Revenge: A Romance Singham Series - Series 2 Chapter 2 in Hindi Fiction Stories by Poonam Sharma books and stories PDF | Revenge: A Romance Singham Series - Series 2 Chapter 2

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Revenge: A Romance Singham Series - Series 2 Chapter 2

सात साल बाद.......

सबिता, प्रजापति मेंशन में, अपने दादाजी के साथ डाइनिंग टेबल पर बैठ नाश्ता कर रही थी। ऐसा कभी कभी ही होता था जब वो अपने दादाजी के साथ कुछ वक्त बिता पाती थी। इसलिए वो कोशिश करती थी उनके साथ कुछ घंटे बिता पाए। उसने यूहीं उन्हे राज्य और बिज़नेस में होती जनरल प्रोग्रेस और होने वाले इवेंट्स के बारे में बताया।
"मुझे लगता है ये हम सब के लिए सही होगा, दादाजी," उसने प्यार से कहा।

और हमेशा की तरह उन्होंने अपनी आंखों के इशारे से ही हां या ना में जवाब दिया जो की उनका बात करने का आखरी ज़रिए रह गया था। जब सिंघम्स ने उनकी पत्नी पर गोली चला कर मार दिया था, तब ही उनके भी पीठ पर कई गोली चलाई थी जिससे उनकी रीढ़ की हड्डी क्षतिग्रस्त हो गई थी और वो पूरी तरह से पैरालाइज हो गए थे यानी की लकवा मार गया था। उस दिन के बाद से ही मौतों का सिलसिला शुरू हो गया था। कई और लोगों की जाने गई थी सिंघम और प्रजापति परिवार से।

सबिता ने अपने दिमाग से पुरानी और कड़वी यादों को झटका। उसे ये सब सोच के ही नफरत होने लगती थी। उसने दुबारा अपना नाश्ता करना शुरू कर दिया और जब लगभग नाश्ता खत्म होने को हुआ तभी उसने दीवार पर लगी एक प्राचीन और विशाल घड़ी की आवाज़ सुनी जो सात बजा रही थी। उसने एक साफ नैपकिन उठाया और उससे अपना मुंह हल्के हाथ से पूछा फिर अपने उंगलियों की मदद से कप की तरफ इशारा किया। आस पास कई सर्वेंट्स खड़े थे उसमे से एक आगे आया सबिता का इशारा देख कर और अपने साथ एक गरम भाप निकलता हुआ बर्तन भी लाया।
"म... मै... मैडम, क... कॉफी।" उसने अपनी कापती आवाज़ में कहा।

सबिता ने उसे आगे बढ़ने के लिए एक कर्कश इशारा किया, लेकिन वह आदमी इतना घबराया हुआ था, उसके हाथ कांपने लगे और उसने कॉफी को कप के बाहर और टेबल पर गिरा दिया।
तुरंत ही उसकी आंखें डर से फैल गई।

"आ...आई एम सो स...सॉरी म...मैडम।" उसने डर और घबराहट में कहा।

सबिता ने उस बिखरी हुई कॉफी की तरफ देखा फिर उसकी नज़र अपनी शर्ट पर गई जिसपर कॉफी की कुछ बूंदे टेबल से गिर गई थी।

वोह सर्वेंट अनाड़ीयों की तरह टिश्यू पेपर से बिखरी हुई कॉफी पर थपथपाने लगा लेकिन उसे साफ करने की बजाय उसने और ही बिखरा दिया था।

"प.... प्ल... प्लीज़! मु...झे मत म... मर...मरवाएगा! मुझे मा...फफफ कर दी....जिए मै....मैडम!"

"इस बेवकूफ को यहां से हटाओ," सबिता ने आराम से आदेश देते हुए कहा।
अगले ही पल दो आदमी सामने आए और चिल्लाते हुए उस रोते हुए नौकर को वहां से ले गए।

जब रोने चिल्लाने की आवाज़ कम हो गई तब सबिता ने मुंह सिकोड़ ते हुए पूछा, "कौन था वो, ध्रुव?“
उसने बिना पीछे मुड़े ही कहा जैसे वो जानती थी की ध्रुव उसके पीछे ही खड़ा है।

ध्रुव उसका बॉडीगार्ड और पर्सनल असिस्टेंट दोनो ही था।
जब तक उसे आदेश नही मिलता था तब तक वो उसके हमेशा नज़दीक ही रहता था। "नया है, मैडम," ध्रुव ने जवाब दिया। "में ध्यान रखूंगा की जब तक वो सब कुछ सीख नही जाता यहां का तौर तरीका और काम करने का ढंग तब तक वो घर में ना आ पाए।”

सबिता ने सर हिलाया और कुर्सी से उठ गई। "मैं आपसे कल मिलती हूं, दादाजी।" उसने अपने दादाजी के झुरियां वाले गाल पर हल्के से किस किया और फिर मैन गेट की तरफ बढ़ गई।

उसने एक गीले नैपकिन से उस कॉफी के दाग को अपने शर्ट से साफ करने की बहुत कोशिश की पर साफ ही नही हुआ। "शिट, यह दाग तो साफ ही नही हो रहा और मेरे पास इतना समय नहीं है की में कपड़े बदल सकूं। हमे वहां नौ बजे तक पहुंचना ही होगा।"

उसने गीले नैपकिन को वापिस एक सर्वेंट को सौंपते हुए वोह उस एसयूवी गाड़ी की तरफ बढ़ी जो उसका ही इंतजार कर रही थी। "संजय," उसने उस आदमी को पुकारा को गाड़ी के पास ही खड़ा था। संजय प्रजापति मेंशन में लगभग तीस सालों से काम कर रहा था। वोह प्रजापति की सभी संपतियों का केयरटेकर था और साथ ही राज्य में कोई भी समस्या होती तो उसे भी हल करता था।

"यस, मैडम?"

