Ishq a Bismil - 34 in Hindi Fiction Stories by Tasneem Kauser books and stories PDF | इश्क़ ए बिस्मिल - 34

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इश्क़ ए बिस्मिल - 34

मैंने मोम से बात कर ली है... वह तुमसे मिलना चाहती हैं।“ उमैर और सनम दोनों एक कैफ़े में बैठे हुए थे जब उमैर ने उसे ये खुशखबरी सुनाई थी।

“सच वह मान गई?” सनम ने खुशी के मारे लगभग चीखते हुए उस से पूछा था।

“हाँ।“ उमैर उसकी ख़ुशी देख कर मुस्कुरा रहा था।

“मुझे यकीन नहीं हो रहा है....हमारी शादी होने वाली है। “ वह ख़ुशी के मारे पागल हुई जा रही थी।

“बात करवा दूँ उनसे?” उमैर ने तुरंत अपना मोबाइल फोन अपनी जेब से निकाला था।

“नही नहीं.... मैं already बोहत nervous हूँ। सनम ने बड़ी फुर्ती से उमैर का हाथ पकड़ कर उसे रोका था। उसकी इस हरकत पे उमैर हँस दिया था वह भी दरासल उसे डरा रहा था।

“ उमैर मैं इतनी खुश हूँ की तुम्हें बता नहीं सकती। मेरा जैसे ख़्वाब सच होने वाला है। तुम्हें पता है मैंने कितना कुछ सोच रखा है अपनी शादी से रिलेटेड।“ वह एक मासूम सी बच्ची की तरह खुश हो कर बता रही थी और उमैर जैसे उसकी खुशी में कहीं खो सा गया था।

“शादी से रिलेटेड मतलब?” उमैर उसकी हर बात को बड़ी एहमियत देता था भले ही वह रोज़ मर्रा की छोटी छोटी ही बात क्यूँ ना हो।

“हैं... जैसे के मेरी शादी का जोड़ा कैसा होगा?.... I mean मैं हल्दी में क्या पेहनूँगी, मेहंदी में क्या.... मेरा निकाह कैसे जोड़े में होगा और रुखसती में मेरा जोड़ा कैसा होगा। मेरी ज्वेलरी हर ड्रेस के हिसाब से बिल्कुल perfect होनी चाहिए... हम हनीमून पे कहाँ जायेंगे... मेरी पूरी शॉपिंग कहाँ से होगी?.... “ वह लगातार बोले जा रही थी और ज़िंदगी में शायद पहली बार उमैर उसकी बातों को सुन कर कही और खो गया था। सामने वह बैठी थी मगर ज़हन में कोई और आ रहा था। सनम का चेहरा उसकी आँखों के सामने ढूँढला पड़ गया था। थोड़ी देर कुछ सोच कर उसने सनम से पूछा था।

“ये सारे ख़्वाब सिर्फ़ तुम्हारे हैं या फ़िर ये हर एक लड़की का ख़्वाब होता है?” जाने क्यों इतनी देर सोचने के बाद भी उमैर ने ख़ुद को ये सवाल सनम से पूछने से नहीं रोक पाया था।

उसके सवाल से सनम की बातों में ब्रेक लग गया था। उसे ये खलल पसंद नही आई थी मगर फ़िर भी उसने उमैर के सामने ज़ाहिर होने नहीं दिया।

“मुझे नहीं पता दूसरी लड़कियों का... मैं बस अपने बारे में बता सकती हूँ।“ उसे कोई भी जवाब देने का मन नहीं था फ़िर भी उसने एक सिंपल सा जवाब उमैर को थमा दिया था जिस से उमैर बिल्कुल भी मुत्माईन नहीं हुआ था।

“फ़र्ज़ करो... अगर तुम्हारी शादी बोहत सादगी से हो जाए तो?” ना जाने उमैर क्या जानना चाहता था मगर उसके इन सब बातों से सनम बोहत irritate हो चुकी थी और उसके इस सवाल पर तो वह चीख ही उठी थी।

“What?.... ऐसा नहीं हो सकता।“ सनम ने थोड़ा नग़वारी से कहा था। उमैर को उसके इस तरह के रवय्ये की उम्मीद नहीं थी। वह भी थोड़ा उखड़ कर बोल पड़ा था।

“क्यूँ नहीं हो सकता?...दुनिया में रोज़ हज़ारों लड़कियों की शादी ऐसे ही होती है क्योंकि वह ऐसे ख़्वाब एफॉर्ड नहीं कर सकती।“ जाने क्यूँ उमैर को भी एक ज़िद सी हो गई थी।

