Anuthi Pahal - 12 in Hindi Fiction Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | अनूठी पहल - 12

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अनूठी पहल - 12

- 12 -

जमना की अनाथ बच्चा गोद लेने की बात से सहमत होते हुए भी रामरतन ने इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किया था। विवाह की पहली वर्षगाँठ पर जब जमना ने बच्चा गोद लेने की बात पुनः चलाई तो रामरतन ने कहा था - ‘जमना, मैं तेरी भावना को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता, लेकिन सोच, यदि गोद लिया बच्चा संस्कारवान ना निकला तो क्या होगा? ….. मैंने सोचा है कि एक तो अपनी वर्षगाँठ पर गोशाला में एक फलदार वृक्ष लगाया करेंगे, दूसरे, रोज़ सुबह गोशाला में जाकर थोड़ी-बहुत देर गौओं की सेवा किया करेंगे। चन्द्र भइया ने भी कई बार गौ-सेवा की बात कही है। यह काम आज से ही शुरू करेंगे।’

‘बहुत नेक ख़्याल है आपका। मैं जल्दी से तैयार हो लेती हूँ। आपके दुकान जाने से पहले ही गोशाला चलते हैं।’

यह निर्णय कर वे गोशाला पहुँचे थे। काफ़ी खुले परिसर में फैली गोशाला में छायादार पेड़ों की भरमार थी और चारा आदि चरने के बाद गौएँ बाड़े में खुली विचर रही थीं। गौओं की देखभाल के लिए नियुक्त सेवादार को रामरतन ने अपनी इच्छा बताई। वह तुरन्त पास की नर्सरी से अमरूद की पौध ले आया। वृक्षारोपण के उपरान्त सेवादार कहने लगा - ‘सॉब जी, यदि आप लोगों को रोज़ आना है तो मैं कहूँगा कि आप श्यामा गोमाता की सेवा करो, इसी का दूध पीओ। इसने कुछ दिन पहले ही बछड़ा दिया है।’ सेवादार ने ये सब बातें इसलिए कहीं, क्योंकि उसे लगा कि इन लोगों को सन्तान पाने की लालसा है।

‘ठीक है। कल सुबह से इस गोमाता का डेढ़ सेर दूध हमारे लिए अलग से रख दिया करना। हम खुद ले ज़ाया करेंगे।’

गर्मी रही या सर्दी, आँधी रही या बरसात, रामरतन और जमना बिला नागा हर रोज़ गोशाला जाते रहे। गौओं के शरीर पर हाथ फेरना, उन्हें चीचडों से छुटकारा दिलाना, उनके चारे आदि के लिए नियमित रूप से दान देना उनकी दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा बन गया था। गोमाता की दस साल अनवरत सेवा का जो फल रामरतन दम्पत्ति को मिला, वह किसी चमत्कार से कम नहीं था। कब पत्थर में घास उग आएगी, कौन कह सकता है!

पुनर्वास मन्त्रालय से मिली मुआवज़े की धनराशि से रामरतन ने मंडी की चारदीवारी के बाहर बन रही नई कॉलोनी में एक बड़ा प्लॉट ख़रीदकर सुरुचिपूर्ण ढंग से एक आरामदायक घर बनवाया, जिसमें तीन कमरे, रसोई, बैठक, ड्योढ़ी के अलावा काफ़ी बड़ा आँगन था। प्रवेश द्वार से ड्योढ़ी तक खुला लॉन था, जिसमें बाहरी दीवार के साथ अमलतास, गुलमोहर तथा अशोक वृक्ष लगाए गए थे और क्यारियों में लगे गुलाब, रजनीगंधा, हरसिंगार, गेंदा, तुलसी आदि के पौधे वातावरण को शुद्ध रखते थे तथा महक बिखेरते रहते थे।

जमना प्रतिदिन प्रातः उठते ही दैनिक क्रियाओं से फ़ारिग होकर लॉन में आती। पेड़-पौधों पर पड़ी मिट्टी-धूल को पानी का छिड़काव करके साफ़ करती। फिर जाकर अन्य कार्यों को हाथ लगाती। लेकिन आज सुबह उठते ही उसने यह सब नहीं किया, बिस्तर पर रामरतन के उठने की प्रतीक्षा करती रही। जब रामरतन उठा तो जमना ने और कुछ कहने से पूर्व कहा - ‘सुनो जी, रात को बड़ी बेचैनी रही, मैं ठीक से सो भी नहीं पाई। सारी रात पेट में दर्द-सा उठता रहा, जी भी मिचला रहा है।’

