Confession - 10 in Hindi Horror Stories by Swati books and stories PDF | Confession - 10

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Confession - 10

10

 

अतुल  भागता  जा रहा है  और  वो लोग  उसके पीछे  भाग   रहे  हैं। वह  लगातार  चिल्लाए  जा रहा है।  तभी  जैसे  ही वो एक आदमी की पकड़  में  आने लगता है ।  सामने  मैन  रोड  से आती  गाड़ी  से टकरा  जाता  है  और वही  गिर  जाता  है ।  अतुल  को लगता है  कि  उसकी मौत  हो गई  है।  उसकी आँखों  के आगे  अँधेरा  छाया  हुआ  है । वह  अपनी आँखें  खोलने की कोशिश  करता है और धीरे -धीरे  अपने सामने  रखी  चीज़ो  को देख पाता  है । एक  नर्स  और एक  डॉक्टर  उसके पास  खड़े  हैं ।  इसका  मतलब  मैं  हॉस्पिटल में  हूँ, यानि  मैं  बच  गया । चैन  की सांस  लेता  हुआ  वह  फ़िर  से आंखें  बंद  कर  लेता है। "आप  ठीक  है ?" डॉक्टर  ने उसके  सिर  पर  हाथ रखते  हुए  पूछा । जी, डॉक्टर  मगर मेरा  पूरा  बदन  टूट रहा  है।अतुल  की आँखें अभी बंद है । आप  मरते-मरते बचे  हैं। वो  तो  पुलिस  आपको यहाँ  समय  पर ले  आई  वरना आपकी  जान भी जा  सकती  है । "यह  तो मुझे  पता है , मगर मैं  अपना  पाँव  नहीं हिला  पा  रहा  हूँ ।" अतुल  करहाते  हुए  बोला। "आपके दाएं  पैर  का माँस  फट  गया  है ।  सिर  पर भी चोट लगी  है ।  अब  आप आराम करिए।अगर  किसी  को बुलाना  है तो  आप नर्स  को बता   सकते  है। अभी  थोड़ी  देर  में  पुलिस भी पूछताज के लिए  आएगी । तब तक आप आराम  करें ।" कहकर  डॉक्टर  चला  गया । अतुल सोचने  लगा  पुलिस  को वह  क्या बतायेगा  कि  उसके साथ हुआ  क्या  था।  उसने नर्स  को अपने घर  का नंबर  देकर  बहन को  बुलाने  के लिए कहा ।  थोड़ी  देर  बाद  उसकी  बहन  और  उसका  पति  चले  आये।  मैं  तो  कहती  हूँ, अतुल  तू मम्मी-पापा  के पास  रुड़की चला  जा।  यहाँ  रहेगा  तो  कुछ न  कुछ  गड़बड़  करता  रहेगा।  ठीक  है,  निम्मी  पहले  इसे  ठीक  हो  जाने  दो  फ़िर  डाँट  लेना।  नकुल  ने  अतुल  की ओर  देखते हुए  कहा।  जीजू सही  कह  रहे  हैं, दीदी  आप  फिलहाल  मुझे  यह  सब मत  कहो ।  तभी  पुलिस  अतुल का  बयान  लेने पहुँच  गई। 

पुलिस :: आप  ऐसे  क्यों  भाग  रहे  थें?

अतुल : जी  वो, मुझे  कुछ  काम  याद आ  गया था  तो  मैं  बस जल्दी  में  ऐसी  हरकत  कर  गया ।  अतुल  के सामने  रात  का मंज़र  आ गया और  डरकर  उसने  आंखें  बंद  कर ली ।  

पुलिस : फिलहाल  तो हम  जा रहे  हैं  ।  मगर  ज़रूरत  पड़ी  तो फ़िर  बात  करेंगे ।  आप  लोग  मेरे  साथ  आये  उन्होंने  उसके  दीदी  और जीजू  को कहा ।  

