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मकरंद को ऑफिस में कुछ देर हो गई थी। आज नंदिता को डॉ. नगमा सिद्दीकी के पास ले जाना था। उसने नंदिता को फोन किया कि वह तैयार होकर बैठे। वह बस आ रहा है। नंदिता ने उससे कहा कि उसे परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। वह अपने पापा के साथ चली जाएगी। मकरंद ने उसे समझाया कि वह ऐसा ना करे। उसे डॉक्टर के पास ले जाना उसकी ज़िम्मेदारी है। वह बस निकल रहा है। कुछ ही देर में पहुँच जाएगा। लेकिन जब वह घर पहुँचा तो नंदिता की मम्मी ने बताया कि वह अपने पापा के साथ डॉक्टर के पास चली गई है। मकरंद को बहुत बुरा लगा। वह ऊपर चला गया।
डेढ़ घंटे के बाद नंदिता डॉक्टर को दिखा कर लौटी। उसे नीचे से नंदिता की आवाज़ आ रही थी। पर वह सीधा ऊपर आने की जगह बहुत देर तक नीचे ही रही। यह बात मकरंद को और खल गई। वह नंदिता के ऊपर आने की राह देखने लगा। जब नंदिता ऊपर आई तो उसने कहा,
"इतनी कौन सी हड़बड़ी थी कि तुम मेरा इंतज़ार नहीं कर सकीं।"
नंदिता ने उसकी बात का जवाब नहीं दिया। वह चेंज करने चली गई। जब वह चेंज करके आई तो मकरंद ने फिर अपना सवाल दोहराया। इस बार नंदिता ने कहा,
"अगर पापा के साथ चली गई तो कौन सी आफत आ गई।"
उसका जवाब सुनकर मकरंद और भड़क गया। उसने कहा,
"जब मैंने कहा था कि आ रहा हूँ तो तुमको रुकना चाहिए था। लेकिन तुम्हें मेरी बात ना मानने में मज़ा आता है।"
नंदिता ने गुस्से में कहा,
"तुम्हारी आदत पड़ गई है छोटी छोटी बातों का बतंगड़ बना कर झगड़ा करने की। ऐसी कोई बहुत बड़ी बात नहीं हो गई अगर मैं पापा के साथ चली गई तो।"
"मैं छोटी छोटी बातों का बतंगड़ बना कर झगड़ा करता हूँ। मैं बातों का बतंगड़ नहीं बनाता हूँ। आजकल तुम जानबूझकर ऐसी हरकतें करती हो कि मुझे गुस्सा आए। एक तो मेरी बात नहीं मानी। जब लौटकर आई तो इतनी देर लगा दी ऊपर आने में। डॉक्टर ने क्या कहा बताना भी ज़रूरी नहीं समझा।"
"तुम्हें जैसे बहुत फिक्र है। ऐसा था तो शिकायत करने की जगह वही पूछते। लेकिन तुम्हें तो झगड़ा करना था।"
मकरंद कुछ बोलने जा रहा था तभी उसकी नज़र नंदिता की मम्मी पर पड़ी। नंदिता की मम्मी ने कहा,
"यह क्या हो रहा है ? नीचे तक झगड़े की आवाज़ जा रही है। नंदिता कम से कम तुम्हें खयाल रखना चाहिए था।"
नंदिता की मम्मी ने यह बात मकरंद को घूरते हुए कही थी। मकरंद को बुरा लगा। लेकिन यह सोचकर चुप रहा कि बात तो ठीक है। उन लोगों को इस बात का खयाल रखना चाहिए था। नंदिता की मम्मी ने कहा,
"शर्मा अंकल और आंटी आए हैं। नंदिता तुम आकर उनसे मिल जाना। अकेली ही आना। ऐसा ना हो कि जैसा मेरी बहन के साथ हुआ वैसा ही कुछ हो।"
उन्होंने एक बार फिर मकरंद को घूरकर देखा और नीचे चली गईं। नंदिता ने कहा,
"सोचकर आई थी कि तुमसे बात करूँगी। पर तुमने तो झगड़ा शुरू कर दिया।"
