Anuthi Pahal - 11 in Hindi Fiction Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | अनूठी पहल - 11

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अनूठी पहल - 11

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पवन ने दुकान का काम बख़ूबी सँभाल लिया था। हर कम्पनी चाहती कि एजेंसी मैसर्ज प्रभुदास एण्ड सन्स को ही दी जाए। इस प्रकार कारोबार बहुत तेज़ी से बढ़ने लगा। पवन के विवाह के लिए रिश्ते आने लगे। पार्वती भी पवन के विवाह के लिए उत्सुक थी। एक दिन रात को खाना खाने के बाद प्रभुदास जब उसके पास बैठा उसकी टाँगें दबा रहा था तो उसने कहा - ‘प्रभु बेटे, पवन की विवाह की उम्र हो गई है। उसने दुकान का काम भी पूरी तरह सँभाल लिया है। अब उसका विवाह कर देना चाहिए। दूसरे, मेरी सेहत भी कोई अच्छी नहीं रहती। पता नहीं, कब ऊपरवाले का बुलावा आ जाए! इसलिए मैं चाहती हूँ कि जीते जी पोते की बहू का मुँह देख लूँ और अगर भगवान् ने चाहा तो पड़पोते-पड़पोती को भी गोद में खिलाने का सुख भोग लूँगी।’

‘माँ, अभी से ऊपर जाने की बातें मत कर। तू पोतों की बहुओं को भी आशीर्वाद देगी और उनके बच्चों को भी।’

‘प्रभु, सुशीला ने पता नहीं तेरे साथ बात की है कि नहीं, तेरी साली प्रमिला का फ़ोन आया था। उसकी ननद की दो लड़कियाँ हैं। बड़ी लड़की मैट्रिक पास है। प्रमिला बता रही थी कि लड़की देखने में सुन्दर और सुशील है। घर के कामकाज में माहिर है। पवन से एक साल छोटी है। रिश्तेदारी में रिश्ता मिल जाए तो अच्छा रहता है।’

‘हाँ, सुशीला बात तो कर रही थी। लेकिन माँ, लड़की थोड़ा और पढ़ी होती तो ज़्यादा ठीक होता। पवन ने बी.ए. किया है तो दुकान का कामकाज, कम्पनी वालों से सम्बन्ध अच्छी तरह से निभा रहा है। खैर, यदि संयोग यहीं हुआ तो मैं बहू को अपने कॉलेज में आगे पढ़ने के लिए दाख़िला दिलवा दूँगा। मैंने भी प्रमिला की ननद को एक-दो बार देखा है। स्वभाव से तो ठीक लगती है। उसका पति भी अच्छी नौकरी पर लगा हुआ है।’

‘विवाह के बाद भी कोई लड़की पढ़ती है क्या? विवाह के बाद बहू घर का कामकाज सँभालेगी या कॉलेज की पढ़ाई करेगी?’

‘माँ, बहू कॉलेज में पढ़ लेगी तो आगे बच्चों की परवरिश भी अच्छी हो पाएगी।’

‘चल, एक बार विवाह तो होने दे। बाक़ी बाद में देखेंगे। तू प्रमिला को कह, बात चला लेगी।’

‘ठीक है माँ, मैं फ़ोन करके बात करता हूँ।’

‘जा बेटे, अब सो जा। रात बहुत हो गई है।’

जब प्रभुदास अपने बेडरूम में आया तो सुशीला ने उलाहना देते हुए कहा - ‘आज माँ-बेटे में क्या खिचड़ी पक रही थी जो इतनी देर लगा दी?’

प्रभुदास ने सुशीला के तंज को नज़रअंदाज़ करते हुए कहा - ‘माँ, पवन के विवाह की बात ले बैठी। इसलिए बातों-बातों में देर हो गई।’

‘मैं भी चाहती हूँ कि घर में अब बहू आ जाए।’

प्रभुदास ने मज़ाक़ करते हुए कहा - ‘देख सुशीला, बहू घर में आने पर हम तो बूढ़ा-बूढ़ी कहलाएँगे जबकि तू तो खुद अभी नई नवेली दुल्हन-सी लगती है।’

‘आप भी ना मज़ाक़ करने से बाज नहीं आते!’ सुशीला ने शरमाते हुए कहा।

प्रभुदास ने उसे झप्पी में लेने की कोशिश की तो वह बोली - ‘अब इन हरकतों से बाज आओ, ससुर बनने जा रहे हो।’

‘ससुर बनना तो एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, लेकिन इसका यह तो मतलब नहीं कि हम अपनी भावनाओं और कामनाओं को दबा लेंगे। मैं तो कहता हूँ कि बहू के घर में आ जाने पर तुझे घर-गृहस्थी के कामों से थोड़ी फ़ुर्सत मिलेगी तो मेरा ध्यान और ढंग से रख पाएगी।’

कोई उत्तर न देकर सुशीला प्रभुदास की ओर सरक कर उसके साथ लिपट गई।

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