Bahu Beti in Hindi Classic Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | बहू बेटी

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बहू बेटी

जब से वे सपना की शादी करके मुक्त हुईं तब से हर समय प्रसन्नचित्त दिखाई देती थीं। उनके चेहरे से हमेशा उल्लास टपकता रहता था। महरी से कोई गलती हो जाए, दूध वाला दूध में पानी अधिक मिला कर लाए अथवा झाड़ू- पौंछे वाली देर से आए, सब माफ था। अब वे पहले की तरह उन पर बरसती नहीं थीं। जो भी घर में आता, उत्साह से उसे सुनाने बैठ जातीं कि उन्होंने कैसे सपना की शादी की, कितने अच्छे लोग मिल गए, लड़का बड़ा अफ़सर है, देखने में राजकुमार जैसा। फिरभी एक पैसा दहेज का नहीं लिया। ससुर तो कहते थे कि आपकी बेटी ही लक्ष्मी है और क्या चाहिए हमें। आपकी दया से घर में सब कुछ तो है, किसी बात की कमी नहीं। बस, सुंदर सुसंस्कृत व सुशील बहू मिल गई। हमारे सारे अरमान पूरे हो गए।
शादी के बाद जब बेटी पहली बार ससुराल से आई तो कैसी हवा में उड़ी जा रही थी। वहां के सब हालचाल अपने घर वालों को सुनाती, कैसे उसकी सास ने इतने दिनों पलंग के नीचे पांव ही नहीं धरने दिया। वह तो रानियों सी रही वहां। घर के कामों में हाथ लगाना तो दूर, वहां तो कभी मेहमान अधिक आ जाते तो सास दुलार से उसे भीतर भेजती हुई कहती - बेचारी सुबह से पांव लगते- लगते थक गई, नाते - रिश्तेदार क्या भागे जा रहे हैं कहीं, जा, बैठ कर आराम कर ले थोड़ी देर।
और उसकी ननद अपनी भाभी को सहारा देकर पलंग पर बैठा आती।
यह सब जब उन्होंने सुना तो फूली नहीं समाईं। कलेजा गज भर का हो गया। दिन भर चाव से रस ले लेकर वे बेटी के ससुराल की बातें पड़ोसनों को सुनाने से भी नहीं चूकती थीं। उनकी बातें सुनकर पड़ोसन को ईर्ष्या होती। वो सपना के ससुराल वालों को लक्ष्य करके मन में कहती - कैसे लोग फंस गए इनके चक्कर में, एक पैसा भी दहेज नहीं देना पड़ा बेटी के विवाह में और ऐसा शानदार रोबीला वर मिल गया। ऊपर से ससुराल में इतना लाड़- प्यार।
उस दिन श्रीमती अरुणा मिलने आईं तो वे उसी उत्साह से सब सुना रही थीं - लो जी, सपना को तो एमए बीच में छोड़ने तक का अफ़सोस नहीं रहा। बहुत पढ़ा- लिखा खानदान है। कहते हैं, एमए क्या, बाद में यहीं की यूनिवर्सिटी में पीएच. डी. भी करवा देंगे। पढ़ने- लिखने में तो सपना हमेशा ही आगे रही है। अब ससुराल भी कद्र करने वाला मिल गया।
- फिर क्या सपना नौकरी करेगी जो इतना पढ़ा रहे हैं? अरुणा ने उनके उत्साह को थोड़ा कसने की कोशिश की।
- नहीं जी, भला उन्हें क्या कमी है जो नौकरी करवाएंगे? घर की कोठी है। हज़ारों रुपए कमाते हैं हमारे दामाद जी। उन्होंने सफ़ाई दी।
- तो सपना इतना पढ़- लिख कर क्या करेगी?
