Mere Ghar aana Jindagi - 27 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | मेरे घर आना ज़िंदगी - 27

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मेरे घर आना ज़िंदगी - 27



(27)

नंदिता के पापा मुस्कुरा रहे थे। नंदिता को समझ नहीं आया कि बात क्या है। उसने कहा,
"क्या बात है पापा ?"
उसके पापा ने कहा,
"देखो कौन आया है ?"
नंदिता ने आगे बढ़कर देखा। उसके पापा के पीछे दो सीढ़ियां नीचे उसकी मौसी और मौसा खड़े थे। नंदिता अपनी मौसी के गले लग गई। उन्हें अंदर लाकर लॉबी में बैठाया। उसके बाद मकरंद को बुलाकर लाई। मकरंद ने उसके मौसा मौसी के पैर छुए। नंदिता के मौसा मकरंद से उसकी नौकरी के बारे में बातें करने लगे। उसकी मौसी बड़े ध्यान से इधर उधर देख रही थींं। नंदिता के पापा ने कहा,
"चलो सब लोग नीचे चलकर बैठते हैं।"
नंदिता ने भी सहमति जताई। उसकी मौसी ने कहा,
"अरे कुछ देर यहाँ ठहरते हैं। देखूँ तो सही कि मेरी भांजी ने कैसी गृहस्ती बसाई है।"
यह कहकर वह पूरा घर देखने लगीं। सब देखने के बाद बोलीं,
"ज्यादा फर्नीचर नहीं लिया है तुमने।"
नंदिता अपनी मौसी को जानती थी। वह मुंहफट किस्म की थीं। कुछ भी बोल देती थीं। इसलिए वह चाहती थी कि सब नीचे जाकर बैठते। पर उसकी मौसी ने मना कर दिया। नंदिता को चुप देखकर उसकी मौसी ने कहा,
"मकरंद का परिवार तो है नहीं जिनका सहारा मिल जाता। अपने दम पर सामान जोड़ना भी तो आसान नहीं है। अब तुम्हारे मम्मी पापा ने सहारा दिया है तो सामान भी जुट जाएगा।"
मकरंद को बात चुभ गई। पर वह चुप रहा। कहता भी क्या। बात तो सच थी कि वह नंदिता के मम्मी पापा के घर रह रहा था। बात आगे ना बढ़ जाए इसलिए नंदिता के पापा ने कहा,
"चलो अब नीचे चलो। तुम्हारी बहन अकेली है।"
नंदिता ने कहा,
"हाँ मौसी नीचे चलकर बात करते हैं। मम्मी हम लोगों का इंतज़ार कर रही होंगी।"
सब नीचे जाने लगे। मकरंद अपनी जगह बैठा था। नंदिता के पापा ने कहा,
"बेटा तुम भी चलो।"
"पापा आप लोग चलिए। मैं थोड़ी देर में आता हूँ।"
नंदिता के पापा ने ज़ोर नहीं दिया। उन्हें पता था कि मकरंद को बुरा लगा है। सब नीचे चले गए।
मकरंद अपने बेड पर जाकर लेट गया। नंदिता की मौसी का तंज़ उसे बहुत चुभा था। उन्होंने उसकी काबिलियत पर संदेह किया था। उनकी बात का एक ही मतलब था कि मकरंद अपने दम पर अपनी गृहस्ती चलाने के लायक नहीं है। उसे सदैव इस बात का खयाल रहता था कि अपनी ससुराल में इस तरह रहे कि किसी को कुछ कहने का मौका ना मिले। इसलिए बार बार नंदिता को समझाने की कोशिश करता था कि हम भले ही यहाँ रह रहे हैं पर अपना भार तुम्हारे मम्मी पापा पर नहीं डालना चाहिए। पर वह इस बात को समझ ही नहीं रही थी।
वह सोच रहा था कि अब तक तो उसके सास ससुर ने कुछ नहीं कहा है। उसे पूरा सम्मान दिया है। पर अगर इसी तरह चलता रहा तो हो सकता है कि कल वह भी उसे सुनाना शुरू कर दें। उसने सोचा कि आज वह इस विषय में नंदिता से खुलकर बात करेगा। उसे नीचे जाना था पर उसका मन नहीं कर रहा था। वह अब नंदिता की मौसी का सामना नहीं करना चाहता था। इसलिए चुपचाप लेटा था।

