सपने.......(भाग-46)
डोली को विदा करा कर सब वापिस आ गए। ज्यादातर मेहमान रात को ही चले गए थे, जो बचे थे वो भी दुल्हन के घर आते ही चलने की तैयारी कर रहे थे। राजशेखर और रश्मिकीर्ति यहाँ की कुछ रस्मों के बाद रश्मि के घर जाने वाले थे क्योंकि उनकी रात की ही फ्लाइट थी ऑस्ट्रेलिया की। रश्मि ने हनीमून के लिए ऑस्ट्रेलिया चुना था तो राजशेखर ने भी मवा नहीं किया। श्रीकांत ने दोपहर की टिकट करवा रखी थी गाँव जाने के लिए तो वो भी सब जाने की तैयारी कर चुके थे। हल्का फुलका नाश्ता करके वो तैयार हो गए थे। माया जी ने रास्ते के लिए दोनों टाइम का खाना और मिठाई पैक करके दी थी। मि. रेड्डी को अपने बेटे के दोस्त बहुत पसंद आए थे, उन्होंने सबको थैंक्यू बोला। राजशेखर और रश्मिकीर्ति से मिल कर उन्हें गिफ्ट देकर वो रेलवे स्टेशन के लिए निकल गए। मि. रेड्डी ने उन्हें कैब नहीं करने दी और उन्हें ड्राइवर के साथ अपनी कार में भेजा। मायाजी ने सोफिया और आस्था को साड़ी गिफ्ट की और लड़को के लिए शर्टस थीं, राजशेखर को सबका साइज पता ही था। अगले दिन दोपहर को वो लोग श्रीकांत के गाँव में पहुँचे। 2 गाडियाँ उनके इंतजार में खड़ी थी। आदित्य के लिए तो ये पहला मौका था, जब वो किसी गाँव में आया था। पहले तो उसे ट्रेन में थोड़ा अजीब लग रहा था, पर कुछ देर में वो कंफर्टेबल हो गया था। ऐसा ही गाँव में पहुँच कर बाहर देखता हुआ सोच आदित्य सोच रहा था गाँव में रहने वाले लोगो की जिंदगी के बारे में..... उसे एक बार फिर ये ख्याल आया कि उसके पास सबकुछ है, उसे अब सब संभालना ही चाहिए अपने डैड की तरह....। सब आपस में बातें करते रहे तो पता ही नहीं चला कि गाडियाँ कब श्रीकांत के आलीशान घर के अंदर पहुँच गयीं। श्रीकांत के बाबा किसी आसपास के गाँव गए हुए थे।
आई ने उनका स्वागत किया। नौकरो की चहल पहल से नवीन और आस्था हैरान थे। आदित्य को तो फिर भी आइडिया था श्रीकांत के स्टेटस का.....पर हैरानी की बात तो थी ही क्योंकि श्रीकांत जितना सिंपल रहता है, उसमें कोई पैसे का गुरूर नहीं। सबके लिए पहले चाय का इंतजाम किया गया फिर फ्रेश हो कर खाना लगवाया गया। खाने में अलग ही स्वाद था, जो सबको बहुत अच्छा लगा। श्रीकांत के बाबा भी तब तक आ गए....। कुछ देर बातें करके श्रीकांत सबको गाँव का एक चक्कर लगवा लाया। गाँव साफ सुथरा था। हालंकि हमेशा गाँवो में हमने सिर्फ अनपढ या कम पढे लिखे लोग और गंदगी ही पढा था, पर ये अलग था। हर तरफ हरियाली थी, बच्चे श्रीकांत को नमस्ते कर रहा था तो कोई पैर छू रहा था। बढे बूढो को श्रीकांत नमस्ते कर रहा था..कोई काका कोई दादा तो कोई भाऊ( भाई)। अगले दिन खेतों में चलेंगे सुबह नाश्ता करके इसलिए सब जल्दी उठ जाना, रात का खाना खा कर श्रीकांत ने कहा। आस्था ने देखा शाम से ही सोफिया घर के कामों में लगी हुई थी। खाने का इंतजाम और श्रीकांत की आई के साथ ही थी। सोफिया को देख कर बिल्कुल नहीं लगा कि वो अपनी सास से डरती है या यहाँ एडजस्ट नहीं हो पा रही। वैसे भी खुले विचारों के हैं श्रीकांत के आई बाबा। अगले दिन सुबह सब जल्दी से नहा धो कर तैयार हो कर नीचे आ गए। नाश्ते में सोफिया ने सबके लिए पोहे बनाए थे बाद में सबने छाछ भी