। वे जानते थे, कहीं ना कहीं वे इतिहास के पुराने और अनसुलझे रहस्यों के साथ जुड़े हुए है। और उन्हें ये करना ही होगा, ताकि उन सब का इतिहास आज के वर्तमान को कहीं से भी जरा सा चोटिल ना कर सकें। उन्हें तो उनके बेटे की हिफाज़त के लिए चुना गया था, और उन्होंने क्या किया..? सबकुछ जानकर भी उसे मरने के लिए छोड़ दिया। काश ये सब होने से पहले वे अपनी कहानी को जान पाते। काश...राजा के बेटे के रूप में वो अपने फुफेरे भाई की बात को मानते ही नहीं, ना ही उस जनम में राजा के साथ किसी तरह की बेईमानी होती, ना होता इस श्राप का जन्म। वे तो वैसे भी अपने दर्द से बेहाल थे और उनका दर्द उन्हें एक दिन ले ही डूबता। लेकिन....राजा के भांजे ने तो सांप और लाठी को एक साथ ख़तम करने की योजना बना दी थी। उन्हें लगा झूठ बोलकर वे राजा के बेटे के ही हाथों उन्हें मरवाकर दोनों को ही रास्ते से हटा सकते थे। उन्हें लगा वे हथिया सकते थे, उस विशाल सम्राज्य को जिसकी विशालता राजा को पूजती है। काश सबकुछ....शुरू से शुरू ही नहीं होता। लेकिन अब तो हो चुका था। लालच,धोखे और बुरी ताकतों का ये भयानक खेल अब ना जाने कौन कौन से तूफानों को आवाज़ देगा।

रात का अंधेरा बस घिरा ही था। बिजली के जगमगाते खंभों के पास लोग बाहर खड़े एक दूसरे से बातें कर रहे थे, बच्चे अपने अपने झुंड के साथ छुपम छुआई खेल रहे थे। कहीं औरते एक साथ जुटकर किसी नए अचार को बनाने की विधि सीख रही थी। कुछ ऐसा ही सुंदर माहौल घाटी में कुछ सालों पहले भी हुआ करता था। सबकुछ कितना सुखद था यहां। लेकिन अचानक....

घाटी की बिजली रद्द हो गई। आसमान में काले बादलों सा कुछ घिरने लगा। और इस रात कुछ ऐसा हुआ जो लोगों के सोच से परे था। आसमान में घिरे काले बादलों सा कुछ जो था वो असल में काले भूरे कीड़े थे, उड़ने वाले कीड़े। देखते ही देखते उन कीड़ों ने आसमान की सारी सफेदी ही छीन ली। जैसे घाटी के जमीं पर किसी ने काली चादर बिछा दी हो। घाटी में पहले तो अफरा तफरी मच गई फ़िर बेहिसाब चीखों से घाटी गूंजने लगी। ऐसी चीखें जो रूह तक को डरा दे। लेकिन ये चीखें लगभग आधी रात तक सुनाई देती रही और फ़िर भोर के हलकी रौशनी में एक और भयानक नजारा मुंह उठाए खड़ा था। घाटी के सभी छोटे बड़े झीलों का पानी अपना रंग बदल चुका था। लाल रंग......!!! यकीनन वो मासूमों के खून का रंग था।

क्रमश :_Deva Sonkar