कुणाल और उसकी मां को लापता हुए लगभग डेढ़ महीने हो गए थे। इस बीच जावेद और उसके दो दोस्त मारे जा चुके थे। एक लिली बची थी जो फ़िलहाल लोगों के लिए लापता ही थी,लेकिन वो जिंदा थी। घाटी में मौत का खौफ इन दिनों कुछ कम हो गया था।
ठिठुरती ठंड दस्तक दे रही थी। जीवन एक लय में फ़िर से शुरू हो गया था। अखिलेश जी भी इन दिनों सामान्य दिनचर्या में जी रहे थे। अपने काम पर ध्यान देना शुरू किया था उन्होंने। आख़िर डेढ़ महीने बीत गए थे और अब तक वे सकुंतला जी को तलाश नहीं पाए थे। पुलिस भी इन मामलों में बेहद धीमा काम करते है। उन्होंने (पुलिस ने ) तो ये तक मान लिया था कि सकुंतला जी अपनी इच्छा से किसी के साथ भाग गई है।
लेकिन एक रात कुछ अजीब हुआ। उस दिन ठंड तो थी ही उपर से मौसम भी काफ़ी ख़राब हो रहा था। रह रह कर तूफ़ानी हवाएं लोगों के घरों में दस्तक दे रही थी। ये रात का वक्त था जब अखिलेश बर्मन जी के हवेली के बाहर एक बेहद पुरानी खटारी सी गाड़ी आकर रूकी। ड्राइवर की सीट से एक अधेड़ बाहर निकले और उन्होंने अखिलेश जी को तलाशा। अखिलेश जी जब बाहर आए तो उनके होश ही उड़ गए अधेड़ आदमी के साथ उस गाड़ी में सकुंतला जी और उनका बेटा कुणाल भी था। कुणाल तो ठीक ठाक ही था, लेकिन सकुंतला जी को देखकर लग रहा था जैसे वो मरणासन्न पर थी। बेहद कमज़ोर हो गई थी वे, आंखें अंदर की तरफ धसी हुई, होठों पर पपड़ियां जम गई थी। वे कुछ नहीं बोली कुणाल को लेकर सीधे अपने कमरे में चली गई। उनका बर्ताव ऐसा था,जैसे वो अपने बेटे के साथ कुछ घंटो के लिए पार्क में टहलने गई थी और अब अपने घर लौट आयी हो। जैसे उनका इतने दिनों तक गायब रहना कोई बड़ी बात ही ना हो। वो कहां जानती थी उनके पीछे अखिलेश जी ने ना जाने क्या क्या सहा था। पत्नी और बेटे की जुदाई का ग़म तो था ही लेकिन ये समाज, ये समाज भी कहां हजम कर पाया था ये बात की एक स्त्री घर से सिर्फ अपने बच्चे की सलामती की वजह से भाग गई हो। लोग बातें बना रहे थे उनकी पत्नी को बेहया और अखिलेश जी को नामर्द साबित करने पर लगे हुए थे। ख़ैर अखिलेश जी ने एक चैन कि सास ली।
अखिलेश जी को उस अधेड़ ने बताया कि लगभग डेढ़ महीने पहले ये औरत यानी कि सकुंतला जी उनके पास लगभग रोते भागते हुए आई थी। उन्होंने बताया :- "मेरा घर उसी पुरानी फैक्ट्री के पास ही है,जहां एक समय में आग लग गई थी और सबकुछ जलकर तबाह हो गया था। घर में मैं और मेरी पैरालाइसिस पत्नी रहते है। ये जब हमारे घर आयी तो इसके साथ एक बच्चा था जिसकी हथेलियां पूरी तरह जली हुई थी,लेकिन अजीब बात तो ये थी कि उसकी जली हुई हथेलियों में नमक लगा हुआ था। हमने जल्द ही बच्चे के हाथो को पानी से धोया और आपकी पत्नी को किसी तरह चुप करवाया। पहले तो मुझे लगा बच्चा शायद गूंगा है इसलिए तो इसके रोने कि आवाज़ नहीं आ रही लेकिन बाद में मैंने गौर किया बच्चा तो रो ही नहीं रहा था।
