Juari - 5 in Hindi Anything by Brijmohan sharma books and stories PDF | जुआरी फिल्मप्रोड्यूसर - 5

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जुआरी फिल्मप्रोड्यूसर - 5

(5)

गुंडा साहूकार
शूटिंग फिर से शुरू हो गई।

किन्तु महंगाई बढ़ने से तीस प्रतिशत फिल्म का काम अधूरा रह गया।

पैसा समाप्त, फिल्म रूकी - यही फिल्म व्यवसाय का कठोर अवश्यम्भावी नियम है |

विजय अपने स्टेज पर चिंतामग्न बैठा था तभी उसे एक फाइनेन्सर मधुर अपनी ओर आता दिखाई दिया । वह ऐक बदनाम व्यक्ति था । वह जिसकी भी मदद करता उसे बुरी तरह निचोड़ कर छोउ़ता था । इतना ही नही वह मर्द की अनुपस्थिति मे मदद लेने वालों के घर जाकर उनकी बहू बेटियों के साथ जबर्दस्ती करता था । उसने गुंडों की फौज पाल रखी थी । विजय ने बउ़ी गर्म्रजोशी से उसका स्वागत किया । मधुर ने विजय की मां को एक बार देखा था । वह उस पर फिदा हो गया था।

विजय ने मधुर को पास की होटल पर खाने का निमंत्रण दिया ।

मधुर ने कहा ‘ अरे विजय ! होटल मे क्यों जाएँ? तुम्हारे घर पर तुम्हारी मां के हाथों का खाना खाएंगे । ’

विजय ने कहा ‘ मेरे लिए इससे बढ़कर और क्या सौभाग्य की बात हो सकती है ! ’

वे दोनो विजय के घर पहुंचे । रात हो चुकी थी । अरू ने मेहमान समझ कर मधुर का गर्मजोशी से स्वागत किया । मधुर कुछ देर तक अपलक अरू को निहारता रहा । उसने ऐसी सुंदर युवती पूरे मुम्बई मे नहीं देखी थी ।

विजय ने अरू से कहा ‘ ये साहब मधुर हें । पूरी फिल्म इंडस्ट्री के मालिक हें | इनकी अच्छी खातिरदारी होना चाहिए ।’

इतना कहकर विजय बाथरूम मे फ्रेश होने चला गया ।

अरू मेहमान के लिए ट्रे मे कुछ नाश्ता व काफी लेकर आई ।

अरू को देखकर मधुर को उसके सौन्दर्य का नशा हो गया । वह अपना होंश भूल बैठा | उसने अरू की कलाई पकड़कर अपने पास बिठा लिया व उसे चूमने की कोशिस करने लगा ।

अरू ने अपनी कलाई उससे छुउ़ाई व कहा ‘ बदतमीज बूढे ! तुझे शर्म नही आती ।’

अरू ने उसे जोर से धक्का देकर जमीन पर गिरा दिया ।

मधुर “अरे बाप रे मार डाला“ चिल्लाता हुआ फर्श पर धम्म से जा गिरा |

जोरों की आवाज सुनकर विजय व उसकी मां दौड़कर वहां आए ।

अरू ने कहा ‘ यह बूढ़ा मेरे साथ बदतमीजी कर रहा था ।’

इस पर मधुर ने कहा ‘ मैने तो आपसे मेरे पास बैठने को कहा था । इतनी सी बात पर आपने तूफान मचा दिया ’

उसके चेहरे का रंग उड़ चुका था । उसकी चोरी रंगे हाथों पकड़ी गई थी ।

मां ने कहा ‘ विजय तेरे फिल्म वाले बदमाशों को हमारे घर पर मत लाया कर ।’

इस पर विजय अरू को मधुर के साथ बदतमीजी करने पर डांटने लगा ।

घर मे झगड़ा बढ़ते देख मधुर चुपके से वहां से खिसक लिया । वह समझ चुका था कि उसकी दाल वहां नहीं गलने वाली थी ।

 

पत्नी ने छोड़ा
दूसरी सुबह अरू ने अपना सारा सामान पेक किया और अपनी बच्ची को लेकर घर से बाहर जाने लगी ।

विजय ने पूछा ‘कहां जा रही हो ? ’

‘मैं अपने पिता के यहां सदैव के लिए जा रही हूं ।’

‘बहुत अच्छा, अब लौट कर भी मत आना।’

