Secret Admirer - 83 in Hindi Love Stories by Poonam Sharma books and stories PDF | Secret Admirer - Part 83

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Secret Admirer - Part 83

अमायरा तोह कबीर के मुंह से इतना सब सुन कर दंग ही रह गई थी। वोह अपने आप को कबीर से दूर ही रखती थी क्योंकि उसे लगता था कबीर उसे अपने आस पास कभी नही देखना चाहता होगा। और आज, उसके साथ इस तरह से बैठने के बाद,
वोह बस यही सोच रही थी की जिंदगी कितनी अलग होती उसके लिए अगर दोनो ने ही अपने मन में एक दूसरे के लिए पूर्व अनुमान न लगा लिया होता। आज की यह बात से अमायरा दुबारा यह सोचने पर मजबूर हो गई थी जो की उसकी मॉम ने जो सुबह कहा था। की कबीर भी एक नॉर्मल इंसान है और उसकी भी नॉर्मल ही इच्छाएं और फीलिंग्स हैं। की वोह उससे कोई अलग नही है। उसकी अपनी इनसिक्योरिटी थी, उसके अपने दुख थे, और उसकी अपनी जिंदगी। तोह अगर कबीर ने अमायरा को इतनी अटेंशन नहीं दी तो इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं की अमायरा उससे कुछ कम है। यह इसलिए क्योंकि उनकी डेस्टिनी में ऐसे ही लिखा था ऐसे जीना, अपने ही रास्ते, जब तक की उनकी किस्मत में नही था एक दूसरे से मिलना और एक साथ हो जाना। की वोह भी उसके हर तरह से बराबर ही है, पर अब तक कभी सोचा नहीं था उसे अपनी जिंदगी में शामिल करने का।

अमायरा की जिंदगी बहुत मुश्किलों भरी रही थी, उसने कबीर को अपने जीवन में बहुत सम्मान दिया था, और वोह हमेशा से ही चाहती थी की वोह उसकी जिंदगी बन जाए, पर क्या उसे अब अपनी जिंदगी से कोई शिकायत है? अब तो बिलकुल भी नही। एक तरह से तोह वोह भगवान का शुक्रगुजार है की वोह उससे दूर रही इतने सालों तक। कबीर ने तो खुद ही कहा था की वोह उसे पहले बच्ची ही समझता था, और अगर अमायरा उससे बात करती तब भी कबीर उसे बच्ची समझता। कौन जानता है की कहीं कबीर उसे अपनी छोटी बहन की तरह ट्रीट करने लग जाता, अगर अमायरा उससे अच्छे से घुल मिल जाती तोह। क्या फिर तब अमायरा उससे नफरत नही करती? उस इंसान से अपने आप को बहन बुलवाना जिसे वोह मन ही मन हमेशा से चाहती आई है। वोह उसका पहला क्रश था, जिसके बारे में वोह पहल खुद भी नही जानती थी, और तब फिर वोह उससे नफरत करती उसे रखी बांधने के बाद और उसे जिंदगी भर के लिए किसी और का होते देखने के बाद वोह भी एक छोटी बहन के टैग के साथ। और अपने आप को भी जिंदगी भर के लिए किसी और का होते देखने के बाद। अपनी जिंदगी में किसी और को आने इजाज़त देती वोह जगह देने के लिए जो इस आदमी ने पहले से ही हत्या ली थी। उसकी जिंदगी में उसके दिल में। किसी और को इजाज़त देती उसे छूने के लिए जिस तरह वोह करता है, इस तरह किसी और को उसे अपने इतने करीब पकड़ने की जो की वोह इस वक्त कर रहा है। क्या यह सब अच्छे के लिए नही हुआ, की उसने कबीर से दूरी बनाए रखी? अमायरा अपने ही विचारों पर हँस पड़ी और कबीर ने इस पर उससे तुरंत सवाल पूछ दिया।

"मैं यहां तुमसे कुछ सेंसेटिव बातें कर रहा हूं और तुम हँस रही हो।"

