अगर यह कहें को उस सुबह अमायरा ग्लो कर रही थी तोह यह बात गलत नही होगी। उसके प्यार की चमक, संतुष्टि, आज सभी निशानियां उसके चेहरे पर झलक रही थी। आज उसकी रंगत कुछ बदली हुई थी। वोह अपने चेहरे पर छाई हया को बिलकुल भी छुपा नही पा रही थी। उसके चेहरे की लाली, उसकी बीती रात की सब घटना को बयान कर रही थी। उसका अकड़ा हुआ और थका हुआ बदन, उसका हर अंग दर्द करता शरीर, उसका भावविभोर हुआ दिल, उसे एक पल के लिए भी कुछ घंटो पहले अपने पति के साथ बिताए वोह लम्हें भूलने से इंकार कर रहे थे। और इस वक्त उसे इसी चीज़ की तोह सबसे ज्यादा जरूरत थी। की उन सब बातों को फिलहाल भूल जाए और उस बात पर अपना ध्यान केंद्रित कर जो उसकी सास उस से करने को कह रही थी, कुछ रस्में निभाने को जो हल्दी की रस्म और उसके बाद कुछ रस्में किए जा रहे थे।
जितना ज्यादा वो करने की कोशिश कर रही थी, उतनी ही ज्यादा उसे मुश्किल हो रही थी। उसे उसका हाथ अभी अपने ऊपर महसूस हो रहा था। वोह अभी भी अपने कान के पास उसकी फुसफुसाहट महसूस कर सकती थी। उसकी गर्म सांसे का स्पर्श वोह अपने पूरे बदन पर महसूस कर रही थी। अभी भी वोह उस से पूरी तरह से जुड़ा हुआ महसूस कर रही थी। क्या इसी को प्यार कहते हैं? प्यार में खोना? वोह बीती रात याद कर कर के मुस्कुराए जा रही थी जब उसे उसकी बहन ने कंधा पकड़ कर ज़ोर से हिलाया।
"अमायरा? कहाँ खोई हुई हो?"
"मैं.....उह्ह्ह्ह्.....वोह दी.....मैं..." उसे अपने आसपास हो रही बातचीत के बारे में कोई खबर ही नहीं थी।
"मैने पूछा की इसमें से हम कौन सा चुने?" इशिता ने पूछा और अमायरा के पास कोई जवाब ही नहीं था। उसे कुछ होश ही नहीं थी की किस बारे में बात हो रही है, किस चीज़ को चुनना है, किस में से चुनना है।
"दी.....मैं...." अमायरा अनिश्चित हो गई।
"क्या हुआ है अमायरा? तुम्हारी तबियत मुझे ठीक नही लग रही है। क्या तुम ठीक हो? कल रात ठीक से सोई थी की नही? तुम्हारी आँखें भी सूजी हुई लग रही है।" सुमित्रा जी ने चिंता जताते हुए पूछा।
"क्या? कुछ हुआ है क्या अमायरा? ठीक से नही सो पाई थी क्या रात को?" कबीर ने अपनी मॉम के पास बैठते हुए पूछा। जितना हो सके उतना वोह अपने चेहरे पर कोई भाव नहीं आने दे रहा था और अमायरा ने उसे देख कर थूक गटक लिया। कबीर जान बूझ कर अमायरा को छेड़ रहा था और उसे सबके सामने फसा रहा था जो की अमायरा के साथ नाइंसाफी थी। इससे पहले जी अमायरा कबीर की बात को कोई मुंह तोड़ जवाब सोचती और दे पाती की उसने अपनी सास की आवाज़ सुनी।
"क्या तुम उसी कमरे में नही थे कबीर, जिस कमरे में अमायरा थी? अगर उसकी तबियत ठीक नहीं थी, तोह तुम्हे पता होना चाहिए था ना। तुम इतना बेपरवाह कैसे हो सकते ही कबीर?" सुमित्रा जी ने कबीर को डपटते हुए कहा और अमायरा अपनी इस छोटी सी जीत पर मुस्कुरा पड़ी, वोह भी बिना कुछ कहे बिना कोशिश किए हुए।
