Mere Ghar aana Jindagi - 28 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | मेरे घर आना ज़िंदगी - 28

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मेरे घर आना ज़िंदगी - 28




(28)

समीर अमृता को लेकर उस होटल में पहुँचा था जहाँ शोभा मंडल ठहरी हुई थीं। शोभा ने उसे ईमेल के ज़रिए होटल का नाम और अपना रूम नंबर बता दिया था। साथ में उसे अपना मोबाइल नंबर भी दिया था। यहाँ आने से पहले समीर ने फोन पर बात कर ली थी। शोभा ने उसे आने के लिए कहा था।‌
समीर अमृता के साथ होटल की लॉबी में था। वह लिफ्ट की तरफ बढ़ रहा था। उसके मन में शोभा के साथ मुलाकात को लेकर एक हलचल सी मची थी। लिफ्ट के अंदर पहुँच कर उसने फ्लोर का बटन दबाया। लिफ्ट ऊपर चलने लगी। उसने अमृता की तरफ देखा। वह अधिक उत्साहित नहीं थी। समीर बड़ी मुश्किल से उसे मनाकर यहाँ लाया था। अमृता का तर्क था कि शोभा से मिलकर कोई लाभ नहीं होगा। वह क्या लोगों की सोच बदल देगी। लेकिन समीर ने उसे समझाया कि जहाँ उसने उसके लिए इतना कुछ किया है वहाँ शोभा से भी मिल ले।
लिफ्ट से उतर कर समीर हर एक रूम का नंबर चेक कर रहा था। कॉरिडोर के अंत में शोभा का कमरा था। बेल बजाने से पहले उसने एकबार अमृता की तरफ देखकर कहा,
"मम्मी आप प्लीज़ उनकी बातों को सुनकर समझने की कोशिश करिएगा।"
अमृता ने कुछ कहा नहीं। समीर ने बेल बजाई। कुछ देर में एक आदमी ने दरवाज़ा खोला। समीर ने अपना परिचय दिया। वह आदमी समीर और अमृता को अंदर ले गया। शोभा सोफे पर बैठी कोई फाइल देख रही थीं। समीर ने उनसे कहा,
"मैं समीर पुरी।‌ आपसे बात हुई थी।"
"समीर....मैं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही थी।"
समीर ने अपनी मम्मी का परिचय दिया। शोभा ने हाथ जोड़कर नमस्कार किया। अमृता ने भी हाथ जोड़ दिए। शोभा ने कहा,
"बस कुछ देर बैठो। मैं ज़रा इन्हें कुछ बातें समझा दूँ।"
समीर और अमृता उनके सामने बैठ गए। शोभा अपने सहयोगी को कुछ समझाने लगीं। अमृता उन्हें ध्यान से देख रही थी।‌ शोभा ने हल्के रंग की सूती साड़ी पहन रखी थी। कोहनी तक आस्तीन वाला ब्लाउज़ था। माथे पर स्टिकर वाली बिंदी थी। छोटे और घुंघराले बाल थे। चेहरे और आवाज़ में एक मर्दाना झलक थी। शोभा बड़ी तल्लीनता से अपने सहयोगी को कुछ निर्देश दे रही थीं। समीर भी शोभा को बड़े ध्यान से देख रहा था। कुछ देर में उनका सहयोगी चला गया। शोभा ने समीर की तरफ देखकर कहा,
"अपने बारे में सबकुछ विस्तार से लिखा था तुमने। बहुत बहादुरी से तुमने हर चीज़ का सामना किया। बस ऐसे ही डटे रहना तभी अपनी मंज़िल पा सकोगे नहीं तो यह दुनिया आगे नहीं बढ़ने देगी।"
समीर ने कहा,
"थैंक्यू मैम....मैंने भी अब अपने आप को तैयार करना शुरू कर दिया है।"
"अच्छी बात है। मैं डराने के लिए नहीं कह रही हूँ। बस समझाना चाहती हूँ कि जितना तुम समझ रहे हो चीज़ें उससे और अधिक कठिन होंगी।"
अमृता अब तक चुप बैठी थी। यह‌‌ बात सुनकर उसने कहा,