"जो रात में हमारे बीच बात हुई थी में चाहती हूं तुम उसे पूरा करो।"

"बट मैडम, हमारी ये भी तो बात हुई थी यह काम बहुत रिस्की है, और फिर....."
उसने उसकी बात पूरी होने से पहले ही उसे रोक दिया।

"करो इसे।" उसने नरमी से आदेशात्मक लहज़े में कहा।

संजय ने एक गहरी सांस ली, और अपनी गर्दन हां में हिला दी। "जब तक आप घर वापिस आएंगी तब तक काम पूरा हो चुका होगा।"

"गुड।" सबिता ने गाड़ी में बैठने से पहले संजय की बात सुन कर कहा। "लेट्स गो।"

जैसी ही उनकी एसयूवी प्रजापति मेंशन के बड़े से लोहे के गेट से बाहर निकलने लगी, ध्रुव ने उसे उसका आज का शेड्यूल और उससे रिलेटेड डिटेल्स समझाने लगा। जब उसने बोलना पूरा किया तो उसके चेहरे पर गहरे एक्सप्रेशन थे उसकी भोए सिकुड़ी और आंखें छोटी छोटी कर रखी थी जैसे वो कुछ सोचते हुए आगे बोला "मुझे पूरा यकीन नही है की ये सही होगा, मैडम। हमारे लोग नफरत करते हैं सिंघम्स से उसके काम करने के तरीके से। पर्सनली, मुझे लगता है....."

"स्टॉप।" सबिता ने शांति से उसे आदेश दिया और जो भी वोह कहना चाह रहा था उसे बीच में ही रुकवा दिया।
"यह प्रोजेक्ट हमारे लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। और मैं चाहती हूं कि जैसे-जैसे कार्य आगे बढ़े, आप शांति बनाए रखने की प्रमुख जिम्मेदारी लें। समझ गए?"

"जी मैडम, में समझ गया।"

"गुड।"

सबिता ने देखा की अब गाड़ी उस रेतीले रास्ते की तरफ बढ़ रही है जहां कैनल कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा है। वोह जानती थी आखिर ध्रुव उससे क्या कहना चाह रहा था उसने जो चिंता जताई वोह सही ही तो थी। यह कोई आसान बात नही थी प्रजापातिस के लिए सिंघमस के साथ काम करना। पर ये उसकी मजबूरी भी थी और जरूरत भी उसके लोगों के लिए, उनके डेवलपमेंट के लिए, उनके बेहतर भविष्य के लिए।

सूखे की मार उसके लोगों के लिए भारी पड़ रही थी। जैसा की सिंघम्स के पास है प्रजापतिस के पास वोह मॉडर्न टेक्नोलॉजिस नही थी की अपने लोगों की फसलों को सूखे से बचा सके। उसके मन में एक गिल्ट था की वोह अभी तक अपने लोगों को बेहतर सुविधाएं नही दे पा रही थी। वोह अभय सिंघम की तरह पड़ी लिखी नही थी और ना ही उसके ऐसे कोई कॉन्टैक्ट्स थे की वो अपने लोगों तक बेहतर सुविधाएं और विकास दे पाएं।

ज्यादा से ज्यादा वोह आम जरूरतों की चीज़े जैसे खाने की चीज़े, पानी और कुछ जरूरतों का सामान ही बाहर से मंगवा पाती थी। लेकिन जिस तरह से चीजें हाल ही में हो रही थीं, वह जानती थी कि यह एक स्थायी योजना नहीं थी। प्रजापति के पैसे में उनका हिस्सा बहुत ही कम था। पर अब तक वो इतना ही कर सकती थी।

पर जब एक साल बाद ये कैनल प्रोजेक्ट पूरा होगा, तो फसलों में सिंचाई के लिए पानी की समस्या खत्म हो जाएगी। और मैन्युफैक्चरिंग टीम यह सुनिश्चित करेंगी कि लोगों को उचित रूप से नियोजित और व्यस्त रखा जाए, जिससे उन्हें झगड़े से दूर रखा जा सके। लेकिन अगर प्रजापति और सिंघम एक दूसरे को खुद नही मारते पहले तब।

यह बहुत मुश्किल था आपस में शांति बनाए रखना। पर वो अब सोच चुकी थी की उसे क्या करना है और अब वो पीछे नहीं हट सकती थी।

सबिता ने आगे देखा की उसकी गाड़ी अब नजदीक पहुंच चुकी थी। जल्द ही उसकी गाड़ी उस जगह पहुंच चुकी थी जहां "सिंघूर डैम" बन रहा था, उसी के पास एक टेंपररी ऑफिस बना हुआ था।

उस की नज़र उस ओर गई जहां एक लंबा चौड़ा आदमी सभ्य तरीके से कपड़े पहने हुए शानदार शख्सियत के साथ खड़ा था। वोह उस कंस्ट्रक्शन साइट के बाहर अपने बॉडी गार्ड्स के साथ खड़ा एक रौबदार व्यक्तित्व का इंसान था जिससे वोह नफरत करती थी...नफरत।

"देव सिंघम"




















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सीरीज 2 अभी जारी है...
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