रात गहराने लगी थी। शाम का झुटपुटा देखते- देखते घने पेड़ों के पीछे ओझल हो चुका था। आसमान में जुगनू से टिमटिमाते तारे धीरे- धीरे बढ़ते जा रहे थे। नीरव सन्नाटा सा पसरने लगा था क्योंकि सारा जगत दिन भर की चहल- पहल के बाद नींद के आगोश में चला गया था।
अचानक एक ऊंचे से पेड़ के घनेरे पत्तों में कुछ हलचल सी हुई। उसकी हर डाली महीन आवाज़ में सरसराने सी लगी। एक- एक करके कई पंछी और छोटे- मोटे जीव उड़ते, सरकते, रेंगते, उछलते, कूदते हुए चले आ रहे थे और इधर - उधर जगह देख कर घने पत्तों के बीच अपने को छिपाते हुए जगह लेने लगे थे। सब सतर्क थे मानो उन्हें किसी सेना से लोहा लेने के लिए लाम पर भेजा गया हो।
सबको आया देख कर ऐश का हौसला बढ़ गया था और अब वो भी निर्भीक होकर पेड़ की सबसे ऊंची टहनी पर फड़फड़ा कर पंजे टिकाती हुई बैठने लगी थी। अब उसे कोई शंका या डर तो नहीं, लेकिन ये जिज्ञासा ज़रूर थी कि देखें बंदर महाराज उसके बारे में कौन सा रहस्य बताते हैं?
वह खुद सुबह से तरह- तरह की बातें सोचती रही थी।
आख़िर उसकी सोच को लगाम लगी। पत्तों के बीच थोड़ी सरसराहट सी हुई और न जाने कहां से निकल कर बंदर महाराज उसके सामने आ बिराजे।
ऐश को लगा कि कहीं उसका कोई साथी कहीं से कुछ बोल न पड़े और ऐसा न हो कि सबकी कलई खुल जाए। उसने खुद ही बंदर की ओर देखते हुए ज़ोर से कहा - नमस्ते महाराज!
सारे पेड़ पर छिपे हुए सभी साथियों को पता चल गया कि बंदर आ गया है। सब सतर्क और खामोश होकर बैठ गए।
सब सांस रोक कर ये सुनने में लगे थे कि देखें बंदर महाराज ऐश को कौन सा रहस्य बताते हैं। सभी का पूरा ध्यान अपने- अपने कानों पर था।
कुछ देर इसी तरह खामोशी रही फिर बंदर महाराज ने आंखें बंद कीं और मन ही मन कुछ बुदबुदाने लगे। ऐसा लगता था जैसे वो कोई मंत्र पढ़ रहे हों। ऐश चुपचाप उनकी इस मुद्रा को देखती रही।
गहरी रात में घना अंधेरा था लेकिन वो पेड़ की सबसे ऊंची फुनगी होने के कारण वहां से आसमान साफ़ दिख रहा था और चंद्रमा का हल्का उजाला भी वहां आ रहा था। यद्यपि चंद्रमा भी बहुत पतला सा, किसी गाय के सींग की भांति ही चमक रहा था पर उसमें भी थोड़ा सा उजास तो था ही। हवा नहीं चल रही थी इससे अपार शांति थी।
बंदर महाराज का जाप जैसे जैसे लंबा खिंचता जा रहा था वैसे वैसे ऐश को यह शंका हो रही थी कि कहीं उसके साथियों में से कोई धीरज खो कर कुछ बोल न पड़े। ऐसा होता तो सब गुड़ - गोबर हो जाता। बंदर महाराज कुपित होकर न जाने क्या करते। क्योंकि उन्होंने तो ऐश को यहां बिल्कुल अकेले ही आने के लिए कहा था। ऐश मन ही मन चाह रही थी कि महाराज जल्दी से अपनी तंद्रा तोड़ें और उसका रहस्य बताएं। लेकिन बंदर महाराज के मंत्र थे कि खत्म होने में ही नहीं आते थे। वह उसी तरह आंखें बंद करके होठों ही होठों में कुछ बड़बड़ाए जा रहे थे।
ऐश भी उनके पूजा पाठ में शामिल होते हुए अपनी आंखें बंद कर लेती मगर जब काफ़ी देर हो जाती तो वो चुपचाप आंखें खोल लेती और उनका चेहरा देखने लग जाती।
ओह, आख़िर ऐसी क्या बात थी जो बंदर महाराज उसे बताने वाले थे? अब उसका धैर्य भी जवाब देने लगा था। लेकिन अब चाहे कुछ भी हो, वो रहस्य सुने बिना किसी भी हालत में वहां से हटना नहीं चाहती थी।
समय बीता तो ऐश अपने दिमाग़ पर ज़ोर डाल कर याद करने की कोशिश करने लगी कि उसके जीवन में कौन- कौन से रहस्य हो सकते हैं?
- क्या उसकी मां इसी जगह से हडसन तट गई थी? वो भी तो प्रवासी पक्षी ही थी न, क्या बंदर महाराज उसके विषय में ही कुछ बताएंगे? सोच कर ही ऐश को रोमांच हो आया।
लेकिन तभी एक विचित्र बात हुई। डाल पर सामने ही बैठे बंदर महाराज की नीचे की ओर लटकी हुई लंबी पूंछ एकाएक एक छड़ी की भांति सीधी होकर आसमान की ओर उठ गई! ऐसा लगता था जैसे कोई एक लंबा बांस हाथ में लेकर पेड़ की ऊंची डाली पर बैठा हो। ऐश को अचंभा हुआ पर साथ ही यह आशा भी जागी कि अब अवश्य ही बंदर महाराज कुछ बोलेंगे।
वह उनकी ओर उम्मीद से देख ही रही थी कि अकस्मात बंदर महाराज ने अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा कर बिजली की तेज़ी से ऐश की लंबी गर्दन पकड़ ली।
ऐश को कुछ भी सोचने - समझने का मौक़ा ही नहीं मिला और उसके मुंह से एक भयंकर चीख निकल पड़ी।
चीख सुनते ही पेड़ पर जैसे भूचाल आ गया। चारों ओर से हर कोई झपट पड़ा। कोई फड़फड़ा कर, कोई सरसरा कर तो कोई जंप मारकर, सभी बंदर महाराज की ओर लपके और उन पर पिल पड़े। बंदर महाराज इस हमले के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे। उनका हाल बुरा हो गया, पर चारों ओर से मार खाते हुए भी उन्होंने ऐश की गर्दन नहीं छोड़ी!