"आई....आई एम सॉरी। मैं बस यही इमेजिन करने की कोशिश कर रही थी की जिंदगी कैसी होती अगर हम दोनो एक दूसरे को अच्छे से जानते होते पर अपने अलग अलग पार्टनर्स के साथ होते तोह कैसा लगता। मेरे लिए यह इमेजिन करना भी बहुत मुश्किल है।" अमायरा ने समझाया।

"हम्मम। मेरे लिए तुम्हारे बिना अपनी जिंदगी इमेजिन करना इंपॉसिबल है। और यह इकलौता विचार की तुम्हे किसी और के साथ देखना यह बहुत डरावना है।" कबीर ने सच्चाई से जवाब दिया।

"पर यह तोह बस एक विचार है। हकीकत नही। सच्चाई यह है की इस वक्त मैं आपके साथ यहां इस बाथटब में बैठी हूं और आपने मुझे एक बार भी किस नही किया।" अमायरा ने दिलेरी से कहा और पीछे पलट गई। कबीर मुस्कुराने लगा।

"तुम थोड़ा जल्दी जल्दी सब सीख रही हो। ऐसा नही है की मैं कोई कंप्लेंट कर रहा हूं।" कबीर ने कहा और अगले ही पल उसके होंठों को अपने होंठों के गिरफ्त में ले लिया। दोनो काफी देर तक एक दूसरे को ऐसे ही पैशनेटली किस करते रहे जब तक की दोनो की ही सांसे ना उखड़ने लगी। "तुम जानती हो की तुम मेरे लिए बहुत जरूरी हो, है ना।" कबीर ने अपनी उखड़ती सांसे के साथ कहा और अपने होठों को उसके होठों से ले जाते हुए गर्दन तक पहुंच गया और किस करने लगा। कबीर का एक हाथ उसकी गर्दन के पीछे था और दूसरा हाथ उसकी ब्रेस्ट का साथ खेल रहा था और अमायरा को बेचैन किए जा रहा था। टब में जगह कम थी और एक दूसरे को और पाने की इच्छा महसूस करने की इच्छा उन्हे बेसब्र बनाए जा रही थी।

"चलो अंदर चलते हैं।" कबीर ने अपनी तेज़ चलती सांसों के साथ कहा और अमायरा ने एक बार में ही हां कर दिया। दोनो टब से बाहर आए अपने ऊपर पानी को टॉवल से पूछा और अगले ही पल कबीर ने अमायरा को गोद में उठा लिया। कबीर उसे लिए बाथरूम से बाहर आया और प्यार से उसे बैड पर लेटा दिया। वोह भी उसके ऊपर ही लेट गया जब उसने उसकी धीमे धीमे आवाज़ सुनी।

"क्या आपने यह नही कहा था की हम घर वापिस जाने तक इंतजार करना चाहिए?" अमायरा ने पूछा, वोह डर रही थी कबीर से इस तरह से उसे बीच में रोकने से।

"इस वक्त मुझे कोई फर्क नही पड़ता की मैने क्या कहा था क्या नही। और तुम्हारी आंखें भी मुझे यही कह रहीं हैं की तुम्हे भी नही पड़ता। इस वक्त इस मोमेंट पर कोई मुझे तुम्हे प्यार करने से और अपना बनाने से रोक नही सकता। मैं खुद भी नही।" कबीर ने नशीली सी आवाज़ में कहा और अमायरा शर्मा कर मुस्कुरा गई। इस वक्त अमायरा की आंखें उस से यही कह रही थी की कबीर अपने वोह सभी वादे पूरे करदे जो की उस की आंखें हमेशा उससे किया करती थी।

"पर अगर क्या....." आशंकाएं अभी भी अमायरा के दिमाग में चल रही थी।

"Shhhhh....साथ के कमरों में और भी लोग रह रहें हैं तो इस वक्त बिलकुल चुप रहो। आज रात कोई बात नही करेगा।" कबीर ने उसे आदेश देते हुए कहा और उसके होंठों को फिर अपने होठों में ज़ब्त कर लिया। और जैसा कबीर ने कहा था, उस रात और कोई बात नही हुई। सुबह की पहली किरण निकलने तक सिर्फ दोनो की कुछ आवाजें ही थी जो की पूरे कमरे में गूंज रही थी। जैसे की धीमे धीमे कराहने की आवाज़,
आहें भरने की, और तेज़ सांस लेने की आवाजें ही गूंज रही थी।