इस  तरह  अतुल के दिन  अस्पताल  में  बीतने  लगे ।  शुभांगी  उससे  मिलने  आई।  यह  सब कैसे  हो  गया ।  उसके  चेहरे  पर चिंता  है ।  उसने उस दिन की  सारी  बात  शुभु  को  बता दी । " क्या  कह रहा  है ।  सच में  ?"  शुभु  को अब  भी यकीन  नहीं  हो  रहा  है  कि  अतुल कह  क्या रहा  है । "यार ! अब  तो मुझे  भी लगता  है कि  रिया  के  साथ  कोई गड़बड़  है ।  अतुल के  चेहरे  पर  डर  और  शंका  थी ।  यह  भी  हो सकता  है  कि  वो  किसी  मेन्टल  डिसॉर्डर से गुज़र  रही  हूँ और  उसे  खुद  नहीं पता  है  कि  वह  क्या कर रही  है।"  शुभु  ने उसे  तस्सली  देते  हुए  कहा ।  "बाकी  सब  तो ठीक  है, मगर  वो लोग कहाँ  से आए । अतुल  हो सकता  है  कि सागर  की आत्मा  उससे  यह  सब  कुछ करवा  रही  हो । शुभांगी  ने सोचते  हुए   कहा  ।  यार ! अब फ़िर  से  शुरू मत  हो जा, पॉल  एंडरसन  के साथ  यह  किस्सा  वहीं  खत्म  हो गया  था  ।  ऐसे  तो फ़िर  अनन्या को भी  हमें  परेशां करने  के लिए  अब  तक आ जाना  चाहिए  था  ।"  अतुल  ने खीजकर  कर कहा  ।  कल   मैं  रिया  के घर  जाती  हूँ  और उससे  बात  करती  हूँ  ।  हो सकेगा  तो उसके  घरवालों  से भी  बात करूँगी।" "शुभु  मुझे  लगता  है  कि  हमें  रिया  को  अब  अकेला  छोड़  देना  चाहिए  । तुझे  पता है  विशाल  भी कह रहा था कि  रिया उसके  फार्महाउस  पहुँच गई  और  अजीब  हरकते  करने  लगी  ।"  'क्या '! शुभु  का मुँह  खुला  का खुला  ही रह गया  । उसे  किसने  बताया ? मुझे  नहीं पता  न ही मुझे  जानना  है  । "मैं  तुझे  भी यहीं  कहूँगा  कि  उसको  उसके  हाल  पर छोड़ो  और  अपने  बारे  में  सोचो  ।"  अतुल  अब भी  खीज  रहा  है  ।  तू  आराम  कर, मैं  चलती  हूँ  ।  शुभु  उसे  बाय! बोलकर  चली  गई । 

आखिर यह  पहेली  क्या   है ? अतुल की बात  मान  लेनी  चाहिए  या फ़िर  रिया को   सचमुच  हमारी  मदद  की ज़रूरत  है  ।  नहीं, मैं  एक बार  तो रिया  से बात  करकर  रहूँगी ।  इस तरह  हमारी  इतनी पुरानी   दोस्ती  नहीं  टूट  सकती  ।  तभी  सामने  से यश  को आता  देखकर  उसने  अपनी  सोच को विराम  दिया  ।  

यश : अतुल  कैसा  है ?

शुभु :: ठीक  है, थोड़ा  परेशां  भी है  ।  शुभु  ने  लम्बी  सांस  लेते  हुए  कहा  ।  

यश :: हो जाता  है, हादसे  इंसान पर  बुरा  प्रभाव  डालते  है।  यश  ने  शुभु  को  तस्सली  की नज़रों  से देखते  हुए  कहा ।

शुभु :: मेरे  साथ  रिया  के घर  चलोगे ? 

