Anuthi Pahal - 22 in Hindi Fiction Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | अनूठी पहल - 22

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अनूठी पहल - 22

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विवाह के बाद प्रीति दीपक के साथ खेत में बने घर में रहने लगी। दीपक और प्रीति सारा दिन परिश्रम करते, लेकिन एक-दूसरे के सान्निध्य में थकावट का बिल्कुल भी अहसास न होता। दीपक को ‘आदर्श किसान सम्मान’ मिलने के बाद से उसे मण्डी की स्थानीय संस्थाएँ सार्वजनिक समारोहों में आमन्त्रित करने लगी थीं। अब वह जब भी ऐसे समारोहों में जाता तो प्रीति को भी अपने साथ ले जाता। अपने सद्व्यवहार तथा खुले विचारों के कारण मण्डी में प्रीति की अपनी पहचान बनने लगी। दीपक का खेत नगर परिषद की सीमा में आता था। नगर परिषद के जब चुनाव घोषित हुए तो वार्ड के सामाजिक कार्यों में रुचि रखने वाले कुछ सज्जन पुरुषों ने दीपक से चुनाव लड़ने का अनुरोध किया। दीपक को खेतीबाड़ी से ही फ़ुरसत नहीं मिलती थी, उसने धन्यवाद करते तथा क्षमायाचना करते हुए उनका प्रस्ताव स्वीकार करने में अपनी असमर्थता जताई। इस पर आए हुए वार्ड-निवासियों में से एक बुद्धिराजा ने कहा - ‘दीपक जी, हमें मालूम है कि आपके पिता जी ने अपने जीवन के शुरुआती दौर में दौलतपुर का सरपंच बनकर वहाँ की कायापलट कर दी थी। आप भी अपने पिता जी के आदर्शों पर चल रहे हैं, इसलिए हमें आपसे बहुत उम्मीदें हैं।’

‘बुद्धिराजा जी, कृपया मेरी मजबूरी समझिए। मैं इस समय खेतीबाड़ी से समय नहीं निकाल सकता और बिना समय दिए मैं पार्षद के उत्तरदायित्व से न्याय नहीं कर पाऊँगा।’

जब आए हुए वार्ड-निवासियों ने देखा कि दीपक का हाँ करना मुश्किल है तो एक अन्य सज्जन ने कहा - ‘हम फ़ैसला करके आए हैं कि आपको ही पार्षद बनाना है। अब यदि आप इतने ही विवश हैं तो हमारी प्रार्थना है कि प्रीति बहन जी को आप पार्षद का चुनाव लड़ने की आज्ञा अवश्य दे दें।’

‘भाई साहब, मैं आपके सामने ही प्रीति को बुलाकर पूछ लेता हूँ। यदि वह यह उत्तरदायित्व उठाने को तैयार होगी तो मैं उसे रोकूँगा नहीं।’

प्रारम्भिक हिचकिचाहट के बाद तथा दीपक के प्रोत्साहन को देखकर प्रीति ने चुनाव लड़ने की स्वीकृति दे दी। चुनाव के दौरान प्रभुदास और सुशीला उनके साथ रहे। विजय और दमयंती ने भी प्रीति के चुनाव में बहुत सहयोग दिया। चुनाव में एक ही प्रतिद्वंद्वी था, जिसकी ज़मानत ज़ब्त हुई।

वार्ड में ही नहीं, मण्डी भर में प्रीति की विजय पर जलूस निकाला गया। चयनित पार्षदों ने एकमत (सर्वसम्मति) से प्रीति को प्रधान चुना।

प्रधान चुने जाने पर प्रीति ने दीपक को कहा - ‘सारी मण्डी ने मुझ में विश्वास जताया है। बहुत उत्तरदायित्व आन पड़ा है। मैं क्या करूँ कि इनके विश्वास पर खरी उतर सकूँ?’

‘प्रीति, पापा मेरे जन्म से पहले सरपंच बने थे। पापा ने तो कभी अपनी उपलब्धियों का ज़िक्र नहीं किया, किन्तु माँ से कई बार सुना है कि उन्होंने कुछ प्रबुद्ध नागरिकों की समिति बनाकर उनसे जन-कल्याण और विकास के लिए सुझाव माँगे थे और फिर उनपर ईमानदारी से अमल किया था, यही मूल मन्त्र था उनकी सफलता का। मैं समझता हूँ कि तुम सभी पार्षदों से तो विकास के लिए सुझाव लो ही, अनाज मण्डी के प्रधान तथा व्यापार मंडल के प्रधान से भी सुझाव माँग लो। एक तो इससे तुम्हें समस्याओं का पता चल जाएगा और दूसरे प्रशासन से सहयोग माँगने के लिए आधार तैयार हो जाएगा।’

