Kahani Pyar ki - 32 in Hindi Fiction Stories by Dr Mehta Mansi books and stories PDF | कहानी प्यार कि - 32

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कहानी प्यार कि - 32

ओब्रॉय मेंशन में वैशाली और मनीष अपने कमरे में परेशान से इधर उधर घूम रहे थे...
" ये सब तुम्हारी वजह से हुआ है वैशाली... अब हम तो कहीं के नही रहे... जब एक महीना खत्म होगा तब हम घरवालों से क्या कहेंगे...! "
मनीष ने गुस्सा करते हुए वैशाली से कहा..

" वही जो तुम्हे पहले कह देना चाहिए था... मैंने तो पहले ही तुमसे कहा था की तुम्हारे भाई और इस अनिरुद्ध से पैसे मांग लो.. पर तुमने मना कर दिया.. तब पैसे मांगे होते तो ये नौबत नहीं आती समझे..."

" मैंने पहले भी कहा था और अब भी कह रहा हु की मैं भाईसाब और अनिरुद्ध से पैसे नहीं मागूंगा... ! मेरे भी कुछ उसूल है समझी... और वैसे भी जो करे वो भुगते... वो नही आए थे तुम्हे सलाह देने की तुम उस कंपनी में फैशन डिजाइनर के लिए जाओ.. तुम खुद गई थी ..."

" हा तो जाऊंगी ही ना.. तुम्हारी तरह बैठी तो नही रह सकती ना... ये इतना बड़ा ओब्रॉय मेंशन खोला उस अनिरुद्ध के बाप ने उसके जाने के बाद चलाया तुम्हारे भाईसाब ने .. पर तुमने उनके इशारे पर नाचने के अलावा और कुछ किया है क्या ? "

" डोंट यू डेयर वैशाली... तुम ऐसा कह भी कैसे सकती हो.. इस कंपनी को आगे लाने में हम सबने मेहनत की है.."

" ओह तो बताओ कंपनी के कितने शेयर्स तुम्हारे पास है..? "

यह सुनते ही मनीष एकदम चुप रहा..

" एक भी नही... तुम्हारी मेहनत के बदले उन्होंने तुम्हे क्या दिया बताओ..? "
वैशाली की बात सुनकर मनीष के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला... वैशाली मुंह बिगाड़कर वहा से चली गई और मनीष खामोश सा बेड पर बैठ गया... उसकी आंखो में आंसू आ गए...

मनीष को नही पता था की उनकी बात उनके अलावा और भी कोई सुन रहा था...
वैशाली के जाते ही अनिरुद्ध जो खिड़की के पास खड़ा यह सब सुन रहा था वो कमरे के अंदर आया..

" मनीष चाचू...! " अनिरुद्ध ने उनके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा..

" हा... " उन्होंने तुरंत अपने आंसू पौछते हुए कहा...

" क्या हुआ चाचू ...? कोई टेंशन है क्या ? "

" अरे ! नही नही बेटा... ऐसा कुछ नही है.. पर तुम यहाँ ? कोई काम था क्या ? "

" नही बस ऐसे ही आप से मिलने आ गया .."

" अच्छा किया.. ये बताओ.. मीटिंग कैसी रही तुम्हारी..? "

" अच्छी रही.. और यह सब आपकी वजह से.. आपने ही इस प्रोजेक्ट पर मेजर वर्क किया था.. और आपकी ही मेहनत से यह प्रोजेक्ट हमे मिला है..." अनिरूद्ध ने स्माइल करते हुए कहा..

" नही नही ऐसा कुछ नही है.. अनिरूद्ध.. ये तो सब की मेहनत है..."

" आप कितने अच्छे हो चाचू.. इतना सब होने बाद भी आप खुद के बारे में नही सोच रहे हो.. हमेशा आप दूसरों को अपनी मेहनत का क्रेडिट दे देते हो .. पर इस बार नही " अनिरुद्ध मन में सोचते हुए बोला..

" क्या सोच रहे हो अनिरुद्ध...? "

" नही कुछ खास नहीं... में आपको ऑफिस में मिलता हु अभी कुछ काम है .."

" हा जाओ बेटा..."
अनिरूद्ध के जाते ही मनीष फिर से उदास होकर बैठ गया..

अनिरूद्ध खिड़की से उन्हें देख रहा था..
" आपकी बात सुनकर में थोड़ा तो समझ ही गया हूं की आपको कौन सी बात परेशान कर रही है.. अब बस मुझे पूरी बात पता चल जाए फिर में आपको ऐसी सरप्राईज देने वाला हु की आपकी बची हुई परेशानी भी गायब हो जायेगी " इतना बोलकर अनिरुद्ध वहा से जाने लगा..