पी। श्रीकांत के साथ सब लोग खेत देखने चल दिए। श्रीकांत फसलों के बारे में बताता जा रहा था। आदित्य को तो इतना चलने की आदत ही नहीं थी वो बोला, "अब वापिस मैं पौदल नहीं चल सकता"। श्रीकांत ने कहा," हाँ पता है आदित्य साहब इसलिए तुम्हें बैलगाड़ी में घर ले चलूँगा", कह कर उसने बैलगाड़ी की तरफ इशारा किया। वापिसी में स्कूल, अस्पताल सब दिखाया। दोपहर का खाना खा कर अब शाम को निकलने की तैयारी थी सबकी तो थोड़ी देर आराम करके उन लोगो ने अपनी पैकिंग की और सबसे विदा ले कर चल दिए रेलवे स्टेशन। बहुत सारी अच्छी यादें ले कर सब मुंबई लौट आए। तीनो ही बहुत थके हुए थे। ट्रेन में बैठते ही सब सामान एडजस्ट कर तीनों अपनी अपनी सीट पर सो गए। सुबह आस्था की नींद 5 बजे खुली तो उसने किसी से पूछा की मुंबई कितनी दूर है तो उसने बताया कि 1 घंटा लगेगा। आस्था ने दोनो को उठा दिया। आस्था ने ब्रश किया और अपने लिए चाय ली और साथ में श्रीकांत की आई ने जो स्नैक्स दिए वो निकाल कर चाय के साथ खा कर इसे थोड़ी तसल्ली हुई। बाद में नवीन और आदित्य ने भी चाय पी कर सब सामान चेक किया, ट्रेन नेॆ उन्हें सही टाइम पर पहुँचा दिया था। आदित्य ने कुली को बुलवा कर कुछ सामान उठवाया और चल दिए टैक्सी स्टैंड की तरफ। तकरीबन 40-45 मिनट में वो अपनी बिल्डिंग के नीचे थे। आस्था ने एक दिन पहले ही सविता ताई को बता दिया था कि वो आ रहे हैं तो उसे काम पर आना है और आते हुए दूध ले कर आए। नवीन तो आ कर नहा धो कर तैयार हो गया था क्योंकि उसे अपने काम पर जाना था। उसने जल्दी से राजशेखर के घर की मिठाई खोली और स्नैक्स ले कर ब्लैक कॉफी बना कर पी ली। आदित्य का कुछ खाने का मन नहीं था सो वो लेटा हुआ था। नवीन की जो हेल्प नचिकेत और उसकी बहन ने की थी वो काबिले तारीफ थी, उनके अच्छे कांटेक्टस की वजह से ही नवीन को लगातार काम मिल रहा था। नवीन अपना एक संगीत स्कूल बनाने का सोच रहा था, इसलिए उसे जो काम मिल रहा था वो करता चला जा रहा था, पैसा इकट्ठा करना था अपना सपना पूरा करने के लिए और अपनी बहन की शादी के लिए। उसका एक सपना तो पूरा हो ही रहा था, फिल्मों में गाने का और पहचान बनाने का। जब हमारा एक सपना पूरा होने लगता है तो हम एक नया सपना देखने लगते हैं, ऐसा सबके साथ होता ही है तो नवीन भी अपवाद नहीं था। नवीन के जाने के बाद आस्था और आदित्य दोनों एक दूसरे की बाँहों में एक दूसरे से लिपटे हुए लेटे थे बिल्कुल चुपचाप पर ऐसा लग रहा था कि दोनों की खामोशी ही बातें कर रही हैं। कुछ देर में सविता ताई ने बेल बजायी तो दोनो ने एक दूसरे को अपने से अलग कर लिया। सविता ताई ने आते ही दोनो के लिए कॉफी बनायी और अपने साथ लायी ब्रेड के टोस्ट बना दिए। दोनो ने नाश्ता किया फिर सविता ताई अपने काम में लग गयी और आस्था अपने कमरे में चली गयी। आदित्य भी कुछ देर टी वी देखता रहा और फिर कब वहीं सोफे पर सो गया, उसे पता ही नहीं चला। आस्था भी नहाने के बाद सो गयी। सविता ताई चुपचाप अपना काम करती रही। सफाई का काम करके सविता ताई बाहर से लॉक करके सब्जियाँ लेने चली गयी। वापिस आयी तब तक आस्था उठ गयी थी। उसे नचिकेत का फोन आया था, अगले प्ले की तैयारी के लिए सुबह बुलाया है।
क्रमश: