The Consequences of an Illegal Relationship - Part 2 in Hindi Adventure Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | नाजायज रिश्ते का अंजाम--पार्ट 2

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नाजायज रिश्ते का अंजाम--पार्ट 2

सुधीर ने घर की चाबी माया को सौंपते हुए कहा था,"आज से इस घर की मालकिन तुम हो।"
आजकल हर कुंवारी शिक्षित लडकी का सपना होता है।डॉक्टर,इंजीनियर, अफसर या बिजिनेश मेन उसे पति रूप में मिले।जो उसे घुमाय फिराए।उसकी हर सुख सुविधा का ख्याल रखे।उसके सुख दुख का साथी हो।उसकी हर बात माने।दूसरे शब्दों में हर लड़की ऐसा पति चाहती है जो अमीर हो और उसका गुलाम बनकर रहे।
माया का भी दूसरी लड़कियों की तरह ख्याल था कि उसका पति उसकी हर बात मानेगा।वह जैसा कहेगी वैसा ही करेगा। लेकिन जैसा उसने सोचा था, वैसा नही हुआ।शादी के बाद मुम्बई आने पर सुधीर ने उसे तीन दिन तक मुम्बई घुमाया था।पूरे मुम्बई की सैर करायी थी।उसके बाद वह अपने काम मे व्यस्त हो गया।
सुधीर का परेल मे अपना रेस्तरां था।वह रोज सुबह घर से छः बजे निकलता और रात को देर से घर लौटता।उसका रेस्त्रां रोज खुलता था।किसी दिन की छुट्टी नही होती थी।पति के घर से जाने के बाद माया अकेली रह जाती।
माया चाहती थी पति कम से कम सप्ताह में एक दिन उसके साथ रहे।पति को घर मे रोकने के लिए माया ने अपने रंग रूप सौंदर्य और अदाओ का सहारा लिया।पर पति पर माया के रूप का जादू नही चला।तब एक दिन वह जब घर से जा रहा था तब उसका रास्ता रोकते हुए बोली,"आज मत जाओ।"
"क्यो?"सुधीर बोला।
"मेरा घर मे अकेले मन नही लगता।पूरे दिन घर मे अकेली बोर ही जाती हूँ।"
"बाहर चली जाय करो।"
"कहां?"
"बाजार चली जाया करो।मन करे तो कोई मूवी देख आया करो।"
"अकेली?"माया बोली थी।
"माया यह मुम्बई है।यहाँ अकेली औरत कुछ भी कर सकती है।तुम भी गांव की नही हो शहर की ही।पढ़ी लिखी हो।अब तुम्हे यही रहना है।फारवर्ड बनो।यहाँ के अनुरूप ढलने का प्रयास करो।"सुधीर ने पत्नी को समझाया था"
"लेकिन आज मेरा मन तुम्हारे साथ घूमने का है।"
"माया मैं तुम्हारे साथ नही जा सकता।मैं रेस्तरां बन्द नहीं रख सकता।"माया ने पति को घर पर रोकने के लिए हर तरह से प्रयास किया।पर वह नही रुका और चला गया।
सुधीर शिक्षित था।मुम्बई का ही था।पर आधुनिकता का रंग उस पर नही चढ़ा था।माया ने हर तरह का प्रयास करके अपने मनमुताबिक बनाने का प्रयास करके देख लिया।पर पति को वह नही बदल पायी।तब माया ने खुद को पति के अनुरूप ढाल लिया।
माया का मन साज श्रंगार से हट गया।पति के साथ सेर सपाटे करने की इच्छा मन मे दबकर रह गयी।वह अन्य घरेलू औरतो की तरह घर की चार दिवारी में कैद होकर रह गयी।
समय अपनी गति से चलता रहा।धीरे धीरे पांच साल गुजर गए।इन बीते पांच सालों में वह दो बच्चों की माँ बन गयी।
"थप थप एक दिन सुबह दरवाजे पर दस्तक हुई।जिसे सुनकर माया दरवाजा खोलने के लिए गयी थी।माया ने दरवाजा खोला।दरवाजे पर एक सुंदर सजीला युवक खड़ा था।उसे देखकर माया बोली,"किस्से मिलना है आपको?"
"सुधीर अंकल घर पर है?"
"हां।लेकिन आप कौन?"
"मैं राजेन्द्र।इटारसी से आया हूँ"उसने एक पत्र माया की तरफ देते हुए कहा,"अंकल को यह पत्र दे दे।'
माया ने वह पत्र पढ़ा फिर पति के पास ले गयी।सुधीर पत्र पढ़कर बोला,"उसे अंदर ले आओ।"
माया बाहर जाकर राजेन्द्र से बोली,"अंदर आ जाओ।"
राजेन्द्र माया के पीछे चला आया