जैसे ही कमरे का दरवाज़ा खुलता जा रहा है। हवा में तैरती किताबें वापिस अपनी जगह पर आ रही है । शुभांगी पसीना-पसीना हों रही है । अब ज़रूर कोई अंदर आकर उसे मार डालेगा । मगर कौन ? उसने किसका क्या बिगाड़ा है। क्लॉस का दरवाज़ा पूरी तरह खुला और सामने खड़े कॉलेज के कर्मचारी को देख उसकी सांस आई । तुम यहाँ क्या कर रही हों? और दरवाज़ा कैसे बंद हो गया? भैया, हवा चली और दरवाज़ा बंद हों गया। उसके मुँह से आवाज़ नहीं निकल रही है । जाम होना तो नहीं चाहिए था वैसे । अब जल्दी सेमिनार रूम पहुँचो सभी स्टूडेंट्स वहाँ पर है । कॉलेज के चेयरमैन ने एक मीटिंग रखी है। जल्दी जाओ । कर्मचारी ने जैसे ही उसे यह बताया तो वह अपनी किताबें उठाकर बाहर जाने को भागी । अरे ! रुको यह किताब भी लेती जाओ तुम्हारी है न ? उसने किताब देखी पॉल एंडरसन की किताब देख उसका सिर चकरा गया । यह कित्ताब तो उसने लाइब्रेरी में ही छोड़ दी थीं । मगर उसे बिना कुछ कहे काँपते हाथों से कित्ताब पकड़ ली और बाहर की तरफ भागी। हो न हो यह सब कुछ इन्हीं की वजह से हो रहा है । मैं अभी जाकर उन तीनों को मना कर देती हूँ, कुछ भी हों जाएँ, मैं खुद ही कोई दूसरा टॉपिक ढूँढ लूँगी। कम से कम अजीब तरह की चीज़ें होनी तो बंद हो जाएँगी ।
वह सेमीनार रूम में पहुँची और पीछे वाली कुर्सी पर बैठ गई । मगर उसका दिल अब भी ज़ोर से धड़क रहा है । तभो प्रिंसिपल ने बोलना शुरू किया आप सभी को हमें यह बताते हुए खुशी हो रही है कि हम इस बार अपने फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स को फेलोशिप के लिए विदेश भेजेंगे । अगर सायकोलॉजी के स्टूडेंट्स आगे मास्टर्स में लाइफ स्किल्स करना चाहे तो उन्हें विदेश में पढ़ने के लिए भेजा जाएगा। सारा खर्चा कॉलेज प्रशासन उठाएँगा। मगर आपको फाइनल सेमेस्टर में खुद को साबित करना होगा आपके पेपर्स, थ्योरी, प्रोजेक्ट वर्क सब में आप फर्स्ट थ्री रैंक्स में होने चाहिए । इतना सुनते ही पूरा हॉल तालियों से गूँज उठा । सारे स्टूडेंट्स के चेहरे ख़ुशी से खिल उठे। प्रिंसिपल यह कहकर चले गए पर रिया, विशाल और अतुल शुभांगी के पास आकर कहने लगे, "यह सब किस्मत से मिलता है । हम सबके पेपर्स अच्छे गए है, बस अब यह आखिरी सेमेस्टर का प्रोजेक्ट वर्क निकल जाए तो हम चारो ही फर्स्ट थ्री रैंक्स में आ सकते हैं । विशाल ने चहकते हुए बताया । शुभांगी कुछ रुककर बोली, मुझे नहीं लगता मैं अब तुम लोगों का साथ दे पाऊँगी । में अकेले ही दूसरा कुछ देखती हूँ । क्यों, अब क्या हुआ ? अरे ! यार इस लड़की को कोई समझाए ज़िन्दगी ऐसे मौके सबको नहीं देती । आखिर बताओ तो सही क्या हुआ ? अतुल ने भी पूछा । शुभांगी ने कल से लेकर आज तक की सारी बात बता दीं । यार ! यह तेरा वहम भी हो सकता । रिया ने कहा । तो यह बुक कल लाइब्रेरी में थीं । आज क्लॉस में कैसे पहुंच गई । दरवाज़ा का बंद होना, हवा में बुक का तैरना, लाइट जाना यह सब क्या है ? शुभांगी चिल्लाकर बोली ।
हो सकता है, कोई और भी उस बुक को पढ़ रहा हो। जैसे तुमने बताया कि क्लॉस में और भी बुक्स थीं । दरवाज़ा जाम हो गया होगा । स्पोर्ट्स रूम का दरवाज़ा भी जाम था और लाइट तो अभी पूरे कॉलेज की गई थीं और रहा सवाल किताबों का हवा में तैरना तो अभी तुमने ही कहा है कि हवा चल रही थीं । फिर उड़ गई होंगी । जो भी है, लाइब्रेरी में भी कल यही हुआ था । शुभांगी अब भी अपनी बात दोहराएँ जा रही है। विशाल ने सिर पकड़ लिया। एक काम करते है, आज सब शाम तक लाइब्रेरी में रहते है। अगर ऐसा कुछ हुआ तो हम तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे तुम पीछे हट सकती हो और हम तीनों फ़िर सोच लेंगे कि हमें क्या करना है। कम से कम तुम्हारे इस नाटक से हमारी जान छूटेगी। विशाल की बात सबको सही लगी। मैं कोई नाटक नहीं कर रही हूँ। फ़िर भी तुम्हें लगता है, तो ठीक है। आज चलना सब । जब तक लाइब्रेरी बंद नहीं होगी। तब तक वहीं रहेंगे । सब जाने को तैयार हो गए ।
