रामा के पिता महादेव ने अपनी दुःख भरी कहानी सुनाते हुए आगे कहा, " रामा अब हम दोनों यहीं तुम्हारे साथ रहेंगे। वहाँ गाँव में अब अपना कुछ भी नहीं है। भगवान उसे भी देख लेगा। उसने मुझे खेत से बेदखल कर दिया, घर भी तो अपना उसी खेत में था। मैं क्या करता? कहाँ जाता?"
"अरे बाबूजी, आपने यह सब मुझे पहले क्यों नहीं बताया?"
"क्या कर लेता तू?"
"क्या हम... कोर्ट कचहरी करते?"
"मुझे तो उस रास्ते से ही डर लगता है जो कचहरी की तरफ जाता है। सुना है ऐड़ियाँ घिस जाती है चक्कर काटते-काटते पर सुनवाई नहीं होती। मैंने तो यहाँ तक सुना है कि सींग दाने और चने से कुछ नहीं होता काजू बादाम खिलाने पड़ते हैं और वो भी सोने चाँदी के। रामा आख़िर कुछ भी कहो, वह मेरा भाई है। अपने ही परिवार को कोई कचहरी में ले जाता है क्या? खून है वह हमारा और वैसे भी ग़लती मेरी ही है। मैंने ही उस पर हद से ज़्यादा विश्वास किया और बिना देखे, बिना पढ़े दस्तखत भी कर दिए। अब कुछ नहीं हो सकता बेटा।"
इसी बीच दीनदयाल उस कमरे में आ गए। रामा के बाबूजी को देखते ही उन्होंने उनके पाँव छूते हुए पूछा, "अरे अंकल आप? आप कब आए? कैसे हैं आप लोग?"
"दीनू बेटा आओ-आओ, हम बस ठीक ही हैं।"
"नहीं अंकल बैठूँगा नहीं, जरा जल्दी में हूँ। अरे रामा, परसों कोर्ट में पेशी है ध्यान रखना।"
महादेव ने अपनी आँखों की छोटी-छोटी पुतलियों को घुमाते हुए पूछा, "कोर्ट की पेशी? क्या हो गया रामा? यह दीनू क्या कह रहा है?"
रामा चुप था तभी उन्होंने पूछा, " दीनू क्या हुआ? कोर्ट क्यों जाना है?"
"अंकल आप रामा से ही पूछ लीजिए," कहते हुए दीनदयाल अपने कमरे में वापस चले गए।
"रामा तू कुछ मुसीबत में है क्या?"
रामा उनकी बात का कोई जवाब ना दे पाया। दूसरे दिन रामा और दीनू कोर्ट पहुँच गए। रामा अपने बाबूजी को कोर्ट नहीं ले जाना चाहता था पर उनके आगे रामा की एक ना चली और वह बिना पूछे ही ख़ुद भी कोर्ट पहुँच गए। इन दो दिनों में महादेव यह तो नहीं समझ पाए कि आख़िर कोर्ट का क्या मसला है लेकिन उन्हें घर के हालात देखकर यह तो पता चल ही गया था कि रामा और दीनू के बीच अब वह संबंध नहीं हैं; वह दोस्ती, वह यारी नहीं है, वह प्यार से मिलना-जुलना नहीं है जो पहले हुआ करता था।
आज कोर्ट में यह उन दोनों की पहली सुनवाई थी। कोर्ट से बाहर ही सारी बातों का खुलासा होते ही, सारी बातें पता चलते ही महादेव बहुत दुःखी हो गए। उन्होंने वहीं पर रामा से कहा, "रामा तुझे शर्म आनी चाहिए, मेरा खून होते हुए भी तूने यह घिनौनी हरकत कैसे कर दी? जिसने तुझ पर विश्वास किया, प्यार दिया तूने उसी की पीठ में छुरा भोंक दिया। रामा अभी के अभी बंद करवा, यह सब यहीं ख़त्म कर। इसे अपनी ग़लती मानकर माफ़ी माँग ले। मुझे तो तुझको अपना बेटा कहने में भी शर्म आ रही है। तुझ में और तेरे चाचा में फर्क़ ही क्या है? काश तू मुझ पर गया होता। अब मुझे पता चल रहा है कि भगवान ने मेरे साथ यह खेल क्यों खेला क्योंकि इधर तेरे मन में लालच की दीमक तुझे खोखला कर रही थी, तेरा दिमाग खा रही थी और तेरे लालच का बदला भगवान ने मुझसे ले लिया रामा। इधर तूने दीनू का घर हड़प करने का सोचा उधर तेरे चाचा ने मेरा सब कुछ हड़प कर लिया। करे कोई और भरे कोई। यह तेरे गुनाहों की सज़ा है जो ऊपर वाले ने मुझे दे दी।"
"लेकिन बाबूजी बाहर मकानों के किराये आसमान छू रहे हैं। ऐसे में मैं कैसे…"
"तो तू दूसरे की खून पसीने की कमाई को अपनी समझ लेगा। थोड़ा तो सोच रामा तू क्या कर रहा है? क्या तू डाकू है? यदि तुझे मेरे साथ रहना है, बेसहारा, बेघर हुए अपने बाप को सहारा देना है तो तुझे यह सब ख़त्म करना होगा वरना शहर में वृद्धाश्रम तो ज़रूर ही होंगे। हम दोनों पति-पत्नी वहाँ चले जाएँगे लेकिन इस पाप के भागीदार कभी नहीं बनेंगे। मैं घर जा रहा हूँ, यह सब ख़त्म किए बिना मुझे अपनी शक्ल मत दिखाना।"
अपनी आँखों से आँसू पोंछते हुए महादेव कोर्ट से बाहर निकल कर घर चले गए। शाम तक रामा भी सब कुछ ख़त्म करके वापस घर आ गया। वह अपने बाबूजी के कदमों पर गिर कर माफ़ी माँगने लगा, "बाबूजी मुझे माफ़…"
"नहीं रामा माफ़ी माँगनी है तो जाकर दीनू से माँग जिसकी पीठ पर तूने छुरा भोंका है।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः