राजकीय शिक्षक की दशा...
राजकीय शिक्षालय का दृश्य। हर शिक्षक बहुत व्यस्त है । एक शिक्षक संगणक पर उलझे हैं । आँखों पर मोटा ऐनक । ऐनक के नीचे आँखों में गंगा जल की धारा बहनें को उतारू । समझ में नहीं आ रहा कि यह झरना लगातार संगणक पर कार्य करने के कारण है, अथवा कार्य के बोझ से काँपती आत्मा के रुदन के कारण । शाला दर्पण पोर्टल पर आँकड़े स्थापित करने में लगे हैं । एक साथी शिक्षक उनको आँकड़े बताने में लगा है । आँकड़े फीड करते हुए शिक्षक अपने साथी से अपनी वेदना भी बाँटते जा रहे हैं ।
कह रहे हैं - भाई आरुष इसी तरह चलता रहा तो घरबार बिखर जाएगा । रोजाना घर जाकर भी लेपटाॅप पर विद्यालय का कामकाज निपटाता हूँ । कभी कभी तो रात के 12-1 बज जाते हैं । घरवाली विकराल हो जाती है । सुबह बिना खाने के ही स्कूल आना पड़ता है । आँखों पर जोर पड़ने के कारण सिरदर्द रहता है । ऐनक के नम्बर बढते जा रहे हैं । कहीं सूरदास न हो जाऊँ ।
आरुष भाई को अपने आँकड़े फीड करवाने हैं, सो बैल को ललकारते हुए बोला - कैसी बातें करते हो सर । आप तो बहुत मजबूत मानसिकता के हो, लगे रहो , सब अच्छा होगा । घरवाली भले ही आपका साथ छोड़ दे, मैं हमेशा आपके साथ हूँ । घबराओ नहीं । संगणक पर काम करते अनीश जी ने बड़ी विचित्र दृष्टि से आरुष जी को गौर से देखा । मानो पता लगा रहे हो कि , घरवाली के साथ छोड़ देने पर ये क्या क्या पूर्ति कर सकते हैं ?
दूसरी तरफ अमन जी मिड डे मील बनाने वालियों से उलझे हैं - परसों भी तुमने सब्जी में पानी अधिक डाल दिया । सब्जी एक तरफ और पानी दूसरी तरफ जा रहा था । यह नहीं चलेगा । एक मिड डे मील बनाने वाली बोली -ज्यादा गर्मी मत दिखाओ माटसाब । 1700 रूपये महीने के मानदेय में तो यही चलेगा । आपको हमारा बनाया पसंद नहीं तो दूसरी कबाड़ लो । अमन जी की हवा सरक गयी । ये ही बड़ी मुश्किल से मिली थी , यदि सच में बिदक गयी तो दूसरी कहाँ से लाऊँगा ।
इतने में उनकी कक्षा के चार-पाँच बच्चे लड़ते -झगड़ते वहाँ आ पहुँचे । माटसाब की इज्जत बची । अपना गुस्सा बच्चों पर मौखिक रूप से बरसाते कक्षा में पहुँचे । कक्षा में चारों और कचरा फैला था । बच्चों से गैरशैक्षणिक कार्य नहीं करवाने का सख्त सरकारी आदेश था । विद्यालय में एक ही सहायक कर्मचारी था । ताले खोलना, पानी भरना, घण्टी लगाना आदि से फ्री होकर उसके कार्यालय, प्रधानाचार्य के ऑफिस की सफाई से निवृत्त होने तक कक्षाएँ आरम्भ हो जाती थी ।
सो अमन जी ने झाड़ू उठाया और तूफानी अंदाज में कमरे की सफाई की । फिर आलमारी खोलकर रजिस्टर निकाले और उपस्थिति दर्ज की, तब तक घंटी ने दूसरा कालांश आरम्भ होने की घोषणा कर दी ।
