कुछ इस तरह उनसे प्यार करना पड़ता है
की अपने प्यार से इंकार करना पड़ता है
कभी कभी तो वो इतने करीब होते है
की अपने आप को दीवार करना पड़ता है
किसीने पूछा, "थोड़ा EXPLAIN कर दो ... "
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बात उन दिनों की है जब कृष्ण नन्द गांव छोड़ कर मथुरा जाने वाले थे
गोकुल और वृन्दावन सब कुछ पीछे छूटने वाला था
सभी ये जानते थे की बिना कृष्ण के रहना बड़ा मुश्किल होने वाला है..
सारा गांव कान्हा को रोकने की कोशिश में लगा था ... सिवाय राधा के ..
जो पुरे संसार की खबर रखता हो उसे ये मालूम ना हो की राधा किस दौर से जा रही है - ये हो ही नहीं सकता ... कृष्ण ये भली भांति समझते थे की राधा के जैसा डिवोशन संसार में किसीका नहीं है..
चलते चलते वो एक खेत में खड़े पेड़ के साये में रुक गए..
बड़ी ही बारीकी से वो आम के फल को देखने लगे - ये सोचते हुए की अब कहा ये आम मथुरा में नसीब होगा। आज तो यशोदा माँ से कहना ही पड़ेगा की माखन नहीं आम खिलाओ। ..
कुछ ही पल हुए थे और वहां कृष्ण को राधा आती दिखाई पड़ी..
"अरे, राधे,.. तुम यहाँ ? आज तो मेने बांसुरी भी नहीं बजायी.. "
"पता नहीं क्या हुआ श्याम, बस लगा की तुम्हे यहाँ के आम अब ना जाने कब नसीब होंगे.. सोचा आज तुम्हे माखन नहीं आम का भोग धरु.. "
कृष्ण की आंखों में पानी आ गया और वो बोले... "तुम्हे क्या लगता है ? मथुरा में आम नहीं मिलते ? में भूखा थोड़ी रहने वाला हु ?"
"नहीं कान्हा, तुम्हे खिलने वाले तो बहोत है.. मुझे उस बात की फ़िक्र नहीं है की तुम भूखे रहोगे.. "
"फिर ?? " - कृष्ण ने पूछा
"तुम्हे क्या लगता है कान्हा ? में तुम्हे माखन या मिसरी क्यू खिलाती हु ?"
"क्यू खिलाती हो ?"
"क्यूकी तुम्हे खिलाकर ही मै तृप्त होती हु.. अब जब तुम चले जाओगे तो मेरा उपवास तो तय है.. और क्यों की सब जानते है तुम्हे माखन मिसरी पसंद है सब तुम्हे वो ही खिलाने वाले है.. इसीलिए आज पहेली बार में तुम्हे अपनी पसंद का फल देने वाली हु.. "
कृष्ण मन ही मन बोले - "तेरी भक्ति की शक्ति तो इतनी है राधा की तभी - मेरा मन आज माखन नहीं आम खाने को कर रहा था.. आज तेरी ये आरज़ू मेरी भूख बन गयी... "
"क्या सोच रहे हो श्याम ?" - राधा ने पूछा
"सोच रहा हु सारे गांव ने रोका मुझे - सिर्फ तुमने नहीं कहा की मत जाओ.."
राधा मुस्कुरायी ...
"मेरे रोकने से तुम रुक जाते ? "
कृष्ण खामोश थे...
"श्याम, तुम तो आये ही हो जाने के लिए .. कैसे रोकू ? अगर मेने रोका तो तुम मुझे छोड़ नहीं पाओगे - ये में जानती हु की तुम्हारे इस संसार में आने से सिर्फ दो बाते हो सकती है - या तो हमारी मुकम्मल कहानी या फिर अधर्म का नाश.. और में चाहती हु की तुम अधर्म का नाश करो.. तुम्हारे लिए मेरे प्यार से कही ज्यादा महत्वपूर्ण है धर्म की स्थापना.. "
कृष्ण कुछ कहे नहीं पाए तब राधा ने उन्हें फिर से पूछा
"मेरे दोनों हाथो को छू कर मेरी आखो में झांक कर बताओ - मेरे रोकने पर तुम रुक जाते ?"
और तब कृष्ण नजर झुका कर बांसुरी को अपने दोनों हाथो से कसके पकड़ कर पेड़ के सहारे बैठ गए और राधा से झूठ बोलते हुए कहा - "तुम ठीक कहे रही हो राधा,.. मुझे अपना ध्येय नहीं भूलना चाहिए.. मेरे लिए सब से महत्व पूर्ण है मेरा कर्तव्य.. "
कृष्ण नन्द गांव छोड़ कर मथुरा पहुँचे ही थे
सबसे मेल-मिलाप के बाद वो उद्धव के पास गए और आते ही वो अपने सबसे ज्ञानी मित्र के पास बैठ कर रोने लगे..
मथुरा पहुंच कर पहले ही दिन उन्हें रोता देख कर उद्धव से रहा नहीं गया और उन्होंने कृष्ण से पूछा, "कुछ खटक रहा है आप की आँखों में वसुदेव - लगता है कोई बोझ ढोए हुए आ रहे हो गोकुल से "
कृष्ण ने कहा
"उद्धव, .. अपने प्यार से इंकार कर के आया हु - झूठ बोल कर आया हु अपनी आत्मा से - अपनी राधा से - की उसके प्यार से ज्यादा महत्वपूर्ण है मेरा ध्येय.. उसके दोनों हाथो को छू कर उसकी आँखों में देखनेका आखिरी मौका भी में गँवा कर आया हु.. "
उद्धव सिर्फ इतना ही बोल पाए - की -
"दिल साफ़ कर लो वसुदेव वरना कंस से लड़ नहीं पाओगे.. "
और तब कृष्ण ने अपने आप को सँभालते हुए कहा -
"कुछ इस तरह उनसे प्यार करना पड़ता है
की अपने प्यार से इंकार करना पड़ता है
कभी कभी तो वो इतने करीब होते है
की अपने आप को दीवार करना पड़ता है"