ख़ैर उस दिन से आपकी पत्नी हमारे ही साथ थी। उसने एक दुखभरी कहानी हमें सुनाई और मेरी पत्नी को उसपर दया आ गई। तब से ये हमारे साथ थी। मुझे भी लगा कि मेरी पत्नी का ख़्याल ये मुझसे बेहतर रख पाएगी। कुछ दिन तो सब ठीक रहा। उसकी बातों से मैं समझ गया था ये आपकी पत्नी है लेकिन चूंकि वो घर लौटना नहीं चाहती थी इसलिए मैंने भी ज्यादा ज़ोर नहीं दिया। कहीं न कहीं इसमें मेरा भी फ़ायदा था। सबकुछ ठीक था लेकिन आज शाम आपकी धर्मपत्नी ने मेरी पत्नी को एक डंडे से मारकर उसका बुरा हाल कर दिया। पहले तो मैं अपनी पत्नी को लेकर डॉक्टर के पास ही गया था वहां से लौटकर सबसे पहले आपकी पत्नी को यहां ले आया। दरसल आज दोपहर आपका बेटा मेरी पैरालाइसिस पत्नी के पास खेल रहा था जब गलती से मेरी पत्नी के दाहिने हाथों से लगकर पानी का जग नीचे गिर गया, और वो जग कुणाल के पैर में ही जा गीरा था जिससे उसके पांव में हल्की चोट आयी थी। बस फ़िर क्या था आपकी पत्नी ने आव देखा ना ताव डंडे से मेरी पत्नी पर वार करने लगी। देखिए अखिलेश जी मुझे पक्का यकीन है आपकी पत्नी की मानसिक हालत बेहद जटिल हो गई है। आप एक बार इनका इलाज़ अच्छे से करवाइए।"
इतना बोलकर वो आदमी दनदनाते हुए वहां से बड़ी जल्दी ही निकल गए। उनके लहज़े से ही मालूम चल रहा था वे सकूंतला जी से खासा नाराज़ थे। अखिलेश जी भी कमरे कि तरफ़ चल पड़े। मन ही मन वे सोच रहे थे कि कल सुबह ही वे उस अधेड़ के घर को तलाश कर उनकी पत्नी का इलाज़ किसी अच्छे हॉस्पिटल में करवाएंगे और उनसे माफ़ी मांग आएंगे। अखिलेश जी को अब भी लग रहा था सकुंतला मानसिक पागल नहीं बल्कि बेटे के प्यार में पागल थी। काश उन्होंने उस आदमी की बातों को मान लिया होता।
ख़ैर बर्मन विल्ला में सभी कुणाल के लौट आने पर ख़ुश थे। लेकिन अखिलेश जी उनकी पत्नी के लौटने पर अधिक ख़ुश थे। वक़्त फ़िर बीतने लगा, इस बीच अखिलेश जी ने गौर किया सकूंतला जी कुणाल की फ़िक्र में तो रहती है, लेकिन अब वो उसका ध्यान कुछ कम ही रखती है। उसके बाल नहीं बनाती, खाना भी कभी खिलाती कभी नहीं खिलाती। वे अजीब तरीके से ख़ुद में ही व्यस्त रहने लगी थी। कभी किसी कोने में बैठी रहती,कभी छत पर अकेले खड़ी रहती। हा लेकिन जब भी कुणाल को कहीं से चोट लगती और इसकी भनक उन्हें लगती तो जैसे वो नींद से जागती हो, वे बिना कुछ सोचे समझे लोगों पर हाथ उठाने लगती। दिन ऐसे ही बीत रहे थे।
लेकिन एक दिन तड़के सुबह ही बर्मन विले में दस्तक हुई। इस वक़्त तो सारे चौकीदार भी इधर उधर बैठे ऊंघ रहे थे। घर के बाहर फ़िर कोई बुजुर्ग खड़े थे। उनकी झक सफ़ेद लंबी दाढ़ी थी। कंधे पर कपड़े का एक झोला लटका था, आंखों में दिव्य चमक और चेहरे में उत्सुकता। उनके हाथो में एक किताब भी थी, किताब का नाम "श्राप" था। अजीब बात थी वे अखिलेश जी से नहीं बल्कि कुणाल से मिलना चाहते थे।
