और 24 जून 1973
इस दिन मेरी बरात खान भांकरी स्टेशन गयी थी।जैसा मैं पहले भी बता चुका हूँ।यह छोटा सा रोड साइड स्टेशन भांकरी और दौसा स्टेशन के बीच पड़ता था।पहले यह मीटर गेज का रूट था।जब दिल्ली अहमदाबाद सेक्शन को बड़ी लाइन में परिवर्तित किया गया।तब यह स्टेशन खत्म कर दिया गया।
बरात 7 उप ट्रेन से गयी थी।इसमें मेरे सहकर्मी जे सी शर्मा और बी के सैनी के साथ मे हमारे इंचार्ज ओम दत्त मेहता भी गए थे।छोटी जगह थी।उन दिनों उस स्टेशन पर लाइट भी नही थी।लेकिन मेरे श्वसुर साहब ने क्वाटर के आगे टेंट की व्यवस्था के साथ जेनरेटर और फोटोग्राफर की भी व्यवस्था की थी।
यो तो मैं लड़की देखने आया था।पर असल मे पहली बार मैने अपनी पत्नी को तब देखा जब दरवाजे पर उसने मेरे ऊपर हल्दी फेंकी थी।वह दुल्हन के वेश में स्वर्ग से उतरी अप्सरा सी लग रही थी।
उन दिनों भी दहेज का प्रचलन था लेकिन मांगा नही जाता था।लडक़ी पक्ष अपनी हैसियत से देता और इस पर विवाद नही होता था।
शादी सकुशल सम्पन्न हुई थी।बारात ट्रेन से वापस गांव लौटी थी।लेकिन हमारे लिए जीप की गई थी।जीप बसवा जाते समय बांदीकुई रुकी थी।बांदीकुई में बडे ताऊजी रहते थे।ताईजी जीप पर आई थी।ये बात 25 जून की हैं।25 को ही कुवर कलवे की रश्म थी।मैं मेरे बहनोई हम सभी थे।इस रश्म पर अक्सर लड़के अपनी फरमाइस करके जिद पर अड़ जाते.हैं। लेकिन मेने बैठते हीखाना शुरू कर दिया।यह भी नहीं देखा मुझे देने के लिए क्या रखा हैं।इससे मेरे शवसुर.काफी खुश हुये।
मेरे सास श्वसुर आज नही है।मेरे दो साले भी नही रहे।शादी के पचास साल होने जा रहे है।जब मेरे सास शवसुर थे तब भी और आज भी मैने या पत्नी ने बाजार से कपड़े पहनकर नही खरीदे।दूसरे शब्दों में वहाँ से इतना मिलता है कि मुझे खरीदने नही पड़ते।
25 जून को हम जीप से अपने गांव बसवा पहुंच गए थे।मेरा खानदान बहुत बड़ा है।तीन ताऊजी,और मेरे पिता के कुल 14 बेटे और 8बहने।उस समय तक 5 भाई और 4 बहनों की शादी हो चुकी थी।उनके बच्चे।बुआ और उनके बच्चे।इतने नाते रिश्तेदार आये थे कि घर पूरा भरा था।शादी के बाद अभी तक पत्नी का मुंह नही देखा था।
खान भांकरी से बारात ट्रेन से रवाना हो गयी थी।मुझेऔर नवब्याहता पत्नी के साथ ताऊजी मेरे बहनोई भी आये थे।विदा करने से पहले सास ने एक ही गिलास से हम दोनों कक पानी पिलाया और बेटी से बोली,"बेटी पैर छुओ।"
मेरे में बहुत सी खराबी है लेकिन मेरे अपने उसूल भी है।पहला मैं पत्नी को बराबर का समझता हूँ।इसलिए उस दिन के बाद मैने पत्नी से कभी पैर नही छुआये।पति पत्नी बराबर के है तो पैर क्यो?
शादी के बाद दुल्हन आती है उस दिन हमारे यहाँ सुहागरात नही मनती।पहले दूल्हा दुल्हन को कुल देवता के यहाँ सिर झुकाने जाना पड़ता है।
उससे पहले जिस दिन बहु आती है।उस दिन रात को दुल्हन के साथ देवताओ के आगे बैठना पड़ता है।उस दिन मे सबसे ऊपर की छत पर अपने बहनोइयों के साथ लेट गया।नीचे जब खाने पीने और अन्य काम से औरते फ्री हुई।तब दुल्हन को देवता के कमरे में बैठा दिया गया।