- बस, शौक़। वो लोग आधुनिक विचारों के हैं न इसलिए, पता है न आपको, सपना बताती है कि सास ससुर और बहू एक टेबल पर बैठ कर खाना खाते हैं। रसोई में खटने के लिए तो नौकर- चाकर हैं। और खाने पहनने के ऐसे शौक़ीन हैं कि पर्दा तो दूर की बात है, मेरी सपना तो सिर भी नहीं ढकती ससुराल में।
- अच्छा। अरुणा ने आश्चर्य से कहा।
मगर शादी के महीने भर बाद लड़की ससुराल में सिर तक न ढके यह बात उनके गले नहीं उतरी।
- शादी के समय तो सपना कहती थी कि मेरे पास इतने ढेर सारे कपड़े हैं, तरह - तरह के सलवार सूट, मैक्सी और गाउन सब धरे रह जायेंगे। शादी के बाद तो साड़ी में गठरी बन कर रहना होगा। पर संयोग से ऐसे घर में गई है कि शादी से पहले बने सारे कपड़े काम में आ रहे हैं। उसके सास ससुर को यह भी एतराज नहीं कि बाहर घूमने जाते समय भी चाहे...
- लेकिन बहिनजी, ये बातें क्या सास ससुर कहेंगे? ये तो पढ़ी- लिखी लड़की ख़ुद सोचे कि आख़िर कुंवारी और विवाहिता में कुछ तो फ़र्क है ही। श्रीमती अरुणा से नहीं रहा गया।
उन्होंने सोचा कि शायद अरुणा को उनकी पुत्री के सुख से जलन हो रही है, इसलिए उन्होंने और भी रस ले कर कहना शुरू किया - मैं तो डरती थी कि मेरी सपना को शुरू से ही देर से उठने की आदत है, पराए घर में कैसे निभेगी। पर वहां तो वह सुबह बिस्तर पर ही चाय लेकर आराम से उठती है। फिर उठे भी किसलिए? स्वयं को कुछ काम तो करना नहीं पड़ता।
- अब चलूंगी बहिनजी। श्रीमती अरुणा उठते- उठते बोलीं - अब तो आप अनुराग की भी शादी कर डालिए, डॉक्टर हो ही गया है। फिर आपने बेटी विदा करदी। अब आपकी सेवा- टहल के लिए भी बहू आनी चाहिए। इस घर में भी तो कुछ रौनक होनी चाहिए। कहते- कहते श्रीमती अरुणा के होठों की मुस्कान कुछ ज़्यादा ही तीखी हो गई।
कुछ दिनों के बाद सपना के पिता ने अपनी पत्नी को एक फ़ोटो दिखाते हुए कहा - देखो जी, कैसी है ये लड़की अपने अनुराग के लिए? एमए पास है, रंग भी साफ़ है।
- घर- बार कैसा है? उन्होंने लपक कर फ़ोटो हाथ में लेते हुए पूछा।
- घर- बार से क्या करना है? खानदानी लोग हैं। और दहेज वगैरह हमें एक पैसे का नहीं चाहिए, यह मैंने लिख दिया है उन्हें।
- ये क्या बात हुई जी। आपने अपनी तरफ़ से क्यों लिख दिया? हमने क्या उसे डॉक्टर बनाने में कुछ खर्च नहीं किया? और फिर वो जो देंगे, उन्हीं की बेटी की गृहस्थी के काम तो आयेगा।
अनुराग भी आकर बैठ गया था और अपने विवाह की बातों को मजे लेकर सुन रहा था। बोला - मां, मुझे तो लड़की ऐसी चाहिए जो सोसाइटी में मेरे साथ इधर- उधर जा सके। ससुराल की दौलत का क्या करना है?