‘अब मुझे कभी लेने भी मत आना ।’

अरू तेजी से सीढ़ियां उतरने लगी । विजय की मां ने उसे रोकना चाहा ।

सास ने कहा, “बेटी ! अरु! विजय की मज़बूरी भी तो समझ | वह कितने टेंशन में रहता है ! उसे फ़ायनेन्स के लिए भारी मारामारी करना पड़ती है|”

उसकी सास ने उसे बहुत समझाया किन्तु वह बोली ‘ विजय मुझे फिल्मी गुंडों की खातिरदारी करने को कह रहा है । अब हद हो चुकी है । मैं अब यहां कभी नही आउंगी। ’

वह किसी बात को सुनने को तैयार नहीं थी ।

 

खटपट झगड़ा
अपने पिता के घर पहुंचते ही अरू जोर जोर से रोने लगी ।

उसके माता पिता अरु को अचानक अपनी बेटी के साथ देख हतप्रभ रह गए ।

अरू ने सिसकते हुए कहा ‘ पापा विजय घर पर गुंडे मव्वाली लाता है व मुझे उनकी खातिरदारी करने को कहता है । गुंडे मेरे साथ अश्लील हरकतें करते हैं । वह अनेक लड़कियों से संबंध रखता है । अब मैं वहां कभी नहीं जाउंगी । ’

उसके मां बाप भी रोने लगे ।

उसके पापा ने कहा ‘ मैने तुझे इस विवाह के लिए कितना मना किया था किन्तु तूने मेरी एक बात नही मानी । ये बम्बई के फ़िल्मी लोग तो होते ही गुंडे हैं । अब विजय को एक बुरे सपने के समान भूल जा ।’

अरू ने एक प्रतिष्ठित स्कूल मे नौकरी कर ली ।

 

मकान गिरवी
 

विजय ने नये फाइनंन्सर तलाश करना शुरू कर दिया ।

फिल्म का थोंड़ा ही काम बाकी था । विजय सट्टेबाज के रूप मे इतना कुख्यात हो गया कि कोई फाइनेंसर उसे धन देने को तैयार नहीं था । अधिकांश फाइनेन्सर अपने जासूसों के द्वारा लोन लेने वाले व्यक्ति की पूरी हिस्ट्री जान लेते हें । वे पूर्व फाइनेंन्सर से भी तलाश निकालते हैं ।

विजय एक छोटे फाइनेन्सर के पास पहुंचा ।

उसने कहा ‘ मुझे अपनी फिल्म के लिए फाइनेन्स चाहिए । मेरा थोड़ा सा ही काम बचा है । ’

फाइनेन्सर ने कहा ‘ हम फिल्म के लिए धन नहीं देते हैं । ’

‘आप किस कार्य के लिए ऋण देते हैं?’

‘हम आपको गोल्ड पर ऋण दे सकते हैं।’

‘और किस चीज पर?’

‘मकान व दुकान पर’

विजय को एक खतरनाक प्लान सूझा । वह कुछ देर चुप रह कर बोला

‘मेरा मकान मेरी मां के नाम है । मुझे मात्र पचास हजार रूपये चाहिए । मकान की कीमत पचास लाख रूपये है । हम पूरा मकान गिरवे नहीं रख सकते ।’

‘हम मकान के एक छोटे भाग को गिरवी रखकर आपको लोन दे सकते हैं ।

लेान चुकता न करने की स्थिति में हम उसे किराये पर उठाकर अथवा बेचकर अपना धन वसूल कर लेंगे ।’

विजय मकान के एक छोटे भाग को गिरवी रखने के लिए राजी हो गया । व्यापारी ने उसे कुछ स्टाम्प पेपर पर उसके व उसकी मां के हस्ताक्षर व मकान की रजिस्ट्री लाने को कहा ।

दूसरे दिन विजय ने मां के फर्जी साइन किये और कागज व्यापारी को सौंप दिए ।

पचास हजार रूपये उसके पर्स में थे । शूटिंग का काम फिर तेजी से शुरू हो गया ।

 

महंगाई बढ़ने से फायनेंसर से प्राप्त धन कम पड़ गया |

जितना धन बचा था उससे फिल्म पूरी होना संभव नहीं था |

उसे फिर अपना पुराना बिजनेस का ख्याल आया | उसने सोचा वह कुछ ही दिनों में अपना धन कई गुना कर लेगा |

