Humne Dil De Diya - 19 in Hindi Women Focused by VARUN S. PATEL books and stories PDF | हमने दिल दे दिया - अंक १९

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हमने दिल दे दिया - अंक १९

अंक १९ - दिव्यांश 

    दिव्या की हालत आराम करने लायक हो गई थी लेकिन अंश की हालत आराम हराम जैसी हो गई थी | डोक्टर ने दिव्या को ६ से ७ दिन तक अस्पताल ले जाने को कहा था और वहा पर दिव्या को इतने दिन तक लेके जाना मतलब खुद शेर के मु में अपना मु रखकर ५ मिनिट देखना की हम बचेंगे की नहीं यहाँ पर वो शेर मानसिंह जादवा थे और उनके मु में शिर अंश का था जिसे मानसिंह जादवा कभी भी ख़त्म कर सकते थे |

    सारे दोस्त अंदर थे और अंश बहार था डोक्टर के साथ | अंश अंदर जाता है और अशोक से कहेता है |

    अशोक यह ले इस कागज में दवाई लिखी है वो दवाई लेकर आ और डोक्टर साहब को अस्पताल छोड़ देना ...अशोक ने कहा |

    ठीक है हम तीनो ही चले जाते है क्योकी हमारा कॉलेज का काम बाकी रहे गया है तो उसे भी पुरा कर लेंगे डोक्टर को भी छोड़ देंगे और दिव्या की दवाई भी आ जाएगी ...चिराग ने कहा |

    ठीक है चले जाओ । तुम लोग आओ तब तक मै यही पर रुकता हु ...अंश ने कहा |

    हा ठीक चल हम जाकर आते है ...पराग ने कहा |             

    ठीक है ...अंश ने कहा |

    तीनो दोस्त और साथ में डोक्टर सब वहा से चले जाते है | दिव्या को दवाई दी गई थी इस वजह से वो सोई हुई थी और अंश बड़े प्यार से उसे देख रहा था और अब धीरे धीरे अंश के अंदर दिव्या के लिए भावनाए जागने लगी थी और अब उसे दिव्या से प्यार होने लगा था लेकिन हालात को यह मंजूर नहीं था इसी लिए वो अंश और दिव्या की और ना होकर मानसिंह जादवा और गाव वालो की और थे |

    कुछ देर अंश हवेली में इधर उधर चक्कर लगाते है और दिव्या का ध्यान रखता है | दिव्या का शिर तकिये से थोडा निचे आ गया था तो बड़े प्यार के साथ वो दिव्या का शिर तकिये पर रखता है और उसके बाल जो बिखर चुके थे उसे जो दिव्या की नाक को ढँक रहे थे वो उसे ठीक करता है |

    केसी विडंबना है भगवान की इतना अच्छा पंखी ढेर सारे बाजो के बिच फस गया है जो सिर्फ और सोर्फ़ मास बनके रह गया है | गाव के नियम गाव के रिवाज और जीवन बरबाद किसी निर्दोष का होता है यह तो बहुत गलत है पर क्या करे और क्या करना चाहिए यही पता नहीं लग रहा है | हे भगवान अब तु ही मुझे एसे रास्ते पर ले जा जिससे मै आगे से किसी भी औरत को एसा दिन ना देखना पड़े एसा कुछ कर सकु ...अंश ने दिव्या के नींद में लग रहे मासूम से चहेरे को देखते हुए कहा |

    कुछ देर दिव्या के पास बैठने के बाद अंश हवेली में इधर उधर चक्कर लगाने लगता है | दुसरे माले पर कई सारे कक्ष थे जिसे बारी बारी अंश देख रहा था | आगे बढ़ते हुए अंश को एक एसा कमरा दीखता है जिसको नया ताला लगाया गया था | बाकी सारे कक्ष के ताले पुराने थे जैसे उसे किसी ने बरसो से खोला ही ना हो पर इस एक कक्ष का ताला नया था | अंश उस कक्ष के पास जाता है और उस कक्ष की खिड़की से अंदर झाखने की कोशिश करता है पर खिड़की अंदर से बंद थी |