*******

कबीर सुबह देर से उठा था। उसने महसूस किया की अमायरा उस के बाहों में लिपटी हुई सो रही है। उसे बहुत सुकून मिल रहा था, तोह वोह कुछ देर तक ऐसे ही लेटा रहा और अपनी आंखें नही खोली थी। कुछ पल बाद उसकी आंखें अचानक से खुल गई, डर से, जब उसने महसूस किया की दोनो के ही तन पर कपड़े नही है। अब वो डर रहा था अमायरा के रिएक्शन से, की जब अमायरा उठेगी तोह क्या कैसे रिएक्ट करेगी। धीरे धीरे उसके दिमाग में बीती रात की कुछ झलकियां घूमने लगी और वोह मुस्कुरा पड़ा। दोनो के लिए ही बीती खूबसूरत रात बहुत ही खुशनुमा बीती थी। जो की उन्होंने पहले से प्लान नही किया हुआ था, और ना ही इमेजिन कर सकते थे जो कुछ हुआ। धीरे से उसने अपने आप को अमायरा से अलग किया और उठा खड़ा हुआ। वोह बाथरूम में घुसा, तभी उसकी नज़र पानी से भरे हुए टब पर गई और उसे रात की सारी घटना याद आ गई। अपने चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान लिए उसने अपना सुबह का काम किया और जल्दी से बाथरूम से बाहर आ गया, की कहीं अमायरा अपने से ना उठ जाए, क्योंकि वोह नही चाहता था वोह खुद से उठ जाए। वोह उसके एक्सप्रेशन देखना चाहता था जब अमायरा उठे। वो शर्मीली बन कर रहेगी या बोल्ड? उससे अब इंतजार नही हो रहा था यह देखने के लिए। वोह बैड पर बैठ गया और झुक कर उसके माथे को चूम लिया। फिर उसकी बांह को हल्का सहलाते हुए उसे उठाने लगा। अमायरा धीरे से हिली और अपनी आंखें हल्की सी खोल दी। अपने ऊपर झुके हुए कबीर को देख कर उसके चेहरे पर भी मुस्कान खिल गई थी।

"गुड मार्निंग," अमायरा ने अलसायी हुई सी आवाज़ में कहा और कबीर झुक गया उसे किस करने के लिए।
"उह्ह्ह..... बासी मुंह है।"

"तुम्हे लगता है की इससे मुझे कोई फर्क पड़ता है?" कबीर ने पूछा और फिर अपने होंठ उसके होंठ पर रख दिए, उसकी सारे फालतू ख्याल मन से निकालने के लिए, उसका विरोध रोकने के लिए। अमायरा के हाथ उठ गए और कबीर की गर्दन में लपेट दिया। उसकी गर्दन पर छूने के बाद उसे एहसास हुआ की कबीर ने शर्ट नही पहनी है।

"आपने शर्ट क्यों नही पहन रखी?" कुछ पल बाद जब कबीर ने उसे छोड़ा तोह अमायरा ने पूछा, अभी भी वोह नींद में ही थी और कबीर शरारत से मुस्कुरा पड़ा।

"वोही कारण से जिस कारण से तुमने नही पहना है।" कबीर ने शरारत से मुस्कुराते हुए जवाब दिया और अचानक ही अमायरा को रात की बातें याद आ गई। यह याद आते ही अमायरा की एक बार में ही सारी नींद उड़ चुकी थी और उसकी आंखें बड़ी बड़ी हो गई थी जबकि कबीर अपने दिल से ज़ोर से हँस पड़ा था। अमायरा ने अपना चेहरा कंबल में छुपा लिया, वोह इस सुबह बहुत ही ज्यादा शर्मा रही थी कबीर को अपना चेहरा दिखाने में।