अमन जी को अभी कक्षा 1 से 8 तक की उपस्थिति इकट्ठी करनी थी । झट डायरी उठाकर दौड़े । आँकड़े इकट्ठे करके भोजन निर्माण शाला में पहुँच कर बताया कि आज कितने आटे की रोटियाँ बनेगी । फिर बाँस की एक सीढी लगाकर बंदर की गति से छत पर जा धमके । उन्हें सरकार को यह बताना था कि आज कितने बच्चे उपस्थित है और उनमें से कितने भोजनभक्षण करने वाले हैं । नीचे उनका मोबाइल नेट के संकेत नहीं पकड़ पाता था । सो रोज छत पर चढकर सूचनाएँ आगे प्रेषित करते थे । इस कार्य हेतु उन्होनें एक बाँस की सीढी ही खरीद ली थी ।
मैसेज करके नीचे उतरे तो प्रधानाचार्य जी का फोन आ गया कि अभी तक आपकी दैनिक डायरी मेरी मेज तक क्यों नहीं पहुँची । साॅरी साॅरी करते हुए उस तरफ दौड़े, जिस कमरे में उनकी दैनिक डायरी पड़ी थी । इतने में घंटी ने तीसरा कालांश आरम्भ होने की घोषणा कर दी ।
अमन जी ने अंदाजे से आज की कार्य योजना बनाते हुए दैनिक डायरी का आज का पन्ना रंगा । इसमें उन दो कालांश की पाठ योजना भी शामिल थी जो बिना एक भी अक्षर पढाए ही निकल चुके थे । और ऐसा अक्सर रोजाना ही होता था । सहायक कर्मचारी के अन्य कार्य में व्यस्त होने के कारण स्वयं प्रधानाचार्य के कक्ष में डायरी लेकर पहुँचे । संस्था प्रधान ने उनको बुरी तरह लताड़ा और नोटिस की धमकी भी दी । साॅरी नाम बचावास्त्र का प्रयोग करते हुए कक्षा की तरफ दौड़े ।
कक्षा में बच्चे आपस में लड़ झगड़ रहे थे । अमन जी ने उनको शांत किया और किताब निकालने को कहा । इतने में एक बच्चा बोला, सर वर्कबुक भरवाइए ना । अभी तो उसी का समय है । प्रमोद जी की इच्छा अपने बाल नोच लेने की हुई । पाठ्यपुस्तक का कोर्स पूरा करवाने में ही बड़ा जोर आता था, उस पर यह बराबर की वर्कबुक और आ जुड़ी । कैसे पूरा होगा कोर्स ?
इतने में चार-पाँच गाँववाले आ धमके और अमन जी को मिड डे मील की कमियाँ निकाल-निकाल कर हड़काने लगे । उनकी इस पर भी नाराजगी थी कि वे कुछ पढाते ही नहीं है । और यह सत्य ही था । उन्हे अलग अलग कार्यों के कारण पढाने का समय कम ही मिल पा रहा था । उनसे अनुनय विनय करके विदा करते उससे पहले चौथा कालांश आरम्भ हो गया ।
और वे इस कक्षा से दौड़कर उस कक्षा तक इस आशा में पहुँचे कि शायद कुछ पढा पाये । इतने में प्रधानाचार्य जी ने उन्हें अपने ऑफिस में बुला लिया । और कहा कि गाँव के अनपढ स्त्री पुरुषों को पढाने के लिए गाँव के ही पढे-लिखे दो युवाओं को स्वयंसेवक के रूप में तैयार करना है । यह बहुत अर्जेण्ट है । अभी गाँव में जाकर यह कार्य कीजिए । मुझे आधे घण्टे में यह दोनों नाम उच्चाधिकारियों को मेल करने हैं ।
