Mere Ghar aana Jindagi - 25 in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | मेरे घर आना ज़िंदगी - 25

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मेरे घर आना ज़िंदगी - 25



(25)

अमृता के साथ जो बहस हुई थी उसके बाद समीर समझ गया था कि उसके लिए राह बहुत अधिक कठिन होने वाली है। अपनी मम्मी का रुख जानने के बाद समीर को बहुत धक्का लगा था। जो लड़ाई वह लड़ना चाहता था उसमें उसे अपनी मम्मी के साथ की बहुत अधिक आवश्यकता थी। लेकिन अमृता ने तो उससे अपनी लड़ाई छोड़कर समझौता कर लेने को कहा था। वह ऐसा करना नहीं चाहता था।
समीर बहुत अधिक निराश हो गया था। उसकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था। किसी भी चीज़ में उसका मन नहीं लगता था। उसके मन में पढ़ लिखकर कुछ कर दिखाने के जिस जज़्बे ने जन्म लिया था वह भी अब खत्म हो गया था। उसे लगता था कि इस दुनिया में उसका कोई नहीं है। अपनी मम्मी से उसे उम्मीद थी। लेकिन वह भी दुनिया के साथ ही मिल गई थीं।
आज उसका रिज़ल्ट आना था। पर उसके अंदर रिज़ल्ट के लिए कोई उत्साह नहीं था। वह बेमन से तैयार होकर स्कूल पहुँचा था। उसके आसपास सभी बच्चे बहुत उत्साहित थे। आपस में बात करके अनुमान लगा रहे थे कि किसको कितने नंबर मिलेंगे। श्रेयस भी अपने ग्रुप के साथ इसी विषय में बात कर रहा था। सभी उससे कह रहे थे कि क्लास में फर्स्ट आने के उसके चासेज़ सबसे अधिक हैं। श्रेयस की नज़र समीर पर पड़ी तो उसने कहा,
"तुमको क्या लगता है ? पास हो जाओगे ना।"
समीर का मन खिन्न था। वह श्रेयस से उलझना नहीं चाहता था। वह चुपचाप जाकर अपनी जगह पर बैठ गया। श्रेयस ने चिढ़ाने के लिए कहा,
"हिस्ट्री के टेस्ट में जैसे तैसे पास हो गए थे। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हर सब्जेक्ट में पास हो जाओगे।"
समीर को बात बुरी लगी। पर उसने कुछ नहीं कहा। श्रेयस को लगा कि उसका वार खाली गया। उसने कहा,
"खैर तुम्हें फर्क भी क्या पड़ेगा। तुम्हारे लिए तो एक शानदार करियर ऑप्शन मौजूद है।"
यह कहकर उसने खास तरीके से ताली बजाई। श्रेयस के ग्रुप के लोग हंसने लगे। बाकी समीर को घूर रहे थे। समीर के लिए बर्दाश्त करना मुश्किल था। वह अपनी जगह से उठा और जाकर श्रेयस को दो मुक्के जड़ दिए। उसके बाद श्रेयस और उसके साथियों ने मिलकर उसे पीटना शुरू कर दिया। इस मारपीट के बीच ही क्लास टीचर ने प्रवेश किया। उनके हाथ में रिपोर्ट कार्ड का बंडल था। क्लास टीचर के आते ही श्रेयस ने कहा,
"सर मैंने बस इतना पूछा था कि तुम्हें क्या उम्मीद है ? कैसा रिज़ल्ट रहेगा ? इतना सुनते ही इसने मुझे घूसे मारने शुरू कर दिए। मेरे दोस्तों ने बचाने की कोशिश की तो उन्हें भी मारने लगा। हमको भी गुस्सा आ गया।"
क्लास टीचर भी उनमें थे जो समीर को पसंद नहीं करते थे। उन्होंने श्रेयस की बात पर विश्वास कर लिया। समीर ने कुछ कहना चाहा तो उसे एक थप्पड़ मारकर कहा,
"तुमसे उम्मीद थी क्या की जा सकती है। पहले इतना कांड करके स्कूल को बदनाम किया। अब लोगों को मारते हो।"
समीर ने सब पर एक नज़र डाली। सब चुपचाप देख रहे थे। कोई भी यह कहने के लिए आगे नहीं आया कि गलती श्रेयस की थी। वह अपमानित महसूस कर रहा था। वह क्लास से निकल गया।