"मैं भी यही समझा रही थी। जो कुछ यह करना चाहता है आसान नहीं है। बेवजह अपने लिए मुश्किलें बढ़ाएगा। अभी क्या कम मुश्किलें हैं। स्कूल वालों ने भी बहाना बनाकर निकाल दिया। अब तो नया स्कूल ढूंढ़ना ही बहुत मुश्किल होगा।"
शोभा ने समीर की तरफ देखा। समीर ने उन्हें स्कूल में हुई सारी बातें बताईं। सब बताकर उसने कहा,
"मैम मेरी कोई गलती नहीं थी। पर स्कूल में सभी मुझे नापसंद करते थे। किसी ने मेरा साथ नहीं दिया।"
अमृता ने कहा,
"अब तुम चाहते हो कि पूरा समाज तुम्हें नापसंद करे। तुम्हारा जीना मुश्किल कर दे।"
समीर को अपनी मम्मी के इस बर्ताव से बहुत तकलीफ हो रही थी। शोभा के सामने भी वह उसे गलत ठहरा रही थीं। शोभा की नज़रें समीर पर थीं। वह उसके दुख को समझ रही थीं। उन्होंने अमृता से कहा,
"आपको लगता है कि समीर गलत है।"
"बिल्कुल....इतना कुछ हो चुका है फिर भी समझ नहीं आया। अभी आप भी तो कह रही थीं कि जितना सोचा है उससे अधिक मुश्किलें आएंगी। फिर ज़िद क्यों कर रहा है। कहता है कि अपने आप को बदलूँगा। वैसे रहूँगा जैसा अंदर से महसूस करता हूँ। अगर अभी यह हाल है तो सोचिए तब क्या होगा। इसलिए समझाती हूँ कि जो है उसे स्वीकार करके शांत रहो।"
अमृता की बात सुनकर शोभा के चेहरे पर दर्द उभर आया था। ऐसा लग रहा था कि जैसे वह समीर की तकलीफ को अपने दिल की गहराई से समझ रही हों। उन्होंने अमृता की तरफ देखकर सवाल किया,
"आपको क्या लगता है कि समीर लोगों का विरोध सहकर भी सब करने को तैयार क्यों है। समीर बहुत समझदार है। उसे पता है कि वह क्या करना चाहता है। उसका परिणाम क्या होगा। फिर भी सब सहने को तैयार है। क्यों ?"
शोभा बहुत भावुक हो गईं थीं। उसे देखकर अमृता असहज हो गई थी। शोभा ने कहा,
"जवाब दीजिए ना। क्या यह सब समीर नादानी में कर रहा है ‌? जो वह करना चाहता है वह उसकी बेवजह की ज़िद है।"
अमृता कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थी। शोभा ने कहा,
"आप समीर की मम्मी हैं फिर भी उसकी तकलीफ नहीं समझ सकती हैं। पर मैं समझ रही हूँ। मैं उस स्थिति से गुज़र चुकी हूँ जिसमें आज समीर है।"
समीर देख रहा था कि उसकी मम्मी ने जो कुछ कहा उससे शोभा बहुत आहत हुई थीं। ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी मम्मी उन्हें दोष दे रही हों। इस समय वह बहुत अधिक भावुक थीं। शोभा ने समीर की तरफ देखकर कहा,
"मैं भी लगभग इतनी ही उम्र की थी जब मैंने अपने घरवालों को बताया था कि मैं श्याम नहीं रहना चाहती हूँ। मैं श्याम के तौर पर खुश नहीं हूँ। उस दिन मेरे पिता ने मुझे बहुत मारा था। मुझसे कहा था कि तू कलंक है। हमारी बेइज्ज़ती कराने से अच्छा है कि कहीं जाकर मर जा।"
शोभा अपने पर काबू नहीं रख पाईं। वह रोने लगीं। समीर को भी दुख हो रहा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि कैसे उन्हें तसल्ली दे। अमृता सोच रही थी कि वह समीर की बात मानकर यहाँ क्यों आई। शोभा ने अपने आप को संभाला। वह उठते हुए बोलीं,