- बेशरम, मां- बाप के सामने ऐसी बातें करते हुए तुझे शर्म नहीं आती? तुझे अपनी ही पड़ी है, हमारा क्या कुछ रिश्ता नहीं होगा उससे? हमें भी तो बहू चाहिए।
- ठीक है तो मैं लिख दूं उन्हें कि सगाई के लिए कोई दिन तय कर लें। लड़की दिल्ली में भैया- भाभी ने देख ही ली है, सबको बहुत पसंद आई है। फिर शक्ल- सूरत से ज्यादा तो पढ़ाई- लिखाई माने रखती है। वह अर्थशास्त्र में एमए है।
उधर लड़की वालों को स्वीकृति भेजी गई इधर वे शादी की तैयारी में जुट गईं। सामान की लिस्टें बनने लगीं।
अनुराग, जो सपना के ससुराल की तारीफ़ के पुल बांधती अपनी मां की बातों से खीज जाता था, आज उन्हें सुनाने के लिए कहता - देखो मां, बेकार में इतनी सारी साड़ियां लाने की कोई ज़रूरत नहीं है, आख़िर लड़की के पास शादी के पहले के कपड़े होंगे ही, वो बेकार में बक्सों में पड़े सड़ते रहें इससे क्या फ़ायदा?
- तो तू क्या अपनी बहू को कुंवारी छोकरियों के से कपड़े यहां पहनाएगा? वह चिल्ला सी पड़ीं।
- क्यों, जब जीजाजी सपना को पहना सकते हैं तो क्या मैं नहीं पहना सकता?
वो मन मसोस कर रह गईं। इतने चाव से साड़ियां ख़रीद कर लाई थीं। सोचा था कि सगाई पर ही लड़की वालों पर अच्छा प्रभाव पड़ जाए तो वो बाद में थोड़ा ध्यान रखेंगे और हमारी हैसियत व मान - सम्मान ऊंचा समझ कर ही सबकुछ करेंगे। मगर यहां तो बेटे ने सारी उम्मीदों पर ही पानी फेर दिया।
रात को सोने के लिए बिस्तर पर लेटी तो कुछ उदास थीं। उन्हें करवटें बदलते देख कर पति बोले - सुनो जी अब घर के काम के लिए एक नौकर रख लो।
- क्यों? वो एकाएक चौंकी।
- हां, क्या पता, तुम्हारी बहू को भी सुबह आठ बजे बिस्तर पर चाय पीकर उठने की आदत हो तो घर का काम कौन करेगा?
वो सकपका गईं।
सुबह उठीं तो बेहद शांत और संतुष्ट थीं। पति से बोलीं - तुमने अच्छी तरह लिख दिया है न जी, जैसी उनकी बेटी, वैसी हमारी। दान- दहेज में एक पैसा भी देने की ज़रूरत नहीं है, यहां किस बात की कमी है, मैं तो उसके आते ही घर की चाबियां उसे सौंप कर अब आराम करूंगी।
- पर मां, ज़रा ये तो सोचो, वह अच्छी श्रेणी में एमए पास है, क्या पता आगे शोध आदि करना चाहे। फिर ऐसे में तुम घर की जिम्मेदारी उस पर छोड़ दोगी तो वो आगे पढ़ कैसे सकेगी?
उनकी समझ में नहीं आया कि एकाएक क्या जवाब दें।
कुछ दिन बाद जब सपना ससुराल से आई तो वे उसे बात - बात पर टोक देती थीं - क्यों री, तू ससुराल में ऐसे ही सिर उघाड़े डोलती रहती है क्या? वहां तो ठीक से रहा कर, बहुओं की तरह। और अपने पुराने कपड़ों का बक्सा यहीं छोड़ कर जाना। शादी- शुदा लड़कियों को ऐसे ढंग नहीं सुहाते।
सपना ने जब बताया कि वो यूनिवर्सिटी में दाखिला ले रही है तो वो बरस ही पड़ीं- अब क्या उम्र भर पढ़ती ही रहेगी? थोड़े दिन सास- ससुर की सेवा कर। कौन बेचारे सारी उम्र बैठे रहेंगे तेरे पास।
आश्चर्य चकित सपना देख रही थी कि मां को हो क्या गया है!
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