"ओके ओके। अब और मत शरमाओ। उह्ह्ह...पहले यह बताओ कि क्या तुम ठीक हो? अच्छा महसूस कर रही हो ना?" कबीर ने गंभीर होते हुए पूछा, वोह सच में उसके लिए फिक्रमंद था।

"हाँ। इससे अच्छा और कभी महसूस नही कर सकती।" अमायरा ने बैठते हुए जवाब दिया, उसके चेहरे पर शर्म की हया और भी ज्यादा नूर बिखेर रही थी।

"मुझे खुशी है फिर। मैं तुम्हे बता नही सकता की कितना तड़प रहा था मैं की काश यह शादी नही होती अभी और घर पहुंचने के बाद जो यह रिसेप्शन की लड़ी हमे अटेंड करनी है। अगर साहिल मेरा बच्चा, मेरा भाई नही होता, तोह मैं तुम्हे किडनैप कर ले जाता कहीं किसी एकांत जगह पर जहां हम दोनो के अलावा कोई तीसरा नही होता।" कबीर ने गहरी सांस ली और अमायरा के चेहरे पर आई बालों की लट को प्यार से उसके कान के पीछे कर दी।

"हाँ उन्ही जगहों के जैसे जहाँ आप मुझे ले गए थे और वहां खुद ही सो गए थे।" अमायरा ने चिढ़ाया और कबीर मुस्कुराने लगा।

"वैसे, जहां तक मुझे सही से याद है, मैं कल रात तोह नही सोया था, और ना ही मैंने तुम्हे सोने दिया था। अब तुम मुझसे कोई कंप्लेंट नही कर सकती।" कबीर ने उसकी गर्दन पर अपनी नाक से सहलाते हुए कहा, और अमायरा शर्म से लाल हो गई।

"साइड हटिए। मुझे बाथरूम जाना है। और अपनी आंखें भी बंद कीजिए।"

"क्यों?"

"क्योंकि.....मैं.....मैं....उह्ह्ह...."

"मुझे लगता है की तुम शायद भूल गई हो की मैंने तुम्हे पूरी रात अच्छे से देख लिया है।" कबीर ने उसे चिढ़ाते हुए कहा और उसे बाहों में भर लिया।

"ओह चुप रहिए ना। बस आंखें बंद कर लीजिए और बिलकुल मत खोलिएगा जब तक की मैं बाथरूम में ना घुस जाऊं।"

"पर क्या मैने तुम्हे अपनी आंखें बंद करने को कहा था? तुम तो जब से उठी हो मुझे निहार रही हो।"

"Hawww....मैं....मैं... ऐसा कोई काम नही करती।" अमायरा ने अपना बचाव किया।

"तोह करो ना। मैं पूरा का पूरा तुम्हारा हूं।" कबीर धूर्त की तरह उसे निहार रहा था।

"कबीर मुझे जाने दीजिए ना। हम हल्दी की रस्म के लिए लेट हो जायेंगे। प्लीज़।" अमायरा ने रिक्वेस्ट किया और कबीर पीछे हट गया।

"ठीक है। लेकिन यह बस आखरी बार। और जल्दी करना। मॉम यहां किसी भी वक्त आती ही होंगी तुम्हे बुलाने। और हम लेट भी हो रहें हैं, तोह अगर तुम चाहो तो हम एक साथ नहा कर समय और पानी दोनो बचा सकते हैं।" कबीर ने एक आँख दबा दी और फिर अपनी आँखें बंद कर ली। अमायरा बिना जवाब दिए बाथरूम में तुरंत भाग गई।

कबीर ने कुछ देर बाद बाथरूम के दरवाज़ा की खुलने की आवाज़ सुनी पर उसे बाहर आती अमायरा नही दिखी। बल्कि उसके बदले अमायरा की आवाज़ सुनी जो उसे ही बुला रही थी।

"क्या आपने नही कहा था की हम लेट हो रहें हैं?" कबीर मुस्कुराया और तुरंत बाथरूम में घुस गया, जल्दी से नहाने के लिए। पर उसकी बजाए उनका नहाना काफी देर तक चलता रहा था। पर क्या अब उन्हे कोई फर्क पड़ता था? बिलकुल नहीं।










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कहानी अभी जारी है...
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