‘वाह दीपक! आपने तो एक ही बार में मेरी सारी चिंता ही मिटा दी। अब मैं परिवार की प्रतिष्ठा को बट्टा नहीं लगने दूँगी और मण्डी-निवासियों का विश्वास भी बनाए रखने की कोशिश करूँगी।’

‘प्रीति, जब व्यक्ति नेक-नीयत और पूरी लगन से कोई काम करता है तो सफलता स्वत: मिल जाती है। जो काम तुम्हें करने हैं, वे कोई एक दिन में तो करने नहीं। तुम्हारे पास तीन वर्षों का समय है अपनी योग्यता सिद्ध करने का। …. बाक़ी तुम्हारा ‘गुलाम’ सदा तुम्हारे हुक्म की तामील करने के लिए हाज़िर रहेगा ही।’

दीपक की अंतिम बात पर प्रीति मुग्ध हो उठी। उसने दीपक को आलिंगनबद्ध करते हुए कहा - ‘दीपक, तुम्हें पाकर तो मैं निहाल हो गई हूँ। पता नहीं किस जन्म का क़र्ज़ चुकाना था कि पापा ने शुरू में आपकी बात नहीं मानी।’

‘प्रीति, भूल जाओ उस प्रसंग को। मैं नहीं चाहता कि कभी तुम उसे याद करो। यदि तुम्हें उन काले लम्हों की याद आती है तो मैं समझूँगा कि मेरे प्यार में कमी रह गई है।’

‘नहीं दीपक, मेरा वह मतलब नहीं था। मैं तो….’

दीपक ने अपना हाथ उसके मुँह पर रखकर उसे कुछ भी कहने से रोक दिया।

……..

प्रीति ने अनाज मण्डी के फड़ों को पक्का करवाया तथा दो शैड़ों का निर्माण करवाया ताकि मौसम बिगड़ने पर मण्डी में आई किसान की फसल को बरसात आदि से नुक़सान न हो। सरकारी स्कूलों तथा सार्वजनिक स्थलों पर वृक्षारोपण को एक आन्दोलन के रूप में लागू करने की पहल की। पार्कों की देखभाल व रख-रखाव के लिए मण्डी निवासियों की कमेटी का गठन किया जिसका कार्य दानवीरों से चंदा इकट्ठा करके पार्कों की सुव्यवस्था करना था। कमेटी को तकनीकी सलाह-मशविरा देने के लिए परिषद के अभियंता तथा सफ़ाई-निरीक्षक की ड्यूटी लगाई। जैविक खेती तथा बिना रासायनिक खादों के सब्ज़ियाँ उगाने को प्रोत्साहित करने के लिए किसानों को परिषद की ओर से प्रतिवर्ष गणतन्त्र दिवस पर सम्मानित एवं पुरस्कृत करने की योजना को अमली जामा पहनाया।

एक बार प्रीति दीपक के साथ श्री गंगानगर एक विवाह समारोह में गई। उस समारोह में मदन लाल, प्रीति का पूर्व पति, भी था। जब दोनों एक-दूसरे के पास से गुजरे तो मदन लाल ने नज़रें झुका कर दूसरी तरफ़ फेर लीं जबकि प्रीति स्वाभाविक रूप से दीपक के साथ चलती रही। थोड़ा आगे निकलकर प्रीति ने दीपक से पूछा - ‘आपने उस शख़्स को देखा जो सामने से आ रहा था और हमें देखते ही जिसने नज़रें चुरा ली थीं?’

‘नहीं, मैंने तो ध्यान नहीं दिया। क्यों, कौन था वह?’

‘वह ….. वह मदन था जिसके साथ मुझे नारकीय जीवन बिताना पड़ा था।’

‘प्रीति, थूक दो उस याद को, भूल जाओ कि अभी-अभी तुमने कोई दु:स्वप्न देखा था। यदि चाहो तो हम वापस चलते हैं।’

‘दीपक, हमें वापस जाने की आवश्यकता नहीं। वही निकल गया होगा, मुझे उसकी आँखों में शर्मिंदगी की झलक दिखाई दी थी।’

‘प्रीति, अच्छा होगा कि हम यहाँ से चलें। मैं नहीं चाहता कि इत्तफ़ाक़न तुम्हारा उससे दुबारा आमना-सामना हो और तुम्हारे मन के किसी कोने में सहानुभूति के भाव पनपें।’

‘यदि आप ऐसा सोचते हैं तो चलो, चलते हैं।’

मदन लाल प्रीति के पास से गुजरने के बाद तुरन्त वहाँ से निकल गया था। प्रीति को दीपक के साथ प्रसन्न-मुद्रा में देखकर उसे स्वयं पर ग्लानि महसूस हुई थी। वह सोचने लगा कि मैंने मम्मी-पापा की तर्कहीन बातों को आँख मूँदकर, मानकर इतनी सुशील पत्नी को प्रताड़ित किया, उसको तो भगवान् ने मुझसे कहीं बेहतर जीवन-साथी मिलवा दिया। प्रीति अपने पति के सहयोग और अपनी क़ाबिलियत के बल पर आज नगर परिषद की प्रधान है, समाज में उसका रुतबा है और मैं हूँ कि पश्चाताप की अग्नि में झुलस रहा हूँ और किसी के आगे अपना दुखड़ा बयान भी नहीं कर सकता। मम्मी-पापा की हेकड़ी के चलते मुझे नहीं लगता कि मैं कभी जीवन का आनन्द उठा पाऊँगा!