शेयर मार्केट बड़ी तेजी से उपर जा रहा था ।

यह ऐसा मार्केट है जिसकी लत कभी नहीं छूटती । विजय ने फिर से अपना भाग्य शेयर मार्केट मे आजमाने की सोची । उसने फिल्म के लिए सुरक्षित सारा धन मार्क्रेट मे लगा दिया । इस बार उसने छोटी व आर्डिनेरी कंपनियों में पैसा लगा दिया । ये कम्पनियां बहुत तेजी से बढ़ती व गिरती हैं । इनमें भारी सटृा चलता हे । विजय का पैसा एक माह में पच्चीस प्रतिशत बढ़ चुका था । किन्तु वह अपना धन कई गुना करना चाहता था ।

इतने में एक खबर ने मार्केट में तूफानी गिरावट पैदा कर दी । केन्द्र सरकार से एक सहयोगी दल ने अपना समर्थन वापस ले लिया । इससे सरकार के अस्तित्व का संकट पैदा हो गया । कुछ दिनों में ही विजय का सारा धन डूब गया । जिन कम्पनियों में उसने पैसा लगाया था उनका कोई खरीददार नहीं था ।

वे सब फ्राड कम्पनियां थी । वे मार्केट से धन बटोरकर गायब हो चुकी थी ।

उनके कोई पते ठिकाने तक नहीं थे । उनकी शिकायत करने पर कोई सुनने वाला नहीं था । हर जगह बेईमानों की चांदी होती है । पूरी सरकारी मशीनरी उनका साथ बड़ी मुस्तैदी से देती है ।

कर्जदारों से परेशान होकर विजय इंदौर भाग निकला ।

वह सीधा अपने ससुराल जा पहुंचा । उसने सांकल खटखटाई ।

उसके ससुर लाल बाहर निकले । वे विजय को देखकर गुस्से से तमतमाने लगे ।

वे बोले : ‘विजय ! सीधे से यहाँ से चला जा ! यहां अब क्या लेने आया है ? ’

विजय ने कहा ‘ मैं अपनी पत्नि व बेटी से मिलने आया हूं ।’

‘वे तुम्हारे लिए मर चुके हैं ।’

उसके ससुर ने दरवाजा जोर से बंद कर लिया ।

विजय वहीं खड़ा रहा । उसने दरवाजा खटखटाया |

उसने जोर से आवाज लगाई, ‘मैं अरू से बगैर मिले नहीं जाउंगा । ’

झगड़ा देखकर वहां भीड़ इकट्ठी हो गई ।

थोड़ी देर बाद अरू खिड़की में आई । वह रोते हुए बोली ‘ यहां से चले जाइये और फिर कभी मत आना । आपका अब मुझसे कोई रिश्ता नहीं रहा । ’

विजय ने उसे काफी मनाने की कोशिश की किन्तु अरू कुछ सुनने को तैयार नहीं थी । उसने खिड़की भी बंद करली ।

 

ज्योतिष सलाह 2
 

विजय जिंदगी से परेशान हो चुका था । उसे कोई हल नहीं सूझ रहा था ।

उसने अपनी जन्मकुंडली ज्योतिषी मोहन को बताई ।

मोहन ने कहा ‘ तुम्हे शीघ्र बहुत बड़ा प्राफिट होगा ।’

विजय ने कहा ‘ मेरे तो खाने के लाले पड़े हुए हें । मुझे कहां से धन मिलेगा ? चलो मन के लड्डू तो खा लूं ।’

‘मेरे तकदीर में आगे क्या है?’

‘तुम्हारा अपनी पत्नि से भारी झगड़े की संभावना है।’

‘वह तो दिखाई दे रहा है।’

‘तुमने पूर्व में मुझे शेयर मार्किट से भारी प्रॉफिट मिलने की सम्भावना बताई थी किन्तु मुझे प्रॉफिट की जगह नुकसान हुआ|’

‘तुम्हे मैंने सावधानी से अच्छी कंपनियों में निवेश करने को कहा था | पहली बार तुमने ब्लू चिप कंपनियों में निवेश किया तो काफी प्राफिट कमाया था | किन्तु बाद में तुम थर्ड क्लास कंपनियों में पैसा लगाकर फंस गए |’

“तुम्हारा कहना सही है|’

विजय ने एक बार फिर से अरू को समझाने का प्रयास किया ।

कुछ दिन बाद वह पुनः अरू के घर पहुंचा ।

दरवाजा खोलने पर उसे देखते ही उसका ससुर लाल उस पर फिर भड़क गया । उसने विजय को देखते ही दरवाजा बंद कर लिया । वह खिउ़की से उसे गालियां देने लगा ।

लाल ने कहा, “ यहाँ फिर से क्यों आया, नालायक, बेशर्म ?”