"मैं कैसे जान सकता हूं मॉम? कल रात इतना डांस कर कर के मैं तोह बहुत ज्यादा थक चुका था और जैसे ही बैड पर लेटा बिलकुल गहरी नींद में सो गया था। तुम ने मुझे उठाया क्यों नही अमायरा? तुम्हे अपना ध्यान रखना चाहिए। तुम्हे ऐसे रात भर जागे हुए नही रहना चाहिए था।" कबीर ने अपनी पत्नी की तरफ देखते हुए शरारत से मुस्कुराते हुए कहा जबकि घर की बाकी की औरतें अमायरा के लिए परेशान हो रही थी।
"हाँ अमायरा। तुम्हारी अगर तबियत ठीक नहीं थी तोह तुमने हमे क्यों नही बताया? अमायरा की मॉम नमिता जी ने पूछा।
"मैं ठीक हूं मॉम। बस शादी की भागादौड़ी में थोड़ा थक गई थी। थोड़ा आराम कर लूंगी तोह ठीक हो जाऊंगी।" अमायरा सबका ध्यान अपने ऊपर से हटाने की कोशिश कर रही थी जो की उसे अचानक मिलने लगी थी। वोह जानती थी की इस वक्त उसके चेहरे पर शर्म छाई हुई थी और वोह नही चाहता थी की कोई भी इसका कारण जान जाए। पर वोह कर भी क्या सकती है जब उसका डेविल पति ही उसके लिए मुश्किलें पैदा कर रहा हो, उसके सामने एक ही कमरे में रह कर भले ही सबके सामने हो।
"तुम्हारी आँखें भी लाल हो रखी हैं, और तुम बहुत ज्यादा थकी हुई भी लग रही हो। तुम लड़कियों को तैयार करने के लिए ब्यूटीशियन तीन बजे आएगी। एक काम करो, जैसे ही यह हल्दी की सभी रस्में पूरी हो जाती हैं, अपने कमरे में जा कर थोड़ी देर सो जाना। जब ब्यूटीशियन आएगी तोह मैं तुम्हे बुला लूंगी।"
"पर मॉम बाकी की रस्मों का क्या?"
"इशिता है ना बाकी के कामों के लिए। और वैसे भी बाकी रस्में अब शादी के समय ही होंगी। कबीर यह तुम्हारा काम है ध्यान रखना की अमायरा शादी से पहले थोड़ा आराम कर ले। मैं बाकी की तैयारियों में बिज़ी हो जाऊंगा तो यह अब तुम्हारी जिम्मेदारी है। मैं बिल्कुल भी नही चाहती की मेरी बहु रात को साहिल की बारात में थकी थकी लगे।" सुमित्रा जी ने अपने बेटे को ऑर्डर करते हुए कहा और कबीर ने अपनी जिम्मेदारी लेते हुए हां कर दिया।
जल्दी ही घर के सभी लोग हल्दी की रस्मों में व्यस्त हो गए और जैसे ही यह सब रस्में खतम हुई कबीर जबरदस्ती अमायरा को उन दोनो के कमरे में ले गया।
"क्....क्या कर रहें हैं आप? सब लोग क्या सोचेंगे?" अमायरा ने पूछा जैसे ही कबीर ने कमरे का दरवाज़ा अंदर से लॉक किया।
"कोई कुछ नही सोचेगा। याद करो मॉम ने ही तोह मुझे तुम्हारी जिम्मेदारी दी थी की मैं तुम्हारे ध्यान रखूं की तुम आराम करो।" कबीर ने एक आँख दबाते हुए कहा और अमायरा शर्माने लगी।
"तोह इसी लिए आप ने वहां यह सब किया था? मेरे साथ यहां अकेले रहने के लिए।"
"मैं बस तुम्हारी टांग खींच रहा था पर यह मेरे फेवर में ही हो गया तोह अच्छा ही हुआ ना।"
"मैं बस तुम्हारी टांग खींच रहा था पर यह मेरे फेवर में ही हो गया तोह अच्छा ही हुआ ना। और इससे मुझे एक चांस मिल गया तुम्हे पूरा का पूरा देखने का। मैं सोच रहा था की कैसे मैं तुम्हे सबके सामने हल्दी लगाऊंगा, पर मॉम ने तोह मुझे थाली में साजा कर मौका दे दिया।" कबीर मुस्कुरा गया।
"पर आप यह मुझे क्यों लगाना चाहते हैं? मैं कोई दुल्हन थोड़ी ना हूं। मेरे चेहरे पर पहले से ही इतनी जल्दी लगी हुई है। यह साहिल ने मेरे पूरे चेहरे पर लगा दिया। बल्कि हम सब ने एक दूसरे को खूब हल्दी लगाई थी। पर आप कहां गायब हो गए थे साहिल को हल्दी लगाने के बाद?"
