Pen soldier Ganesh Shankar Vidyarthi in Hindi Motivational Stories by दिनू books and stories PDF | कलम के सिपाही गणेश शंकर विद्यार्थी

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कलम के सिपाही गणेश शंकर विद्यार्थी

कलम के सिपाही गणेश शंकर विद्यार्थी के जन्मदिवस (26 अक्टूबर) पर

यह समय ऐसा है जब फ़ासिज्म का काला घटाटोप समाज के ऊपर छाया हुआ है, हर बेहतर चीज पर धूल-राख डाली जा रही है, आज़ाद विचारों का गला घोंटा जा रहा है, जनपक्षधर बुद्धिजीवियों को निशाना बनाया जा रहा है। ऐसे दौर में गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे कलम के सच्चे सिपाही को याद करना और भी ज़रूरी हो जाता है।

इलाहाबाद के अतरसुइया में पैदा होने वाले गणेश शंकर विद्यार्थी ने राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान उस दौर की कई महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में लिखा और हिन्दी पट्टी में राष्ट्रीय चेतना के प्रसार कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ‘स्वराज्य’, ‘अभ्युदय’, ‘हितवार्ता’ आदि पत्रिकाओं में लेखन कार्य के अतिरिक्त वह ‘सरस्वती’ के सहायक सम्पादक भी रहे और बाद में ‘प्रताप’ का सम्पादन किया। घनघोर आर्थिक समस्याओं का सामना करते हुए, स्वास्थ्य समस्याओं को झेलते हुए, जेल-यात्राओं और सेंसरशिप के बीच लगातार ‘प्रताप’ लगातार निकलता रहा। ‘प्रताप’ के माध्यम से गणेशशंकर विद्यार्थी ने क्रान्तिकारियों को अपने विचारों के प्रसार के लिए एक मंच प्रदान किया था।

गणेश शंकर विद्यार्थी कमरे में बैठ कर लेखन करने वाले बुद्धिजीवी नहीं थे। अपने निर्भीक लेखन, राष्ट्रीय आन्दोलन और किसान आन्दोलन में भागीदारी के चलते कई बार उन्हें जेल जाना पड़ा और जुर्माना भरना पड़ा। कानपुर में गणेशशंकर विद्यार्थी ने 1919 में ने 25000 मज़दूरों की सफ़ल हड़ताल का नेतृत्व किया था। खुद को गाँधीवादी कहने के बावजूद मज़दूर आन्दोलन को प्रति उनके दृष्टिकोण, सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन से उनकी सहानुभूति जगजाहिर है। ‘प्रताप’ में काम करने के दौरान भगतसिंह की लेखनी को माँजने में विद्यार्थी जी का महत्वपूर्ण योगदान था। अशफ़ाक़उल्ला खाँ ने अपना आखिरी खत गणेश शंकर विद्यार्थी के पास भेजा था।

भगतसिंह की शहादत के बाद अंग्रेजों द्वारा जानबूझकर कराए गए साम्प्रदायिक दंगों को शांत कराने की कोशिश में गणेश शंकर विद्यार्थी शहीद हो गये। आज गणेश शंकर विद्यार्थी के जन्मदिवस पर क्रान्तिकारी सलाम
कलम के सिपाही गणेश शंकर विद्यार्थी के जन्मदिवस (26 अक्टूबर) पर

यह समय ऐसा है जब फ़ासिज्म का काला घटाटोप समाज के ऊपर छाया हुआ है, हर बेहतर चीज पर धूल-राख डाली जा रही है, आज़ाद विचारों का गला घोंटा जा रहा है, जनपक्षधर बुद्धिजीवियों को निशाना बनाया जा रहा है। ऐसे दौर में गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे कलम के सच्चे सिपाही को याद करना और भी ज़रूरी हो जाता है।

इलाहाबाद के अतरसुइया में पैदा होने वाले गणेश शंकर विद्यार्थी ने राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान उस दौर की कई महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में लिखा और हिन्दी पट्टी में राष्ट्रीय चेतना के प्रसार कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ‘स्वराज्य’, ‘अभ्युदय’, ‘हितवार्ता’ आदि पत्रिकाओं में लेखन कार्य के अतिरिक्त वह ‘सरस्वती’ के सहायक सम्पादक भी रहे और बाद में ‘प्रताप’ का सम्पादन किया। घनघोर आर्थिक समस्याओं का सामना करते हुए, स्वास्थ्य समस्याओं को झेलते हुए, जेल-यात्राओं और सेंसरशिप के बीच लगातार ‘प्रताप’ लगातार निकलता रहा। ‘प्रताप’ के माध्यम से गणेशशंकर विद्यार्थी ने क्रान्तिकारियों को अपने विचारों के प्रसार के लिए एक मंच प्रदान किया था।

गणेश शंकर विद्यार्थी कमरे में बैठ कर लेखन करने वाले बुद्धिजीवी नहीं थे। अपने निर्भीक लेखन, राष्ट्रीय आन्दोलन और किसान आन्दोलन में भागीदारी के चलते कई बार उन्हें जेल जाना पड़ा और जुर्माना भरना पड़ा। कानपुर में गणेशशंकर विद्यार्थी ने 1919 में ने 25000 मज़दूरों की सफ़ल हड़ताल का नेतृत्व किया था। खुद को गाँधीवादी कहने के बावजूद मज़दूर आन्दोलन को प्रति उनके दृष्टिकोण, सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन से उनकी सहानुभूति जगजाहिर है। ‘प्रताप’ में काम करने के दौरान भगतसिंह की लेखनी को माँजने में विद्यार्थी जी का महत्वपूर्ण योगदान था। अशफ़ाक़उल्ला खाँ ने अपना आखिरी खत गणेश शंकर विद्यार्थी के पास भेजा था।

भगतसिंह की शहादत के बाद अंग्रेजों द्वारा जानबूझकर कराए गए साम्प्रदायिक दंगों को शांत कराने की कोशिश में गणेश शंकर विद्यार्थी शहीद हो गये। आज गणेशशंकर विद्यार्थी के जन्मदिवस पर क्रान्तिकारी सलाम