संजना इसी वक्त उस तरफ आ रही थी..

संजना जल्दबाजी में अनिरुद्ध को नही देख पाई और उसके साथ टकरा गई..
दोनो के सिर टकरा गए..
" आऊ.. क्या कर रही हो संजू..."

अनिरुद्ध ने माथे पर हाथ फेरते हुए कहा..
" आई एम सोरी अनिरुद्ध.. वो में जल्दी में थी इसीलिए.."

" कोई बात नही तुम्हे लगा तो नही..? "

" नही में बिल्कुल ठीक हु.. पर तुम अभी तक ऑफिस नही गए..? "

" हा बस जा ही रहा था.. "

" वो तुम्हारी मीटिंग थी ना सुबह..? "

" हा वो प्रोजेक्ट हमे मिल गया है और यही बताने में चाचू के पास आया था..."

" ओह कांग्रेट्स मि. ओब्रॉय..."

" थैंक यू.. पर ये बहुत ही लो एनर्जी वाला नही था ? "

" क्या..? "

" मेरा मतलब है की इतनी बड़ी गुड न्यूज के लिए सिर्फ कांग्रेट्स ..? और कुछ नही करोगी क्या ? " अनिरूद्ध ने शरारत के साथ कहा..

संजना के गाल शर्म से लाल हो गए..

" चलो मेरे साथ..." अनिरूद्ध संजना का हाथ पकड़कर उसे ले जाने लगा..

अनिरूद्ध संजना को लेकर अपने कमरे में आया और फिर कमरा बंध कर दिया..

" चलो अब यहां सिर्फ हम दोनो ही है.."

"अनिरूद्ध ये कोई टाइम है रोमांस करने का.. मुझे दादी बुला रही है मुझे जाना है..."

संजना जाए उससे पहले ही अनिरुद्ध ने उसे अपने करीब खींच लिया..
" इस वक्त में किसीको भी अपने बीच नही आने दूंगा.. दादी वैट कर लेगी.. तुम सिर्फ मुझ पर फोकस करो..."

" आज बड़े रोमेंटिक मुड़ में लग रहे हो ? "

" आज नही में रोज इसी मुड़ में होता हु .. तुम ज्यादा वक्त मत बरबाद करो.. मुझे मेरा स्पेशल गिफ्ट दो.."

" स्पेशल गिफ्ट ? कौन सा ? "
संजना ने जान बूझकर अंजान बनते हुए कहा..

" छोड़ो जाने दो.. तुम्हे नही पता है तो कोई बात नही में जाता हूं.." अनिरूद्ध नाराज होकर संजना का हाथ छोड़कर जाने लगा..

" रुको रुको...प्लीज मत जाओ.. में तो मजाक कर रही थी" संजना ने अनिरुद्ध का हाथ पकड़कर उसे रोकते हुए कहा.. पर अनिरुद्ध अब भी नाराज था..

" सोरी ... बेबी... प्लीज..." संजना ने मासूम फेस बनाकर कान पकड़ते हुए कहा..

संजना का क्यूट फेस देखकर अनिरुद्ध स्माइल किए बिना नहीं रह सका..

" बस इतना भी क्यूट बनने की जरूरत नहीं है..." अनिरूद्ध ने थोड़ा सीरियस होते हुए बोला.. और फिर संजना की कलाई पकड़कर उसे अपने नजदीक खींच लिया..

" जो बोला है वो करो नही तो पूरा दिन ऐसे तुम्हे पकड़कर खड़ा रहूंगा..."

अनिरूद्ध की बात सुनकर संजना ने शर्म से नजरे जूका ली..

फिर संजना धीरे धीरे अनिरुद्ध के करीब आई और उसके होठों को छू लिया..

और फिर वहा से भागती हुई चली गई.. उसे जाता देखकर अनिरुद्ध मुस्कुराने लगा..

तभी अनिरुद्ध के फोन पर शर्मा जी का कोल आया..
" हा शर्मा जी कुछ पता चला..? हम.... व्हाट ? में अभी ऑफिस आता हु.." अनिरूद्ध यह सुनकर टेंशन में आ गया .. वो भागता हुआ ऑफिस के लिए निकल गया...

ऑफिस पहुंचते ही वो तुरंत शर्मा जी के पास गया..

