ये क्या उनके बेटे को ऐसी लड़की पसंद आई है जिसके माँ और बाप separate हैं और जो ख़ुद नौकरी कर के अपना गुज़ारा कर रही है। अगर ऐसा है तो फिर क्या फ़र्क है सनम मे और अरीज में?
हाँ फ़र्क तो है...सनम इंशा ज़हूर और इब्राहिम खान की बेटी नहीं है...मगर अरीज है। सबसे बड़ा फ़र्क भी यही है...और आसिफ़ा बेगम की नफ़रत की वजह भी। इब्राहिम खान वही इब्राहिम खान था जिसने आसिफ़ा बेगम की छोटी बहन अतीफ़ा को ठुकरा कर इंशा ज़हूर से शादी की थी। अतीफ़ा अपने मोहब्बत के हाथों ठुकराए जाने का गम बर्दाश्त नहीं कर पाई और उसने खुदखुशी कर ली। अरीज को देख कर उन्हें इंशा ज़हूर याद आती थी और इंशा ज़हूर से ही उन्हें दुनिया में सब से ज़्यादा नफ़रत थी।
आखिर क्या कमी थी उनकी बहन में जो इब्राहिम ख़ान ने उसे ठुकरा दिया था? एक जवान बहन की मय्यत किसी क़यामत से कम ना थी उपर से तब जब मरने की वजह खुदखुशी हो.... कितनी तरह तरह की बातें थी जो आसिफ़ा बेगम ने और उसके मायके वालों ने सुनी थी.... अतीफ़ा की suicide को लेकर लोग मन गढ़त कहानियाँ बना रहे थे। हर तरफ से अलग अलग बातें सुनने को मिलती थी... वह और उनका परिवार किस किस का मूंह बंद करते। एक अज़ीयत भरा दौर था जिस से वह और उनका परिवार ग़ुज़रा था।
आसिफ़ा बेगम के मुताबिक सुलेमान ख़ान को इब्राहिम ख़ान को बेदखल नहीं करना चाहिए था बल्कि उसका और उसकी बीवी का क़तल करवा देना चाहिए था तब जा कर उनके साथ इंसाफ़ होता। जान के बदले वह जान चाहती थी।
और अब इब्राहिम ख़ान की बेटी उनके सीने पर मूंग दल रही थी। उसे देख कर आसिफ़ा बेगम का बस नही चलता था की उसे जान से ख़तम कर दे।
आसिफ़ा बेगम के वालिद (baap) और शौकत खान और सुलेमान खान बोहत जिगरी दोस्त थे।
शौकत खान ने अपने बेटे ज़मान खान की शदी आसिफ़ा से करा दी थी और अब सुलेमान खान की बारी थी की वह अपने बेटे इब्राहिम खान की शादी अतीफ़ा से करवाते मगर अफ़सोस ऐसा हो ना सका।
सनम अब चाहे जैसी भी हो वह अरीज से तो बोहत बेहतर थी। हाँ आसिफ़ा बेगम की ख्वाहिश थी की उनकी बहू किसी अमीर और कबीर घराने से ताल्लुक़ रखती, मगर खैर कोई बात नहीं... अब वह जो भी जैसी भी थी... मगर इब्राहिम ख़ान की औलादों में से नहीं थी।
“कोई बात नहीं तुम मुझे उस से मिला दो मैं मिलना चाहती हूँ।“ आसिफ़ा बेगम ने अपनी होंठों पे झूठी मुस्कुराहट सजा कर उमैर से कहा था। उमैर खुश हो गया था और उठ कर आसिफ़ा बेगम को गले लगा लिया था
सनम के बारे में उमैर ने और कुछ ज़्यादा बताना ठीक नहीं समझा। अब आगे उसे ज़मान खान से बात करनी थी अरीज से डिवोर्स को लेकर।
