रात को शहर से कुछ दूर एक फार्म हाउस में पार्टी चल रही थी। ये इलाका शहर से कुछ बाहर था, जहाँ आवाजाही कम थी। एक तो काफी दिनों से कोई घटना न होने के कारण लोग वैसे भी निष्फिक्र हो गए थे और दूसरा ये एक युवाओं का झुंड था जो जब तक मुसीबत नहीं आती तब तक किसी भी चीज से नहीं डरते। पर जब मुसीबत आती है तब उनकी हालत बिल्ली के सामने कबूतर जैसी हो जाती है। ये लोग भी बंदिश न बर्दाश्त करने वाले थे। तेज आवाज में डी.जे. की धुन पर ऊटपटांग हाथ पैर हिलाते हुए, तरह तरह के धुओं को फेफड़ों में भरते हुए, और शराब की नदी बहाकर खुद को भागीरथ साबित करने की कोशिश करते हुए जवान लड़के लड़कियाँ, जो ये नहीं जानते थे कि मुसीबत के कदम वहाँ पड़ चुके हैं।
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"पिछले कुछ समय से ठंडा पड़ा दहशत का माहौल आज फिर गरमा गया है। शहर के बाहर नीलांचल पहाड़ी के पास रात को हो रही एक पार्टी में 19 नौजवानों की हत्या हो गयी है। ये पार्टी रैव पार्टी बताई जा रही है तो कोई भी प्रत्यक्षदर्शी नाम उजागर होने के डर से सामने नहीं आ रहा है जो ये बता सके कि आखिर यहाँ हुआ क्या था। फिर भी लाशों की स्थिति से अनुमान लगाया जा रहा है कि ये उसी अज्ञात हत्यारे का काम है जिसे कुछ लोग 'नीला हत्यारा' के नाम से जानते है और देखने का दावा करते है।
आपको बताते चलें कि सबसे इसमें सबसे अलग बात ये है कि इनमे से तीन लाशें इस तरह थी जैसे उनके कंकालों पर सिवाय स्किन के कुछ न था। पहले भी ऐसी लाशें मिल चुकी है। बाकी सबको किसी धारदार हथियार से एक ही वार में काटा गया है। सब लोग सदमे में है। पुलिस छानबीन में लगी हुई है पर पहले की तरह इस बार भी कुछ होता लग नहीं रहा। पुलिस किसी भी तरह की स्टेटमेंट देने से बच रही है। यहाँ एकदम नर्क का नजारा है। मैं सी. वी. सी. न्यूज़ की तरफ से मेघना, कैमरामैन रघु के साथ।" न्यूज़ देखते-देखते निशा बुरी तरह घबरा गयी थी। मधु और आयुष भी उसके साथ ही थे।
आयुष को उसका यूँ रियेक्ट करना खल गया था। वो नोटिस कर रहा था कुछ दिनों से कि ये दोनों सहेलियाँ कुछ अलग खिचड़ी पका रही है, पर उसने कभी चला कर पूछा नहीं। पर अब निशा की हालत देख कर उस से रहा न गया और उसने आखिर पूछ ही लिया -" तुम दोनों क्या छुपा रही हो??
निशा -" हम क्या छुपा रहे हैं?? कुछ भी तो नहीं।"
आयुष -" देखो मैं तुम्हारा दोस्त हूँ। अगर तुम्हें लगता है कि मैं भरोसे लायक हूँ तो मुझसे छुपाओ मत। मुझे सब साफ-साफ बताओ। शायद मैं तुम दोनों की हेल्प कर सकूँ। आखिर मेरे पास वर्कर्स की फौज है।"
निशा आयुष की इस बात से ऐसे चेती, जैसे सोते से जाएगी हो। 'सच ही तो कहा आयुष ने। अगर वो उसकी हेल्प ले तो काम कितना आसान हो सकता है। शायद एक से भले दो और दो से भले तीन, कहावत ऐसे ही नहीं बनी। वैसे भी आयुष ने पहले भी दो बार उसकी ऐसी मदद की थी, जो कोई और नहीं कर पाता वो उसपर पूरा भरोसा कर सकती थी।'
निशा - " मैं तुम्हें बताना चाहती हूँ आयुष, पर तुम यकीन नहीं कर पाओगे।"
आयुष -" विश्वास होगा या नहीं ये फैसला करना मेरा काम है निशा। एक बार कह कर तो देखो।"
निशा अब फैसला कर चुकी थी कि वो आयुष को बताये, ताकि उसकी मदद ली जा सके। साथ ही मधु को भी और बताना पड़ेगा, ताकि उनकी खोज किसी सही दिशा में जा सके।
निशा ने कहना शुरू किया -" देखो आयुष..... और मधु, तुम भी जरा गौर से सुनना। जब नाईट क्लब में हत्याकांड हुआ था तब मैं वहीं थी। मैंने उस हत्यारे को देखा है।"
आयुष चौंक जाता है-" क्या!!!! तुम वहीं थी???? फिर उस दरिंदे ने तुम्हें नुकसान क्यों नहीं पहुँचाया??"