लाइब्रेरी में पहुँचते ही उसने बुक के बारे में पूछा और पूछने पर पता चला कि बुक तो वही है । इसका मतलब कोई और उस बुक को पढ़ रहा होगा । शुभांगी को थोड़ी राहत महसूस हुई । शाम के पाँच बज गए । रिया अपने बॉयफ्रेंड सागर से बात करने लगी। अतुल और विशाल भी मोबाइल पर किसी गेम मैं लगे हुए हैं । शुभांगी यहाँ-वहाँ देख रही हैं । अगर वो गलत साबित हुई तो भी अच्छा है और अगर वो सही निकली तो इस प्रोजेक्ट वर्क से निकलना और भी अच्छा होगा । तभी अतुल बोला, यार! न हवा चल रही है न किताबें हिल रही है । अब बताओ क्या करे । विशाल ने हँसते हुए कहा हम ही किताबों को इधर-उधर कर टाइम पास कर लेते है । तभी मेम ने उन्हें लाइब्रेरी से जाने के लिए कहा । वे सब उठकर बाहर आ गए । शुभांगी अब तो तुम्हें पता चल गया न कि वे सारी बातें तुम्हारा भ्रम थी । फिर भी अगर तुम्हारा मन नहीं है तो हम तुम्हें फाॅर्स नहीं करेंगे । तुम अकेले कुछ और कर सकती हो और अगर हमारे साथ आना है तो कल ठीक सुबह सात बजे अपने घर के बाहर वाली रोड पर मिलना । हम पाँच मिनट तक तुम्हारा इंतज़ार करेंगे, फ़िर अपनी मंज़िल की और निकल जायेगे। विशाल ने शुभांगी की आँखों में देखते हुए कहा । अतुल और रिया भी कुछ नहीं बोले और तीनों ख़ामोशी से चले गए । शुभांगी धीरे-धीरे कदमो से घर आ गई ।
माँ उसके लिए जाने का बैग निकल रही है । मगर उसने मना कर दिया । उसे नहीं पता है कि उसे जाना भी है या नहीं । उसने अपना लैपटॉप ऑन किया और कुछ ढूँढने लगी । क्या पता उसे कोई और स्टोरी मिल जाए । जिसे वह टॉप थ्री रैंक्स में आ जाए । मगर ऐसा कुछ हाथ न लगा जो उसे विदेश में पढ़ाई करने का मौका दे सकता है । वह नहा धोकर जब खाने के लिए पहुँची, तब माँ ने उसका उदास चेहरा सवाल किया । क्या हुआ? बेटा ? कॉलेज में सब ठीक तो है? उसने माँ को सेमिनार रूम की बात बताई । सुनते ही माँ खुश हों गई । यह बहुत बढ़िया बात है । तुम्हें पूरी कोशिश करनी चाहिए । इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता। तुम्हारे पापा ने जो प्रॉपर्टी खरीदी रखी थीं उसी के किराए से हमारा घर चलता है। मैं तो तुम्हें कभी विदेश पढ़ने के लिए भेज ही नहीं सकती । मेरे पास तो इतने पैसे ही नहीं है । माँ ने मायूस होते हुए कहा । माँ आप उदास क्यों होती है । मुझे कुछ नहीं चाहिए । मैं सब अपने आप मैनेज कर लूँगी । वैसे भी पापा ने हमारे लिए जो छोड़ा है, वहीं हम दोनों के लिए बहुत है। आप चिंता मत कीजिये। सब ठीक हो जायेगा । उसने माँ के हाथ के ऊपर हाथ रखते हुए कहा ।
अगले दिन सुबह सात बजे विशाल अपनी जीप लेकर शुभांगी के घर के बाहर की सड़क पर पहुँच गया । रिया के साथ सागर है । विशाल के साथ अनन्या है । वे लोग बहुत खुश है । मुझे नहीं लगता कि शुभांगी आएगी । हमें अब चलना चाहिए । वहाँ पहुँचने में भी समय लगेगा फिर वहाँ से हमें नैनीताल भी जाना है । अतुल ने कहते हुए जीप को स्टार्ट किया और जाने को हुए। तभी रिया शुभांगी हाथ में बैग लिए नज़र आ गई । लो आ गई मैडम । शुभांगी के जीप में बैठते ही रिया बोल पड़ी । अब सब भूल जा और फ्री माइंड से हमारे साथ एन्जॉय कर । काम भी करेंगे और मज़े भी लेंगे उसने सागर को देखते हुए कहा । क्यों नहीं । शुभांगी उसका इशारा समझ गई । जीप अपनी गति से चल रही है। अतुल ने गाने चला दिए । सब गा रहे हैं, बैठे-बैठे डांस कर रहे हैं । शुभांगी को अब लग रहा है कि वह शायद कोई बुरा सपना देख रही थी । जो अब खत्म हो चुका है । वह भी मस्त होकर गाने की धुन पर गुनगुना रही है । विशाल अनन्या की कमर में बाहे डाल रास्ते में से गुज़रते पेड़ पौधों को छू रहा है । चलो यार ! कुछ खा लेते है । थोड़ा हल्के भी हो जाते हैं । कहते हुए उसने जीप को रोक दिया सब नीचे उतर गए । सड़क से दूर खाने की छोटी सी दुकान देखकर रिया ने सबको वहाँ चलने के लिए कहा । सागर, विशाल , अतुल कही झाड़ियों में फ्रेश होने के लिए निकल गए और शुभांगी, रिया और अनन्या वहीं पास रखी चारपाई पर बैठ गई। मझे बाथरूम जाना है। अनन्या ने कहा । मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ । रिया उसे लेकर पास बने कच्चे पत्थर के बाथरूम में चली गई । और शुभांगी वहाँ अकेली बैठकर आसपास के वातावरण को देखने लगी । कितनी शांति है, यहाँ पर । दुकान पर दो-तीन लोग चाय पी रहे हैं ।
उसने देखा कि दुकान में एक कम उम्र का लड़का बैठा हुआ है, जो चाय और समोसे दे रहा है । भूख तो मुझे भी लगी है । पर सब आ जाए तो कुछ खा लिया जाए । तभी रिया और अनन्या वापिस आ गए । शुभांगी तुझे जाना है तो तू भी चली जा । दो-तीन घंटे और लग सकते है । हाँ, यार तू सही कह रही है । मैं भी चली जाती हूँ । शुभांगी बाथरूम जाने के लिए खड़ी हो गई । अंदर से टॉयलेट का दरवाज़ा बंद है । उसने बजाया मगर कोई आवाज़ न आने पर वह वहीं खड़ी हों गई । जब उसे लगा अंदर गया व्यक्ति ज़्यादा देर लगा रहा है तो वह बोल पड़ी, जल्दी कीजिये। उसे कुछ अजीब लगा कि अंदर बिलकुल सन्नाटा है, जैसे कोई न हों मगर दरवाज़ा बंद है । उसने इस बार ज़ोर से दरवाज़ा खटखटाया मगर इस बार पानी चलने की आवाज़ आई । उसे लगा अब कोई निकलने वाला है । मगर उसे महसूस हुआ कि कुछ उसके पैरो को गीला कर रहा है । नीचे देखा तो खून की लहर बाथरूम के अंदर से निकल रही है । उसने सबको बुलाया और कहने लगी कि अंदर किसी को चोट लग गई है, कुछ लोगों के साथ-साथ रिया और अनन्या सभी वहाँ आए । दरवाज़ा खोला गया । अंदर कोई नहीं है । कुंडी टूटी हुई है । अंदर तो कोई नहीं है, मैडम । लोग बोले, "बेकार में शोर मचाया, भैया अंदर से दरवाज़ा बंद था और खून भी आ रहा था। पर अंदर बिलकुल सूखा है, जैसे कोई था ही नहीं । खून का कतरा तक नज़र नहीं आया । शुभांगी कुण्डी टूटी हुई है, यार ! हमने भी ऐसे ही दरवाज़ा पकड़कर काम चलाया था । तू जा हम यही खड़े है । आप लोग भी जाओ भैया । रिया ने कहा ।
शुभांगी ने संभालते हुए बाथरूम में कदम रखा और दरवाज़ा पकड़ लिया । चल, अब कुछ खाते है । शुभांगी के बाहर आते ही रिया ने कहा और तीनों विशाल, अतुल और सागर की ओर जाने लगे । दुकान से चाय , समोसे , ब्रेड पकोड़ा और कचौड़ी मिल गई । चारपाई पर बैठकर हँसी मज़ाक करते हुए खाने लगे । तभी सागर रिया को हाथ पकड़ कुछ दिखाने के बहाने से ले गया । काफ़ी देर बीत जाने के बाद नहीं आया तो अतुल ने उन्हें फ़ोन किया । मगर फ़ोन मिल नहीं रहा है। ये लोग कहाँ रह गए विशाल ? देर हो रही है । अनन्या ने खीजते हुए कहा । आते ही होंगे। मैं देखकर आऊँ ? अतुल ने कहा । इन्हें चैन नहीं है । दो मिनट और देखते है । फ़िर वही चलेंगे । विशाल ने कहा। शुभांगी ने रिया को फ़ोन किया । मगर उसका फ़ोन भी नहीं मिला। तभी दो लोगो ने आकर बताया कि आपके दोस्त वहाँ गिरे पड़े हैं। सब उस और भागे।