"क्या तुम इस प्लेनेट की सबसे बेफकूफ लड़की हो?" कबीर ने अमायरा का सवाल इग्नोर कर अपना सवाल पूछ दिया। क्या उसे उसको यह बताने की जरूरत थी की उसके लिए यह सेरेमनी कितनी मायने रखती थी उसके साथ सेलिब्रेट करने के लिए?
"आपका कहने का क्या मतलब है?" अमायरा ने हल्के गुस्से से पूछा।
"क्या तुमने नही कहा था की इस शादी को हम अपनी शादी की तरह ही एंजॉय करे? अपनी शादी के दौरान, मैं नही देख पाया था की तुम हल्दी के पीले रंग में रंगी हुई कितनी खूबसूरत लगोगी।" कबीर ने उसे अपने करीब खींचते हुए फुसफुसाया। "और अगर मुझे तुम्हारे साथ यह रस्म निभानी है तो मुझे तुम्हे हल्दी तो लगाना ही पड़ेगा।"
"पर मेरा चेहरा तोह पहले से ही हल्दी में रंगा हुआ है। आपके लिए अब कोई जगह नही बची।" अमायरा ने कबीर को चिढ़ाते हुए कहा और कबीर के गले में अपनी बाहें डाल दी। "लेकिन मैं यह काम आसानी से कर सकती हूं।" अमायरा ने अपने गाल आगे कर कबीर के गाल से सटाए और उसके गाल को अपने गाल की हल्दी से रंग दिया।
"अह्ह्ह्....तुमने अपना काम कर दिया है। अब मेरी बारी है।" कबीर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया और अमायरा यह सोचने लगी की कबीर के दिमाग में अब चल क्या रहा है। लेकिन अमायरा को ज्यादा इंतजार नही करना पड़ा। उसने देखा की कबीर पास में रखी एक टेबल पर रखे हल्दी के बोल में हाथ डाल अपने हाथ में हल्दी ले रहा है, जो की उसने पहले इस बात पर ध्यान नही दिया था की कमरे में पहले से ही हल्दी का कटोरा रखा हुआ है। कबीर के हाथ अब अमायरा की कमर पर चले गए और उसे इत्मीनान से धीरे धीरे उसकी कमर पर हल्दी लगाने लगा। जबकि अमायरा की अचानक सांसे तेज़ हो गई।
"किसने कहा की मेरे पास जगह नहीं है तुम्हे हल्दी लगाने के लिए। मेरे पास यह जगह है और....और इसके अलावा और भी बहुत सारी जगह है।" कबीर ने उसके कान के पास जा कर मदहोशी से फुसफुसाते हुए कहा और अमायरा शर्मा गई।
"मुझे अपने चेहरे से यह हल्दी हटानी होगी नही तो मेरे चेहरे पर पीले निशान पड़ जायेंगे," अमायरा ने बड़बड़ाते हुए कहा, और कबीर का हाथ अपने ऊपर से हटाने लगी। कल रात के उनके एक होने के बाद भी वोह कबीर से शर्मा रही थी। उसका उसके सामने इस तरह से खड़े रहने में ही उसकी सांसे तेज चलने लगी थी।
"पहले मुझे यह तुम्हे अच्छे से लगाने तोह दो, उसके बाद मैं तुम्हे इसे छुड़ाने में भी मदद कर दूंगा। क्या कहती हो?" कबीर ने फिर शरारत से पूछा और अमायरा तोह उसकी कटपुतली की तरह उसके आंखों में मंत्र मुग्ध हो कर उसके कहे अनुसार करने लगी।