निशा -" वो सब मुझे नहीं पता" (निशा अपनी बात छुपा जाती है, वो अभी ये नहीं बताना चाहती थी कि उसका भी इन सबसे कोई सम्बन्ध है) वो आगे कहती है -"असल में वो हत्यारा इंसान नहीं है, वो कोई दूसरी ही शक्ति है, जो इंसानी रूप में हमारे बीच में रहती है और इसको किसी विशेष चीज की तलाश है। वो हत्याएँ भी वो किसी विशेष कारण से कर रहा है। जहाँ तक मैं समझती हूँ, मुझे पता है कि वो क्या ढूँढ़ रहा है। अब मैं चाहती हूँ कि हम उस चीज को पहले तलाश करें और उस हत्यारे को रोके।"
मधु कहती है -" पर निशा, हम इतने दिनों से ढूँढ़ने की कोशिश तो कर ही रहे हैं। परन्तु जिस बात का ओर-छोर भी हमें नहीं मालूम है, हम कैसे पता लगाएं उस बारे में?? हमें तो ये भी नहीं पता कि हम पता किस चीज का लगा रहे है??"
निशा मधु को देखती है फिर जी कड़ा करके कहती है -" हम परशुराम भगवान् के उस परशु 'विद्यूदभि' को ढूंढेंगे जिस से बहुत से पापियों का नाश हुआ है। जिसकी खासियत है कि कोई भी शक्ति उसके आगे नहीं टिक सकती और उसे सिर्फ कोई निष्पाप ही हाथ लगा सकता है।"
आयुष -" विद्युदभि!!!!! भगवान् परशुराम जी का परशु!!!! ये सब......!!!!!! यकीन नहीं आ रहा। जरूर कोई वहम हुआ है। ऐसा कैसे हो सकता है??? नहीं.... नहीं.... ये तो कपोल कल्पना है।"
निशा (व्यंग्य से) -" मैंने कहा था ना तुम यकीन नहीं करोगे। अगर ये कल्पना है तो वो हत्यारा भी कल्पना ही है।"
आयुष -"आई ऍम सॉरी निशा, मेरा वो मतलब नहीं था। मतलब, ये काफी शॉकिंग है। आज तक जो चीज हम नाटक में देखते आये है वो इस तरह सामने आये तो शॉक तो लगेगा ही न। वरना मुझे कोई तुम पर अविश्वास थोड़ी न है। अच्छा अब बताओ, क्या करना है, कैसे करना है?? क्यूंकि मधु की बात भी सही है कि हमारे पास तो एक अँधा रास्ता है, जिसपर कुछ दिखाई नहीं दे रहा। इतनी बड़ी दुनिया में हम किसी चीज को जिसका पता न मालूम हो, को हम कैसे ढूंढेंगे??"
निशा -"क्यूंकि वो चीज इसी शहर में है और हमें उस चीज को नहीं, बल्कि उसे ढूँढ़ने वाले को फॉलो करना है।"
मधु हंसने लग गयी, निशा उसकी हंसी सुनकर थोड़ी सी चिढ़ गयी। मधु हँसते-हँसते बोली -" सॉरी यार, ढूंढने वाले को... मतलब उस नीले हत्यारे का पीछा करना, जैसे वो हमारी जेब में ही रखा हुआ है। चलो....निकालो... निकालो-निकालो..." कहते कहते फिर से मधु हंसने लगी।
निशा ने मधु और आयुष की तरफ बारी-बारी से देखा। वो झिझक रही थी बोलने में, जैसे उसे शब्द निकालने के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ रही हो। वो बोली -" मैं जानती हूँ कि वो कौन है।"
मधु की हंसी को अचानक ब्रेक लग गए, आयुष भी उसे ऐसे देखने लगा जैसे निशा के सर पर अचानक सींग निकल आये हों। दोनों ने एक साथ पुछा -" कौन?????"
निशा -" देखो दोस्त हो तुम दोनों मेरे, इसलिए मुझपर यकीन करना। वो और कोई नहीं...........'पियूष' ही है."