आधे घंटे से भी अधिक हो गया था पर मकरंद नीचे नहीं आया था। नंदिता समझ गई थी कि मौसी की बात ने उसे चोट पहुँचाई है। इसलिए वह नीचे नहीं आ रहा है। पर वह चाहती थी कि कुछ देर के लिए मकरंद नीचे आ जाए। नहीं तो मौसी को बातें बनाने का मौका मिलेगा। वह सोच रही थी कि एक तरफ जाकर मकरंद को फोन करे तभी उसके मौसा ने कहा,
"नंदिता....मकरंद नीचे नहीं आया। हम सब उसका इंतज़ार कर रहे हैं। जाओ उसे बुलाकर लाओ।"
नंदिता ने कहा,
"जाकर देखती हूँ। शायद कोई ज़रूरी फोन आ गया होगा।"
यह कहकर नंदिता ऊपर चली गई।

जब नंदिता ऊपर पहुँची तो मकरंद अभी भी चुपचाप लेटा हुआ था। उसे देखकर बोला,
"मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही है‌। मैं नीचे नहीं आ पाऊँगा। तुम नीचे जाकर बैठो।"
नंदिता जानती थी कि बिना मकरंद को लिए गई तो बात और बढ़ जाएगी। उसने कहा,
"अचानक क्या हो गया ? पहले तो ठीक थे।"
मकरंद को उसका इस तरह पूछना बुरा लगा। उसने कहा,
"तुमको क्या लग रहा है कि मैं नाटक कर रहा हूंँ।"
"मैंने ऐसा तो नहीं कहा। पर तुम जानते हो कि मेहमान आए हैं। तुमसे मिलने ऊपर तक आए थे। अब तुम नीचे नहीं आओगे तो मम्मी पापा को बुरा लगेगा।"
नंदिता ने सोचा कि शायद उसकी इस बात का असर हो। पर मकरंद वैसे ही लेटा रहा। उसने एकबार फिर समझाया,
"थोड़ी देर के लिए चले चलो। फिर मैं खुद कह दूँगी कि जाकर आराम करो। उठो मम्मी पापा के लिए कुछ देर नीचे चलकर बैठो।"
मकरंद यह सुनकर चिढ़ गया। वह सोच रहा था कि नंदिता जानती है कि उसकी मौसी ने उसे ताना मारा है। उसका दिल दुखाया है। पर वह उसके बारे में नहीं सोच रही है। उसे सिर्फ अपने मम्मी पापा की फिक्र है। उसने कहा,
"तुम्हें मम्मी पापा की फिक्र है। मेरी बिल्कुल भी नहीं। मैं नहीं आऊँगा। तुम्हारी मर्ज़ी है तुम नीचे जाकर कैसे मैनेज करो।"
मकरंद करवट बदल कर लेट गया। नंदिता परेशान सी खड़ी थी। तभी पीछे से उसके पापा की आवाज़ आई,
"क्या बात है मकरंद ? तुम नीचे क्यों नहीं आना चाहते हो ?"
मकरंद भी उनकी आवाज़ सुनकर उठ कर बैठ गया। नंदिता के पापा आगे आकर बोले,
"नंदिता ठीक तो कह रही है। नीचे मेहमान हैं। उनका खयाल तो करना पड़ेगा। फिर तुमको चलकर बैठना ही तो है। कोई काम तो करना नहीं है। थोड़ी देर के लिए आ जाओ। फिर वापस आ जाना।"
नंदिता के पापा यह कहकर चले गए। मकरंद को उनके बोलने का तरीका पसंद नहीं आया था। उन्होंने भी इस तरह आदेश दिया था जैसे कि उसकी मनःस्थिति से उन्हें कोई लेना देना नहीं है। पर वह कुछ कह सकने की स्थिति में नहीं था। वह बिस्तर से उठा। कपड़े बदले और नीचे जाकर बैठ गया।