लेकिन इस से पहले की वे कुणाल से मिल पाते। बर्मन विले में आज कुछ बेहद बुरा हो गया। ये भोर का वक़्त था। सकुंतला जी फिर एक बार कमरे से गायब थी। अक्सर ही रहा करती थी आजकल। अखिलेश जी ने देखा कुणाल भी अपनी मां को ढूंढ रहा था। तुतलाती आवाज़ में वो मां को अच्छे से पुकार लेता है। अखिलेश जी कुणाल को लेकर छत कि तरफ़ बढ़ने लगे। आजकल सकुंतला जी ज्यादातर छत पर ही बैठी रहती थी, पूछने पर बोलती वे छत पर बैठकर तारों से बात करती है उन सितारों में एक उनकी मां है ना। वो वहीं थी छत के एक कोने में बैठी शून्य आंखों से आसमान की तरफ़ तंकती। अखिलेश जी ने कुणाल को अपने गोद से नीचे उतारा और ख़ुद भी सकुंतला जी के करीब बैठ गए। कुणाल छत पर इधर उधर खेलने लगा।
विशाल हवेली के विशाल से छत के ऊपर भी दो कमरों का एक सर्वेंट हाउस था जिसके छत पर जाने के लिए लोहे की सीढ़ियां बनी थी। अखिलेश जी ने देखा कुणाल धीरे धीरे लोहे की सीढ़ियों पर चढ़ रहा है, वो खेलने में मगन है और उनकी पत्नी आसमान को निहार रही है। वे वहां से उठकर कुणाल को आवाज़ देने लगे,वे जानते थे अगर कुणाल ज्यादा ऊंचाई पर चला जाए और गिर जाए तो उसे गंभीर चोट लग सकती थी, वो मर भी सकता था। वे उसे रोकने ही तो जा रहे थे, लेकिन तभी उनके भीतर जैसे कोई शैतान जाग गया हो। उन्होंने मुड़कर अपनी पत्नी को देखा और ख़्याल आया कितना सुकून था उस वक़्त जब कुणाल नहीं था। उनकी पत्नी दिन हो या रात हमेशा उनके पीछे पीछे ही घूमा करती थी। लेकिन अब क्या हाल बना दिया है इस एक असामान्य बच्चे ने उन दोनों के रिश्ते की। क्या होगा अगर आज कुणाल मर ही जाएं तो, एक अंतहीन चिंता हमेशा के लिए ख़तम हो जाएगी। सकुंतला जी के भीतर से मां की मौत होगी और उनकी पहले वाली पत्नी वापस आ जाएगी। इस अजीब से बच्चे के साथ आख़िर उन दोनों का भविष्य भी क्या था..? हमेशा वे दोनों उस बच्चे के हिस्से के दर्द को झेलते आ रहे है। कैसा तो बेदर्द बच्चा था वो। बड़े से बड़े जख्म पर भी रोता नहीं। अच्छा हो अगर आज हमेशा के लिए वो शांत हो जाएं। ये अजीब से विचार आज उनके दिमाग पर हावी हो रहा था। कभी उनका पिता मन इन विचारों पर उन्हें धिक्कार भी रहा था तो कहीं वे बस एक पति और एक पुरुष बनकर सोच रहे थे।
कुणाल अब भी लगातार ऊंचाई पर जा रहा था। एक पल के लिए भी इस वक़्त अगर सकुंतला जी की नज़र कुणाल पर पड़ती तो शायद सबकुछ बदल सकता था। लेकिन उनकी तंद्रा तो तब टूटी जब धप...!! की एक ज़ोरदार आवाज़ छत पर गूंज गई। ये आवाज़ इतनी ज़ोरदार थी कि बाहर मुख्य दरवाज़े पर इंतजार करते बुजुर्ग ने भी साफ़ साफ सुनी। उन्हें आभास हो गया, जिस अनर्थ को रोकने वे इतनी दूर से यहां आए थे वो घट चुका था। विनाश की शुरुआत बस अब होने ही वाली थी।
लगभग दो से तीन सीढ़ियां ही चढ़ी होंगी अखिलेश जी ने जब उपर की सबसे आख़िरी सीढ़ी से नीचे कूद गया था कुणाल। और उसे कूदते हुए अखिलेश जी ने साफ़ देखा था। वे चाहते तो उसे रोक सकते थे, लेकिन वैसा किया नहीं था उन्होंने।
टाइल्स लगे छत पर अब खून फैलने लगा था। बे आवाज़ ही पैदा हुआ वो बच्चा बे आवाज़ ही आज मारा गया था। कौन जानता था, वो अपनों से एक बार और ठगा गया था। ना जाने उसकी मौत अब कौन सी तबाही लाएगी।
क्रमश :- Deva sonkar