लंबे अंतराल के पश्चात मोहनचंद आज अपने हृदय के भीतरी कोने से मुस्कुराएँ थे। उनके स्कूल का दोस्त घनश्याम जो उसे अचानक मिल गया। उसे अपने घर लाये और बातें करने लगे अपने जमाने की। अपने जमाने को याद करते हुए उन्होंने चाय और बिस्किट को भी गुजरे हुए जमाने का बना दिया। घनश्याम अपनी बेटी प्रिया को जयपुर कुछ शॉपिंग कराने आया था जो अभी उनके पास बैठी कुछ बोर सी हो रही थी और शर्म से अपनी नजरें नीचे झुकाएँ अपने मुख पर गंभीरता लिए हुए बैठी थी।
"क्या करती हो तुम बेटा?" मोहनचंद ने प्रिया को स्नेहपूर्वक पूछा।
"अभी मैं ग्रेजुएशन कर रही हूँ अंकल। यह पहला साल है।" प्रिया ने अपने कोमल वाणी को स्फुटित करते हुए बोला।
तभी घनश्याम अपने स्वभाव के अनुसार बीच में ही बोले "अरे मोहन ! इसकी छोड़ो तुम ये बताओ तुम्हारा लाल कहाँ है? और क्या करता है वो आजकल?"
" उसकी भी ग्रैजुएशन अभी ही शुरू हुई है ...." मोहनचंद बोल ही रहा था कि तभी कमरे में राकेश प्रवेश करता है और मोहनचंद अपने बेटे को बुलाकर कहता है"बेटा, ये मेरे स्कूल टाइम के बेस्ट फ्रेंड थे आज बाज़ार में मुलाकात हो गयी । अभी हम तुम्हारी ही बात कर रहे थे कि तुम आ गए। "
"नमस्ते अंकल" राकेश ने अपने मुख पर बनावटी हँसी के साथ बोला।
"नमस्ते बेटा , आओ बैठो -बैठो ; कैसी चल रही है तुम्हारी पढ़ाई?" घनश्याम ने अपनी आवाज में थोड़ा अतिरिक्त जोर देकर बोला।
"अच्छी चल रही है।" यह कहते हुए राकेश अपनी चोर नजर से प्रिया को देखता है।
उसका साँवला रंग राकेश को अनायास ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है, पर परिस्थिति के अनुसार वह कदम अपने कमरे की ओर बढ़ा लेता है।
मोहनचंद और घनश्याम आज दोनों खुश थे उनकी लंबी चर्चा के बाद आखिर वह टॉपिक आ ही गया जो अक्सर ऐसी उम्र वाले करते है। शुरुआत मोहनचंद ने की और बोला " और बता बिटिया की शादी के बारे में कुछ सोचा है?कोई लड़का देखा है?"
"नहीं तो ! अभी तो यह अपनी पढ़ाई कर रही है उसके बाद देखेंगे। तुम बताओ ? राकेश के लिए देखी कोई लड़की! "
घनश्याम ने वही बाण वापस छोड़ते हुए कहा।
"अभी कहाँ, अभी तो पढ़ाई कर रहा है , कुछ योग्य हो जाए फिर देखते है।"
घनश्याम और मोहनचंद दोनों के मन में आया कि क्यों न इस दोस्ती को रिश्ते में बदल दे। लेकिन यह बात ऐसे एक ही मुलाकात में तय करने में उन्हें थोड़ा संकोच हुआ और अभी तक एक -दूसरे के परिवार के बारे में इतना जानते भी तो नहीं थे लेकिन उसी पल से घनश्याम का ध्यान उस घर की हर चीज और उनके व्यवहार पर थोड़ा ज्यादा ही रहने लगा।
मोहनचंद और घनश्याम के मन में चलने वाले इन प्रपंचों से दूर प्रिया अपने ही मन में खोई हुई थी। आने वाला समय उसे क्या दिखाएगा इस बात से बेखबर वो अपने सपनों को अपने दिवास्वप्नों द्वारा ही पूर्ण कर रही थी। उसे अंदाजा ही नहीं था कि आने वाला समय उसकी जिंदगी को किस मोड़ पर ले जायेगा।
क्रमशः...