अमन जी अपनी बाइक उठाकर गाँव में पहुँचे । लाख प्रयास के बाद भी कोई स्वयं सेवक नहीं मिला । लोग कहते- वाह माटसाब ! खुद तो पढाने के साठ सत्तर हजार लेते हो और हमसे फ्री में गाँववालों को पढवाना चाहते हो । शर्म नहीं आती आपको ? अमन जी को वास्तव में लज्जा आई और नीची गर्दन कर पुनः स्कूल में आ गये ।
तब तक भोजनावकाश भी निकल चुका था ।
टिफिन सहित कक्षा में पहुँचे । दाएँ हाथ में पेन और बाएँ हाथ में रोटी का दुर्लभ दृश्य उपस्थित करते हुए होमवर्क के नाम पर दी हुई पाठ की नकलों को जाँचने लगे । उदरपूर्ति कार्यक्रम भी जारी था । आधे बच्चों की काॅपियाँ जाँची तब तक घंटी ने छह टंकारे लगा दिए । टिफिन को समेट कर अगली कक्षा में जाने लगे तो बच्चे चिल्लाए- सर आज का होमवर्क तो देते जाइए । दौड़ते हुए अमन जी ने उन्हें तीसरे पाठ की नकल करके लाने का होमवर्क टिका दिया ।
अगली कक्षा में पहुँचे ही थे कि मिड डे मील बनाने वाली आ गयी । उसने कहा कि गेहूँ पीसने के लिए आटाचक्की पर डालने हैं । दो दिन पहले बच्चों को गेहूँ पिसवाने भेजा था तो वे नालायक अमन जी की बाइक का सारा पेट्रोल फूँकने के बाद ही वापस आए थे । उनके घरवालों ने स्कूल आकर बच्चों को गेहूँ पिसवाने भेजने पर सख्त नाराजगी भी प्रकट की थी ।
सो अमन जी ने खुद मोर्चा सँभाला । पीछे मीड डे मील बनाने वाली को बैठाया और बीच में गेहूँ का कट्टा रखा । गेहूँ तुलवाकर वापस आने तक अंतिम कालांश आरम्भ हो चुका था । यह कहने को उनका रिक्त कालांश था । मगर स्टाफ की कमी के कारण लगभग रोजाना ही किसी न किसी कक्षा में जाना पड़ता था ।
सो आज के लिए निर्धारित कक्षा में पहुँचे । यह कक्षा 10 में गणित का कालांश था । अमन जी हिन्दी के अध्यापक थे । बच्चों ने गणित ही पढने की जिद की । और गणित की मोटी सी पुस्तक मेज पर धर दी । अमन जी ने बच्चों द्वारा बतायी प्रश्नावली बड़े धैर्य से ढूँढी । बड़े गौर से उसमें उपस्थित सवालों को पढा । और बड़े रौब से बोले- 40 तक के पहाड़े किस किस को आते हैं , वे अपना हाथ खड़ा करें । फुदक रहे छात्रों का दिल बैठ गया । एक भी हाथ खड़ा नहीं हो पाया । बस अमन जी ने पहाड़ों के महत्व पर प्रकाश डालना आरम्भ किया तो पूर्णाहुति पर ही रुके । अब दोपहर बाद उनको बीएलओ नाम का नया चोला धारण कर गाँव में जाना था और मतदाताओं के आधार नम्बरों को मतदाता सूची से लिंक करना था ।
विदाई के हस्ताक्षर करने ऑफिस तक आए तो अनीश जी और आरुष जी को संगणक पर ही उलझे हुए पाया । नेट बहुत ही धीमा चल रहा था । सो एक एक सूचना सरकार के चरणों तक पहुँचाने में आधा-पौन घण्टा लग रहा था ।
यूँ लगता है कि सभी सरकारें शिक्षालय द्वारा दी जा रही सूचनाओं से ही चल रही है । और जनता कहती है कि सरकारी शिक्षक पढाते नहीं । अरे भाई ! इनको पढाने का समय तो दो और फिर सकारात्मक परिणाम भी देखो ।