यश :: हाँ, ज़रूर । कहते  हुए  उसके  चेहरे  पर  मुस्कुराहट  आ  गई ।  

दोनों  रिया  के घर  पहुँच  गए।  इस  बार  उसकी  मम्मी  ने दरवाज़ा  खोला  । " अरे ! शुभु  बेटा  अंदर  आओ ।  आंटी  यह  यश  है।  शुभु  ने परिचय  करवाया  ।  यश  ने  नमस्ते  कहा  ।  "नमस्ते  बेटा, और  शुभु  तुम्हारी  मम्मी  कैसी  है ?" "ठीक  है, आंटी।   पिछले  कुछ  दिनों  से तबीयत  थोड़ी  ढीली  थी।  मगर  अब बेहतर  है ।"  "आंटी  रिया  कहाँ  है ? बेटा  वो सो रही  है। तू  कह  तो  उठा  दो ?" नहीं  आंटी, रहने  दो  ।  "उसकी  तबीयत  तो  ठीक  है  न   । " हाँ, तबीयत  तो ठीक  है, पर  आजकल  अपने  आप  हँसती  रहती  है  ।  शायद  खुद  से  बातें  भी करती  रहती  है। कभी-कभी  मुझे  अजीब  सी  आवाज़ें  उसके कमरे  से आती  है, अंदर  जाती  हूँ  तो  कोई नहीं  होता   ।  रिया  की मम्मी  की आवाज़  में  हैरानी है  ।  "आंटी आप  परेशान  मत  हो। '  शुभु  ने रिया की मम्मी  के कंधे  पर हाथ  रखकर  कहा  ।  मैंने  इसके  पापा  को कहा  है  कि  अगर  यहीं  हाल  रहा  तो  रिया  को  किसी  अच्छे  डॉक्टर  को दिखाते  है  । चले  शभु, अब  देर  हो रही  है  ।  यश  ने घड़ी देखते  हुए  कहा  ।  अच्छा  आंटी  हम चलते  है, कोई  ज़रूरत लगे  तो कॉल  करना।  "ओके  बेटा, रिया  उठती  है तो  मैं  उसे बता दूँगी  कि तुम  लोग  आए  थें।  

"मैं  तुम्हें  भी घर  छोड़  देता  हूँ, मुझे  पापा  की  फैक्ट्री  में  जाना  है।  इसलिए  चलने  को कहा ।  यश  ने सफ़ाई  दी ।  "कोई  नहीं, तुम  जाओ  मैं  चली जाऊँगी  ।" "नहीं,  तुम्हें  घर  छोड़कर  वहाँ से  चला  जाऊँगा  ।"  यश  ने ज़ोर  देते  हुए  कहा  । 'थैंक्स  यश।"  "तुम  थैंक्स  मत  कहो, पराया  सा लगता  है।"  यश  ने प्यार  से शुभु  की  आँखों  में  देखते  हुए  कहा  तो शभु  ने  शरमाते  हुए  अपनी नज़रे  हटा  ली ।  वैसे  उस  दिन के लिए  सॉरी, मैंने  बिना  तुमसे  पूछे  तुम्हें  किस  कर  दिया था  ।  कोई बात  नहीं, मैंने  भी  तो ओवर रियेक्ट  कर दिया  था ।  शुभु  के  चेहरे  पर मुस्कान है  ।  दोनों  अपनी  ही लय में  बात  करते हुए  जा रहे  है।  शुभु  के  घर  पहुँचकर  उसने  उसे बाय  कहा और  शुभु  ने भी  बड़े  प्यार  से  ज़वाब  दिया  ।  यश  को लग रहा  है कि  शायद  शुभु  दोस्ती  से  आगे  बढ़  जाए ।  क्या वह  उसका  इंतज़ार  कर सकता  है?  हाँ !! कर सकता है।  उसने  जैसे  खुद  को ही ज़वाब  दिया।  

जब  फर्स्ट  ईयर  में  उसने  शुभु  को देखा  था, तभी उसे  शुभु  अच्छी  लग गई  थीं। गोल  चेहरा, भूरी  आंखें, छुईमुई   सी मुस्कान  । एक  आकर्षक  व्यक्तित्व।  हमेशा  आत्मविश्वास  से भरी  हुई, सबकी  मदद  करने  वाली  प्यारी  सी  लड़की। मगर  वह  हमेशा  मुझे  एक  क्लासमेट  ही समझती  रही   । अपने इन्ही दोस्तों  के साथ  घूमती  रहती।  मगर  आज लग रहा है, शुभु  को भी  उसकी  ज़रूरत  है।
 
शुभु  ने अपने घर की बेल  बजाई।  उसकी  माँ  ने दरवाज़ा  खोला । माँ  के  चेहरे  पर अज़ीब  हाव-भाव  है ।  क्या  हो  गया  माँ , ऐसे  क्यों  देख रही  हों  ? माँ  ने कोई  ज़वाब  नहीं  दिया । अंदर  गई  तो  सामने  सोफे  पर  रिया  को बैठे  देखकर  हैरान  हो गई।  तू  यहाँ ?? तू  तो  अपने घर   सो नहीं रही थीं  ?? शुभु को अचानक  रिया को अपने  घर  पर देखना  उसकी  समझ  से बाहर है।

