Hudson tat ka aira gaira - 39 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | हडसन तट का ऐरा गैरा - 39

Featured Books
  • तुझी माझी रेशीमगाठ..... भाग 2

    रुद्र अणि श्रेयाचच लग्न झालं होत.... लग्नाला आलेल्या सर्व पा...

  • नियती - भाग 34

    भाग 34बाबाराव....."हे आईचं मंगळसूत्र आहे... तिची फार पूर्वीप...

  • एक अनोखी भेट

     नात्यात भेट होण गरजेच आहे हे मला त्या वेळी समजल.भेटुन बोलता...

  • बांडगूळ

    बांडगूळ                गडमठ पंचक्रोशी शिक्षण प्रसारण मंडळाची...

  • जर ती असती - 2

    स्वरा समारला खूप संजवण्याचं प्रयत्न करत होती, पण समर ला काही...

Categories
Share

हडसन तट का ऐरा गैरा - 39

उड़ती हुई ऐश के दो मन हो गए।
एक मन तो कहता था कि वह अभी बंदर महाराज की बातों की सच्चाई का पता लगाए। ये कोई मुश्किल भी नहीं था। नीचे झील के उस पार बहुत से पक्षी बैठे ही थे। बस एक बार नीचे उतरने की देर थी। कोई न कोई उसे देखते ही जीभ लपलपाता हुआ आ ही जाता। मर्दों को तो औरतों को देखते ही कुदरती बुखार चढ़ ही जाता है। फिर ऐश जैसी युवा और खूबसूरत चिड़िया के लिए इन नरों की क्या कमी होती।
वह तो खुद ही अब तक इनसे अपने आप को बचाती आई है वरना न जाने कब कहां वो युवती बन ही जाती!
नहीं, लेकिन उसका दूसरा मन कहता था कि उसे पहले अपने रॉकी को ही ढूंढना चाहिए। उसी के सामने सिर झुका कर ये स्वीकार कर लेना चाहिए कि हां, यही प्यार है। ऐश रॉकी की ही है। फिर चाहे जो हो। वो अगर इंसान के रूप में बदले भी तो अपने रॉकी के सामने ही।
लेकिन तभी जैसे कहीं बिजली सी गिरी। ऐश को एकाएक याद आया कि उस बूढ़े का दिया हुआ मानव मस्तिष्क उसके साथ - साथ रॉकी ने भी तो खाया था। तो क्या वो भी लड़का???
इस ख्याल से ही ऐश बेहद खुश और उत्तेजित हो गई। हां- हां, उसे अच्छी तरह याद है कि जब वो बूढ़े के चले जाने के बाद अगली सुबह बूढ़े का दिया हुआ मांस का बेस्वाद टुकड़ा खा रही थी तब रॉकी उसके पास चला आया था।
वो शैतान ऐश की चोंच से टुकड़ा छीनने लगा था और जब ऐश ने उसे सताने के लिए जल्दी से टुकड़ा निगलना चाहा तो झपट कर उसने अपना मुंह ऐश के मुंह से ही सटा दिया था। वह मांस छीनने की धुन में न जाने कितनी देर तक ऐश के मुंह को ही अपने मुंह में लेकर चूसता रहा था।
ऐश उस रोज़ का वाकया याद करके अकेले में भी शरमा गई।
पूरा न सही, रॉकी ने भी कुछ न कुछ हिस्सा तो खाया ही था।
तो?? अब क्या होगा? क्या रॉकी भी इंसान बन जायेगा? या वो अर्ध- मानव बनेगा। आधा पक्षी आधा मनुष्य!
क्या ऐश भी इसी तरह की बन जायेगी! आधी युवती और आधी परिंदा।
यदि ऐसा हुआ तो कितना मज़ा आयेगा। काश, उसे ये ख्याल तभी आ जाता जब वो बंदर महाराज के सामने बैठी थी। वह उनसे पूछ भी लेती कि मस्तिष्क आधा- आधा खाने से क्या असर होता है?
पर अब तो वो बहुत दूर निकल आई थी। बंदर महाराज न जाने अब कहां होंगे। वापस लौट कर जाने का उसका साहस नहीं हुआ। इधर - उधर कूदते - फांदते रहने वाले महाराज कोई अब तक एक ही जगह थोड़े ही जमे होंगे?
लेकिन ऐश सोच में पड़ गई। उसे सहसा याद आया कि अगर रॉकी ने भी मांस का वो टुकड़ा खाया था तो उसके सिर पर भी लाल निशान दिखाई देना चाहिए था। बंदर महाराज यही तो कह रहे थे!
पर ये भी तो हो सकता है कि रॉकी के सिर पर ऐसा कोई निशान हो ही गया हो, ऐश न देख पाई हो। वह उस बेचारे पर ध्यान देती ही कहां थी? वह हमेशा पास आकर उससे लिपटने- चिपटने की कोशिश करता था पर वह बेरुखी से उसे झटक ही तो देती थी। कितनी कठोर बन गई थी ऐश!
उसे कुछ पश्चाताप हुआ।
असल में उस वक्त तो ऐश पर एक अलग ही धुन सवार थी। उसे हमेशा यही लगता था कि कोई प्राणी अपनी खुद की प्रजाति से इतर अन्य जीवों से संबंध बनाए तो दुनिया को नई नस्ल के जीव मिलेंगे। अनोखे, तरह- तरह के प्राणी। कितना मज़ा आयेगा?
यही सोच उसे रॉकी से दूर- दूर रहने को उकसाता था। उसका ध्यान अजीबोगरीब बातों पर जाता रहता था। कभी वो रॉकी की शादी बिल्ली से करवाने का सपना देखती थी तो कभी ख़ुद अपनी शादी उस प्यारे से डॉगी से करने के खयाली- पुलाव पकाती थी। ऐश भी तो बस ऐश ही थी।
ऐसा करके होता क्या? वह सोचने लगी।