Ishq a Bismil - 29 in Hindi Fiction Stories by Tasneem Kauser books and stories PDF | इश्क़ ए बिस्मिल - 29

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इश्क़ ए बिस्मिल - 29

अरीज की टैक्सी खान विल्ला के गेट के बाहर रुक गयी थी। अरीज टैक्सी में बैठ तो गई थी मगर उसके पास किराया देने के लिए पैसे नहीं थे इसलिए उसने अपने कान में पहनी हुई एक सोने की छोटी सी बाली उतार कर उस driver को दे दी। उसकी इस हरकत पर driver हैरान रह गया था। वह एक अच्छा इंसान था। किसी की मजबूरी का फायदा उठाने वालों में से नहीं था इसलिए उसने वह सोने की बाली लेने से इंकार कर दिया लेकिन दूसरी तरफ़ अरीज भी किसी का क़र्ज़ अपने सर रखने वालों में से नहीं थी इसलिए उसने driver को ज़बरदस्ती वो बाली थमाया और गेट से अंदर चली गई थी।

आसिफ़ा बेगम अभी तक पार्टी से वापस नहीं आई थी क्योंकि ज़मान खान शहर से बाहर गये हुए थे इसलिए उन्हें घर आने की बिल्कुल भी जल्दी नहीं थी।

अरीज अपना मुरझाया हुआ चेहरा लेकर घर के अंदर दाखिल हुई थी मगर शुक्र है उसे उपर कमरे में जाते हुए नसीमा बुआ ने नही देखा था।

वह कमरे में पहुंच कर आज के गुज़रे हुए वाक़िये का मातम मना रही थी और साथ में बेचारी अज़ीन, बहन से बार बार कभी लिपट रही थी तो कभी उसके आँसू पोंछ रही थी। अरीज सोफे पर बैठी हुई थी और अज़ीन उसके बगल में थी, तभी उमैर वहाँ पहुंचा था।

उसने इशारे से अज़ीन को अपने पास बुलाया था और बाहर खेलने के लिए भेज दिया था। अज़ीन झूले वाले वाक़िये के बाद काफी डर गई थी इसलिए बाहर जाने से थोड़ा झिझक रही थी। उसके डर को भापते हुए उमैर ने उस से कहा था। “डरो नहीं हदीद तुम्हें कुछ नहीं करेगा।“

अज़ीन बहन का चेहरा देख रही थी मगर अरीज गुमसुम बैठी थी इसलिए अज़ीन उमैर की बात मान कर कमरे से निकल गई थी। उमैर चलते हुए उसके पास आया था। थोड़ी देर वह खामोशी से उसे देखता रहा फिर कुछ सोच कर उसने कहा था।

“I’m sorry, मैं उस वक़्त बोहत कंफ्यूज़ था, इसलिए मुझे कुछ समझ नहीं आया।“ उमैर ने आगे बढ़ कर अरीज से माज़रत (excuse) की थी। वह वाक़ई बोहत शर्मिंदा हुआ था। अरीज ने उसे शिकवे भरी नज़र से देखा था। उसने अपने होंठों को सख़्ती से भीज रखा था जैसे वह खुद पर जब्र कर रही हो, खुद को कुछ बोलने से रोक रही हो।

“देखो जो हुआ सो हुआ... अब इस बात को यहीं पर ख़त्म कर दो... एक ही बात को लेकर बैठे रहने से कोई फ़ायदा नहीं है... मैं इस बात पर गिल्टी फील कर रहा हूँ... अगर तुम ऐसे ही रोती रहोगी तो.... “ वह आगे कुछ और भी कहने ही वाला था की अरीज ने उसे रोक दिया था। वह आगे उसके और फलफ़से नहीं सुनना चाहती थी और ना ही उसे माफ़ करने के मूड में थी। बल्कि आज वह फैसले के मूड में थी।

“क्या कहा था आपने?.... मैंने अपनी खुराफाती दिमाग इस्तमाल कर के आप से निकाह किया है ताकि यह घर हासिल कर सकूँ। यही कहा था ना आपने?” अरीज गम ओ गुस्से की मिली जुली कैफ़ियत से दो चार हो रही थी।

“क्या आपने कभी मेरी आँखों को देखा है मिस्टर उमैर खान?” उसने अपनी आँखों को सुकोड़ कर छोटा कर लिया था जैसे की उनमें उसे चुभन महसूस हो रही हो।

“इसे दो सालों से सुकून की नींद नसीब नहीं हुई है, जानते है आप?...ऐसा क्यूँ? .... क्योंकि पिछले दो सालों से हमारे घर का सरबराह हमारे पास नहीं था... सर के उपर किराये का साया था मगर दरों दीवार के बाहर कोई ढाल खड़ा नहीं था।....खैर आपने तो कभी भी अपनी लाइफ में ये एक्सपेरिएंस नहीं किया होगा की कहीं आपकी आँख लगी हो और कोई दीवार फलांगता हुआ आपके घर में घुस जाए.... नहीं ना.... कभी नही किया होगा।“ उमैर उस से माफ़ी मांगने आया था मगर उसकी लेक्चर सुन कर उसे अपने फै़सले पर अफ़सोस हो रहा था। उसने दो सेकंड के लिए अपनी आँखे बंद की थी और एक लंबी सांस हवा मे खारिज की थी।