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पूरा परिवार इस वक्त आंगन में इकट्ठा हो चुका था। जहां इस वक्त मंडप लग चुका था। दुल्हन सी सजी सुहाना और किसी राजा की तरह चेहरे पर चमक लिए साहिल, दोनो मंडप के एक साइड बैठे हुए थे। दोनो ही बहत खूबसूरत लग रहे थे। दूसरी ओर बैठे थे पंडित जी जो की उनसे एक एक कर शादी की रस्मे करवा रहे थे। उनके आसपास चारों तरफ परिवार के लोग बैठे इस पवित्र विवाह समारोह के साक्षी बने बैठे, हर होती विधि को बड़े ही ध्यान से देख रहे थे। सबके चेहरे पर आज खुशी झलक रही थी। किसी को नई बहू घर ले जाने की खुशी थी, किसी को अपनी बेटी का घर बसते देख कर खुशी हो रही थी, तोह किसी को अपने पुराने दिन मतलब अपनी शादी याद आ गए थी साहिल और सुहाना की शादी देख कर, तोह कोई था जो इस शादी में अपनी शादी जी रहा था। अमायरा और कबीर थोड़ी दूरी पर एक साथ बैठे थे, जहां अमायरा चेहरे पर मुस्कान लिए नए जोड़ी को उनकी शादी की रस्मे पूरा करता देख रही थी, वहीं कबीर सिर्फ अमायरा को ही देख रहा था। अमायरा के चेहरे पर सिर्फ खुशी के ही नही बल्कि संतुष्ट और प्यार के भी भाव थे। इस लम्हे में कबीर को ज़रा भी परवाह नही थी की कोई उसे देख रहा है या नही। उसे इस वक्त कोई फर्क नही पड़ता था की कोई उसे बाद में चिढ़ाएगा। उसे फर्क पड़ता था तो बस उस लड़की से जिसने उसकी पूरी जिंदगी बदल कर रख दी थी। वोह लड़की जिसने उसे बिना कुछ किए ही उसे प्यार करने पर मजबूर कर दिया था। वोह तोह बस यही सोच रहा था की शादी के जोड़े में उसकी पत्नी कितनी खूबसूरत लगेगी। जिसकी परवाह उसे खुद की शादी पर नही थी। उसने तोह अपनी शादी पर सभी रस्में निभाई तोह थी लेकिन बिना अमायरा की तरफ देखे। उसके बारे में एक पल के लिए भी सोचे बिना। अमायरा अभी भी सुहाना और साहिल की तरफ ही देख रही थी और उस एक खास पल में उसकी चेहरे की मुस्कुराहट और बड़ी हो गई। कबीर ने भी साहिल और सुहाना की तरफ देखा, यह देखने के लिए की ऐसा क्या हुआ जो अमायरा के चेहरे की खुशी और बढ़ गई तोह उसने पाया की साहिल ने सुहाना का हाथ अपने हाथ में लिया हुआ है और दोनो सात फेरे ले रहें हैं। और इसी खास पल को देख कर अमायरा इमोशनल होते हुए मुस्कुरा गई।
कबीर ने याद किया की उसने अपनी शादी के समय क्या किया था, उसने तोह फेरे लेते वक्त अमायरा के साथ चलने के लिए अपनी चल धीमी भी नही की थी।
कबीर ने याद किया की उसने अपनी शादी के समय क्या किया था, उसने तोह फेरे लेते वक्त अमायरा के साथ चलने के लिए अपनी चाल धीमी भी नही की थी। वोह अपने बरताव के लिए इस वक्त खुद को दोषी महसूस कर रहा था। वोह जानता था की वोह अतीत तोह नही बदल सकता था, लेकिन खुद से वादा कर सकता था की उसकी जिंदगी में ढेरों खुशियाँ भर देगा की अमायरा को याद ही नहीं रहेगा की दुख दर्द होता क्या है। अमायरा ने महसूस किया की कबीर की नज़रे उसी पर है तो उसने पलट कर देखा।