नंदिता ने वॉशरूम में जाकर खुद को आइने में देखा। बाल ठीक किए और नीचे चली गई।
मकरंद चुपचाप बैठा था लेकिन उसके मन में एक तूफान सा उठा था। नंदिता की मम्मी ने उससे कहा था कि अकेली नीचे आना। वह उस दिन की घटना का पूरा दोष उसे ही दे रही थीं। मकरंद को उनकी बात से अधिक इस बात का बुरा लग रहा था कि नंदिता उसके बावजूद भी नीचे चली गई। वह अच्छी तरह से जानती थी कि उस दिन उसका मूड खराब करने वाली उसकी मौसी ही थीं। उन्होंने उसे ताना मारा था।
वह सोच रहा था कि जिस दिन से यहाँ रहने आया है उसके और नंदिता के बीच एक दूरी आ गई है जो बढ़ती जा रही है। नंदिता अब उसकी तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं देती है। पहले ऑफिस से लौटने पर उसका हालचाल पूछती थी। अब जब वह लौटकर आता है तो वह नीचे बैठी होती है। ऊपर मेन डोर में लॉक नहीं था। दरवाज़ा बस ऐसे ही बंद रहता था। वह आकर ऊपर बैठ जाता था। नंदिता ऊपर आती भी थी तो उससे कुछ बात नहीं करती थी।
उसके मुंह से कुछ भी निकलता था नंदिता उसका गलत मतलब ही निकालती थी। वह मानकर बैठी थी कि वह गलत ही कहेगा। पिछले संडे उसने नंदिता से कहा था कि वह बहुत तेज़ी से सीढ़ियां चढ़ती उतरती है। बार बार ऊपर नीचे ना किया करे। सीढ़ियों पर संभल कर चला करे। उसकी इस बात पर वह चिढ़ गई थी। उससे कहने लगी कि तुम चाहते हो कि मैं अपने मम्मी पापा के पास जाकर ना बैठा करूँ। उस दिन गुस्से में वह शाम तक नीचे ही बैठी रही थी।
नंदिता को नीचे गए काफी समय हो गया था। मकरंद की मानसिक स्थिति अच्छी नहीं थी। वह सोच रहा था कि शायद उसके नसीब में अपना घर परिवार है ही नहीं। नंदिता के साथ शादी करने के बाद उसे लगा था कि जिस घर परिवार की कमी हमेशा उसे सताती रही थी वह अब उसे मिल जाएगा। वह और नंदिता अपना घर बसाएंगे। इसलिए उसने शादी से पहले ही अपना फ्लैट बुक करा दिया था। उसे उम्मीद थी कि समय पर फ्लैट मिल जाएगा। तब वह और नंदिता वहाँ अपना परिवार बढ़ाएंगे। पर जो उसने सोचा था नहीं हुआ। फ्लैट मिलने में देर हो गई। नंदिता प्रैगनेंट हो गई। उसे कुछ दिन इस बात को लेकर परेशानी हुई थी। पर बाद में उसने इस स्थिति को स्वीकार कर लिया था।
अब उसे लग रहा था कि शायद कभी वह अपने फ्लैट में नहीं जा पाएगा। उसके और नंदिता के बीच इसी तरह मन मुटाव बढ़ता जाएगा। वह बहुत कोशिश करता था कि चुप रहे। फिर भी कुछ ना कुछ ऐसा हो जाता था जिससे बात बिगड़ जाती थी।
मकरंद का दिमाग यह सब सोचकर भन्ना रहा था। वह कुछ देर की शांति चाहता था। पर उसका मन शांत नहीं हो पा रहा था। उसे कुछ सुझाई नहीं दिया तो उसने अपने बाइक की चाभी उठाई और निकल गया।
