अरीज को यकीन नहीं हो रहा था। वह आसिफ़ा बेगम को इतना कुछ सुना चुकी थी मगर बदले में उन्होंने उसे एक लफ्ज़ भी नहीं कहा था। वह थोड़ी देर उनके बोलने का इंतज़ार करती रही मगर जब उन्होंने कुछ नहीं कहा तो वह कमरे से जाने के लिए मुड़ गयी और अपने सामने दरवाज़े पर उमैर को खड़ा पाया। अरीज ने एक पल उसे देखा और दूसरे ही पल उसे नज़र अंदाज़ कर के उसके बगल से निकल गई, मगर उमैर उसे नज़र अंदाज़ नहीं कर सका। वह अपनी आँखों में तमाम तर नफरतें लिए उसे घूरता रहा यहाँ तक के उसके जाने के बाद भी वह अपनी नज़रों से उसका पीछा करता रहा जब तक के वो उसकी नज़रों से ओझल नहीं हो गयी।
“क्या बात है? तुम्हे आज माँ की याद आ ही गयी।....खैर.....मैं तुमसे कब से बात करना चाह रही थी मगर अफ़सोस एक माँ को अपने ही बेटे से बात करने के लिए अपॉइंटमेंट ही नहीं मिल रही थी।“ आसिफ़ा बेगम उमैर से नाराज़ थी क्योंकि वह कब से चाह रही थी उमैर से इस निकाह के सिलसिले में उस से बातें करना मगर उमैर इतना ज़्यादा disturb था की उसने साफ़ साफ़ उन्हें मना कर दिया था की उसे किसी से भी कोई बात नहीं करनी है इसलिए आज मौका मिलते ही आसिफ़ा बेगम ने उसे ताने दे डाले थे। उमैर काफी संजीदा लग रहा था माँ की बात पर वह थोड़ा शर्मिंदा भी हुआ था।
“आप से कुछ ज़रूरी बातें करनी हैं।“ उमैर उनके सामने सोफे पर बैठ गया था।
“मुझे भी तुम से ज़रूरी बात करनी है, पहले मेरी बात सुनो....” आसिफ़ा बेगम अपनी बात कह ही रही थी के उमैर ने उन्हें रोक दिया।
“मैं अब किसी की भी नहीं सुन ना चाहता.... बाबा की बात सुनी तो अभी तक पछता रहा हूँ.... मगर अब और नहीं। अब आप मेरी बात सुनिये... “ उमैर ने पछतावे की बात कही थी और आसिफ़ा बेगम के दिल को सुकून बख़्श दी थी। इसका साफ़ मतलब यही था की इस शादी से वह भी खुश नहीं है.... ज़मान खान के अलावा और कोई भी खुश नहीं है... यहाँ तक के अरीज भी नहीं.... उनका काम तो बैठे बिठाये आसान हो गया था। अब मसला सिर्फ़ घर का था और उन्हें खुद पर यकीन था की वो आज या कल उन्हें फ़िर से हासिल कर ही लेंगी। उनके लिए ये बोहत अच्छा हो गया था की उन्हें अब किसी से लड़ने की ज़रूरत नहीं थी। उमैर अपनी लड़ाई अब खुद लड़ने वाला था। अपनी दिली ख़ुशी को फिल्हाल दिल में ही दबाये हुए उन्होंने गौर से उमैर की बात सुनी थी।
“मैं किसी को पसंद करता हूँ और अब जल्द से जल्द उस से शादी करना चाहता हूँ।“ उमैर की बात खत्म हुई थी और आसिफ़ा बेगम ने दिल ही दिल में खुदा का शुक्र अदा किया था। आज जैसे उन्हीं का दिन था। बिना मेहनत किये सब काम खुद ही हो रहे थे। अरीज की नफ़रत उमैर के लिए उसने अपने मूंह से कही थी और उमैर ने अपने कानों से सुना भी था और अब ये वाली बात... सोने पे सुहागा जैसी हो गई थी।
“कौन है वो?....तुम्हारे साथ पढ़ती थी क्या?...या फ़िर किसी कंपनी की मालिक की बेटी है....तुम उस से कहाँ और कब मिले?” आसिफ़ा बेगम ने बस फॉर्मालिटी के लिए पूछ लिया था... दर हक़ीक़त उन्हें इतना यकीन था की वो जो कोई भी होगी अरीज से तो बेहतर होगी उनके बेटे की पसंद आखिर इतनी खराब नही हो सकती।
दूसरी तरफ़ उमैर को यकीन नहीं हो रहा था की उसकी माँ अपने बेटे की पसंद पर इतना ज़्यादा इंटरेस्ट दिखायेंगी। वह अपनी माँ को बोहत strict समझता था इन सब मुआमलों में।
