that morning will come sometime in Hindi Moral Stories by Arun Singla books and stories PDF | वो सुबह कभी तो आएगी

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वो सुबह कभी तो आएगी

वो सुबह कभी तो आएगी


कैलाश प्रसाद 35 वर्ष की आयु में ही परलोक चले गए थे। उनकी पत्नी सुमित्रा देवी की उम्र भी उस समय लगभग 25 वर्ष रही होगी.सुमित्रा देवी के कोई संतान ना हो सकी थी, और इसका कारण यह नहीं था की सुमित्रा में कोई कमी थी, या भगवान् ने उसके साथ न्याय नहीं किया था।

 

बस एक मानवीय चुक ने उसका जीवन बदल दिया, वैसे तो मानवीय चुक को भगवान् पर थोपना ठीक नहीं है, पर हम हिन्दुस्तानी लोग हर बात को परमात्मा की इच्छा मान कर संतोष कर लेते हैं।  हुआ यह था, सुमित्रा देवी को पेट में पथरी हो गई थे,और नीम हमीम के इलाज के चलते पथरी का अकार इतना बड़ा हो गया था कि वे गर्भवती दिखाई देने लगी थी।सुमित्रा देवी बार बार पेट में दर्द होने का हवाला देती रही और दर्द से कहराती रही परन्तु उसे यह कह कर खामोश कर दिया जाता की यह तो सब के साथ होता है, और परिवार में बहु के गर्भवती होने की खुशियाँ बनाई जाने लगी  पर जब नो महीने गुजर गये तो सब को लगा कुछ गड़बड़ है.

जब पानी सर पे से गुजर गया तो सरकारी हस्पताल में इलाज के लिए दिखाया गया। मामले की गंभीरता को देखते हुए डॉक्टर्स ने तुरंत ऑपेरशन का सुझाव दिया, बात अब जान पर बन आई, तो कैलाश प्रसाद और परिवार वालों ने सलाह कर के ऑपरेशन करवाने का मन बना लिया, और आनन् फानन में ऑपरेशन कर दिया गया। डॉक्टर्स के अनुसार ऑपरेशन सफल रहा, पथरी तो निकाल दी गई बस एक छोटी सी चूक हो गई, डॉक्टर्स ने गलती से पथरी के साथ बच्चेदानी भी निकाल दी, और ऊपर से डॉक्टर्स ने दलील दिए की हमने जान तो बचा ली,  इसे परमात्मा की इच्छा मान लिया गया।

इस सब में सुमित्रा देवी की कहीं कोई गलती नहीं थी, परन्तु वो अब कैलाश प्रसाद के खानदान को संतान यानी वारिस नहीं दी सकते थी, हालांकि अगर बच्चा हो भी जाता तो उसे कौन सी वरासत परिवार वाले देते, ये तो परिवार वाले भी नहीं जानते थे, विरासतऔर जयदाद के नाम पर गुजारा चल जाता था, यही बहुत था।
 
शुरू में तो सब ठीक ठाक चला पर जैसे जैसे समय बीतता गया, वारिस ना होने का गम परिवार को सताने लगा, और शीघ्र ही बात दुसरी शादी पर आ गई.  इस बात का सुमित्रा देवी को बड़ा धक्का लगा और उसने गुहार लगाई की उसका क्या होगा, वो कहाँ जाएगी।  उस पर कैलाश प्रसाद की दुसरी शादी के लिए रजामंद होने के लिए पहले समझाया  गया फिर दबाव बनाया गया।  परन्तु जब सुमित्रा देवी ने मजबूरी में अपनी रजामंदी नहीं दी, तो परिवार वाले धमकी पर उतर आए की, वापिस मायके भेज देंगे, तलाक दे देंगे।  बकरे की माँ कब तक खेर मनाती, और अंत में उसे वापिस मायके भेज दिया गया।  कैलाश प्रसाद की दुसरी शादी हो गई. ये अलग  बात है की, एक ही वर्ष में ही बीमारी के कारण वे, वारिस दिए बिना परलोक सिधार गए.

सुमित्रा देवी का रिश्ता एक 45 वर्षिय विधुर धनी राम  से कर दिया गया, दुर्भाग्य को धन का सहारा मिल गया. धनी राम की पहली पत्नी स्वर्ग सिधार गई थी, व् उसके तीन बच्चों के पालन पोषण के लिए ग्रहणी की जरुरत थी। मजबूरियाँ दोनों तरफ थी, तो बात बन गई। तीन बच्चों में दो लडकियां व् एक लड़का था।  बड़ी लड़की का नाम पूजा था, व उम्र 23 वर्ष थी, सुमित्रा देवी की शादी के ठीक एक साल बाद पूजा की शादी एक सम्प्पन घराने के कर दी गई। 

 

पूजा सुसुराल में खुश थी, शादी के पांच वर्ष तक तो ये खुशी चलती रही पर जैसे ही पूजा के छोटे भाई की शादी हुई और वह अपनी पत्नी को ले कर महानगर में चला गया तो पूजा को भी सास ससुर के साथ रहना अखरने लगा, अचानक उसे अपना जीवन व्यर्थ नजर आने लगा। ये भी कोई जिंदगी ही, आज़ादी ही नहीं है, हर बात में अनुमति की जरुरत पड़ती है, हालांकि उसकी किसी भी बात को कभी मना नहीं किया गया था। पूजा के पति इकलौती औलाद थे इसलिए उनकी हर बात घर में माने जाती थी।  तो घर से अलग होने की जंग का बिगुल पूजा ने बजा दिया था, और जीत के लिए हर तरह की रणनीति, जायज-नाजायज  उसने आजमानी शुरू कर दी.


पति ने माता पिता की इकलोती संतान होने के कारण व् उनकी देख भाल करने की जिम्मेदारी होने के कारण अलग होने से मना कर दिया तो पूजा रणनीति के तहत मायके आ कर बैठ गई। मायके में थोडे ही गई दिनों में उसने अपनी नई माँ यानी सुमित्रा देवी का जीना हराम कर दिया, हालांकि सुमिता देवी की उम्र पूजा से 2-3 साल ही बड़ी थी, पुजा ने सुमिता देवी पर बदचलन होने का इल्जाम लगा दिया और मोहल्ले भर में शोर मचा दिया की सुमित्रा देवी के नाजायज सम्बन्ध उनके पिता के मित्र संतोष के साथ हैं.

 

धनी राम का यह  मित्र एक स्कूल में टीचर था, और सुमित्रा देवी से सहानुभूति रखता था, परन्तु इस घटना से दोनो परिवारों की बहुत बदनामी हुई, संतोष नोकरी और शहर छोड़ करा ना जाने कहां चला गया,ओर सुमित्रा देवी की भी जीने में कोई रुचि ना रही और वह सोचती रहती थी ऊपर जा कर भगवान से पूछूंगी कि उसका भाग्य उसने किस कलम से लिखा था, क्यों  उसके जीवन में सुबह लिखी ही नहीं.