अमृता इंतज़ार कर रही थी कि समीर रिज़ल्ट लेकर आएगा। उसका रिज़ल्ट देखकर वह ऑफिस जाएगी। डोरबेल बजी। उसने दरवाज़ा खोला। समीर सर झुकाए खड़ा था। दरवाज़ा खुलते ही वह सीधा अपने कमरे में चला गया और दरवाज़ा बंद कर लिया। अमृता ने दरवाज़े पर नॉक करके कहा,
"क्या हुआ समीर ? तुम्हारा रिज़ल्ट कैसा रहा ?"
समीर ने कोई जवाब नहीं दिया। अंदर से उसके रोने की आवाज़ें आ रही थीं। अमृता घबरा गई। उसने कहा,
"कोई बात नहीं है। इस साल इतना कुछ हुआ। सब डिस्टर्ब हो गया। अगले साल मेहनत करना।"
समीर ने कुछ नहीं कहा। अमृता डर रही थी कि कहीं वह कुछ कर ना बैठे। उसने कहा,
"दरवाज़ा खोलो। मुझे अंदर आना है।"
अभी भी कोई जवाब नहीं मिला। तभी उसे अपने फोन की रिंग सुनाई पड़ी। उसने फोन उठाया तो समीर के प्रिंसिपल का था। प्रिंसिपल ने कहा कि वह फौरन समीर के साथ स्कूल पहुँचे। अमृता ने पूछा कि बात क्या है तो उन्होंने सख्त लहज़े में कहा कि यहाँ आइए तब बात होगी। फोन पर बात होने के बाद अमृता ने ज़ोर से दरवाज़ा पीटते हुए कहा,
"समीर दरवाज़ा खोलो। बताओ कि स्कूल में क्या हुआ था। प्रिंसिपल का फोन आया था। वह हम दोनों को बुला रहे हैं। बाहर आकर सब बताओ।"
समीर दरवाज़ा खोलकर बाहर आया। उसने सारी बात बताई। सुनकर अमृता सोच में पड़ गई। उसने समीर से कहा,
"चलो स्कूल चलकर सब बताओ।"
समीर को लेकर वह प्रिंसिपल से मिलने चली गई।

प्रिंसिपल बहुत खराब मूड में थे। अमृता के सामने रिपोर्ट कार्ड रखते हुए बोले,
"जैसे तैसे पास हो गया है। अब यह स्कूल इसकी बद्तमीज़ियां और नहीं झेल सकता है। मैं टीसी देने को तैयार हूँ। आप कहीं और इसका एडमीशन करा लीजिएगा।"
अमृता ने रिपोर्ट कार्ड देखा। समीर जिन हालातों से गुज़रा था उन्हें देखते हुए रिज़ल्ट खराब नहीं था। उसने प्रिंसिपल से कहा,
"सर कम से कम समीर को उसका पक्ष रखने का मौका दिया जाना चाहिए था।"
प्रिंसिपल ने समीर को घूरते हुए कहा,
"क्या मौका दिया जाना चाहिए था। इसने क्लास में मारपीट की। यह सब हमारे स्कूल में नहीं चलेगा।"
समीर ने कहा,
"पर सर बात श्रेयस ने......"
उसकी बात काटकर प्रिंसिपल ने डांटते हुए कहा,
"चुप करो.....तुम्हारा मतलब है कि क्लास टीचर झूठ बोल रहे हैं। सारे बच्चे झूठ बोल रहे हैं। सिर्फ तुम सच्चे हो।"
अमृता ने कहा,
"आप कम से कम उसकी बात तो सुन लीजिए।"
प्रिंसिपल ने रुखाई से कहा,
"मिसेज़ पुरी हमें अब कुछ सुनना नहीं है। समीर ने क्लास टीचर के साथ बद्तमीज़ी की है। बिना उनकी इजाज़त लिए घर चला गया था। क्लास में मारपीट की। अभी मैं टीसी देने को तैयार हूँ। नहीं तो बुरे बर्ताव के कारण इसे स्कूल से निकाल दूँगा। तब कोई भी स्कूल इसका एडमीशन नहीं लेगा"
प्रिंसिपल ने धमकी देकर बात खत्म कर दी। अमृता को भी लगा कि इस तरह के माहौल में समीर वैसे भी पढ़ नहीं पाएगा। उसने कहा,
"सर जब आपको कुछ सुनना ही नहीं है तो ठीक है आप टीसी दे दीजिए।"
प्रिंसिपल ने अपनी दराज़ से टीसी निकाल कर अमृता को पकड़ा दी। वह‌ समीर को लेकर वापस चली गई।