“उसका नाम सनम जहांगीर है, हम पहली दफा एक सेमिनार में मिले थे और फ़िर इत्तेफ़ाक़न पता नहीं कैसे मिलते ही चले गए। शायद हमारा मिलना लिखा था।“ उमैर उन्हें बताते हुए काफी nervous फील कर रहा था मगर आसिफ़ा बेगम अपनी हर तरफ़ जैसे कान लगाए उसे गौर से सुन रही थी जैसे इस से ज़रूरी दुनिया में और कोई काम ही नही था।
“मैं इतनी जल्दी शादी नहीं करना चाहता था मगर ये सब होने के बाद अब मुझे लगता है मुझे सनम की बात मान लेनी चाहिए थी.... मैं अगर शादी शुदा होता तो शायद बाबा मेरे साथ ऐसा नहीं करते... खैर! अब जो भी हो चुका है मैं उसे सुधारना चाहता हूँ। मैं अरीज को डिवोर्स देना चाहता हूँ और अब जल्द से जल्द सनम के साथ शादी करना चाहता हूँ। मैं मेन्टालि बोहत disturb हो चुका हूँ इन सब मामलों से... मुझे एक पर्टनेर चाहिए, जो मेरा दुख सुख बाँटे।“ उसने जैसे हार कर कहा था। आसिफ़ा बेगम को अपने बेटे पर बोहत तरस आ रहा था। वह उसके पास आई थी और उसका सर अपने सीने से लगा कर सहला रही थी।
“मेरा बच्चा!...बोहत ज़्यादती की है ज़मान ने तुम्हारे साथ.... ऐसा तो कोई दूसरों के बच्चों के साथ भी नहीं करता....जो उन्होंने अपनी सगी औलाद के साथ किया है...सिर्फ़ गन की कमी थी वरना उन्होंने तुम्हें टॉर्चेर करने में कोई कमी नहीं की है.....मगर तुम अब बिल्कुल टेंशन मत लेना बेटा.... मैं तुम्हारे साथ हूँ... बस तुम भी मेरा साथ देना फ़िर देखना मैं कैसे अरीज को तुम्हारी ज़िंदगी से बाहर निकलती हूँ।“ उन्होंने रोहांसी हो कर कहा था जैसे वह अब अपने बेटे के दुख में रो ही देंगी।
माँ की बात सुनकर उमैर को बोहत हिम्मत मिली थी... चलो बाप ना सही माँ तो उसके साथ है।
“क्या नाम बताया तुम उस लड़की का?” आसिफ़ा बेगम अपने दिमाग़ पे ज़ोर लगा रही थी उसका नाम याद करने के लिए तभी उमैर बोल पड़ा।
“सनम... सनम जहांगीर।“
“हाँ! सनम... तुम सनम से कहो के अपने मां बाप से जल्दी से बात कर के हमे कौई डेट बता दे ताके मैं और तुम उनसे भी मिल कर बात कर सके।“ आसिफ़ा बेगम को अरीज को उमैर की ज़िंदगी से निकालने की इतनी जल्दी थी की वह बैठे बिताए सब प्लेन भी कर चुकी थी मगर उनकी इस बात पे उमैर थोड़ा टेंशन में आ गया था। वह थोड़ी देर चुप रहा फ़िर उसने कुछ सोच कर आसिफ़ा बेगम से कहा।
“Actually मोम वह अपने मां बाप के साथ नहीं रहती।“ उमैर की इस बात पर उन्हें हैरानी हुई थी।
“क्या मतलब है तुम्हारा?.... साथ नहीं रहती.... “ आसिफ़ा बेगम का अब मूड खराब जैसा हो रहा था वो अब कोई और अन्चाहा चीज़ एक्सपेक्ट् नही करना चाहती थी।
“हाँ उसके मोम डैड का डिवोर्स हो चुका है इसलिए वो उन दोनों के साथ नहीं रहती।“ आसिफ़ा बेगम का मूड वाकई खराब हो चुका था।
“फिर क्या करती है वो?... कैसे रहती है अकेली?.... “ उन्होंने हैरान ओ परेशान हो कर पूछा था। आसिफ़ा बेगम के reaction से उमैर को अपनी नय्या डूबती हुई महसूस हुई थी। उसने बोहत धीमे से कहा था। मगर आसिफ़ा बेगम ने बोहत अच्छे से सुना था।
“सॉफ्टवेयर इंजीनीयर है.... आई. टी. कंपनी में जॉब करती है।“ उमैर ने अपनी बात खत्म की थी और आसिफ़ा बेगम खड़ी खड़ी सोफे पर ढह सी गई थी। उन्होंने अपना सर पकड़ लिया था। उमैर चुप चाप उन्हें देख रहा था।
क्या आसिफ़ा बेगम के अरमानों पर फिर से पानी फिरा था?...
क्या वो ये सब जानने के बाद भी सनम जहांगीर को अपनी बहु के रूप में अपनाएँगी?...
या फिर वो अरीज को ही अपनाने पर मजबूर हो जायेंगी?.....
आखिर उन्हें अरीज से इतनी नफ़रत क्यों थी?....
क्या वजह थी इसके पीछे?
जानने के लिए बने रहें मेरे साथ और पढ़ते रहें