Anuthi Pahal - 24 in Hindi Fiction Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | अनूठी पहल - 24

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अनूठी पहल - 24

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सब कुछ वैसा ही था, जैसा प्रतिदिन होता था। आकाश साफ़ था। सूर्य-देवता अपने कर्त्तव्य-पथ पर अग्रसर थे। प्रभुदास नाश्ता आदि करके दुकान पर गया था। गर्मी की तपिश रोज़ जैसी ही थी। फिर भी रास्ते में उसे और दिनों की अपेक्षा अधिक पसीना महसूस हुआ। दुकान पर पहुँचा तो कूलर की हवा से कुछ राहत महसूस हुई। अभी घंटा-एक ही बीता होगा कि उसकी छाती में बहुत ज़ोर का दर्द उठा। उसे लगा कि उसका साँस घुट रहा है। पवन ने पापा की तबियत बिगड़ती देखकर घर फ़ोन करके प्रवीण को भेजने के लिए कहा। साथ ही उसने रामरतन को कहा कि मैं पापा को लेकर डॉ. प्रतीक के पास जा रहा हूँ। उसकी आवाज़ घबराहट वाली आवाज़ सुनकर कृष्णा भी घबरा उठी। उसने प्रवीण को तुरन्त दुकान पर भेजा और सुशीला को बताया कि पापा को डॉक्टर के पास लेकर जा रहे हैं।

कुछ ही मिनटों में रामरतन भी अस्पताल पहुँच गया। डॉक्टर ने प्रभुदास की स्थिति को देखते ही कहा कि इन्हें हार्ट अटैक हुआ है। उसने प्राथमिक उपचार के रूप में आवश्यक दवाई दी और रामरतन को समझाया कि इन्हें तुरन्त लुधियाना या चण्डीगढ़ ले जाओ। उसने अपने अस्पताल की एम्बुलेंस भी उपलब्ध करवा दी। प्रभुदास ने फुसफुसाहट में कहा - ‘डॉक्टर, आप भी चलो। रास्ते में आप होंगे तो मुझे बहुत सहारा रहेगा।’

डॉ. प्रतीक और प्रभुदास की दोस्ती ऐसी थी कि इन हालात में उसके लिए ‘ना’ करना असम्भव था। अत: तुरत-फुरत में लुधियाना जाने की तैयारी हो गई।

इतना कुछ करने के बावजूद लुधियाना से दस किलोमीटर पहले प्रभुदास दम तोड़ गया। अब लुधियाना ले जाने का तो कोई औचित्य नहीं था। पवन बिलख-बिलखकर रोने लगा। अपने जिगरी दोस्त को न बचा पाने पर डॉक्टर की आँखें भी नम हो गईं। दु:ख तो रामरतन को भी कम नहीं था, किन्तु सबसे बड़ा होने के कारण उसे ही स्थिति को सम्भालाना था। उसकी सलाह पर तुरन्त घर पर सूचना देना स्थगित कर दिया। एम्बुलेंस ज़िन्दा प्रभुदास को लेकर घर से चली थी, अब उसकी लाश लेकर घर लौट रही थी।

प्रभुदास को लेकर जाने के दो-एक घंटे बाद से ही सुशीला की दायीं आँख फड़कने लगी थी। अनिष्ट की आशंका से उसका दिल घबरा तो तभी से रहा था, जबसे दुकान से फ़ोन आया था, लेकिन आँख फड़कने के बाद से तो वह लगातार मन-ही-मन परमात्मा से प्रार्थना कर रही थी - हे भगवन्! इन्हें कुछ न हो। यदि किसी को लेकर ही जाना है तो मुझे ले जाना! मैं इनके बिना नहीं रह सकती।

प्रभुदास की नाज़ुक स्थिति को देखते हुए पवन ने जाते हुए प्रवीण को कह दिया था कि दीपक, दमयंती तथा विद्या को फ़ोन कर देना। दीपक तो प्रीति तथा दमयंती को लेकर एम्बुलेंस के दौलतपुर पहुँचने से पहले ही पहुँच गया था, किन्तु प्रफुल्ल की पोस्टिंग दूर होने की वजह से विद्या का इतना जल्दी पहुँचना सम्भव नहीं था।

सुशीला ने दोपहर का खाना भी ढंग से नहीं खाया। कृष्णा उसे ढाढ़स बँधाती रही कि माँ जी, परमात्मा सब ठीक करेंगे, किन्तु सुशीला के दिल को चैन कहाँ था! इसलिए ज्यों ही एम्बुलेंस के घर के बाहर रुकने की आवाज़ आई, सुशीला पागलों की तरह बाहर की ओर लपकी। जमना ने उसे सँभाला और अन्दर लेकर आई। दीपक तो आते ही दुकान पर चला गया था। इसलिए प्रीति ने ही दुकान पर फ़ोन करके इत्तला दी।

घर में कोहराम मच गया। जंगल की आग की तरह यह दुखद समाचार सारी मंडी में फैल गया। परिवार तथा प्रभुदास के मित्र-प्यारे आने शुरू हुए तो देखते-ही-देखते अच्छी-खासी भीड़ एकत्रित हो गई। चन्द्रप्रकाश का तो किसी को पता नहीं था कि कहाँ होगा, लेकिन रामरतन और सुशीला ने सलाह करके सुबह तक इंतज़ार करना उचित समझा, क्योंकि विद्या का फ़ोन आ चुका था कि वे चल पड़े हैं। अत: एकत्रित लोगों को रामरतन ने हाथ जोड़कर विनती करते हुए तदनुसार सूचना दे दी।

सुबह तक तो आसपास के इलाक़े तथा ज़िला प्रशासन तक भी प्रभुदास के निधन का समाचार पहुँच गया। देहदान से जुड़ी संस्थाओं के प्रतिनिधियों के साथ अन्य सामाजिक संस्थाओं के माननीय सदस्य भी पहुँचे और साथ ही पहुँचे ज़िला के उपायुक्त दो-एक अन्य अधिकारियों के साथ। अस्पताल में पहले सूचना कर दी गई थी, इसलिए डॉक्टरों की टीम मृत-देह को ले जाने के लिए एम्बुलेंस लेकर पहुँच चुकी थी।

प्रभुदास के शव पर लोग श्रद्धा-सुमन अर्पित कर श्रद्धांजलि दे रहे थे। मन्दिर के पुजारी ने विधिवत अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी करके शान्ति पाठ किया तथा तदुपरान्त मृत-देह डॉक्टरों के सुपुर्द कर दी गई तथा रामरतन तथा अन्य परिवारजनों ने सभी उपस्थित नगरवासियों तथा रिश्तेदारों को रस्म-पगड़ी की तिथि, समय व स्थान बताकर हाथ जोड़ दिए।

जो लोग आए थे, वापस जाते हुए भी बातें कर रहे थे कि प्रभुदास ने जीवन-भर तो समाज की भलाई का काम किया ही, मरने के बाद भी देहदान करके मेडिकल की पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों तथा डॉक्टरों को प्रयोग करने में सहायक बनकर बहुत बड़ा योगदान दिया है।

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