"शादी की रस्में उस तरफ चल रही हैं। सुहाना खूबसूरत लग रही है ना?" अमायरा ने चहकते हुए कहा। कबीर ने एक नज़र सुहाना की तरफ देखा और फिर वापिस अमायरा की तरफ देखने लगा। उसने महसूस किया की उसने आज शाम सुहाना या फिर किसी और को नोटिस ही नही किया को कौन कैसा लग रहा है जबसे उसने अपने वाइफ को देखा था। उसने जो बेबी पिंक कलर का लहंगा पहना हुआ था उसमे वोह बिलकुल एंजल की तरह लग रही थी। अमायरा ने तै किया था की वोह शादी में रेड बिलकुल नही पहनेगी क्योंकि इससे दुल्हन का ग्रेस कम हो जाता है, जैसा की उसने मूवीज में सुना था लोगों को डिस्कस करते हुए की इंग्लिश वेडिंग में गेस्ट्स का व्हाइट कलर पहनना पाप होता है क्योंकि इससे ब्राइड का ग्रेस कम हो जाता है। सुमित्रा जी चाहती थी की उनकी दोनो बहुएं रेड कलर में ही कुछ पहने क्योंकि नॉर्थ इंडियन कस्टम्स में त्योहारों और समारोह में शादी शुदा औरतों का रेड कलर पहनना शुभ माना जाता है पर अमायरा के बहस के बाद घर में सबने डिसाइड किया की कोई भी साहिल की शादी वाले दिन रेड कलर का ड्रेस नही पहनेगा। कबीर उस दिन की बहस याद कर मुस्कुरा गया। अमायरा ने इस बात पर ध्यान दिया था की सुहाना जो की दुल्हन होगी उसे सबसे अलग सबसे अच्छा दिखना चाहिए। कबीर को बुरा लगने लगा था यह याद करके की खुद की शादी के दौरान वोह नही था अमायरा के लिए कुछ भी डिसाइड करने के लिए। उसे खुद याद नही था की अमायरा ने अपनी शादी पर लाल लहंगा पहना था या मर्जेंटा कलर का लहंगा पहना हुआ था। कितनी दुखी थी वोह उस दिन, कितना मुश्किल रहा होगा उसके लिए उस दिन झूठी हँसी हँसना, की वोह खुश है। कबीर ने तो कोई दिखावा किया ही नही था। और इससे अमायरा को बहुत दुख हुआ होगा। उसे तोह अपनी शादी का दिन भी अपनी सिस्टर के साथ शेयर करना पड़ा था, क्योंकि कबीर ने डिसाइड किया था की वोह कोई भी एक्स्ट्रा रस्मे नही करना चाहता है। पर तब भी, क्या अमायरा की गलती नही थी उसे इतने सालों तक इग्नोर करना?
"वोह बहुत खूबसूरत लग रही है पर तुमसे ज्यादा नही।" कबीर ने कहा।
"आप चापलूस हैं।"
"तुम खुश लग रही हो।" कबीर तुरंत बोला।
"हां, शादियाँ बल्कि सभी रस्में मुझे बहुत खुशी देती हैं। मैं तो पैदा ही जश्न मनाने के लिए हुई हूं।" अमायरा ने चहकते हुए कहा।
"पर तुम अपनी शादी के दौरान खुश नही थी और तो और तुम्हे अपना एक्सक्लूसिव वेडिंग भी नही मिला था।" कबीर ने उस पर गहरी नज़र डालते हुए कहा।
"आप बार बार एक ही बात क्यों करते हैं? हां, मैं खुश नही थी पर तब आप भी नही थे। पर क्या यह सब हम पीछे नहीं छोड़ आएं हैं?"