" अब जल्दी बताइए शर्मा जी .. क्या हुआ है ..? "

" वो सर .. वैशाली जी जिस कंपनी में फैशन डिजाइनर थी उसमे से उनको निकाल दिया है और कंपनी ने उनको १०० करोड़ देने के लिए कहा है.. और इसी वजह से उन्होंने अपना लंदन वाला बंगलों भी बेच दिया है..."

" व्हाट...? इतनी बड़ी बात हो गई और उन्होंने हमे कुछ बताया भी नही... पर उन्हे कंपनी से निकाला क्यों...? "

" किसको कंपनी से निकाल दिया..? " पीछे खड़े सौरभ ने वहा आते हुए पूछा..

उसने देखा की अनिरुद्ध परेशान सा खड़ा था..
" क्या हुआ अनिरुद्ध ? तुम इतने परेशान क्यों लग रहे हो..? "

" वो ...वैशाली चाची..." अनिरूद्ध ने सब बात सौरभ को बताई...

" पर शर्मा जी उन्होंने वैशाली चाची को निकाला क्यों ? "

" वो वैशाली जी जिस कंपनी में फैशन डिजाइनर थी वो कंपनी कुछ वक्त पहले कैनेड़ा के एक बहुत ही बड़े बिजनेस मैन ने खरीद ली थी.. "

" कैनेडा के बिजनेस मेन .. पर कौन ..? "

" केविन मैथ्यूज..."

यह नाम सुनते ही सौरभ और अनिरुद्ध एक दूसरे की और देखने लगे..

" ये तो..." सौरभ बोलते बोलते रुक गया..

" मोनाली के डेड है... केविन मैथ्यूज..." अनिरूद्ध बोला..

" जी सर... और कंपनी की सीईओ मोनाली मैथ्यूज है.. और उन्होंने वैशाली जी पर फ्रॉड का आरोप लगाया और पैसे ना देने पर पुलिस की धमकी भी दी है "

अनिरूद्ध ने यह सुनकर गुस्से से मुठ्ठी कसली...

" इस मोनाली ने जान बूझकर चाची को फसाया है..और वो भी मेरी वजह से... इसका परिणाम अब तुम्हे भुगतना पड़ेगा मोनाली... अब में तुम्हे नही छोडूंगा..." अनिरूद्ध ने जोर से दिवाल पर मुक्का मारा और गुस्से में चला गया..
सौरभ भी अनिरुद्ध के पीछे गया..

" रुको अनिरुद्ध कहा जा रहे हो ? "

" उस मोनाली को सबक सिखाने..." अनिरूद्ध अब भी रुक नही रहा था..

" स्टॉप अनिरुद्ध... गुस्से में ऐसा कुछ मत करो की फिर बाद में उसका रिग्रेट करना पड़े... और तुम जाओगे कहा..? क्या तुम्हे पता है वो अभी कहा है ? "
सौरभ की बात सुनकर अनिरुद्ध रूक गया..

" हमे पहले पता लगाना होगा की वो अभी दिल्ली में कहा है और यहां पर क्यों आई है..? "

" तुम ठीक कहे रहे हो सौरभ .. में ही गुस्से में भूल गया.. पर एक बात समझ नही आई.. वो इतने वक्त बाद वापस क्यों आई ? " अनिरूद्ध अब सोच में पड़ गया था..

" ये कौन सा खेल खेलरही है यही समझ में नहीं आ रहा है.. "

" पर मुझे धीरे धीरे समझ आने लगा है...की वो दिल्ली क्यों और किसके लिए आई है.. " इतना बोलकर अनिरुद्ध वहा से गाड़ी में बैठकर चला गया.. सौरभ भी अपने काम में लग गया..

रात हो चुकी थी किंजल कब से करन के आने का वैट कर रही थी..
करन जैसे ही उसे आता दिखाई दिया किंजल भागती हुई नीचे जाने लगी.. करन तेज कदमों से घर के अंदर चला गया... वो बहुत ही ज्यादा गुस्से में लग रहा था..

" इसे क्या हुआ ? ये इतना गुस्से में क्यों है ? क्या मेरा वहा जाना ठीक रहेगा ..? " किंजल सोच में पड़ गई ..

" जो होगा देखा जाएगा... चल किंजल मौत के कुवे में जाने के लिए तैयार हो..जा " किंजल बोली और करन के घर की तरफ जाने लगी..

करन ने गुस्से से डोर खोला और अपना कोट उतारकर गुस्से से उसे फर्श पर फैंक दिया.. उसकी आंखे लाल हो गई थी.. और उसकी आंखों में आंसू भी आ गए थे...

" क्यों मेरी जिंदगी में वापस आई हो क्यों....? " करन जोर से चिल्लाया...