“उमैर मैं समझ गई... तुम मुझे सिर्फ़ बेवकूफ़ बना रहे हो... हक़ीक़त में तुमने अपने घर में बात की ही नही है... अगर किये होते तो अभी ये सब नही कहते।“ सनम के बर्दाश्त की सीमा पार हो गई थी इसलिए वह काफी झल्ला गई थी। उसकी इस हरक़त पर उमैर उसे देखता रह गया था। कल से सनम जाने क्यों उसे बदली बदली लग रही थी... या फ़िर ये हो सकता है उमैर के देखने का अब नज़रिया बदल गया था।

“तुम्हारा मतलब है की मैं झूठ बोल रहा हूँ?.... या फ़िर तुम्हे लगता होगा की मैं झूठ भी बोलता हूँ।“ पल भर में उमैर का मूड ऑफ हो गया था। उसने कभी झूठ नहीं कहा था। और सनम उसे indirectly झूठा ही कह रही थी।

“मेरा मतलब ये नहीं था।“ उमैर के बिगड़ते मूड को देख सनम लाइन पर आ गई थी।

“वेटर!....बिल प्लिज़।“ उसे नज़रंदाज़ कर के उमैर ने वेटर को आवाज़ लगाई थी। वेटर के बिल लाते ही उसने बिल पे किया था और अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ था। सनम अपनी कही बात पर पछता रही थी इसलिए उसने उमैर को रोकने की खातिर उसका हाथ पकड़ा था मगर उमैर ने बड़ी नर्मी से उसका हाथ अपने हाथ पर से हटा दिया था और उस पर बिना एक नज़र डाले वहाँ से चला गया था।

सनम अपनी बेवकूफ़ी पर अपना सर पकड़ कर वही पर बैठी रह गई थी।


वह अपनी ही धून में गाड़ी चला रहा था... दिमाग़ में फिल्हाल सनम बसी हुई थी। उसके कानों में बस उसकी कही हुई बात गूँज रही थी। वह उसे जस्टिफ़ाय करना चाहता था मगर कर नही पा रहा था। सनम ने बस अपनी ख्वाहिश बताई थी उसे दूसरों की ख्वाहिश का भला कैसे पता होगा? वह आख़िर कहाँ ग़लत थी? जो उसने उसके साथ ऐसी हरक़त की थी... उसे छोड़ कर चला आया था। उसकी यही सब अदा पर तो वह फ़िदा था फ़िर अब उसकी ये नज़ाकत क्यों उसे आग लगा रही थी। सबसे बड़ी बात की उसने अरीज को सोच कर क्यों उस से ये सारी बेतुकी सवाल की थी।

सनम हर लिहाज़ से अरीज से बेहतर थी और सब से बड़ी बात की सनम उमैर से मोहब्बत करती थी और दूसरी तरफ़ अरीज थी जो उसे खुले आम नफ़रत करने की बात कर रही थी। लेकिन उसे जब अपने लिए अरीज की नफ़रत का पता चल ही गया था तो फिर उमैर क्यों सनम की ख्वाहिश का comparison अरीज की मेहरूमियों से कर बैठा था। उसे क्यों ये फील हुआ था की अरीज के साथ भी शायद ज्यादती हुई थी उसकी तरह। ज़मान खान ने ना सिर्फ़ उमैर की ताबेदारी का फायदा उठाया था उसकी मोहब्बत अंजाने में छीनी थी तो दूसरी तरफ़ अरीज की शादी भी इतनी जल्दबाज़ी में कर दी थी जहाँ वह ढंग से दुल्हन के रूप में सज सवर भी ना सकी थी... जिस तरह हर एक लड़की की ख्वाहिश होती है अरीज की ये ख्वाहिश अधूरी रह गई थी।

वह इन ही ख्यालों में खोया हुआ था जब उसकी सेल फोन बज उठी। उसने drive करते हुए अपने फोन को देखा, स्क्रीन पर सनम जहांगीर का नंबर जगमगा रहा था, उसका नंबर देख ना जाने क्यों उसे सुकून मिला था। उसने बिना एक पल भी ज़ाया किए कॉल रेसिव की थी।


क्या उमैर की सोच सही थी?...

या फिर उसने सनम से ऐसी बेतुक्की सवाल कर के गलत किया था?....

सनम के आने वाले फोन कॉल का नतीजा क्या होगा?

जानने के लिए मेरे साथ बने रहें और पढ़ते रहें “ इश्क़ ए बिस्मिल "