‘मैं भी सोचूँ कि आज तू पेड़-पौधों की सेवा में हाज़िर न होकर बिस्तर पर क्यों है? ….. यदि ऐसा है तो तू आज गोशाला मत चलना। मैं अकेला ही हो आता हूँ। मैं जल्दी आ जाऊँगा। उसके बाद शहर चलते हैं, लेडी डॉक्टर को दिखा देते हैं। अगर नाश्ता बनाने में दिक़्क़त महसूस होती हो तो नाश्ता शहर में ही कर लेंगे।’

‘नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं। नाश्ता करके ही चलेंगे। आप गोशाला हो आओ, मैं तैयारी करती हूँ।’

जैसे ही वे शहर जाने के लिए घर से बाहर आए कि प्रवेश द्वार के पिल्लर पर बैठा कौआ काँव-काँव करता दिखा।

रामरतन - ‘जमना, यह किसके आने की सूचना लाया है, अपना तो कोई आगे-पीछे भी नहीं है?’

‘राम जाने! आज तक तो बाहर से कोई आया नहीं।’

‘चलो, देखते हैं कि कहावत में कितनी सच्चाई है?’

अस्पताल पहुँचकर जमना ने डॉक्टर को अपनी तकलीफ़ बताई। उसने जाँच करने के बाद प्रफुल्लित होते हुए कहा - ‘श्रीमती जमना, बधाई हो। आपको कोई तकलीफ़ नहीं है, बल्कि आप माँ बनने वाली हैं।’

डॉक्टर के इन शब्दों को सुनकर जमना को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने हैरानी जताते हुए पूछा - ‘डॉक्टर साहब, क्या वाक़ई यह सच है जो आप कह रही हैं? …. मुझे तो दस साल पहले इसी अस्पताल की डॉक्टर ने टेस्ट वग़ैरह करवाने के बाद कहा था कि मैं कभी माँ नहीं बन सकती और तब से हम तो विधि के विधान को मानकर सन्तान-सुख की आस ही छोड़ बैठे थे।’

‘भगवान् की कब कृपा बरसने लगे, कोई नहीं जानता! रही बात दस साल पहले की रिपोर्ट की, तो मैं इस विषय में आपकी पुरानी रिपोर्ट देखे बिना कुछ नहीं कह सकती। …. अब भगवान् की कृपा हुई है तो आपको कुछ दिनों तक अधिक मेहनत से बचना होगा। मैं कुछ दवाइयाँ लिख देती हूँ, जो बेचैनी से आपको राहत दिलाएँगी। …. जब आप दुबारा आएँ तो अपनी पुरानी रिपोर्ट लेते आना, मैं देख लूँगी।’

‘डॉक्टर साहब, पुरानी रिपोर्ट तो अब कहाँ मिलेगी? हमने तो निराश होकर रिपोर्टें वग़ैरह सब रद्दी में फेंक दी थीं।’

‘कोई बात नहीं। अपना ध्यान रखना, दवाई लेने में कोताही मत करना। बहुत जल्दी ही आपके घर में ख़ुशियों का अंबार लगने वाला है।’

‘बहुत-बहुत धन्यवाद डॉक्टर साहब’, कहकर जमना जब बाहर आई तो रामरतन उसके चेहरे की रौनक़ देखकर पूछ बैठा - ‘बड़ी खुश लग रही हो, ऐसा क्या मन्त्र फेर दिया डॉक्टर ने?’

‘ख़ुशी वाली बात ही है। सुनकर कुप्पा हो जाओगे आप भी….।’

‘कुछ बताओगी भी या यूँ ही पहेलियाँ बुझाती रहोगी?’

‘डॉक्टर ने तो बस वह सच बताया है जो गोमाता ने आशीर्वाद रूप में हमें दिया है … आप पापा बनने वाले हो।’

रामरतन को कुछ-कुछ आभास तो हो गया था कि ज़रूर कोई अच्छी ख़बर है जिसने जमना के चेहरे पर छाई दर्द की लकीरों की जगह ख़ुशियों की लाली ला दी है, लेकिन इतनी बड़ी ख़ुशी की तो उसने भी कल्पना नहीं की थी। उसके मन में फुलझड़ियाँ फूटने लगीं। सार्वजनिक स्थल की परवाह किए बिना उसने जमना को बगलगीर कर लिया और उसे बधाई दी।

शहर से उन्होंने मिठाई ली और सीधे पार्वती के घर जा पहुँचे। उन्होंने पार्वती के चरणस्पर्श करते हुए कहा - ‘माँ जी, मुँह मीठा करो।’

‘किस ख़ुशी में बेटे?’