" इतने वक्त में ना कोल ना मेसेज..क्या इतने वक्त में तुम्हे मेरी याद नही आई ? फिर इतने वक्त बाद क्यों ? "
करन ने शराब की बोटल निकाली और एक ही सांस में आधी बोटल खाली करदी...

तभी किंजल वहा आ गई.. उसने करन का ऐसा हाल देखा तो वो घबरा गई..
उसने डरते हुए करन के कंधे पर हाथ रखा..

करन तुरंत मुड़ा... उसकी लाल आंखे देखकर किंजल और डर गई..

" तुम यहां क्या कर रही हो ? " करन गुस्से में बोला..

" में तो तुम्हे देखने के लिए आई थी... "

" प्लीज चली जाओ यहां से.. मुझे अकेला छोड़ दो.."
करन बोलते बोलते नशे में नीचे गिरने लगा .. किंजल ने उसे पकड़ लिया..

" संभालो खुद को ...करन " किंजल ने करन को बेड पर बिठाया..

किंजल ने उसके हाथ में शराब की बोटल ले ली और उसे दूर रख दी..

" वो मुझे चाहिए.. मुझे मेरी बोटल वापस दो.."

" नही... चुपचाप यहां बैठो.. एकदम चुप " किंजल ने जोर से करन को डांटते हुए कहा..

करन यह सुनकर मुंह पर उंगली करके बैठ गया..

" अब बताओ क्या हुआ है ? ऐसा हाल क्यों बनाया है ? "

यह सुनकर करन की आंखों से फिर से आंसू बहने लगे..

" शी इस बैक... इतने वक्त बाद वो फिर से वापस आ गई है .." करन की बात सुनकर किंजल शॉक्ड रह गई..

" कौन वापस आ गई है ? "

" मोनाली... वो यही दिल्ली में है.. मुझसे मिलने आई थी.. उसने कहा की वो अब भी मुझसे प्यार करती है.. तो फिर वो मुझे छोड़ कर क्यों चली गई थी..? तुम ही बताओ किंजल मेरी क्या गलती थी ? "
किंजल की आंखो से भी आंसू बहने लगे.. उसे अब उसकी उम्मीद भी टूटती हुई नजर आने लगी थी..

" तो फिर तुमने क्या कहा करन ? "

" मैंने कुछ नही कहा.. ये दिल अब टूट गया है.. अब इसमें किसी के लिए जगह नहीं बची है..उसने कहा वो सिर्फ मेरे लिए वापस आई है.. पर मुझे नही पता की मुझे क्या करना है ..."

" तुम वही करो जो तुम्हारा दिल कहता है.. " किंजल ने करन के हाथ पर हाथ रखते हुए कहा.. करन ने किंजल की और देखा... दोनो थोड़ी देर के लिए एक दूसरे की आंखो में देख रहे थे.. कुछ देर में करन की आंखे बंध होने लगी...
किंजल ने करन को बिस्तर पर लेटाया.. और कंबल ओढ़ाकर वहा से अपने घर आ गई..

पूरी रात मोनाली के आने के ख्याल से उसे नींद नही आई... सुबह होते ही उसने संजना और अनिरुद्ध को फोन करके सारी बात बताई...

" तो मेरा शक सही था.. वो करन को वापस पाने के लिए ही दिल्ली आई है.. " अनिरुद्ध ने कुछ सोचते हुए कहा..

" पर अब उसे करन से क्या चाहिए..? "

" संजू तुम्हे नही पता की इस साल के टॉप बिजनेस मेन में करन का नाम भी शामिल था.. "

" हा पर ..." संजना कहते कहते अटक गई..

" करन को अपने साथ जोड़कर अब वो ओब्रॉय इंडस्ट्री को गिराना चाहती है.. इसीलिए उसने पहला वार वैशाली चाची को उस कंपनी से हटाकर किया.. वो हमारे एक एक मेंबर को कमजोर बनाना चाहती है.. उसे लगा की वो यह सब करके मनीष चाचू को कमजोर बना देगी तो वो गलत है में ऐसा होने नही दूंगा..." अनिरूद्ध ने भी अब कुछ बड़ा अपने दिमाग में सोच लिया था..

" पर तुम क्या करोगे अनिरुद्ध ? "

" अब मनीष चाचू को इस कंपनी में उनका हिस्सा देने का वक्त आ गया है..जिस बात पर मैंने इतने साल में ध्यान नहीं दिया उसे करने में में अब और वक्त नहीं लगाऊंगा..."
संजना का चहेरा भी यह सुनकर खिल उठा..

🥰 क्रमश : 🥰