    मुझे क्यों लग रहा है की इस कक्ष में कुछ हो सकता है ...अंश ने मन ही मन अपने आप से कहा |

    इतना बोलने के बाद अंश इधर-उधर देखता है और कुछ सोचता है |

    जाने दो अपने को क्या लेना देना है चलो आगे हवेली देखते है ...अंश ने आगे बढ़ते हुए कहा |

       अंश पुरी हवेली को देखकर वापस दिव्या के कक्ष पर पहुचता है और देखता है की दिव्या नींद से जाग चुकी थी और वो अपने शरीर की कमजोरी और लड़खड़ाते हुए कदमो के साथ पानी पिने के लिए अपनी जगह से उठकर जा रही थी | अंश दिव्या को इस हालत में चल कर जाते हुए देख दोड़कर उसके पास जाता है और उसके कंधे को पकड़कर उसका आधार बनता है |

    यार दिव्या क्या कर रही हो एसी हालत में तुम्हे उठना नहीं चाहिए था मुझे आवाज लगा देती ...अंश ने दिव्या को पानी के जग के पास ले जाते हुए कहा |

    मुझे लगा तुम यहाँ से चले गए ...दिव्या ने अंश की और देखकर अपनी कमजोर आवाज में कहा |

    में अपने दोस्तों के एसी हालत में छोड़कर कही नहीं जाता जब तक तुम ठीक नहीं हो जाती तब तक में या ख़ुशी दोनों में से एक यहाँ पर हर वक्त हाजर रहेगा ...अंश ने दिव्या को पानी ग्लास में भरकर देते हुए कहा |

    अरे नहीं आप लोगो को मेरे लिए इतना हैरान होने की जरुरत नहीं है ...दिव्या ने अंश से कहा |

    बस अब यह सब बंद करो फोर्मालिटी और दिल से चाहती हो वो बोलो अगर तुम नहीं चाहती की हम दोनों में से कोई एक जब तक तुम ठीक ना हो जाओ तब तक हर वक्त साथ रहे तो कोई नहीं रहेगा ...अंश ने दिव्या से कहा |

    अंश दिव्या को फिर से उस जगह पे ले जाता है जहा पर दिव्या सोई हुई थी दोनों वहा जाकर बैठते है और दोनों के बिच संवादों की शुरुआत होती है |

    अरे नहीं एसा नहीं है में तो यही चाहती हु की तुम मै से कोई एक मेरे साथ हर वक्त यहाँ पर रुके पर तुम्हारा यहाँ रहेना किसी खतरे से खाली नहीं है यहाँ पर क्या पता किसी वक्त कौन आ जाए और मेरे साथ तुम्हे देख ले ...दिव्या ने अंश से कहा |

    उसकी चिंता तुम मत करो उसका इंतजाम में कर लुंगा पर तुम्हारी हालत इतनी नाजुक है की मैं तुम्हे अकेला तो नहीं ही छोड़ सकता ...अंश ने दिव्या से कहा |

    ठीक है पर ...दिव्या के इतना बोलते ही अंश उसे रोक लेता है |

    बस अब छोडो रुकने की बाद उसका फैसला हो चुका है अब यह बताओ की यह सब हुआ कैसे ...अंश ने दिव्या से कहा |

    मुझे नहीं पता पर मुझे अचानक इस कक्ष में और हवेली में गभराहट सी होने लगी और मेरे दिमाग में चिंता और तकलीफों का मानो उस वक्त सैलाब सा उठने लगा था और इस बिच में कब बेहोश हुई इसका मुझे कोई अंदाजा नही है ...दिव्या ने कहा |