“मैंने जो ज़िंदगी झेली है... आप से तो सुना भी नहीं जा रहा है।“ उमैर की उकताहट को देख कर अरीज ने उसे ताने मारे थे।

“मैं यहाँ ये सब सुनने नहीं आया था।“ उमैर ने अपने गुस्से पे काबू करते हुए कहा था।

“तो फ़िर क्यों आये है यहाँ? मैंने बुलाया था क्या? मुझे आपकी कोई ज़रूरत नहीं हैं.... बल्कि मुझे अब किसी की भी ज़रूरत नहीं है।“ अरीज आज फट पड़ी थी। उसने गुस्से में लगभग चिल्लाते हुए कहा था। उमैर ने पहली दफ़ा उसकी इतनी तेज़ और बुलंद आवाज़ सुनी थी, वह सच में हैरान रह गया था।

“मिस्टर उमैर खान मैंने ज़मान अंकल को अपनी जिंदगी का फैसला करने का हक़ ज़रूर दिया था मगर मेरे गुमान में कहीं भी ये बात नहीं थी की वह मेरी शादी का सोच रहे है वो भी किसी और से नही अपने ही बेटे से, तो सोचिये जब मुझे आपके साथ मेरा निकाह का ही पता नहीं था तो फ़िर मैं इस प्रोपर्टी के बारे में कैसे सोच सकती हूँ?.....डूबते को तिनके का सहारा चाहिए होता है आप अगर उस वक़्त उसे महल की औफर करेंगे तो वो उसके किसी काम का नहीं होगा। मुझे भी कोई महल नहीं चाहिए थी, सुकून चाहिए था, नींद चाहिए थी, तहफ्फूज़ चाहिए थी मगर अफ़सोस मुझे यहाँ पे कुछ नहीं मिला, सिर्फ़ ताने और इल्ज़ाम ही मिले हैं।“ अरीज की आँखों के साथ साथ उस का पूरा चेहरा लाल हो रहा
था। उमैर उसकी आँखों में आँखें डाले हुए था, और वह बिना किसी से डरे या झिझके अपनी कहे जा रही थी।

“मैं ज़िंदगी में कुछ भी सह सकती हूँ मग़र अपनी इज़्ज़त पर एक हर्फ़ भी नहीं सह सकती। एक बीवी ना सही मगर एक अकेली लड़की ही समझ कर...अपना सारा ग़ुस्सा, गिले शिकवे सब कुछ पीछे छोड़ कर, अगर मुझ पर कोई गंदी नज़र डालता तो आपका फ़र्ज़ बनता था की आप उसका मूंह तोड़ देते। मगर नहीं मैं तो आपके गले में ज़बरदस्ती का पड़ा हुआ ढोल हूँ जिसे ना चाहते हुए भी आपको बजाना ही होगा, मगर अब नहीं.... बोहत मुबारक हो आपको ये आपका महल...अंकेल के आते ही मैं आपसे खुला ले लूंगी। और ये मेहर आपको माफ़ कर दूँगी, मुझे ना अब आपका डर है ना आपकी माँ का।“ अरीज अपने हवास में नहीं थी शायद... या फ़िर वो आज इतना टूट चुकी थी की वह सब कुछ भूल बैठी थी। उमैर को खुद ही 440 वॉट्स का शॉक लगा हुआ था। उसे भी महसूस हो रहा था की अरीज अपने होश में नहीं है। उसे उसकी पर थोड़ा तरस आया था जब ही वह चलता हुआ बेड के साइड टेबल पे रखा हुआ पानी अरीज के लिए लाया था मगर उसे लेने के बजाए अरीज ने एक तीखी नज़र उस पर डाली और काफी गुस्से में उस से कहा।

“अब आप यहाँ से जा सकते हैं।“ उमैर उसकी जुर्रत पर हैरान रह गया था। वह उसे indirectly कमरे से निकाल रही थी। इस बात पर ग़ुस्सा तो उसे इतना आ रहा था जिसका कोई हिसाब नहीं था मगर वह इतना ज़रूर मानता था की आज उस ने गलती की थी, सैफ़ के सामने कुछ react ना करने की गलती। उसे भूल जाने चाहिए थे सारे झगड़े, गिले, शिकवे, अरीज से उसकी नफ़रत, मगर ये अंचहा रिश्ता जैसे हर वक़्त उसके सर पर सवार रहता है उसे कुछ भूलने नही देता.... ना वो निकाह.... ना अरीज.... और ना ही “सनम जहाँगीर “


क्या वाकई उमैर की इतनी बड़ी गलती थी जितना अरीज react कर रही थी?

क्या उमैर अपनी जगह सही था?

और कौन थी ये सनम जहांगीर

जानने के लिए बने रहे मेरे साथ और पढ़ते रहे