story of throne in Hindi Short Stories by धरमा books and stories PDF | कहानी सिंहासन की

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कहानी सिंहासन की

आगरा किले में मुगलों का टूटा हुआ सिंहासन---

इस सिंहासन को हिन्दू वीर जाट महाराजा जवाहर सिंह जी ने एक मुक्का मारकर तोड़ा था। 12 जून 1761 को जाटों ने आगरा को जीत लिया था। 1774 तक आगरा जाटों के अधीन रहा था। 1670 में वीरवर गौकुला सिंह जी ने मातृभूमि, धर्म एवं स्वाभिमान की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान दिया था। इसी सिंहासन पर बैठकर मुगलों द्वारा उन पर किये गए अत्याचार के फरमानों के बारे में सुनकर गुस्से और रौष एवं विजयश्री के स्वाभिमान के साथ महाराजा जवाहर सिंह ने इस मुगल सिंहासन पर मुक्का मारा था। एक मुक्का लगते ही इस मुगल सिंहासन के दो टुकड़े हो गए थे।
वीरवर गौकुला जाट द्वारा शुरू की गई क्रांति 1761 में महाराजा सूरजमल द्वारा आगरा के लाल किले पर फतेह हासिल करते ही एक परिणाम तक पहुंच गई थी। इसी किले पर कब्जा करने के दौरान भरतपुर से विशालतम लाखा तोप को चलाया गया था जिसका गोला सीधा इस किले की दीवार पर आकर लगा था। और दीवार टूटने और विशाल धमाके के साथ ही मुगल सेना भाग खड़ी हुई थी।
आगरा किले में मुगलों का टूटा हुआ सिंहासन---

इस सिंहासन को हिन्दू वीर जाट महाराजा जवाहर सिंह जी ने एक मुक्का मारकर तोड़ा था। 12 जून 1761 को जाटों ने आगरा को जीत लिया था। 1774 तक आगरा जाटों के अधीन रहा था। 1670 में वीरवर गौकुला सिंह जी ने मातृभूमि, धर्म एवं स्वाभिमान की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान दिया था। इसी सिंहासन पर बैठकर मुगलों द्वारा उन पर किये गए अत्याचार के फरमानों के बारे में सुनकर गुस्से और रौष एवं विजयश्री के स्वाभिमान के साथ महाराजा जवाहर सिंह ने इस मुगल सिंहासन पर मुक्का मारा था। एक मुक्का लगते ही इस मुगल सिंहासन के दो टुकड़े हो गए थे।
वीरवर गौकुला जाट द्वारा शुरू की गई क्रांति 1761 में महाराजा सूरजमल द्वारा आगरा के लाल किले पर फतेह हासिल करते ही एक परिणाम तक पहुंच गई थी। इसी किले पर कब्जा करने के दौरान भरतपुर से विशालतम लाखा तोप को चलाया गया था जिसका गोला सीधा इस किले की दीवार पर आकर लगा था। और दीवार टूटने और विशाल धमाके के साथ ही मुगल सेना भाग खड़ी हुई थी।

आगरा किले में मुगलों का टूटा हुआ सिंहासन---

इस सिंहासन को हिन्दू वीर जाट महाराजा जवाहर सिंह जी ने एक मुक्का मारकर तोड़ा था। 12 जून 1761 को जाटों ने आगरा को जीत लिया था। 1774 तक आगरा जाटों के अधीन रहा था। 1670 में वीरवर गौकुला सिंह जी ने मातृभूमि, धर्म एवं स्वाभिमान की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान दिया था। इसी सिंहासन पर बैठकर मुगलों द्वारा उन पर किये गए अत्याचार के फरमानों के बारे में सुनकर गुस्से और रौष एवं विजयश्री के स्वाभिमान के साथ महाराजा जवाहर सिंह ने इस मुगल सिंहासन पर मुक्का मारा था। एक मुक्का लगते ही इस मुगल सिंहासन के दो टुकड़े हो गए थे।
वीरवर गौकुला जाट द्वारा शुरू की गई क्रांति 1761 में महाराजा सूरजमल द्वारा आगरा के लाल किले पर फतेह हासिल करते ही एक परिणाम तक पहुंच गई थी। इसी किले पर कब्जा करने के दौरान भरतपुर से विशालतम लाखा तोप को चलाया गया था जिसका गोला सीधा इस किले की दीवार पर आकर लगा था। और दीवार टूटने और विशाल धमाके के साथ ही मुगल सेना भाग खड़ी हुई थी।