"माफी चाहूँगी। मैं अभी आई।"
वह वॉशरूम में चली गईं। कुछ देर में लौटकर आईं तो सामान्य लग रही थीं। अपनी जगह पर बैठकर उन्होंने समीर से कहा,
"मैं जल्दी भावुक नहीं होती हूँ। पर तुम्हारे साथ ना जाने क्यों एक जुड़ाव महसूस कर रही हूँ। इसलिए ऐसा हुआ।"
उसके बाद अमृता से बोलीं,
"मैं समझ सकती हूँ कि आप जो भी कह रही हैं वह समीर का भला सोचकर कह रही हैं। लेकिन समीर जो चाहता है वही उसके लिए ठीक है।"
अमृता को शोभा का इस तरह बोलना अच्छा नहीं लग रहा था। उसने कहा,
"क्या ठीक है। एक ज़िद में अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर लेना कैसे ठीक है। जबकी पता है कि उसका परिणाम क्या होगा।"
"अमृता जी....आप अपने और बाकी लोगों के हिसाब से सोच रही हैं। जबकी मैं समीर के मन को समझ रही हूँ। मैंने आपसे पूछा था कि समीर लोगों का विरोध सहकर भी सब करने को तैयार क्यों है ? आपने जवाब नहीं दिया था। पर मैं समझ सकती हूँ कि ऐसा क्यों है ? कभी आपको ऐसा लगा कि आप एक औरत की तरह ना रहकर मर्दों की तरह रहें। नहीं....क्यो क्योंकी आप जो हैं वैसा ही महसूस करती हैं। अगर किसी कारण से आपको मर्द की तरह रहना पड़े तो आप सहज नहीं होंगी।"
अमृता अब शोभा की बात को समझने का प्रयास कर रही थी।‌ शोभा ने उसे और समझाते हुए कहा,
"बात सिर्फ दिखने की नहीं है। अंदर से महसूस करने की भी है। अधिकांश लोगों को दिक्कत नहीं होती है क्योंकी वह अंदर और बाहर से एक जैसा महसूस करते हैं। पर मुझे दिक्कत थी। मैं लड़का थी। घरवालों ने श्याम नाम रखा था। पर मैं कभी श्याम से खुद को जोड़ नहीं पाई। मैं जानती हूँ कि इस स्थिति में क्या महसूस होता है। आप अपने आप से खुश नहीं रहते। समाज का रवैया दुख देने वाला होता है। घरवाले भी साथ नहीं देते। मुझे बहुत कुछ झेलना पड़ा।"
अमृता अब गंभीरता से उसकी बात को समझने की कोशिश कर रही थी। उसने भी समीर की मुश्किल को महसूस किया था। पर समाज के रवैये से डरकर उसका विरोध कर रही थी। समीर शोभा के चेहरे पर आए भावों को पढ़ रहा था। वह उनकी कहानी जानना चाहता था। उसे लग रहा था कि उनकी कहानी ज़रूर उसका मार्गदर्शन करेगी। उसने कहा,
"मैम प्लीज़ मुझे उस सबके बारे में बताइए जो आपने इस जगह तक पहुँचने के लिए झेला था।"
अमृता भी अब श्याम के शोभा बनने की कहानी जानना चाहती थी। शोभा ने कहा,
"सुनाऊँगी....जिससे तुम समझ सको कि राह कांटों भरी होगी पर हिम्मत नहीं हारनी है। एक बात तुमसे कहना चाहूँगी समीर कि तुम भाग्यशाली हो कि अमृता जैसी मम्मी मिली हैं तुम्हें। ईमेल में तुमने लिखा था कि कई सालों से तुम्हारे पापा साथ नहीं हैं। अमृता जी ने तुम्हें अकेले पाला है। शायद इसलिए थोड़ा घबरा गई हैं। पर आज तुम्हारे साथ यहाँ तक आई हैं। मुझे पूरी उम्मीद है कि वह आगे भी तुम्हारा साथ देंगी।"
समीर ने अमृता की तरफ देखा। अमृता भावुक नज़र आ रही थी।