नंदिता और मकरंद अगल बगल लेटे थे पर उनके बीच में बहुत दूरी थी। मेहमानों के जाने के बाद जब दोनों ऊपर आए तो उनके बीच खूब झगड़ा हुआ था। मकरंद नीचे तो चला गया था लेकिन किसी से बात नहीं कर रहा था। नंदिता के मौसा ने एक दो बार कोशिश की पर मकरंद ने कोई उत्साह नहीं दिखाया। खाना भी उसने बहुत कम खाया था। नंदिता बार बार सफाई दे रही थी कि मकरंद की तबीयत शाम से ही ठीक नहीं थी। लेकिन फिर भी उसकी मौसी ने चलते समय कह दिया कि लगता है मकरंद को लोगों से घुलना मिलना पसंद नहीं है। पर लोकाचार का खयाल तो रखना ही चाहिए। कोई आया है तो कुछ देर तो उसके साथ बातचीत की जा सकती है। बाकी आने वाला भी खाली तो नहीं है कि रोज़ रोज़ आएगा। नंदिता ने महसूस किया था कि उसकी मम्मी को भी उनकी बहन और बहनोई के सामने मकरंद का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा था।
मेहमानों के जाने के बाद मकरंद फौरन ऊपर आ गया था। नंदिता अपनी मम्मी की मदद के लिए रुक गई थी। तब उसकी मम्मी ने मौका देखकर नंदिता से कहा था कि उन्हें मकरंद का यह व्यवहार बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। उनकी अपनी बहन और बहनोई के सामने बेइज्जती हुई है। वह मकरंद को समझाए कि यह ठीक नहीं था। नंदिता को खुद भी मकरंद का व्यवहार अच्छा नहीं लगा था। उसका सोचना था कि भले ही उसे मौसी की बात बुरी लगी थी पर उसके मम्मी पापा का खयाल करना चाहिए था। ऊपर आते ही नंदिता ने शिक़ायत की और उन दोनों के बीच झगड़ा हो गया।

नंदिता और मकरंद के झगड़े की आवाज़ें नीचे तक गई थीं। नंदिता की मम्मी ने ऊपर आकर झगड़ा बंद करवाना चाहा था। पर उसके पापा ने उन्हें रोक दिया। इस समय दोनों पति पत्नी इसी विषय में बात कर रहे थे। नंदिता की मम्मी ने कहा,
"मकरंद का स्वभाव ऐसा होगा मैंने सोचा भी नहीं था। कुछ तो लिहाज़ करना चाहिए था उसे।"
नंदिता के पापा ने गंभीरता से कहा,
"इसलिए शादी से पहले मैं रिश्ते के लिए तैयार नहीं था। यही फर्क होता है। उसका अपना कोई रहा नहीं इसलिए वह रिश्ते निभाना नहीं जानता है। माना कि उसे बात बुरी लग गई थी पर हमारे बारे में सोचकर सह जाता। वह तो नीचे आने को तैयार नहीं था। बेचारी नंदिता मना रही थी और वह करवट किए आराम से लेटा था। मैंने जब सख्ती से कहा तब नीचे आया। लेकिन नीचे भी वही तेवर दिखा रहा था।"
दोनों पति पत्नी कुछ देर चुप रहे। कुछ देर में नंदिता की मम्मी ने कहा,
"अब नंदिता ने ज़िद करके शादी कर ली थी तो कर क्या सकते थे। इसलिए मैंने सोचा था कि दोनों को साथ रखते हैं। हम अपनी बेटी का खयाल रख सकेंगे। लेकिन वह तो इस बात का भी लिहाज़ नहीं कर रहा है कि इतना बड़ा पोर्शन रहने को दिया है। इतनी मदद हो रही है उसकी।"
"क्या करोगी ? अब जैसा भी है झेलेंगे। कम से कम बेटी साथ रहेगी तो उसकी चिंता नहीं रहेगी। फिर बच्चा भी तो होने वाला है।"
नंदिता की मम्मी को अब अपनी बेटी की ज़िंदगी की फिक्र हो रही थी।