‘माँ जी, आप एक और पोते या पोती की दादी बनने वाली हैं।’

पार्वती ने दोनों के सिर पर हाथ रखते हुए ऊपर की ओर नज़रें करके कहा - ‘भगवान् के घर देर है, अँधेर नहीं। बेटे राम, अब सफ़ाई वग़ैरह के लिए कोई बाई रख ले। बहू से सारा काम खुद नहीं हो पाएगा।’

‘जी, माँ जी।’

सुशीला ने हास-परिहास के अंदाज में कहा - ‘भाई साहब, माँ जी तो एक और पोते या पोती की दादी बनेंगी, किन्तु मैं तो पहली बार चाची बनूँगी। मैं तो कोई ख़ास तोहफ़ा ही लूँगी।’

आज रामरतन ने भी सुशीला के अंदाज़ में ही उत्तर दिया - ‘भाभी, पहले तो जमना की गोद भराई के समय आपको ही तोहफ़ा देना पड़ेगा, फिर आपके लेने की बारी आएगी।’

‘भाई साहब, ना मैं देने में पीछे रहूँगी ना लेने में। मैं तो गोद भराई के मौक़े पर अपनी जिठानी को खूब सजाऊँगी और खूब नाचूँगी।’

पार्वती - ‘बहू, भाग्य से ऐसा मौक़ा आएगा और तुझे ही सारी रस्में अदा करनी होंगी।’

‘क्यों नहीं? मैं तो दिन गिन-गिनकर मौक़े का इंतज़ार करूँगी।’

रामरतन सुशीला की प्रसन्नता देखकर अभिभूत हो गया। उसने जेब से सौ-सौ के दो नोट निकाले, सुशीला के ऊपर से वार कर जमना को पकड़ाते हुए कहा - ‘जमना, ये पैसे गौओं की सेवा के लिए रख लो।’ फिर सुशीला की ओर मुड़ते हुए कहा - ‘भाभी, मेरे और जमना के तो सगे-सम्बन्धी सब कुछ आप लोग ही हो। माँ जी और गोमाता के आशीर्वाद से परमात्मा मेहरबान हुआ है तो गोद भराई को एक यादगार मौक़ा बना दूँगा।’

ये बातें हो ही रही थीं कि प्रभुदास ने दोपहर का खाना खाने के लिए घर में कदम रखे। रामरतन के अंतिम शब्द उसने सुन लिए थे। अन्दर आते हुए उसने पूछा - ‘किसकी गोद भराई की बातें हो रही हैं?’

सुशीला - ‘आप चाचा बनने जा रहे हो। जिठानी जी की गोद भराई की बातें हो रही थीं।’

प्रभुदास ने रामरतन को झप्पी में लेते हुए बधाई दी और कहा - ‘माँ, यह तो कमाल हो गया! जमना भाभी को अब नए घर में रहने का असली मज़ा आएगा।’

‘हाँ भाई, ठीक कह रहे हो,’ रामरतन ने प्रभुदास की बात का समर्थन किया।

पार्वती - ‘बहू, अब प्रभु आ गया है तो खाना तैयार कर। राम और जमना भी यहीं खा लेंगे।’

पार्वती की बात को उलटाना किसी के बस में नहीं था। जमना सुशीला के साथ रसोई की ओर जाने लगी तो पार्वती ने उसे रोकते हुए कहा - ‘बहू, तू आराम कर, शहर जाकर आई है। मैं सुशीला का हाथ बंटा देती हूँ।’

……..

हिन्दू शास्त्रीय परम्परा के अनुसार मानव-जीवन में गर्भावस्था से लेकर मृत्युपर्यंत सोलह संस्कारों का प्रावधान है। गर्भधारण के पश्चात् सबसे पहला संस्कार गोद भराई कहलाता है। प्रायः यह रस्म   गर्भावस्था के सातवें या आठवें महीने की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस समय तक गर्भस्थ शिशु पूरी तरह से सुरक्षित होता है। इस अवसर पर परिवार तथा रिश्ते-नाते की महिलाएँ गर्भवती महिला तथा आने वाले नन्हें मेहमान के उत्तम स्वास्थ्य की कामना करतीं तथा बधाई देती हैं और जो पूजा इस अवसर पर की जाती है, उससे गर्भ दोषमुक्त हो जाता है। समारोह में एकत्रित महिलाएँ गर्भवती महिला को आभूषणों से सजाती हैं और चूड़ियाँ पहनाती हैं। उपहारों, फलों, मेवों और मिठाइयों से माँ बनने महिला की गोद भरी जाती हैं। गोद भराई के दौरान गर्भवती माँ के लिए खास व्यंजनों की दावत भी की जाती हैं। इस अवसर पर नाच गाना, संयमित छेड़-छाड़ और मजाक करना आदि भी होता हैं।

जमना की गोद भराई के अवसर पर पार्वती और सुशीला ने प्रभुदास और रामरतन की ‘देहदान मंडली’ के परिवारों की महिलाओं को भी आमन्त्रित किया हुआ था। समारोह की बागडोर पार्वती ने सँभाली हुई थी, लेकिन अतिथियों की आवभगत में सुशीला पूरे मनोयोग से लगी हुई थी। जब नाच-गाना आरम्भ हुआ तो मन्दिर कमेटी के प्रधान जगन्नाथ की पत्नी माया ने नाचते हुए पंजाबी लोकप्रिय गीतों पर गिद्दा डालना आरम्भ किया। पहले गीत के बोल थे -

