Exploring East India and Bhutan-Chapter-28
सत्रहवां दिन
होटल वापिस आ कर मानसी अपने रूम में चली गई व् हमने भी अपने अस्थायी बसेरे की तरफ रुख किया. आज टूर का अंतिम पडाव था.
“लडकी सेंटीमेंटल हो रही है” मैंने अपने ज्ञान का पिटारा खोला
“वो क्या मै खुद हो रही हूँ, आखिर कल सबने अपनी-अपनी राह पकड लेनी है” विनीता ने भी भारी आवाज में कहा
“सबने से क्या मतलब, सिर्फ मानसी ने अपनी राह पकडनी है” मैंने गुहार लगाई, विनीता मुस्कराई
“अरे, चंद दिनों का ही तो साथ था” मैंने बेपरवाही दर्शाते हुए कहा तो विनिता ने मुझे व्यंग भरी नजरों से देखा
“ज्यादा मत बनो, सबसे कमजोर तुम ही हो” विनीता ने मुझे घूरते हुए कहा, मेरी होश्यारी कुछ काम नहीं आई
“मै तो बस तुम्हे नार्मल करने की कोशिश कर रहा था”
‘”मै ठीक हूँ” विनीता वाकई नार्मल नज़र आने लगी थी
“तो क्या करें” मैंने उम्मीद भारी नजरों से उसे देखा, शायद वह कहेगी, चलो टूर को और चार-पांच दिन बड़ा लेते हैं.
“कुछ नहीं, पैकिंग शुरू करते हैं” उसने मेरी उम्मीदों पर पानी फेरते हुए कहा.
और फिर हम रूफ रेस्टोरेंट में आ कर जम गये, वहीं कॉल करके मानसी को भी बुला लिया गया. विदाई की घड़ी में हर आँख नम हुई जा रही थी, माहोल थोड़ा बेचेनी भरा था, थोड़ी देर सभी चुप रहे और मोबाइल देखने का नाटक करते रहे , आखिर में मानसी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा :
“दीदी, तुम्हारा अपनापन बहुत रुलाएगा, आगे भी जीवन के सफ़र में बहुत से लोग मिलेंगे पर, लगता नहीं ये बेलाग अपनापन फिर से मिल सकेगा”
“अरे, आँखों से ही दूर जा राही हो, दिल से नहीं“ विनीता ने कहा
“चलो एक बात बताओ, जब हमे याद करोगी तो रोओगी या मुस्कराओगी“ मैंने उसके दिल का हाल जानना चाहा
“मुस्कराऊंगी”
“तो याद रखना जिन्हें याद करके आँखे मुस्करा दें, वो लोग दूर हो कर भी कभी दूर नहीं होते” मैंने खड़े हो कर बाहें फेला दी
“भैया“ और मानसी उठ कर मुझ से लिपट गई
“दीदी,पिछले दिनों, मेरा प्रोजेक्ट मंजूर नहीं हुआ, भसीन से झगडा हुआ, पुराना जॉब छोड़ दिया, पेरेंट्स से इतनी दूर अकेली थी, पर दीदी मै बिफिक्र रही क्योंकि आप लोगों का हाथ हमेशा मेरे सर पर रहा, ये जो रिश्ता अनजाने में बना है, मेरी जिन्दगी से जुड़ गया है”.
“जॉब छोड़ दिया तो छोड़ दिया, कोई बात नहीं, तुम्हारे सपने तुम्हारे होंसले को आजमाएंगे, पर तुम पीछे मुड़ कर मत देखना, यही मुश्किलें जीत की नीवं बनेगी” विनीता ने होसला आफजाई की.
“तुम जो भी चाहोगी, वही तुम्हे मिलेगा” मैंने दिल से दुआ दी
“चाहे कुछ भी एक मोड़ पर हम मिलेंगे जरुर” मानसी ने गंभीर होते कहा
“अरे आजकल मोबाइल का जमाना है, वीडियो कॉल पर मिल सकते हैं, फिर तुम्हारी और आशुतोष की कहानी क्या रंग लाती है, इस बारे में हमे अपडेट करती रहना”
“आप लोगों से नहीं कहूंगी तो किस को बताउंगी, इस कहानी के राजदार तो बस आप लोग ही हैं“ मानसी मुस्कराई, विनीता मुस्कराई और, और क्या, मुझे भी मुस्कराना आता है.
और फिर जाम चलते रहे, रात गहरी होती रही, हम इमोशनल होते रहे, और महफिल का अंत इस अंदाज से हुआ
एक शायर ने क्या खूब कहा है, मैंने सूफियाना अंदाज़ में कहा
“जाते हो ख़ुदा-हाफ़िज़ हाँ, इतनी गुज़ारिश है
जब याद हम आ जाएँ मिलने की दुआ करना”
Exploring East India and Bhutan-Chapter-29
अठारवां दिन
पारो में भूटान का एक मात्र हवाई अड्डा है, आप यहां से सीधी दिल्ली की फ्लाइट ले सकते हैं या वापस सिलिगुरी से दिल्ली की फ्लाइट ले सकते हैं, पारो से सिलीगुड़ी की दूरी लगभग 300 km है, व 8 घंटे का समय लग जाता है, हमारी फ्लाइट सिलिगुरी बागडोगरा से शाम पांच बजे की थी, तो हम वापसी की तेयारी करने लगे ताकी घर जा कर, एक नये सफ़र की शुरुआत कर सकें, और अगले सफर में आप लोग भी तो हमारे साथ चलेंगे, चलेंगे ना.
समाप्त