"हां, छोड़ दिया है। पर आज परिस्तियां कुछ अलग होती अगर तुमने मुझे इतने सालों तक इग्नोर नही किया होता।" कबीर ने कराहते हुए कहा।
"ओह माय गॉड। दुबारा नही। प्लीज दुबारा मत शुरू हो जायेगा।"
"क्यूं? तुमने अभी तक मेरे सवाल का जवाब नही दिया है।"
"ओह तोह आपको अभी जवाब चाहिए। लास्ट नाइट तो आप यह सवाल भूल गए थे और इंपोर्टेंट नही समझा था पूछना क्योंकि आप तो मुझे सेड्यूस करने में बिजी थे। अब जब आप ने वोह सब हासिल कर लिया, तोह अब आप को जवाब भी जानना है। बहुत ही शातिर शरयंत्र है। पर क्या आप यह भूल नहीं रहें हैं की मैने आप से कहा था की अब आप खुद ही इस सवाल का जवाब ढूंढिए क्योंकि इसका जवाब मुझसे आपको नही मिलने वाला।" अमायरा ने एक झलक कबीर की तरफ देखा और फिर वापिस मंडप की तरफ देखने लगी।
"तुमने कल रात मेरे सेडक्शन का कोई विरोध नहीं किया था। आज सुबह भी नही। और ना ही दुपहर को जब मैं तुम्हे हल्दी लगा रहा था। और खासकर तब तोह बिलकुल नही जब मैं हल्दी हटा रहा था। अचानक यह सब मैने ही किया था, और तुम्हे तो बिलकुल इंटरेस्ट था ही नही।" कबीर ने फुसफुसाते हुए कहा और अमायरा शर्म से लाल हो गई।
"शायद मुझे नही था। आपने जबरदस्ती मुझे राज़ी कर लिया साथ देने के लिए।" अमायरा ने कहा, वोह अपनी चेहरे की हया और मुस्कुराहट छुपाने की कोशिश कर रही थी।
"अच्छा ऐसा है? तोह वोह लंबी लंबी सांसे लेने की आवाज़, कराहने की आवाज़ जो मैने सुनी थी और जो मेरे बेचारे शरीर पर नाखूनों के निशान है वोह तोह मुझे कुछ और ही कह रहें हैं।" कबीर ने एक बार फिर फुसफुसाते हुए कहा और अमायरा घबराने लगी।
"क्या आप चुप रहेंगे? कोई अगर सुन लेगा तोह क्या सोचेगा?"
"तोह क्या हुआ? मैं अपनी पत्नी से बात कर रहा हूं।"
"कबीर प्लीज़।"
"तोह फिर बताओ मुझे। तुमने मुझे क्यों इग्नोर किया था?"
"किए तरह का सवाल है यह? मैने आपको इग्नोर नही किया था। वोह बस हालात ऐसे थे।" अमायरा ने जवाब दिया, अब वोह चिढ़ने लगी थी।
"तुमने कभी सोचा है की तुम भी अपनी शादी में इसी तरह खुश रह सकती थी, अगर हम एक दूसरे से इतने दूर नही होते जैसे तब थे?"
"क्या आपने कभी रियलाइज किया है की अगर हमारे बीच अच्छी दोस्ती होती तोह हमारी एक दूसरे से कभी शादी नही हुई होती?" अमायरा ने तुरंत पलट कर सवाल पूछ दिया।
"कैसे?"
"आप किसी भी लड़की से शादी करने को तैयार थे जो भी आप में इंटरेस्टेड हो, यह जानते हुए भी की आप उसे अपनी पत्नी का दर्ज़ा कभी नही देंगे।"
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कहानी अभी जारी है...
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