    देखो चिंता करना छोडो वरना तुम्हारे शरीर को बहुत सी हानी पहुच सकती है और यार जीवन जैसा भी है उसे हर हाल में जीना और अच्छे से जीना सीखना चाहिए और यह अब मेरी चिंता है तुम यह सारी चिंता छोड़ दो इस हवेली में आज के बाद तुम्हे कभी गभराहट नहीं होगी इसकी जिम्मेवारी मेरी है ...अंश ने दिव्या से कहा |

     thank you अंश तुम मेरे लिए जितना कर रहे हो उतना तो शायद मेरे लिए मेरा पति भी नहीं करता ...दिव्या ने कहा |

     अरे वो क्यों नहीं करता वीर होता तो वो भी करता तुम लोग तो एक दुसरे से प्यार करते थे तो प्यार करने वालो जैसा ख्याल और कौन रख सकता है ...अंश ने दिव्या से कहा |

     वीर का नाम सुनकर दिव्या का चहेरा थोडा और मुरझा सा जाता है |

     कैसा प्यार में और वीर तो आज तक एक दुसरे को सही से पहचान भी नहीं पाए थे और हमारी शादी हो गई | वीर हर बार मेरे साथ एसा बरताव करता मानो मै उसको पसंद ही नहीं हु और उसने यह बात मुझे बता भी दी की मै उसे जरा सी भी पसंद नहीं हु और मुझे इस बात का बुरा भी नहीं लगा क्योकी मैंने कभी वीर से प्यार किया ही नहीं था पर बुरा इस बात का लगा की उसने यह बात मुझे सुहागरात के दिन बताई और वो भी सुहागरात मनाने के बाद | में तो उसी दिन तूट गई थी पर क्या करती गाव और समाज के रिवाज के आगे मेरा क्या बस चलता | मेरी जिंदगी तो उसी रात से ख़त्म हो गई थी जिस रात वीर ने मेरे साथ एसा किया वो एक नंबर का घटिया इंसान था | मेरे साथ जो भी हो रहा था वो मेरे बस के बहार का था पर क्या करे मेरे पास और कोई रास्ता ही नहीं था | मानो आज कल तो एसा लग रहा है जैसे पुरी कायनाथ मेरा जीवन बरबाद करने पर तुली हो ...दिव्या की आखो में यह बाते करते करते आशु आ जाते है |

     दिव्या अपनी सारी वेदना अंश को बता रही थी | दिव्या के अंदर बहुत सारा दर्द भरा हुआ था पर आज तक किसी को बताये एसा कोई उसके जीवन में था ही नहीं | दिव्या की इस हालत को देखकर अंश से रहा नहीं जाता और अंश दिव्या से वो बात बोल देता है जो सायद जीवन में आगे जाकर दोनों को जोड़ देने वाली थी |

     माफ़ करना में एसा नहीं हु तो जो में जो बोल ने जा रहा हु उससे तुम मुझे गलत मत समझना मेरा इरादा बस आपकी ज्यादा से ज्यादा मदद करना और आपको इज्जत देना है तो ...अंश बात को गोल गोल घुमा रहा था पर सीधे सीधे बोल नहीं पा रहा था |

    अंश जो भी बोलना है वो सीधा सीधा बोल सकते हो ...दिव्या ने अंश से कहा |

    तुम्हारे साथ अभी तक जो हुआ था वो बहुत बुरा था और में सोच रहा था को इस वजह से तुम कितना दर्द सेह रही हो पर तुम्हारे साथ तो इससे भी बुरा हुआ है और इसे सहेन कर पाना बहुत कठिन होता है जो तुम कर रही हो यार मुझे तुम्हे गले लगाने की इच्छा हो रही है यार ...अंश ने पिछले कुछ शब्द फटाफट से बोलते हुए कहा |

    अंश और दिव्या इस भावुकता भरे माहोल में एक दुसरे को कसके गले लगा लेते है |

    में हमेशा तुम्हारा दोस्त रहूँगा दिव्या में तुम्हे कभी छोड़कर नहीं जाऊंगा चाहे तुम कही पर भी हो तुम शादी करके भी कही पर भी चली जाओ पर में आज वादा करता हु तुमसे की मै तुम्हारा साथ मुश्किल वक्त में कभी भी नहीं छोडूंगा और भला हो उस भगवान का की वीर की मृत्यु हो गई वरना एसे लोगो को में मार दु ...अंश ने दिव्या से कहा |