इस पर विजय भी चिल्लाते हुए बोला, “ मै आपसे नहीं अपने पत्नि व बेटी से मिलने आया हूँ |”

“अब वह तेरी पत्नि नहीं है “|

“आप मेरे प्रय्वाते मामले में दखल देने वाले कौन?”

उसने कहा ‘ ऐ नालायक ! हमारा तुमसे कोई संबंध नही है । यहां फिर मत आना ।’

इस पर विजय भी उस पर जोर जोर से चिल्लाने लगा ।

उसने कहा : मैं अपनी पत्नि व बेटी से मिले बगैर हरगिज नहीं जाउंगा । ’

अंत में अरू खिड़की मे आई | वह उस पर चिल्लाते हुए कहने लगी,

‘मुझे अपने आप को तुम्हारे फाइनेन्सरों के सामने पेश नहीं करना है । आगे से अपनी शकल मुझे मत बताना।’

अरू की बात सुनकर विजय अवाक् रह गया । उसने सपने में भी इस स्थिति के बारे में सोचा तक नहीं था ।

वह मधुर की बदतमीजी की सजा भुगत रहा था । उसकी अपनी गलती भी थी कि उसने मधुर के बारे मे जानते हुए उसे घर बुलाया ।

उस एक घटना ने उसकी ग्रहस्थी सदा के लिए उजाड़ दी ।

 

माँ की मृत्यु
 

दूसरे दिन विजय को मुंबई से एक अर्जेंट कॉल आया, ‘ विजयजी ! हम अरविंद हास्पिटल से बोल रहे हैं । आपकी मां सख्त बीमार है । ’

विजय पहली गाड़ी से सीधे बॉम्बे के उस हास्पिटल पहुंचा । तब तक उसकी मां की मृत्यु हो चुकी थी ।

वह फूट फूट कर रो रहा था । उसने पहली बार जीवन में नितांत अकेला होने का अनुभव किया । वह मन ही मन - पश्चाताप कर रहा था । उसने कभी अपनी मां को सुख नही दिया बल्कि सदैव दुख ही दिया । सटृा कितनी बुरी चीज है ! जिसने उसे पूरी तरह बर्बाद कर दिया । अब पछताने के सिवा कुछ नही किया जा सकता था ।

मां की अंत्येष्टि के बाद उसने घर की सफाई की । मां की आलमारी साफ करते हुए उसे एक बड़ा लिफाफा मिला । वह धूल से भरा था | उसने उस लिफाफे की धूल हटाई व उसे खोला ।

उसमे अनेक ब्लू चिप कम्पनियों के ढेरों शेयर मिले । वह बहुत पहले उन्हे खरीद कर भूल चुका था । उनकी कीमत बुरी तरह गिरने से उन्हे व्यर्थ समझ कर उसने उन्हें ऐक ओर फेंक दिया था । उसे मां की एफ. डी॰ की पास बुक भी मिली । उसमे मूल रकम दो लाख रूपये थी ओर ब्याज के साथ तो बहुत ज्यादा करीब चार लाख रूपये मिलने वाले थे । यह रकम मां ने विजय के नाम कर रखी थी । वह रोने लगा । उसकी मां उसका कितना खयाल रखती थी !

विजय ने अपने ब्रोकर को फोन करके उन शेयरों की कीमत ज्ञात की । वे बहुत ऊंची कीमत पर कोट हो रहे थे ।

उसने सारे शेयर बेच दिए । उसे एक लाख रूपये से अधिक मिले । जबकि उसकी खरीदी कीमत मात्र पच्चीस हजार थी ।

उसने अपनी अधूरी फिल्म की शेष शूटिंग काश्मीर में पूरी की । फिल्म चंद दिनों मे ही पूरी हो गई । अब बाजार में फिल्म उतारना था । फिल्म के पहले शो के लिए उसने पहला शहर इंदौर चुना ।