Tumne kabhi pyar kiya tha - 16 in Hindi Love Stories by महेश रौतेला books and stories PDF | तुमने कभी प्यार किया था? - 16

Featured Books
Categories
Share

तुमने कभी प्यार किया था? - 16

तुमने कभी प्यार किया था?-१६

हमने पानी पिया। मैंने उसे बताया लगभग सौ साल पहले एक बच्चे को बाघ ने जंगल में मार दिया था। यहाँ से दो सौ मीटर दूरी पर शव को गाड़ दिया था, गाँव वालों ने। बाघ ने दूसरे दिन शव को गड्ढे से निकाल दिया था। उसने सुना और मैंने कहा चलो चलते हैं। ऊपर धार में बैठेंगे वहाँ अच्छी पवन भी चलती है।
हम वहाँ पर बैठे थे जहाँ से हमारे रास्ते अलग हो रहे थे। वहाँ से गाँव का एक घर दिख रहा था। उस घर में कुछ ऐसा घटित हुआ था जिसे देखकर मैं उसे बताने लगा-
वह सामने सुरेन्द्र सिंह का घर है। दिख रहा ना? दो मंजिला। मरने से पहले आठ माह बिस्तर पर रहे। दिल्ली गये थे घूमने। दिल्ली गाँव वालों के लिये स्वप्निल शहर है।परिवहन की घक्कम-धक्की रहती है। एक बस ने धक्का मार कर उन्हें गिरा दिया था।काफी चोट आयी थी। एक पैर काटना पड़ा। एक पक्षी जो मुक्त आकाश में उड़ा करता है,बिना पंख के धरती पर तड़पता है,ऐसी स्थिति थी। बिना एक पैर के कुछ दिन बेटे के पास रहे फिर उसने उन्हें घर पहुँचा दिया। फिर शरीर का एक भाग लकवाग्रस्त हो गया था। आठ महिने तक बिस्तर पर ही खाना पीना और साफ सफाई पत्नी और बहू किया करते थे।और सुनने में आया था कि वे इस सब से तंग आ चुके थे। और दोनों ने मिल कर उन्हें जहर पिला दिया था।
कुछ का कहना था कि अपनी दयनीय हालत देख, उन्होंने खुद ही जहर देने को कहा था। जहर रात को दिया गया था। पर रोना – धोना सुबह शुरू हुआ । रोना सुन, गाँव के लोग उनके घर पहुँचे। सब सांत्वाना दे रहे थे। तभी एक बुजुर्ग की नजर घर में पड़ी,जहर की शीशी पर पड़ी। उन्होंने सुरेन्द्र के घर वालों से पूछा," सही- सही बताओ, सुरेन्द्र को क्या हुआ था? नहीं तो पुलिस बुलाते हैं। जहर की शीशी वहाँ कैसे पड़ी मिली? ये हत्या का केस लग रहा है।" पुलिस का नाम लेते ही, उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया।
उन्होंने कहा “ वे अ‍वसाद ग्रस्त हो गये थे। बार-बार बोलते थे कि," मुझे जहर दे दो।" हम भी उनके गू – मूत से तंग आ गये थे। छि छि , थू थू की स्थिति हो गयी थी।हाथ काँपे थे पर--। ”
पटांगड़ में गांव के लोग चार-पाँच का समूह बनाकर बैठे थे। तरह-तरह की बातें हो रहीं थीं। कोई कह रहा था," बूढ़ा था ही ऐसा। नखरेबाज था। अपने भाई-बहिन को बहुत सताया था। लेकिन भगवान ने बहुत बुरा किया इसके साथ। ईश्वर करे किसी के साथ न हो ऐसा।" कोई कहता," जब उसका बच्चा नदी में डूबा था तो सुना था, पागलों की तरह रुपयों की गड्डियां फेंक दी थी घर में। बोलता था सब इसके लिए थीं ये। जब उसकी बड़ी बेटी की शादी हुयी थी तो घोड़ों में वर और उसका पिता आये थे। मैं तो छोटा था तब।शादी देखना छोड़, घोड़े देखने चला गया था और बहुत देर तक उन्हें देखता रहा।पहली बार मैं घोड़े देख रहा था,विस्मय से।"
जीवन जब दयनीय और लाचार स्थिति में पहुँच जाता है तो अक्सर सबकी सहानुभूति खोने लगता है। गाँव वालों ने कोई कार्यवाही नहीं की। बोले," नरक ही भोग रहा था। लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए था।" अत: बात यों ही दब गयी और दाह संस्कार कर दिया गया।मुझे अपने बचपन में देखे , सुरेन्द्र सिंह के ठाट- बाट और रौब दार व्यक्तित्व की याद है।चुस्त दुरुस्त शरीर। बच्चों को पढ़ाने बीस किलोमीटर दूर किसी दूर-दराज के क्षेत्र में जाया करते थे।सुनने में आता था कि वे उस समय अनपढ़ लोगों से वहाँ एक चिट्ठी पढ़ने या लिखने का एक रुपया लेते थे। सफेद पैंट पहनना और मूँछों में ताव देना उनकी आदत में घुलेमिले थे। नोटों की गड्डियां हवा की रफ्तार से गिनते थे। मैं बात करते-करते थोड़ा रूका और सोच में डूब गया-
"उन्हें जहर दिया गया या उन्होंने खुद जहर माँगा, जीवन का यह कटु सत्य मुझे झकझोर गया। बहुत देर तक मैं इस घटना पर सोचता रहा।जिस पत्नी के साथ उसने अपार सुख-दुख काटे,उसी के हाथों , दयनीय, लाचर स्थिति में जहर!"मेरे ननिहाल में भी एक घटना हुयी थी ऐसी ही,सुमन बोली। चुप क्यों हो गये? मैंने कहा बस ऐसे ही। अब हमारा रास्ता यहाँ से अलग हो जायेगा। तुम बहुत बातूनी हो अतः रास्ते का पता ही नहीं चला।