अरीज अपने सारे काम निबटा कर अपने कमरे मे आई थी। अज़ीन की ड्रेसिंग के लिए नर्स आई हुई थी। उसकी मरहम पट्टी के बाद अरीज ने अपना ब्लैक एंड व्हाइट कीपैड वाला मोबाइल निकाला था और ज़मान खान को कॉल लगाई थी। उन्होंने पहले ही दिन उसे अपना नंबर दे दिया था मगर आज पहली बार अरीज को उनसे इतनी उर्जेंटली बात करने की ज़रूरत महसूस हुई थी।
“अस्सलामो अल्यकुम.... मैं अरीज बात कर रही हूँ।“ अरीज ने बोहत हिम्मत करके उनसे बात करने का फैसला किया था मगर फ़िर भी वो बोहत nervous हो रही थी।
“वालेकुम अस्सलाम..... सब खैरियत?..... अज़ीन कैसी है?... उसकी ड्रेसिंग हुई?” ज़मान खान परेशान हो गए थे अरीज की अचानक की कॉल से।
“जी अंकल... अज़ीन बिल्कुल ठीक है अल्हम्दुलिल्लाह.... जी उसकी ड्रेसिंग भी हो गई है.... “ अरीज थोड़ा रुक गई थी की आगे कैसे उनसे बात करे।
“अल्लाह का शुक्र है!” ज़मान खान को थोड़ी राहत मिली थी।
“Actually अंकल मुझे आपसे एक ज़रूरी बात करनी थी... अंकल प्लिज़ मुझे गलत मत सामझयेगा।“ वह फ़िर रुकी थी और ज़मान खान परेशान हो गए थे।
“अंकल मुझे यहाँ नहीं रहना.... मेरा मतलब है मुझे खुला लेनी है।“ अरीज ने आखिर कह ही दिया था और दूसरी तरफ़ ज़मान खान ने एक लम्बी सांस ली थी, उन्हें ऐसे ही किसी बात की डर आज कल लगी हुई थी और वही हो भी गया था।
“अरीज आपको पता भी है आप क्या कह रहीं हैं?” ज़मान खान ने अरीज से सवाल किया था और वह थोड़ी देर के लिए चुप हो गई थी। फ़िर उसने हिम्मत कर के जवाब दिया था।
“जी अंकल.... मैंने बोहत सोच समझ कर ये फैसला लिया है।“
“नहीं अरीज... ये मत कहिए के आपने बोहत सोच समझ कर ये फैसला लिया है बल्कि ये कहिए के आपने जज़्बात में आकर... हिम्मत हार कर... ये फैसला लिया है।“ ज़मान खान बोहत नर्म लफ़्ज़ों में उस से कह रहे थे।
“मुझे कुछ नहीं पता.... मैं बस अब यहाँ नहीं रहना चाहती।“ अरीज की आवाज़ अब रोने की वजह से काँप रही थी।
“अरीज बस एक दफ़ा आप अपनी माँ की वह चिठी याद कर लेना.... बस एक दफ़ा।“ ज़मान खान के इतना कहने पर वह फट पड़ी थी।
“नहीं... नहीं... मुझे कुछ याद नहीं करना।“ वह बोले जा रही थी।
“अरीज!.. आखिरी फैसला आपका होगा... लेकिन उस से पहले मेरी पूरी बात ध्यान से सुन लिजियेगा... प्लिज़ ये मेरी गुज़ारिश है आप से।“ उनकी बात पर अरीज ना चाहते हुए भी चुप हो गई थी।
“आपकी माँ ने अपनी ज़िंदगी में जिस चौखट पर दुबारा खुद कभी क़दम नहीं रखा...उसी ने आपके लिए उस चौखट और उस शख्स(सुलेमान ख़ान) का इंतेखाब(choose) किया है...आपके आने वाले कल के लिए... ये जानते हुए भी की उस शख्स(सुलेमान ख़ान) ने ना उसे कभी कुबूल किया था ना उसकी औलाद( अरीज) को यहाँ तक के वह अपनी औलाद(इब्राहिम ख़ान) को भी ‘आक’ (बेदखल) कर चुके थे।, फिर भी आपकी माँ ने अपनी सारी सेल्फ रेस्पेक्ट को भूल कर उनसे राबता किया क्योंकि वह जानती थी सुलेमान खान जितना भी बुरा होगा मगर वह इस दरिंदों से भरी दुनिया से तो बेहतर होगा, और आप अपनी माँ के चुने गए चौखट को ठुकराना चाहती हो।“ उनका लहजा अभी भी बोहत नर्मी लिए हुए था। अरीज की सिसकियों की आवाज़ उन्हें साफ़ सुनाई दे रही थी।
