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शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि सात पग एक साथ चलने से बन्धुत्व हो जाता है। रात प्रभुदास के घर पर बिताने के बाद प्रथम सूर्योदय के साथ दोनों मित्रों ने रात को बनाई योजना पर आगे विचार करना आरम्भ किया। रामरतन ने कहा - ‘भाई, हमारी फ़र्म का नाम होगा - मैसर्ज प्रभुदास रामरतन, कमीशन एजेंट्स।’
‘नहीं भाई, नाम होगा - मैसर्ज रामरतन प्रभुदास, कमीशन एजेंट्स। आप बड़े हैं, अधिक अनुभवी हैं। फ़र्म के नाम में आपका नाम पहले होना चाहिए।’
‘मैं आपकी भावनाओं की कद्र करता हूँ, परन्तु भाई! ऐसे कामों में भावुकता की बजाय बुद्धि से काम लेना अधिक उचित होता है। इलाक़े में आपका नाम चलता है। वैद्य के रूप में आपने बहुतों को नया जीवन दिया है। ज़मींदार लोग आपके नाम से ही अपनी फसल हमारी दुकान पर लाने लगेंगे।’
आख़िर रामरतन का सुझाव ही मान्य हुआ। बहुत थोड़े समय में ही इनकी दुकान क़स्बे की नंबर वन दुकान बन गई।
उधर प्रभुदास ने पंसारट के साथ-साथ कम्पनियों की एजेंसियों का काम भी शुरू कर दिया। उसके साफ़-सुथरे व्यवहार के कारण कोई भी नई कम्पनी अपने उत्पादों के लिए दौलतपुर में होलसेल एजेंसी देनी की सोचती तो सबसे पहले उनकी पसन्द प्रभुदास ही होते। इस प्रकार प्रभुदास का कारोबार नई-नई बुलन्दियाँ छूने लगा। पैसे की बरसात होने लगी। उसने मंडी के पूर्वी दरवाज़े के बाहर थोड़ी दूरी पर सड़क से लगती चार एकड़ ज़मीन ख़रीद ली।
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प्रभुदास चाहे घर में सबसे बड़ा था, लेकिन दमयंती के आठवीं पास करते ही उसके विवाह की चर्चा घर में होने लगी। उन दिनों लड़कियों को पढ़ाने का प्रचलन नहीं था। गाँवों में तो लड़कियों के स्कूल भी नहीं होते थे। दमयंती को लड़की होने के बावजूद पढ़ने का अवसर मिला था तो इसका श्रेय इनके पिता को जाता है, जो गाँव में रहते हुए भी गाँधी जी के विचारों से प्रभावित थे। गाँव का नंबरदार होने के नाते अक्सर उनका शहर आना-जाना लगा रहता था और उन दिनों शहर में आज़ादी के आन्दोलन की बातें ही बातचीत का मुख्य मुद्दा हुआ करती थीं। नंबरदार ने स्त्री-शिक्षा को लेकर गाँधी जी के विचार सुने थे - ‘जहाँ तक स्त्री शिक्षा का सम्बन्ध है, मैं निश्चयपूर्वक नहीं कह सकता कि यह पुरुषों की शिक्षा से भिन्न होनी चाहिए या नहीं और इसकी शुरुआत कब होनी चाहिए। लेकिन मेरी पक्की राय है कि स्त्रियों को भी पुरुषों के समकक्ष शिक्षा-सुविधाएँ मिलनी चाहिएँ और जहाँ आवश्यक हो वहाँ उन्हें विशेष सुविधाएँ भी दी जानी चाहिएँ ….. शिक्षा स्त्री के सोये आत्मविश्वास को जगाएगी। …… स्त्री-शिक्षा का अभाव होने के कारण ही समाज में स्त्री-पुरुष असमानता, पर्दा-प्रथा, दहेज-प्रथा, तलाक, बाल-विवाह तथा वेश्यावृत्ति जैसी कुरीतियाँ फैली हुई हैं। यदि नारी शिक्षित होगी तो वह इन समस्याओं, इन कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए तथा इनका सामना करने में सक्षम होगी।’ इसीलिए पार्वती के विरोध को दरकिनार करके उन्होंने दमयंती को स्कूल भेजा था।
प्रभुदास चाहता था कि दमयंती कम-से-कम दसवीं तो ज़रूर करे, किन्तु पार्वती और उसके भाइयों ने प्रभुदास की यह इच्छा पूर्ण न होने दी और दमयंती की पन्द्रहवें साल में ही डोली विदा कर दी गई। लेकिन दसवीं पास करने के बाद आगे की पढ़ाई करने के लिए प्रभुदास ने चन्द्रप्रकाश को शहर भेजा। स्कूल में चन्द्रप्रकाश के मन में पढ़ाई के प्रति तथा समाज में जागृति लाने का जो बीजारोपण हुआ था, उसको पुष्पित-पल्लवित होने का खाद-पानी कॉलेज में मिला। उसने प्रचारक बन समाज में व्याप्त कुरीतिओं के विरुद्ध जन-जागरण का संकल्प लिया। दमयंती के विवाह के बाद पार्वती ने प्रभुदास पर विवाह का दबाव बनाना शुरू किया। प्रभुदास साल दो-साल रुकना चाहता था, परन्तु साल बीतते-बीतते उसके मामा ने उसके भी सात फेरे करवा दिए। दमयंती के विवाह के बाद से पार्वती को अकेलापन महसूस होने लगा था। अब तक बच्चों के लालन-पालन में व्यस्त रही पार्वती को जीवनसाथी के अभाव में जीवन व्यर्थ लगने लगा था। लेकिन प्रभुदास के विवाह के उपरान्त बहू के घर की दहलीज़ लांघने के साथ ही न केवल उसका अकेलापन दूर हुआ, बल्कि सुशीला का साथ भी उसे भाने लगा। घर ख़ुशियों से महकने लगा।
सुशीला नाम की ही सुशीला नहीं थी, घरबार सँभालने में भी पूर्णतः दक्ष थी। शीघ्र ही उसने दैनंदिन के सभी उत्तरदायित्व सँभाल लिए। पार्वती को यह सब बहुत अच्छा लगने लगा। रात के सन्नाटे में कभी-कभी वह सोचती, यदि आज प्रभु के बापू ज़िन्दा होते तो स्वयं को कितना भाग्यशाली समझते!
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