वे धरती नू कली करादे, नचूँगी सारी रात वे

और दूसरे गीत के बोल थे -

जे मुंड्या वे साडी तोर तूं वेखनी गडवा लै दे चांदी दा

वे लक्क हिल्ले मिजाजण जांदी दा, वे लक्क हिल्ले मिजाजण जांदी दा।

गाने के पुरुष-बोलों को सुशीला ने उठाया तो सारी महिलाएँ वाह-वाह कर उठीं। आख़िर में सुशीला ने बधाइयाँ गाते हुए निम्न पंक्तियाँ गुनगुनाईं -

सजाए हमने हैं घर-आँगन में सितारे

कुछ ही दिनों में आने वाली हैं बहारें।

एक फ़रिश्ता है आने वाला

जिठानी जी की गोद है सजाने वाला।

नन्हें-नन्हें कदमों से चला करेगा

चाची-चाची मुझे कहा करेगा।

छम-छम कर जब वो दौड़ेगा,

उसकी रौनक़ से घर चमकेगा।

उसकी इंतज़ार में पलकें बिछाए बैठे हैं

हम सब महफ़िल सजाए बैठे हैं।

पापा का दुलारा,

माँ का प्यारा,

जब धरती पर आएगा,

आसमान भी ख़ुशियाँ मनाएगा।

बैठक में बैठे मर्दों तक भी इस मंगल-गान के स्वर पहुँचे तो रामरतन ने आँगन में आकर सुशीला के ऊपर से नोट वार कर नाइन को दिए।

समारोह की समाप्ति पर पार्वती ने अपने घर लौटने से पहले जमना को ताकीद करते हुए कहा - ‘बहू, आज सुबह से तूने आराम नहीं किया है, अब ये भारी-भरकम कपड़े बदलकर आराम कर। अब बच्चा होने तक अपनी खुराक का भी ख़ास ख़्याल रखना। किसी तरह की कोई परेशानी हो तो इत्तला करने में संकोच मत करना।’ जाते-जाते पार्वती ने एक बार फिर आशीष दिया।

…….

जब जमना का प्रसव का समय आया तो दाई के साथ पार्वती भी उसके पास थी। प्रसव के तुरन्त पश्चात् पार्वती ने बाहर आकर रामरतन को बेटा होने की बधाई दी तो उसने कहा - ‘माँ जी, गोमाता की कृपा और आपका आशीर्वाद है यह बेटा। इसलिए सबसे अधिक बधाई की हक़दार तो आप हैं। …. माँ जी, आज सुबह मैं गोशाला से गोमूत्र ले आया था। अच्छी तरह से कपड़-छान करके रखा हुआ है। सबसे पहले आप जमना को थोड़ा-सा पिला दो।’

‘राम, यह तूने बहुत अच्छा किया। मैं अभी जमना को गोमूत्र पिला के आती हूँ। … अच्छा, शाम को गोशाला जाकर गोमाता की सेवा भी ज़रूर कर आना। उसके बाद ही यार-दोस्तों का मुँह मीठा करवाना।’

‘फिर तो मैं अभी गोशाला जाता हूँ और आता हुआ मिठाई भी लेता आऊँगा।’

‘यह भी ठीक है। जैसे-जैसे तेरे दोस्तों को खबर लगेगी, बधाई देने तो वे आएँगे ही। तू गोशाला हो ही आ।’

जब जमना को चौका चढ़ाने से पहले घर में हवन करवाने की बात पार्वती ने की तो रामरतन ने कहा - ‘माँ जी, मैं गोशाला से एक गाय घर ले आता हूँ, गोमाता की उपस्थिति में हवन करवाते हैं। इस प्रकार एक पंथ दो काज हो जाएँगे - हवन और गोमाता के आगमन से घर पवित्र और वातावरण शुद्ध हो जाएगा।’

‘राम, जैसी तेरी सोच है, ऐसी अच्छे संस्कारों से ही बनती है। आज तेरे माता-पिता स्वर्ग से ज़रूर तुझे आशीर्वाद दे रहे होंगे।’

रामरतन की आँखें नम हो गईं। उसने कहा - ‘माँ जी, आपके साथ किस जन्म का नाता है, यह गुत्थी सुलझाना तो सम्भव नहीं, लेकिन आपका आशीर्वाद तो साक्षात् रूप में मिल रहा है।’

पार्वती का हाथ एक बार फिर रामरतन के सिर की ओर उठ गया।

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