अमृता को ऑफिस जाने में देर हो रही थी। लेकिन जो कुछ भी घटा उससे वह परेशान थी। उसने समीर से कहा,
"अब क्या होगा ? दूसरा स्कूल भी आसानी से एडमीशन नहीं लेगा।"
समीर ने कहा,
"मैं ओपन स्कूल से पढ़ाई कर लूँगा।"
अमृता को उसका जवाब पसंद नहीं आया। उसने कहा,
"देख लिया कितनी मुश्किलें हैं। लोग चैन से रहने नहीं देते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि दुनिया के हिसाब से चला जाए।"
यह सुनकर समीर ने गुस्से से कहा,
"आपका कहना है कि मेरे साथ जो कुछ हुआ उसे चुपचाप सह लेता। तब भी क्या लोग मुझे चैन से रहने देते।"
"तो फिर भगवान ने जैसे बनाकर भेजा है उसे स्वीकार क्यों नहीं करते हो। भगवान ने तुम्हें लड़का बनाया है।"
"भगवान ने अगर लड़का बनाया था तो मुझे लड़कियों वाली भावनाएं क्यों दीं। क्यों मैं अपनी पहचान से खुश नहीं रह पा रहा हूँ।"
"अभी मन नहीं भरा है तुम्हारा। अभी कुछ नहीं किया तब यह हाल है। तुम जो सोच रहे हो उसके बाद क्या होगा कभी सोचा है।"
समीर यह सुनकर गुस्से में बोला,
"मैं क्या करूँ ? मुझसे ऐसे नहीं रहा जाएगा।"
अमृता उसका जवाब सुनकर भड़क गई। उसने कहा,
"अपने मन की करो और मेरी मुसीबत बढ़ाओ।"
अपना फोन उसके सामने करते हुए बोली,
"देखो बॉस का फोन आ रहा है। अब तक मुझे ऑफिस में होना चाहिए था। पर इस सबके चक्कर में देर हो गई। अब ऑफिस में डांट पड़ेगी। तुम मुझे बताओ कि मैं क्या करूँ।"
अमृता ने कॉल आंसर करके बॉस से बात की। उसके बाद अपना बैग उठाकर निकल गई। समीर बहुत अधिक दुखी था। इस समय पूरी दुनिया उसे अपनी दुश्मन लग रही थी। हताशा में वह रोने लगा।
अमृता ऑफिस पहुँची तो बॉस ने केबिन में बुलाकर कहा,
"क्या बात है ? आप इतनी देर से क्यों आईं ?"
"सर आज समीर का रिज़ल्ट...."
बॉस ने टोंकते हुए कहा,
"सबके साथ पर्सनल प्रॉब्लम्स हैं। पर मुझे इस ऑफिस में एक अनुशासन बनाकर रखना है। आप देर से आई हैं इसलिए आधे दिन की सैलरी काटी जाएगी। आगे से ध्यान रखिएगा। अब जाइए।"
‌अमृता जब सीट पर लौटी तो सब उसकी तरफ ही देख रहे थे। सबकी नज़रों की अनदेखी करते हुए वह अपना काम करने लगी। वह भी अंदर से टूटा हुआ महसूस कर रही थी। चाहती थी कि इस कठिन समय में कोई उसे सांत्वना दे। लेकिन कोई भी नहीं था जो उसके दर्द को समझ कर उसे हौसला देता। इस अकेलेपन के एहसास में उसे समीर का खयाल आया।
वह सोच रही थी कि समीर भी कितना अकेला पड़ गया है। समीर को उसकी ज़रूरत है। यह खयाल आते ही मन में एक डर आया कि कहीं आज जो कुछ हुआ उसके कारण समीर कुछ कर ना ले। इस खयाल ने उसे बहुत परेशान कर दिया।