“आप उस घर को छोड़ कर जाना चाहती हो अरीज जहाँ आपके बाबा का बचपन गुज़रा है?” क्या आप नहीं चाहती उस घर की मेहरूमियों को (इब्राहिम ख़ान) आप अपने वजूद से पूरा कर सकें? ये मौका हर किसी को नहीं मिलता अरीज जो क़िस्मत ने आपको दिया है।... मान लो आप उमैर से खुला ले लेंगी... उसके बाद?.... उसके बाद देर या सवेर मैं आपकी शादी कहीं और कर दूंगा... फिर क्या होगा?... आप इस घर से कट जायेंगी.... अपनी ज़िंदगी में इतनी busy हो जायेंगी की मेहमानों की तरह आयेंगी और मेहमानों की तरह जायेंगी। इस घर से जुड़ नहीं पाएंगी... यहाँ पर इब्राहिम की कमियों को कोई पूरा करने वाला नहीं होगा।“ वह कहते कहते खुद भी जज़्बाती हो गए थे। अरीज ने अपनी सिसकियों का गला घोंटा था।
“नहीं... मैं इस ज़बरदस्ती के रिश्ते से छुटकारा चाहती हूँ। मैं अपने ऊपर लगे हुए इस लालच के इल्ज़ाम से छुटकारा चाहती हूँ।“ वह रो रो कर कह रही थी।
“सब्र... बस सब्र... मेरा बच्चा... बस सब्र... फ़िर सब ठीक हो जायेगा.... और अब मुझे अंकल नहीं कहना....बाबा कहना... इसलिए नहीं की आप उमैर की बीवी हो बल्कि इसलिए की आप इब्राहिम की बेटी हो।“ उन्होंने कहा था और ना जाने अरीज में वाकई कहाँ से सब्र आ गया था... उसका रोना बंद हो गया था और अब वह चुपचाप उन्हें सुन रही थी।
“फोन पर ज़्यादा बात नहीं कर सकता... मैं जल्दी आपके पास आने की कोशिश करूँगा... तब तक आप बोहत हिम्मत से काम लेना... अपने दिमाग में ऐसी वैसी कोई भी बात भटकने भी मत देना।“ ज़मान खान समझ गए थे की ज़रूर आसिफ़ा बेगम ने उसे कुछ कहा होगा जब ही वह ये सब सोच रही है। मगर वह इतनी दूर से कुछ भी नही कर सकते थे सवाई उसे समझाने के और हिम्मत बढ़ने के।
“जी अंकल... और मेरी आपसे एक request है की आप प्लिज़ किसी से भी कुछ नहीं कहिएगा की मैंने आपसे ये सब कुछ कहा है... मुझे किसी ने कुछ नहीं कहा है।“ कुछ देर पहले वाली निर्डर अरीज वापस से डरपोक हो गई थी, शायद इसलिए की उसमे सब्र आ गया था।
“Ok बेटा.. आप फ़िक्र मत करो। और मुझे बाबा कहने की आदत डालो... अपना और अज़ीन का ख़्याल रखना.... अल्लाह हाफ़िज़।“ ज़मान खान उसे रिलेक्स कर चुके थे।
“जी बाबा... आप भी अपना ख़्याल रखियेगा... अल्लाह हाफ़िज़।“ अरीज ने मुस्कुराया था और दूसरी तरफ़ अरीज के मूँह से बाबा लफ़्ज़ सुनकर ज़मान खान ख़ुशी से झूम उठे थे।
अरीज ने क्या सब्र का दमन थाम कर सही किया था?...
या फिर उसे वैसे ही बागी बने रहना चाहिए था?...
जानने के लिए बने रहें मेरे साथ और पढ़ते रहें इश्क़ ए बिस्मिल