मेहमानों के जाने के बाद नंदिता जब ऊपर आई तो मकरंद को ना देखकर परेशान हो गई। उसने उसका नंबर मिलाया तो फोन घर पर ही था। नंदिता ने ऊपर से झांक कर देखा। मकरंद की बाइक अपनी जगह नहीं थी। वह समझ गई कि बाइक से कहीं गया है। वह उसके लौटने का इंतज़ार करने लगी। हर बीतते पल के साथ उसका मन घबरा रहा था। अब उसे लग रहा था कि शायद उसे उसकी बात मानकर इंतज़ार करना चाहिए था। मकरंद उसे डॉक्टर के पास ले जाने को तैयार था। वह उसके आने तक रुकने को तैयार थी। पर तब उसके पापा ने कहा कि अगर उसे इतनी ही चिंता होती तो समय पर आ जाता। उसका इंतज़ार करने का फायदा नहीं है। तुम मेरे साथ चलो। वह बार बार कह रहे थे। नंदिता को उनकी बात टालने में संकोच हो रहा था। वह मान गई थी।
जब लौटकर आई थी तब भी वह सीधे ऊपर आ रही थी। तब उसकी मम्मी ने कहा कि कुछ देर नीचे आराम करो। उसके बाद ऊपर जाना। मकरंद को अगर फिक्र है तो नीचे आकर पूछ लेगा कि डॉक्टर ने क्या कहा। जब वह ऊपर आई तो उनके बीच झगड़ा शुरू हो गया। उसके मन में यह भी आ रहा था कि उसकी मम्मी ने ताना मारते हुए कहा था कि तुम अकेली आना। वह जानती थी कि मकरंद को बुरा लगा है। फिर भी वह गुस्से में नीचे चली गई थी। अब उसे अफसोस हो रहा था।
अब एक घंटे से भी अधिक का समय हो गया था। उसे कुछ समझ नहीं आया तो वह नीचे चली गई। उसने अपने मम्मी पापा को सब कुछ बता दिया। उसकी बात सुनते ही उसके पापा ने कहा,
"अब बस यही बचा था। ऐसा लापरवाह और बेवकूफ इंसान मैंने नहीं देखा। पत्नी गर्भवती है उसकी कोई चिंता नहीं है। बस बाइक उठाई और घूमने निकल गए। किसी को बताना भी ज़रूरी नहीं समझा। फोन भी नहीं ले गया। पर फिक्र हो तो यह सब करता।"
जिस तरह से उसके पापा ने यह सब कहा वह नंदिता को अच्छा नहीं लगा। उसने कहा,
"ऐसा नहीं है पापा। मकरंद को मेरी फिक्र है। पर इधर वह कुछ अपसेट है।"
नंदिता की मम्मी ने कहा,
"किस बात पर अपसेट है। कोई बात भी होनी चाहिए। क्या कमी है उसे यहाँ। इतना कुछ दिया है उसे। तुम्हारी फिक्र भी हम लोग ही कर लेते हैं। इतना भी उसके लिए काफी नहीं है जो अपसेट है।"
नंदिता कुछ कहती उससे पहले ही उसके पापा ने कहा,
"बेटा बुरा नहीं मानना। पर मुझे तो शुरू से ही उसके साथ तुम्हारा रिश्ता नापसंद था। मैंने तुम्हें समझाया भी था कि उसका घर परिवार नहीं है। वह ज़िम्मेदारियां नहीं समझेगा। वैसा ही हुआ। नहीं तो उसे रहने के लिए इतना अच्छा घर दिया है। बाकी बातों का भी खयाल रखते हैं। हमें लगता है कि कोई बात नहीं है। जो खर्च हो रहा है वह बेटी दामाद पर ही हो रहा है। पर इस सबका नतीजा क्या है। उसके रंग ढंग ऐसे हैं। मैं तो तुम्हारे संकोच से नहीं बोलता हूँ। नहीं तो एक मिनट भी ऐसे इंसान को बर्दाश्त ना करूँ।"
नंदिता के मम्मी पापा मकरंद की शिकायत कर रहे थे। अभी तक नंदिता को उसकी फिक्र थी। पर अब उसे मकरंद पर गुस्सा आ रहा था। वह सोच रही थी कि नाराज़गी दिखाने का यह सही तरीका तो नहीं है।