"रिया  बड़ी  देर  से तेरा  इंतज़ार  कर रही  है।"  माँ  ने बताया । "मैं  तेरे  घर गई  थीं। आंटी  ने बताया  कि  तू  सो  रही  है। अब तू मुझे  मेरे  घर ही दिखाई  दे  रही  है ।"  शुभु  ने रिया  से  सवाल  किया।  पहले  मैं  सो ही रही  थीं  फ़िर  मैं  उठ गई।  शायद  मम्मी  को पता नहीं  चला  होगा  । रिया  ने मासूमियत  से कहा।  "तुम  लोग  बात  करो  । मैं  अंदर  हूँ।" कहकर  माँ  चली  गई।  "यार ! मैं  तुझसे  उस दिन  के लिए  माफ़ी  मांगने आई  हूँ । "अतुल  से मिली  तू ? वो  हॉस्पिटल  में  है। तुझे  तो पता ही  होगा। " शुभु  ने उसकी बात को अनसुना  कर अपना  सवाल कर  दिया । "हाँ , मैंने   सुना   उसका  एक्सीडेंट  हो गया  है, मैं  जाऊँगी  उससे  मिलने। रिया  की आँखों  में  एक चमक है । जैसे  उसे शुभु की बात   सुनकर  मज़ा  आया  हों   । "पर  तू  भी तो वही  थी?" उसने  बताया ।  हम  साथ  तो चल  रहे थे,  मगर  वो अपने  रास्ते  निकल गया । अतुल  ने मुझे  सब बताया  है वो कह रहा  है कि  तू  हंस  रही थीं, तेरा  चेहरा अजीब  सा था  और वो लोग भी  नार्मल  नहीं  थें  और मुझे  उस दिन टेरेस पर भी  तू  नार्मल  नहीं लगी । तू  विशाल  से भी  मिली थीं? शभु  को रिया  ने अपनी बातों  से  घेर  दिया है । एक  अलग एनर्जी  रिया  में  शुभु  को दिखाई  दीं । उसने  मुँह  फेर  लिया  और कहने  लगी, मुझे  तुम लोग  नार्मल  नहीं  लग रहे । अतुल, तू  और  विशाल  बदल  गए हों । तेरी  मम्मी  भी बदल  गई  है  क्या । वो  भी तुझे  लेकर  परेशान  हो  रही  थीं  । माँ  का  क्या  है  चाहे  वो तेरी  हो  या मेरी परेशान  तो रहेगी  ही। रिया  ने शुभु  को देखा  तो उसकी  आँखें  गहरी  नीली  हो चुकी  है । मैं  अब चलती  हूँ, मुझे  नहीं लगता  कि  तुम  लोगों  को मेरी  माफ़ी   की ज़रूरत  है । कहकर  रिया जाने  लगी और  जब उसने  पीछे  मुड़कर  शुभु  को देखा  तो उसे  कोई  और ही दिखा। वह  दहल  सी गई। वह  रिया को  रोकना  चाहती  थीं, मगर  उसकी  हिम्मत  नहीं हुई । 

 शभु!  माँ की आवाज़ सुनकर  वह  थोड़ा सम्भली । खाने  की टेबल पर माँ  बोल पड़ी " तूने बताया  नहीं  कि  तेरा  प्रोजेक्ट  पॉल  एंडरसन  पर था  और तुम लोग मरते-मरते  बचे। माँ  की आवाज़  में  गुस्सा  है । माँ वो , क्या ! क्या  माँ, वह  हिचकी।     शुभु , तुझे  मुझे  बताना  चाहिए  था । माँ का  इतना  ज़ोर  से चिल्लाते  देख  "वह  बोली पहले आप शांत  हो जाओ,  फ़िर  बात  करते  है।" नहीं  अभी  बात करनी  है। आज से तेरा  घर से निकलना  बंद, समझी। माँ  ने शुभु  को उसके  कमरे  में  धकेल  दिया और  बाहर  आकर  ज़ोर-ज़ोर से  रोने  लगी। माँ  को क्या  हो गया । इतनी  बड़ी बात नहीं  है। शुभु  माँ  को रोता  देखकर  सोचने  लगी।

माँ  रोते  हुए  कह रही  है  कि  "मैंने उन्हें  भी मना  किया था, मगर वो भी मेरी  बात नहीं माने  थें  । वो भी नहीं माने  थे।"  माँ  रोई  जा रही है ।  माँ  ने किसे  मना  किया था।  कुछ  बताओ, उसने माँ  के पास  जाकर  पूछा।