वह इन्हीं ख़्यालों में खोया स्कूटर पर जा रहा था कि पीछे से आती तेज रफ़्तार कार से उसका स्कूटर टकरा गया। शायद उसका स्कूटर डाँवाडोल हो रहा था। वह गिर गया। उसके सिर में चोट आई।  वह बेहोश हो गया। कार वाले ने थोड़ा आगे जाकर कार रोकी। कार में सवार अरुण ने अपने ड्राइवर की सहायता से मदन के सिर पर रूमाल बाँधा और उसे कार की पिछली सीट पर लिटाया। ड्राइवर को स्कूटर सँभालने के लिए कहकर वह उसे नज़दीक के अस्पताल में ले गया। अरुण तब तक अस्पताल में ही रहा जब तक कि मदन को होश नहीं आया और उससे पूछकर उसके घरवालों को सूचित नहीं कर दिया गया।

सुबह जब प्रीति परिषद के कार्यालय में आई और समाचार पत्र देखने लगी तो उसकी नज़र बॉक्स में लिखी खबर पर पड़ी जिसका शीर्षक था - ‘कार वाले का मानवीय व्यवहार’। खबर पढ़ी तो उसका मन विचलित हो उठा। एक मन ने कहा कि उसे मदन का पता लेने अस्पताल जाना चाहिए तो दूसरे मन ने कहा, मदन तेरा कौन होता है जिसके लिए तू अस्पताल जाए। रोज़ सड़क हादसे होते हैं, किस-किसके लिए तू अस्पताल जाएगी। पहले मन ने कहा, नहीं तुझे जाना चाहिए। जब एक अनजान कार वाले ने इतनी मानवीयता दिखाई है तो तुझे भी जाना चाहिए। सकारात्मक सोच की जीत हुई। उसने सेवक को ड्राइवर को बुलाने के लिए कहा और खबर के अनुसार अस्पताल में पहुँच गई।

वहाँ मदन लाल का पापा यानी प्रीति का पहले वाला ससुर मौजूद था। प्रीति ने शिष्टाचारवश नमस्ते की और मदन लाल के स्वास्थ्य के बारे में पूछा तो उसने ग़ुस्से में कहा - ‘हमारा घर बर्बाद करने के पश्चात् तेरी जुर्रत कैसे हुई यहाँ आने की? तेरी इस नक़ली सहानुभूति की हमें ज़रूरत नहीं।’

‘नाराज़ मत होइए, मैंने तो खबर पढ़ी तो इन्सानियत के नाते पता लेने चली आई। आप नहीं चाहते तो मैं जा रही हूँ।’

ये बातें उस कमरे के बाहर हो रही थीं जिस कमरे में मदन लाल लेटा हुआ था। उसके कानों तक प्रीति और उसके पापा के बीच हो रहे संवाद पहुँच रहे थे। प्रीति की आख़िरी बात सुनते ही उसने आवाज़ लगाई - ‘पापा, एक बार प्रीति को अन्दर आने के लिए कहो।’

प्रीति जो वापस जाने के लिए मुड़ रही थी, वहीं रुक गई।

मदन का पापा नहीं चाहता था कि प्रीति मदन से मिले, लेकिन उसके दिमाग़ में एकाएक विचार आया कि मदन की जो हालत है, उसमें उसकी इच्छा न मानने से उसको मानसिक आघात पहुँच सकता है, यह सोचकर उसने प्रीति से कहा - ‘जा देख ले, लेकिन कोई ऐसी-वैसी मत करना।’

प्रीति ने मदन के पास जाकर बिना औपचारिकता के आहिस्ता से पूछा - ‘यह कैसे हुआ?’

‘मेरी ज़्यादतियों की सजा है यह, प्रीति,’ मदन ने भर्राई हुई आवाज़ में कहा।

‘मदन, अब ये बातें करने से कोई लाभ नहीं। शीघ्र स्वस्थ होकर भूतकाल को भूलकर वर्तमान को सुधारने की कोशिश करना।’ इतना कहकर वह कमरे से बाहर आई और सीधे सरकारी जीप की तरफ़ बढ़ गई।

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