    दोनों ने अभी तक एक दुसरे को गले लगाया हुआ था |

    दिव्या की आखो से आशु रुकने का नाम नहीं ले रहे थे वो अभी बहुत से ख्यालो में खोयी हुई थी और मन ही मन सोच रही थी |

    मुझे भी तुम्हे छोड़कर कही नहीं जाना | पता नहीं क्यों पर तुम्हारे साथ मुझे बहुत अच्छा महसुस होता है में अपने आपको जी रही हु एसा लगता है जब तुम साथ होते हो अंश में कभी भी तुम्हारी किसी भी हरकत को गलत नहीं समझ सकती | आज तुमने मुझे गले लगाया है इसके पीछे का तुम्हारा इरादा बहुत नैक है यह मुझे अच्छी तरह से मालुम है अंश | बिना किसी रिश्ते के किसीकी इतनी मदद करने वाला इंसान भला ही हो सकता है डर तो इस बात का है की कही मुझे तुमसे प्यार ना हो जाए ...दिव्या ने मन ही मन सोचते हुए कहा |

    पता नहीं यार कैसे पर मुझे तुमसे अब धीरे धीरे प्यार होने लगा है और प्यार इसलिए लगता है की आज तुम्हारी हालत जैसी है उसमे तुम्हारी खुबशुरती कही नहीं है है तो बस तुम्हारा दिल और मुझे उसीसे ही लगाव हो गया है यार यही है सच्चा प्यार या नहीं पता नहीं पर बार बार तुम्हे सिने से लगाकर रखने की ही इच्छा होती है | ना तो मुझे किसी प्रकार के संभोग की लालसा है या ना किसी और चीज की बस तुम्हे खुश रखने का और देखते रहने की हर पल में मन में इच्छा बनी रहती है अब यह प्यार नहीं है तो प्यार क्या है ...अंश भी मन ही मन एसा कुछ गुनगुनाह रहा था |

    इस तरफ अंश और दिव्या अब धीरे धीरे अपने जजबात मन ही मन अपने आप से ही जताने लगे थे तो इस तरफ ख़ुशी की हालत भी वैसी ही थी | जादवा सदन के बहार की तरफ वाले झरुखे में बैठे बैठे मन ही मन कही सारे ख्यालो और सपनो को बुन रही थी |

   यार अंश तुम कितने अच्छे हो | बचपन में जीना सिखाया जब कभी भी जीवन में उलझन आई तो तुम्हे हर बार मेरी हर एक उलझन को सुलझाने ने में मेरी मदद की और क्या कुछ नहीं किया तुमने मेरे लिए आज कल एसा कौन करता है वही करता है जिनके बिच कुछ हो और हमारे बिच भी कुछ है जरुर है पर हम एक दुसरे को बता नहीं रहे और यह जरुर प्यार ही है और कुछ नहीं अंश | मुझे तुमसे प्यार हो गया है अंश पर पता नहीं इस प्यार का सफ़र शुरू कैसे होगा ? ...ख़ुशी ने मन ही मन सोचते हुए कहा |

    ख़ुशी अब अंश के प्यार में पुरी तरह से डूब चुकी थी | दोनों बचपन से ही दोस्त थे और आज उस दोस्ती को ख़ुशी ने प्यार का नाम अपनी और से दे दिया है लेकिन अंश इसके लिए तैयार नहीं था क्योकी उसने भी किसी और के साथ की दोस्ती को प्यार समझ लिया है और शायद वो सही भी है पर पता नहीं कब और कैसे होगा इजहार और क्या अंजाम लेकर आएगा यह इजहार |

TO BE CONTINUED NEXT PART ...

|| जय श्री कृष्णा ||

|| जय कष्टभंजन दादा ||

A VARUN S PATEL STORY